नव सृजन प्रतियोगिता


ताटंक छंद

रंग चढ़ा सुख दुख के मन को,रब ने खूब निचोड़ा है।
सुख दुख में गोते खाता ये,मानव तभी निगोड़ा है। 
मन हरदम उलझा रहता है,सुख दुख की परिभाषा में।
सुख हाथों से निकला जाए,और सुखों की आशा में।

घर की दीवारों की भाषा,मानव समझ कहाँ पाया?
मौन खड़ी मीनारों से भी,ये मन सुलझ कहाँ पाया?
ताजमहल क्या कभी किसी को,अंदर का सुख दे पाया?
रिश्तों की दुनिया से भी क्या,ये मन वो सुख ले पाया?

पकड़ नहीं पाता क्यों सुख को,मन ये अपनी मुट्ठी में?
माँ भी नहीं पिला सकती क्यों,सुख बचपन की घुट्टी में?
कितना समझाया इस मन को,मत भागो सुख के पीछे।
लेकिन ये तो दीवाना सा,भाग रहा आँखे मींचे।

दुख में कोई हँसता देखा,कोई सुख कम ही आँके।
खुद के सुख को भूला कोई,दूजे के सुख में झाँके।
दूजे का दुख हरकर कोई,अंदर का सुख पाता है।
अंदर का सुख पाकर मानव,मंद मंद मुस्काता है।

सुख दुख के बादल इस नभ में,रह रह कर
यूँ छाते हैं।
बिन बरसात किये ही बादल,दूर कहीं उड़ जाते हैं।
पर मानव क्यूँ डर जाता है,देख बादलों को आया।
सूरज पर विश्वास करें तो,मिले बादलों से छाया।

'ललित'

17.12.17
चित्र पर आधारित
#नवसृजन" प्रतियोगिता के अंतर्गत

विष्णुपद छंद

चाँद-चाँदनी प्रेमांकुर को,रोपित जब करते।
टिम -टिम करते तारे नभ में,प्रेम रंग भरते।
खुले आसमाँ के नीचे तब,प्रीत कमल खिलता।
साजन सजनी के अधरों से,अधर मिला मिलता।

शीतल शांत सरोवर जल में,श्वेत चाँद चमके।
मंद समीर सुगंध बिखेरे,नयन काम दमके।
प्रीत पगी अँखियों से साजन,को चूमे सजनी।
देखा उनका प्यार जवाँ तो,झूम उठी रजनी

नीम निमोरी पग से चटकें,गुलमोहर महके।
रिमझिम बरस रही है बरखा,दादुर भी बहकें।
सजनी की भीगी जुल्फों से,मोती जब टपकें।
हर मोती मुखड़े पर निखरे,पलक नहीँ झपके।

रह रह कर चमके जो बिजली,जियरा है धड़के।
साजन की बाहों में सजनी,चुनरी भी सरके।
चमक चमक चमकें हैं जुगनू,कोयल कूक रही।
साजन सजनी के मन में उठ,चंचल हूक रही।

काले काले बदरा नभ में,रह रह गरज रहे।
ऊँचे पर्वत की चोटी पर,जम कर बरस रहे।
पत्ता पत्ता खड़क रहा है,बरखा यूँ बरसे।
चाँद चाँदनी से अपनी अब,मिलने को तरसे।

'ललित'
                  समाप्त
11

दिसम्बर 17


'काव्य सृजन परिवार' के
साझा काव्य संग्रह
'राज की काव्यांजलि' का भव्य विमोचन ,
काव्य गोष्ठी व अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन दिनांक 26.12.17 व 27.12. 17 को ऋषभदेव उदयपुर के प्रांगण में सफलतापूर्वक पूर्ण उल्लास के साथ संपन्न हुआ।
       आदरणीय उपेंद्र अणु जी व वागड़ परिषद ऋषभदेव का इस आयोजन को सफल बनाने में अपूर्व सहयोग के लिए हृदय तल से आभार... 
        काव्य सृजन  परिवार  के एडमिन आदरणीय राकेश दीक्षित 'राज' जी को नवोदित रचनाकारों को छंद बद्ध सृजन सिखाने एवं साहित्य जगत में अभूतपूर्व योगदान के लिए वागड़ मंच ऋषभदेव,उदयपुर के द्वारा 'छद श्री' सम्मान से अलंकृत किया गया।
       आपके मित्र को इस अवसर पर
'काव्य भूषण' सम्मान से अलंकृत किया गया..
        आदरणीय अणु जी व वागड़ मंच ऋषभदेव का इस आयोजन को सफल बनाने में अपूर्व सहयोग के लिए हार्दिक आभार...
      दिव्य भव्य समारोह की कुछ सुनहरी यादें आपके साथ साझा करते हुए अपार हर्ष हो रहा है....

***********************************
सोरठा

पुष्प गुच्छ इतराय,देख भ्रमर की चाह को।
कली-कली बल खाय,खिलने को व्याकुल बड़ी।

गुंजन में सब प्यार,भौंरे ने बरसा दिया।
दे बाहों के हार,फूलों ने अपना लिया।
ललित
सोरठा

मंगलमय नव वर्ष,प्रेम सुधा बरसा रहा।
हर दिल को दे हर्ष,वर्ष पुराना जा रहा।

दिल के सारे दर्द,साल पुराना ले गया।
छँट जाएगी गर्द,वर्ष नया ये गा रहा।

सोरठा

दिल से हो जो प्रीत,दिल को भाती है बड़ी।
झूठे-सच्चे मीत,दिल को तड़पाते सदा।

करना प्रीत सुजान,सच्चे यारों से सदा।
उसको अपना मान,जो सुख दुख में साथ दे।

सोरठा

रास रचाए श्याम,छम-छम नाचें गोपियाँ।
थिरक रहा व्रज धाम,वंशी-वट भी झूमता।

नाचे नटवर श्याम,गोप-गोपियाँ ताल दें।
राधा की हर शाम,रास रचाते बीतती।

ललित

सोरठा

दिल में हैं जो भाव,क्यों न कलम लिख पा रही?
नये साल में नाव,बरबस मेरी जा रही।

कैसा होगा साल,यार अठारा का नया?
उग आएँगें बाल,गंजों के सिर पर नए?

दोहे

अब जल्दी घर जायगा,ये सतरा का साल।
धूम  मचाता  आयगा, अठरा  दे  दे  ताल।

मुक्तक प्रयास

कई घाव ऐसे भी होते यहाँ।
जिन्हें देख पाता नहीं है जहाँ।
नासूर वो बन न जाएँ कहीं।
दवा है जरूरी लगाना वहाँ।

ललित
मुक्तक
खामोशियाँ पसरी हुई क्यों, हर दिशा में आज हैं?
ये चाँदनी सहमी हुई जो,इस कदर क्या राज हैं?
ये आदमी की आदमी से,हर तरफ है जंग क्यों?
क्यों आज नर हर पल दिखाते,नित नए अंदाज हैं।

कुण्डलिनी
हरिपद

मधुर मधुर वो बाँसुरी,सुन ले जो इक बार।
ध्यान लगे उसका वहीं,हो जाए भव पार।

हो जाए भव पार,पाप सारे कट जाएँ।
इसीलिए हर भोर,गोपियाँ भागी आएँ।

दोहे

संग राधिका रास जो,करता है निष्काम।
जपती सारी गोपियाँ,उस कान्हा का नाम।

खुशकिस्मत वो फूल जो,गजरे में गुँथ जाय।
राधा पहने हाथ में,नाच-नाच लहराय।

राधा-राधा जो जपे,कर कान्हा का ध्यान।
कान्हा कान लगा सुने,राधा का गुण-गान।

कान्हा तेरे प्यार की,जिसे मिली हो छाँव।
पल दो पल को भेज दे,उसको मेरे गाँव।

दोहे
सुदामा

सुना सुदामा नाम तो,कान्हा पहुँचे द्वार।
गले लगाया मित्र को,दे बाहों का हार।

बचपन का जो मित्र था,खेला था जो साथ।
पूछे उसके हाल यों,ले हाथों में हाथ।

चावल में अनुभव किया,जब भाभी का प्यार।
मीत सुदामा को दिया,वैभव अपरम्पार।

ललित

15.12.
दोहात्रय

दुनिया तेरी देखली,ओ नटवर घनश्याम।
करे कभी मशहूर ये,और कभी बदनाम।

बित्ते भर का छोकरा,व्रज में धूम मचाय।
बजा अनोखी बाँसुरी,गोपिन रहा नचाय।

यमुना तीरे साँवरा,वंशीधर गोपाल।
कंकर से घट फोड़ता,गोप हँसें दे ताल।

ललित

दोहे

पलकों पर बैठा किया,हमने जिनका मान।
उनकी नजरें ही हमें ,नहीं रही पहचान।

दो पल की थी दोसती,लोक-लुभावन प्यार।
जीवन भर की दुश्मनी,अब है उससे यार।

प्यार सदा सच्चा वही,जो दिल को ले जीत।
दिल को देते चीर हैं,झूठे-सच्चे मीत।

ललित

मान और अपमान को,कभी न दे जो तूल।
शीतल मंद सुगंध दें,कंटक भी बन फूल।

दोहा

मुरली मधुर बजा रहे,नंदनवन में श्याम।
बरसाने की छोकरी,आ पहुँची व्रज धाम।

पवन करे सरगोशियाँ,यमुना मचली जाय।
सुन कान्हा की बाँसुरी,कली-कली मुस्काय।

पादप सँग झूमे लता,कृष्ण राधिका साथ।
नृत्य करें सब गोपियाँ,ले हाथों में हाथ।

बजी सुरीली बाँसुरी,नंद-भवन के पास।
दौड़ी आई गोपियाँ,दर्शन की है आस।

13.12.17
दोहे

व्रज की सारी गोपियाँ,करती जिससे प्यार।
कितना सुंदर श्याम वो,होगा करो विचार।

व्रज में माखन चोरियाँ,करता है जो चोर।
उसकी वंशी से बँधी,सबके मन की डोर।

नज़र मिलाकर ले गए ,जो राधा का चैन।
भूल न पाए राधिका,कजरारे वो नैन।

आगे-आगे भागता,नटखट नंदकिशोर।
पीछे-पीछे गोपियाँ,पकड़ न पाएँ चोर।

भ्रमर सभी चुप हो गए,और हुए चुप मोर।
अभी बजेगी बाँसुरी,होगी स्वर्णिम भोर।

12.12.17

प्रार्थना पंच दोहे

छू कर देखूँ मैं तुझे,ओ कान्हा इक बार।
मेरी इतनी प्रार्थना, कर ले तू स्वीकार।

राधा जी के साथ में,हो तेरा दीदार।
नाथ-द्वारिका साथ मैंं,लूँ सैल्फी इक बार।

चरण-धूलि सिर पर धरूँ,बस इतनी है आस।
एक बार राधा सहित,आओ मेरे पास।

राधा-राधा मैं जपूँ,निशि-दिन आठों याम।
चाहूँ बस मैं देखना,कैसा था व्रज-धाम?

कैसी थी वो बाँसुरी,कैसे उसके गीत?
राधा के मन को सदा,लेती थी जो जीत।

ललित

तीन दोहे

कुछ दूरी तो साजना,चलते मेरे साथ।
क्यों छोड़ा मझधार में,इस सजनी का हाथ?

प्यार तुम्हें है साजना,तो कर लो स्वीकार।
इस सजनी का प्यार भी,कर लो अंगीकार।

तेरे हिय में थी बसी,अब तक मेरी प्रीत।
आज वही घायल हुई,क्यों मेरे मनमीत?

'ललित'

11.12.17
विरह दोहे

कुछ तो है जो है छुपा,बादल के उस पार।
शायद चंदा हो उधर,या हो मेरा प्यार।

चंदा से ये चाँदनी,आज हुई क्यों दूर?
बतला तो दे साजना,क्यों है तू मजबूर?

तन मन को सुलगा रही,विरह अगन अविराम।
आग विरह की क्यों हुई,इस प्यासी के नाम?

'ललित'

दोहे विरह

सूना-सूना आँगना,सूने मेरे नैन।
आजा अब तो साजना,मनवा है बेचैन।

नैना निश-दिन देखते,सपने तेरे मीत।
जिव्हा मेरी सूखती,गा विरहा के गीत।

गर्म गर्म है बह रही,नैनों से रसधार।
आस मिलन की है जगी,आ जा मेरे प्यार।

ललित

दोहे

शब्द तीर भी बन सकें,शब्द हर सकें पीर।
लगे आग दिल में अगर,शब्द बन सकें नीर।

शब्दों से आहत हुआ,जिस मानव का मान।
उसकी तो समझो वहीं,निकल गई हो जान।

अपनी-अपनी ढपलियाँ,अपने-अपने राग।
अपनी-अपनी बुद्धियाँ,अपने-अपने भाग।

'ललित'

दोहे

रचना सुंदर हो तभी,मर्यादित हों शब्द।
नहीं भरा कुछ द्वेष हो,और न कोई खप्त।

सोच समझ कर शब्द लो,रचना में वो खास।
पढने वाले को सदा,आते हों जो रास।

सुंदर सुंदर शब्द हों,प्रेम-डोर के पाश।
भाव-छंद में बाँध लो,चाँद और आकाश।

'ललित'

दोहे पाँच
बिलकुल साँच

दिखने में पक्की लगे,हर रिश्ते की डोर।
दुख में रिश्ते का मगर,दिखे न कोई छोर।

रिश्ता तो हरि से रखो,इस रिश्ते में सार।
बाकी रिश्ते अंत में,देते केवल खार।

जग में जीना सीख लो,चलो अकेले यार।
सबको अपनी है पड़ी,कौन करेगा प्यार।

ऊपर-ऊपर से रखो,हर रिश्ते से प्रीत।
मन में इतना जान लो,झूठे हैं सब मीत।

मेला दुनिया का दिखे,कितना भी रंगीन।
मेले की आत्मा मगर,दिखती है गमगीन।

'ललित'

दोहे

लिखना वो ही है भला,जिसमें हो कुछ खास।
माँ शारद उस लेख के,सदा रहेगी पास।

माँ शारद किरपा करो,लिख पाऊँ कुछ खास।
शब्दों में भी ज्ञान की,होवे मधुर सुवास।

छोटे-छोटे शब्द लो,भाव-भक्ति में घोल।
छंदों में बँध कर सभी,शब्द बनें अनमोल।

ललित

8.12.17
दोहे

पल-पल-पल-पल कर मुआ,जीवन बीता जाय।
रीता आया रे मना,रीता वापस जाय।

जीना हर नर चाहता,मरना किसे सुहाय।
मरने की तैयारियाँ,किए बिना मर जाय।

मरने की तैयारियाँ,करने की हो चाह।
बाँधो गठरी पुण्य की,चलो धर्म की राह।

मरना निश्चित है यहाँ,मृत्युलोक है नाम।
माया-नगरी झूठ है, सत्य एक है राम।

कोड़ी-कोड़ी जोड़ के,कोठी-महल बनाय।
कच्ची माटी की मगर,देह न साथ निभाय।

'ललित'

6.12.17
हरिगीतिका छंद

इस जिंदगी ने जो सिखाया,सीख मैं पाया नहीं।
मैं जिंदगी से सुर मिला कर,गीत गा पाया नहीं।
जीता रहा बस स्वप्न में ही,ख्वाब में ही खो रहा।
वो स्वप्न आखिर टूटना था,टूटकर ही वो रहा।

ललित

हरिगीतिका छंद

वो प्यार की लेकर पताका,जिन्दगी जीता रहा। जो भी दिए गम जिन्दगी ने,प्रेम से पीता रहा।
भरता रहा था इंद्रधनुषी,रंग अपने प्यार में।
बदरंग सब सपने लिए,अब डोलता संसार में।

ललित

हरिगीतिका छंद

कब कौन कैसे किस जगह पर,छोड़ तन को जायगा?
ये है सुनिश्चित साँस कितनी,जीव ये ले पायगा।
मरना अटल इक सत्य है ये,बात मन से मान लो।
इक रोज माटी में मिलेगी,देह ये तुम जान लो।

हरिगीतिका छंद
प्रार्थना

हे श्याम सुंदर साँवरे,मेरी अरज सुन लो जरा।
कर जोड़ विनती मैं करूँ,है शीश चरणों में धरा।

मन कामना मेरी यही,हर लो प्रभो हर कामना।
गिरने लगूँ जब धर्म-पथ से हाथ मेरा थामना।

ललित
4.12.17

हरिगीतिका छंद

है नाव ये मझधार में,देखो खिवैया भी नया।
पतवार थामे भागता है,देखकर आती दया।
मझधार हो तो ठीक है,लेकिन भँवर गहरा यहाँ।
सब उँगलियाँ है होंठ पर, हर अधर पर पहरा यहाँ।
'ललित'

4.12.17
हरिगीतिका छंद

क्यूँ दे दिया दुख ये जुदाई का मुझे बैरी पिया।
दुख और सह सकता नहीं नाजुक बड़ा मेरा जिया।
बरसात भी बरसे झमाझम हूक मन में उठ रही।
हर कामना पिय से मिलन की आँसुओं में बह रही।
ललित

3.12.17
हरिगीतिका छंद

जब श्याम सुंदर राधिका सँग,रास गोकुल में करे।
तब चाँद झुक जाता जमीं पर,चाँदनी झर-झर झरे।
कण-कण बिरज का कृष्ण-राधा,के चरण चूमे वहाँ।
बाँके-बिहारी लाल की मुरली मधुर गूँजे जहाँ।

ललित

दिसम्बर 17
हरिगीतिका
वो बाग का माली खड़ा अब,पूछता है बाग से।
किसने जलाया है तुझे तू,जल गया किस आग से?
गुलजार था गुलशन कभी जो,आज क्यों सुनसान है?
क्यों रंग सब धुँधला गए हैं,फूल सब बेजान हैं?

ललित
2.12.17
हरिगीतिका छंद
ये बावरा मन चाहता है,चूमना आकाश को।
मुश्किल बड़ा है तोड़ना अब,मोह के इस पाश को।
आकाश को छूना नहीं है,सहज कोई काम यों।
चंचल मगर मन देखता है,ख्वाब आठों याम क्यों?

ललित

नवम्बर 17

***
********************************

हरिगीतिका
किसको कहूँ अपना यहाँ मैं,कौन मेरा मीत है?
सच्चा हितैेषी कौन मेरा,कौन करता प्रीत है?
मुश्किल बड़ी आगे खड़ी अब,पीर ये किससे कहूँ?
भगवान सच्चा मीत है कर-जोड़ मैं जिससे कहूँ।

ललित

27.11.17
हरिगीतिका
चश्मा

देखी अनोखी सूरतें चश्मा लगाए धूप का।
खाली दिमागों से मगर अभिमान जिनको रूप का।
क्या धूप क्या छाया उन्हें,चश्मा सदा प्यारा लगे।
रंगीन चश्मे से हरा संसार ये सारा लगे।

ललित

चलते चलते
हरिगीतिका

जब वक्त का चक्का चलेगा,आहटें होंगीं नहीं।
सारा अहं धुल जायगा पछतायगा भोगी वहीं।
अब सोच ले सत्कर्म करले कर जमा कुछ पु्ण्य तू।
खोल कर अपनी तिजोरी ले कमा कुछ पुण्य तू।

ललित

27.11.17

हरिगीतिका

चारों दिशा उल्लास है इस शांत शीतल भोर में।
बल दे रहे श्री राम हैं तन्हाइयों के दौर में।
कर राम पर विश्वास बंदे पूज सीताराम को।
होगा सफल हर काम में जपता रहे जो नाम को।

ललित
26.11.17

गीतिका छंद
5
आ गए उस मोड़ पर हम,जो न सोचा था कभी।
लौटना मुश्किल नहीं है,सोच लें जो हम अभी।
याद कर वो प्यार मेरा,और वो अपना  मिलन।
चल पड़े थे साथ जब हम,छोड़ दुनिया का चलन।
ललित

गीतिका छंद
4
काश मैं भी पा सकूँ वो,मंजिलें मनभावनी।
जिंदगी को दे सकूँ कुछ,भावनाएँ पावनी।
नैन में हरि को बसा लूँ,नाम मैं अविरल जपूँ।
भूल सारी मोह माया,साधनाओं में तपूँ।

ललित

गीतिका छंद
1
प्यार का अद्भुत तमाशा,जिन्दगी दिखला गई।
प्रीत कोरी कल्पना है,बात ये सिखला गई।
कौन किससे प्यार करता,कौन किसका मीत है?
प्रेम का झूठा दिखावा,इस जगत की रीत है।

रीत हो तो ठीक पर ये ,रीत भी तो है नहीं।
नैन से झलके नहीं जो,प्रीत भी तो है नहीं।
प्रेम का लेकर सहारा,दिल धड़कते हों जहाँ।
उन दिलों की धड़कनों में,प्यार की खुशबू कहाँ?

प्यार की खुशबू जहाँ हो,प्रेम का संगीत हो।
रीत दुनिया की भुलाकर,जब पनपती प्रीत हो।
दो दिलों की धड़कनें जब,नेह में होती रवाँ।
प्यार तब परवान चढ़ता,प्यार तब होता जवाँ।
ललित

गीतिका छंद
प्रार्थना

जिंदगी तेरे हवाले,आज कर दी श्याम ये।
दे रहा तू ही निवाले,हाथ मेरा थाम ये।
मोह-माया-जाल को अब,साँवरे तू काट दे।
अब हमारे बीच की सब,खाइयों को पाट दे।

'ललित'
गीतिका छंद
(व्रज भूमि छोड़ने के बाद श्याम ने बाँसुरी नहीं बजाई)

श्याम तेरी बाँसुरी ने,था बड़ा जादू किया।
गोपियों की पीर हर ली,छीन कर उनका हिया।
राधिका का चैन छीना,जिस मुरलिया ने सदा।
श्याम क्यों अब ले गया तू,उस मुरलिया से विदा।
'ललित'

गीतिका छंद

नाम जपता है तुम्हारा,रात-दिन अविराम जो।
द्वार पर आकर खड़ा वो,है सुदामा नाम जो।
दर्श दे दो श्याम उसको,दर्श का प्यासा खड़ा।
मीत बचपन का सुदामा,आपका प्यारा बड़ा।

'ललित'

24.11.17
गीतिका छंद
झाँकी

युग्म की झाँकी दिखा दो,राधिका प्यारी मुझे।
दर्श कान्हा के करा दो,साधिका न्यारी मुझे।
धुन मुरलिया की सुनाता,है तुम्हें जो मद भरी।
राधिका उस श्याम की सूरत दिखा दो मनहरी।

'ललित'

24.11.17
गीतिका छंद

शोख सी कमसिन हसीना,नाक पर चश्मा चढ़ा।
ले गई अखबार मेरा,हाथ नाजुक सा बढ़ा।
और खाया फिर समोसा,रख उसी अखबार पर।
कसमसा कर रह गया मैं,था फिदा उस नार पर।

'ललित'

23.11.17
गीतिका छंद

राधिका का साँवरा वो,गोपियों के साथ में।
नाचता है भूल दुनिया,हाथ लेकर हाथ में।
आत्म-रस का स्वाद चखते,गोप-गोपी प्यार से।
बाँसुरी सुर-ताल लाई,इक अलग संसार से।

ललित

गीतिका छंद
*********************************

देखना मुड़कर तुम्हारा,कनखियों से वो हमें।
प्यार का नटखट इशारा,दे दिया हो ज्यों हमें।

तीर दिल के पार उतरा,चीर दिल को यों गया।
हाय ये नादान दिल अब,भूल धड़कन को गया।

**********************************
'ललित'
22.11.17
गीतिका छंद

प्रीत में दीवानगी की,बानगी मिलती जहाँ।
ज्ञान का उपदेश देने,आ गये उद्धव वहाँ।
ज्ञान का भंडार अपने,पास ऊधो तुम रखो।
गोपियों के प्रेम-रस का,स्वाद न्यारा तुम चखो।

'ललित'

गीतिका छंद
अपठनीय

मात शारद आज मुझको,ज्ञान का वरदान दे।
लिख सकूँ रचना जिसे हर,आदमी सम्मान दे।
होगई हो भूल मुझ से,तो क्षमा कर दे मुझे।
माँ निराशा दूर करके,आस से भर दे मुझे।

'ललित'

22.11.17

गीतिका छंद

जान कर अंजान बनना,आपकी फितरत रही।
प्यार की कीमत चुकाना,आपकी हसरत रही।
प्यार था अनमोल मेरा,पाक था मजबूर था।
दाम देकर भूल जाना,कौनसा दस्तूर था।

गीतिका छंद

जिंदगी का साफ पन्ना,भर गया उस रंग से।
जान से ज्यादा मुहब्बत,थी हमें जिस रंग से।
रंग फीका पड़ न जाए,उम्र के इस मोड़ पर।
रंग दूजा चढ़ न जाए,तूलिका को तोड़ कर।
ललित

गीतिका छंद

भोर का संगीत प्यारा,कौन सुनना चाहता?
आज तो हर शख्स अपना,फोन सुनना चाहता।
फोन की बारीकियाँ भी,दिल लगाकर सीखता।
भींच कर अपने लबों को,आज दिल में चीखता।

ललित

गीतिका छंद

जिंदगी में प्यार का इक,ख्वाब देखा था कभी।
ख्वाब क्या था प्यार का सैलाब देखा था कभी।

आज वो ही प्यार रूठा,इक अजब अंदाज में।
तोड़कर दिल को बदल डाला अनोखे साज में।

ललित

गीतिका छंद

साज से दिल के निकलती,दर्द की आवाज है।
दर्द के नगमे सुनाए,वो भला क्या साज है?
दर्द को दिल में  छिपाकर,गीत गाना सीख लो।
साज टूटे को भुला कर,मुस्कुराना सीख लो।

ललित

गीतिका छंद

आप को जो पा लिया तो,कुछ न फिर बाकी रहा।
जाम पीती है जमीं औ',आसमाँ साकी रहा।
देख लो इक बार हमको,आज याराँ प्यार से।
मीत कर दो खुश निराले,प्यार के इजहार से।

'ललित'

21.11.17
गीतिका छंद

थाम कर नाजुक कलाई,आगए थे पास में।
और वादे जो किए थे,आपने परिहास में।
भूल वो वादे हुए क्यों,आज हम से दूर हो?
खेल है ये आपका या,हो गए मजबूर हो?

ललित

20.11.17
गीतिका छंद
2122 2122,2122 212

आँसुओं में डूब कर ये,गोप-गोपी बावरे।
हर घड़ी तुझको पुकारें,नंदलाला साँवरे।
प्यार की मत लो परीक्षा,साँवरे अब दर्श दो।
भूल बैठे हो जिसे उस,राधिका को हर्ष दो।
20.11.17
गीतिका छंद
2122 2122,2122 212

कौन सी पूजा करूँ मैं,और कैसा जप करूँ?
ध्यान कब किसका करूँ मैं,और कैसा तप करूँ?
साँवरी छवि को निहारूँ,राधिका को मैं भजूँ।
श्याम तेरे दर्श को मैं,कामनाएँ सब तजूँ।
'ललित'

20.11.17
ललित

न दिल है न दिल से जुड़े साज हैं।
न हैं पैन-कागज न सुर आज हैं।
न है लेखनी औ' न मन में लगन।
बुझेगी कहाँ यार मन की अगन?

ललित

17.11.17

शक्ति छंद
1

न समझा न जाना सबक प्यार का।
न सीखा कभी काम पतवार का।
नया दौर ये प्यार का चल पड़ा।
हुआ प्यार भी आज चंचल बड़ा।

न मजनूँ न लैला न वो हीर हैं।
न राँझा सरीखे यहाँ धीर हैं।
मगर प्यार की ले ध्वजा हाथ में।
चलें वासना के भ्रमर साथ में।

'ललित'

शक्ति छंद
हसीं रात में पादपों के तले।
मिले राधिका से कन्हैया गले।
सजे बाँसुरी श्याम के हाथ में।
बजें हैं सुरीली धुनें साथ में।

अधर श्याम के बाँसुरी चूमती।
लिपट वृक्ष से हर लता झूमती।
हसीं चाँदनी ने किया वो असर।
भ्रमर देखते पुष्प को भर नजर।

16-11-17

शक्ति छंद

न देखा न जाना जमाना अभी।
न आया हमें धन कमाना कभी।
वही धन न जो साथ जाए वहाँ।
वही धन सदा काम आए यहाँ।

कहें संत धन तो वही है असल।
मिले पुण्य की जो उगा कर फसल।
मगर धन न वो भी कमा हम सके।
न जप-ध्यान में मन रमा हम सके।

ललित

शक्ति छंद

पराई हुई चाँदनी भी वहाँ।
छिपा चाँद जाकर गगन में जहाँ।
हसीं चाँदनी बादलों के तले।
जवाँ मीत से मिल रही है गले।

ललित

शक्ति छंद

न सपनों भरी प्यास हो जिंदगी।
हकीकत भरी काश हो जिंदगी।
कि सपने गए छोड़ मझधार में।
सिसकती रही जिंदगी प्यार में।

ललित

शक्ति छंद

बिना प्यार के जिंदगी चल रही।
बिना ख्वाब के नींद भी खल रही।
नहीं प्यार का सिलसिला कुछ जहाँ।
नहीं ख्वाब हैं और न नींदें वहाँ।

कि ख्वाबों जरा प्यार दे दो मुझे।
हसीं यार दिलदार दे दो मुझे।
बिना शर्त जो प्यार मुझ से करे।
रहें ख्वाब भी यार जिससे परे।

ललित

शक्ति छंद

दिल्ली

न साँसें थमीं औ' न टूटा कहर।
हवा आज रूठी व रूठा शहर।
न दिल्ली  फलाहारियों की रही।
न दिल्ली कलाकारियों की रही।

'ललित'

15.11.17

शक्ति छंद

न कलियाँ सुनें गीत गाए भ्रमर।
वहाँ प्यार की टूटती है कमर।
नजारों सितारों बताओ जरा।
कहाँ प्यार खोया जले क्यूँ धरा?

ललित
शक्ति छंद

कहीं प्यार पाया कहीं नफरतें।
अधूरी रही यूँ कहीं हसरतें।
कहीं जल न पाया दिया आस का।
कहीं बुझ गया दीप अहसास का।
ललित

शक्ति छंद
2

किसी को किसी से नहीं कुछ गिला।
मगर चल पड़ा बैर का सिलसिला।
धधकती धरा पेट की आग से।
उलझने लगी हर लहर झाग से।
ललित

14.11.17
शक्ति छंद

न जाने जला आज किसका जिया?
सुलगने लगा आरती का दिया।
यहाँ दीपकों को जला मारती।
कहीं और जाकर करो आरती।
'ललित'

14.11.17
मुक्तक

अब तो अपना दिल भी हमको,लगता जैसे बेगाना।
दिल क्या दिल का हर कतरा ही,लगता जैसे अनजाना।
जितने स्वप्न सुनहरे देखे,इस दिल की दीवारों पर।
उन सपनों को दीवारों में,दिल ही चाहे दफनाना।

'ललित'

भुजंग प्रयात

कभी दूर जाना कभी पास आना।
कभी बात ही बात में यूँ खिजाना।
अदाएँ यही तो तुम्हारी निराली।
जिन्होंने अजी जाँ हमारी निकाली।

ललित

भुजंग प्रयात

नहीं देख पाया नहीं बोल पाया।
छिपा राज जो था नहीं खोल पाया।
कहाँ कौन कैसा बड़ा है खिलाड़ी।
नहीं जान पाया अजी मैं अनाड़ी।

ललित

भुजंग प्रयात

न काया तुम्हारी कभी साथ देगी।
न ऐसी सुहानी सदा ये रहेगी।
सँवारो सजाओ भले खूब काया।
न दे साथ माया न दे साथ छाया।

ललित

भुजंग प्रयात

कभी छाँव है तो कभी धूप भी है ।
कभी साग भाजी कभी सूप भी है।
कहीं है जुदाई कहीं रोज मेला।
खुदा वो यही तो करे रोज खेला।
ललित

भुजंग प्रयात

उसे याद आए सुहानी जवानी।
पिया की हुई थी कभी जो दिवानी।
उसे आज सैंया न देखे न चाहे।
नए फोन का वो दिवाना हुआ है।

'ललित'

भुजंग प्रयात
अद्भुत रास

अभी वो यहाँ था अभी वो वहाँ है
दिशा कौन सी है नहीं वो जहाँ है।
कभी गोपियों सा धरा रूप आला
कभी साँवरा श्याम दीखे निराला।

ललित

6.11.17
भुजंग प्रयात

कहीं और जाना नहीं रास आता।
मिले 'राज' जी सा कहाँ खास भ्राता।

यहीं सीख पाए कई छंद प्यारे।
यहीं तो लिखे हैं कई काव्य न्यारे।

ललित

रोला
बँधा मदारी हाथ,नाचता बंदर जैसे।
बँधा भाग्य के हाथ,नाचता मानव वैसे।

बिना थके जो खूब,नृत्य कर लेता है नर।
उसको हो मजबूर,विधाता देता है वर

'ललित'
अधूरा ख्वाब
रोला

दिल की सुनी पुकार,चली आई वो ऐसे।
बदरा में से चाँद,निकल आया हो जैसे।

देती हैं दिल चीर,शरबती आँखें उसकी।
देती हैं कुछ धीर,सुरीली बातें जिसकी।

क्या होता अहसास,प्यार का वो सिखलाती।
कभी-कभी मधुमास,नशीला वो दिखलाती।

पर दिल के सब ख्वाब,कहाँ हैं होते पूरे?
नींद खुले तो पास,खड़ी बीबी जी घूरे।

ललित

रोला रास

पूनम की है रात,चाँदनी निपट निराली।
झूम रहे हैं गोप-गोपियाँ देकर ताली।

मधुर-मधुर करताल,बजाएँ गोपी-ग्वाले।
बाँसुरिया की तान,उन्हें बेसुध कर डाले।

पायल की झनकार,राधिका जी के ठुमके।
मिला ताल में ताल,हिलें कानों के झुमके।

नाचे कान्हा साथ,गोप-गोपी हरषाए।
नटवर नंदकिशोर,रास में रस बरसाए।

'ललित'

4.11.17

रोला छंद

कैसे हैं हालात,आज कैसी लाचारी?
अपनी ही संतान,करे गैरों से यारी।

जिस पर सब संसार,वार डाला था हमने।
दे दुनिया का प्यार,जिसे पाला था हमने।

आज वही क्यूँ आँख,हमें है यूँ दिखलाता?
जीवन का हर पाठ,हमें है क्यूँ सिखलाता?

क्या कर डाली खोट,कहाँ गलती की हमने?
समझ न आए बात,जमाना लगा बदलने?

'ललित'
[02/11,
ताजा रोला

दिल को चुभती बात,यहाँ हर कोई कहता।
दिल को चुभती बात,कहाँ हर कोई सहता?

मन के सब उद्गार,यहाँ हर कोई लिखता।
पढ़ने को तैयार,कहाँ हर कोई दिखता?
'ललित'

रोला छंद

चिंगारी से आग,कहाँ अब लग है पाती।
हर चिंगारी आज,है दिखती आत्म-घाती।

[02/11,
कैसे कैसे लोग हैं,कैसी कैसी नार।
देखन को ही यार में,आया था हरिद्वार।
आया था हरिद्वार,चैन पाने को मन का।
कर गंगा-स्नान,पाप धोने को तन का।

[02/11,
जितनी सुंदर दीखती,मानव की ये देह।
सच्ची-मुच्ची काश ये,उतना करती नेह।
ललि

रोला छंद

गोरे-गोरे गाल,और नैना कजरारे।
शैम्पू वाले बाल,खुले कंधों पर कारे।

सूना-सूना भाल,हाथ बिन चूड़ी वाले।
पीछे सजना आय,हाथ में थैला डाले।

रोला छंद

हुई नहीं आवाज,न कोई पत्ता खड़का।
सम्मुख कान्हा देख,राधिका का दिल धड़का।
धड़कन भी तो हाय,नहीं काबू में आई।
सुर्ख हो गए गाल,राधिका यूँ शर्माई।

ललित
1.11.17

रोला
गीत

यौवन का उन्माद,आज उस पर है छाया।
अपना सुंदर रूप,देख कर वो बौराया।

देती है हर साँस,उसे कुछ नई अ7jदाएँ।
आती हैं अब रास,उसे नित-नई खताएँ।
बचपन के सोपान,लाँघ कर है वो आया।
अपना सुंदर रूप,देख कर वो बौराया।

बचपन का वो चाँद,रहा मामा का मामा।
बना ये अप-टू-डेट,करे हरदम हंगामा।
करतूतें ये देख,चाँद भी है शरमाया।
अपना सुंदर रूप,देख कर वो बौराया।
ललित

पेज 10 से 14 मुक्तक 25.10.17


25 10.17 साझा संग्रह हेतु
पेज 10
मुक्तक 16:14 (लावणी)
*1
बीज प्यार का जिसने बोया,फल उसने है कब पाया?
बीज और अंकुर को सींचा,छलनी करके निज काया।
बीजों का सागर है जो फल,याद रखे क्यूँ माली को?
फल-फल फल-फल फल -फल फल-फल,फल की ही है सब माया।
*2
जैसा प्यारा कृष्ण कन्हाई,वैसी न्यारी है राधा।
राधा औ' मुरली से कान्हा,प्यार करे आधा आधा।
अधरामृत पीती मुरली तो,राधा नैन सुधा पीती।
राधा राधा नाम जपो तो,मिट जाएगी भव बाधा।
*3
राधा के नैनों में मोहन,ने ऐसा डेरा डाला।
राधा वन-वन खोजे उसको,पर न दिखे मुरलीवाला।
पलकें बन्द करे राधा तो,मोहन के दर्शन होते।
खुली आँख से कहाँ किसी को,दिखता है नटखट ग्वाला।
*4
टूट -टूट कर टुकड़े होते,सपने हरजाई हरदम।
रूठ-रूठ कर दूर खिसकते,दिखते जो अपने हमदम।
दिल के अरमानों की किश्ती,भी टूटे मझधारों में।
चोट उन्हीं से है मिल जाती,बनना हो जिनको मरहम।
*5
मिट्टी जल आकाश हवा औ',अगन देव मिलकर सारे।
मानव देह बना बैठे सब,खेल खेल में मतवारे।
रब ने उसमें जान फूँक कर,आत्मा डाली इक प्यारी।
आत्मा ऐसी रमी देह में,भूल गयी हरि के द्वारे।
'ललित'

************************************
पेज -11
मुक्तक 16:14(लावणी)
1
कुछ अपनों में कुछ सपनों में,जीवन के दिन बीत गए ।
कुछ पाने में कुछ खोने में,सुंदर सपने रीत गए।
जीवन का सपनों से रिश्ता,मन क्यूँ समझ नहीं पाया।
जिनके सपनों खोया मन,भूल वही मनमीत गए।
2
बात सदा दुनियावी लिखता,नूरानी कोई गल लिख।
महबूबा की पायल लिखता,माँ का सूना आँचल लिख।
जो लायी थी तुझे धरा पर,आँखों में कुछ ख्वाब लिए।
उसकी बुझती आँखों में भी,सच्चाई का काजल लिख।
3
दिल की हर धड़कन कुछ बोले,पागल मनवा है सुनता।
सुनकर धड़कन की सुर तालें,ख्वाब अनोखे है बुनता।
सुंदर सपनों की वो दुनिया,कब किस को सुख दे पायी।
लेकिन समझ दार मानव तो,दुख में से भी सुख चुनता।
4
दिल की बातें दिल में रखकर,दिल से ही मैं कहता हूँ।
शोर बाहरी क्या सुनना जब,दिल के ताने सहता हूँ।
खोजा करता हूँ उस दिल को,शायर जिसको दिल कहते।
दिल के द्वार बन्द कर यारों,दिल में ही मैं रहता हूँ।
5
बात कहूँ मैं अपने दिल की,औरों की मैं क्या जानूँ।
फूलों में जजबात नहीं हैं,भौंरों की मैं क्या जानूँ।
प्यार बिके अरमान बिकें हैं,आज यहाँ सब कुछ बिकता।
झरनों में आवाज नहीं है,धौरों की मैं क्या जानूँ।
'ललित'
************************************
पेज 12
मुक्तक लावणी
1
दिल की बगिया में महका इक,सुंदर प्यार भरा सपना।
अपनापन पाकर निखरा वो,लेकिन हो न सका अपना।
सपने में यूँ खोया ये दिल,भूल गया अपनी धड़कन।
नींद खुली तो सपना टूटा,भूला सपनों में खपना।
2
"जब भी खुलकर हँसना चाहा,दिल ने अधरों को रोका।
जब भी हँसकर जीना चाहा,अपनों ने ही
तो टोका।
अब तो हमने सीख लिया है,दिल ही दिल में खुश रहना।
चाही दिल ने खुशियाँ तो फिर,मन्दिर में जाकर ढोका।
3
कुछ फूलों की चंचल खुशबू,संग हवा के चल देती।
औ' कुछ की खुशबू माली के,नथुनों को संबल देती।
कुछ ऐसे निगुरे होते जो,खुशबू कभी नहीं देते।
और कई पुष्पों की खुशबू,बगिया को हलचल देती।
4
दिल की दीवारों में कितने,ख्वाब सुनहरे पलते हैं।
उन ख्वाबों में डूबे मानव,अद्भुत चालें चलते हैं।
सपने तो सपने हैं आखिर,टूटा करते हैं अक्सर।
टूटे सपने भी इंसाँ को,जीवन भर फिर
छलते हैं।
5
नैन मटक्का करे कन्हैया,राधा गोरी गोरी से।
छाँव कदम की बतियाता है,बरसाने की छोरी से।
गोप गोपियाँ आनन्दित हो,प्रेम-पुष्प वर्षा करते।
राधा रानी हाथ छुड़ाए,पकड़े कान्हा जोरी से।
'ललित'
***********************************
पेज -13
मुक्तक लावणी
1
फूलों ने हँसना छोड़ा है,कलियाँ भी मुरझाई हैं।
माली सींच रहा बगिया पर,पानी भी हरजाई है।
कली-कली पर भौंरे डोलें,प्रेम नहीं कुछ मन में है।
खिलने से पहले रस चूसा,अब केवल तनहाई है।
2
मात पिता के चरणों में ही,सुख का सागर बहता है।
वहीं डाल दो डेरा अपना,वहीं कन्हैया रहता है।
उन चरणों की सेवा करके,भार मुक्त हो जाओगे।
कान लगा कर सुनो जरा तुम,उनका दिल क्या कहता है?
3
कौन किसी का मीत यहाँ पर,कौन किसी का अपना है।
सबकी अपनी अपनी दुनिया,अपना अपना सपना है।
साथी पर जब पीर पडे तो,मोड सभी मुख जाते हैं।
गाँठ बाँध लो दुख आए तो,राम नाम ही जपना है।
4
छोड़ चले तारे अम्बर को,कान्हा की बंसी बोले।
गोप-गोपियाँ लें अँगड़ाई,मोहन की छवि मन डोले।
यमुना तीरे से बाँसुरिया,देती है ये संदेशा। 
उसकी बंसी बजे मधुर जो,बातों में मधु-रस घोले।
5
माँ-बेटी का होता जग में,सबसे सुंदर नाता है।
प्यार दिया जो तू ने मुझको,झोली में न समाता है।
अपनी इस बेटी का दामन,खुशियों से माँ भर देना।
चूमे जब तू माथा मेरा,रोम रोम खिल जाता है।
'ललित'
************************************

पेज 14
मुक्तक 14:12  व 14:14

क्यूँ भ्रमर गुंजन करें क्यूँ,श्याम की मुरली बजे?
राधिका के नाम से क्यूँ,बाँसुरी के सुर सजें?
क्यूँ लताएं झूमती हैं,साँवरे के नाम से?
बाँसुरी की तान पर क्यूँ,गोपियाँ घर को तजें?
2  
हड्डियों का एक ढाँचा,आज बनकर रह गया।
जिन्दगी ने यूँ बजाया,साज बनकर रह गया।
स्वप्न सब आँसू बने अब,आँख से हैं बह रहे।
साथ छोड़ा चाम ने भी,खाज बनकर रह गया।
3  
जिन्दगी जी भी न पाया,हाय यौवन खो गया।
भीग तन मन भी न पाया,और सावन खो गया।
ख्वाब खुश्बू के दिखा कर,फूल सब ओझल हुए।
कर्म फल दे भी न पाए,हाय जीवन खो गया।

ज़िन्दगी से आज हमको,चोट इक प्यारी मिली।
कौन सा मरहम लगाएँ,हर दवा खारी मिली।
ज़ख्म जो दिल में हुआ है,दीखता हरदम नहीं।
घाव पर मरहम लगाती,ख्वाहिशें सारी मिली।
5   
चलो इक बार फिर से हम,नयी दुनिया बसाते हैं।
नयी सुर-ताल सरगम पर,नया इक गीत गाते हैं।
गिले-शिकवे दिलों में जो,दिलों में ही दफन कर दें।
चलो पतवार बनकर हम,भँवर को भी हराते हैं।
'ललित'
***********************************

छद श्री सम्मान