1
ताटंक छंद 14.2.17
चितचोर
मेरा तो चितचोर वही है,
गोवर्धन गिरधारी जो।
बाँका सा वो मुरली वाला,
मटकी फोड़े सारी जो।
आसानी से हाथ न आवे,
नटखट नागर कारा है।
राधा जी के पीछे भागे,
उन पे वो दिल हारा है।
ललित किशोर 'ललित'
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2
20.10.15
ताटंक छंद
माँ का आँचल
माता के आँचल में छिपकर,
बच्चे जो सुख पाते हैं।
खोया वो सुख जींंस टाप में,
बच्चे अब न सुहाते हैं।
माता कितनी पावन लगती,
जब साड़ी में होती है।
जींस टाप में सच में भैया,
माता की छवि खोती है।
ललित किशोर 'ललित'
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3
ताटंक छंद
राम
राम आज फिर तुम्हें बुलाता,
मेरा भारत प्यारा है।
राम राज्य का पता नहीं है,
रावण सौ सिर धारा है।
हर आँगन में काँटे बिखरे,
हर सीता कुम्ह लाई है।
असुरों के हाथों में भारत,
की सत्ता अब आई है।
ललित किशोर 'ललित'
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4
21.10.15
ताटंक छंद
कोलाहल
आज मचा है कोलाहल सा,
हर मानव थर्राया है।
भारत माँ की धरती पर ये,
कैसा संकट आया है।
बहू-बेटियाँ आशंकित हैं,
नहीं कोख बच पायी है।
आजादी की कैसी उल्टी,
गंगा बहने आई है।
2
नदियाँ सूखी ,पर्वत रूठे,
बाँधों की तरुणाई है।
वन -उपवन सब खण्डित करके,
नगरी नयी बसाई है।
मानव ही मानव का दुश्मन,
छल में ही वो जीता है।
रावण भी अब घबराया है,
मानव हरता सीता है।
ललित किशोर 'ललित'
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5.
21.10.15
ताटंक छंद
अंग्रेजी
देश हमारा हम परदेशी,
जैसा जीवन जीते हैं।
शर्म नहीं क्यों हमको आती,
अन्दर से क्यों रीते हैं?
अपनी भाषा तरस रही है,
अंग्रेजी क्यों छाई है?
बोले बच्चा-बच्चा जैसे,
अंग्रेजी ही माई है।
ललित किशोर 'ललित'
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6
21.10.15
ताटंक छंद
अग्नि परीक्षा
नारी की तो अग्नि परीक्षा,
युग-युग से होती आई।
पावनता की मूरत सीता,
खुद को कहाँ बचा पाई।
पुरुषोत्तम जो राम कहाते,
पहुँचे इसी नतीजे थे।
सीता माता के क्रन्दन से,
भी वो कहाँ पसीजे थे।
ललित किशोर 'ललित'
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7
21.10.15
ताटंक छंद
दशरथ राज
दशरथ राज नाम कहलाता,
बेटे पास न प्यारे हैं।
नहीं सूझता अब तो कुछ भी,
पिता 'राम' के हारे हैं।
भाग्य लिखा कब मिटे मिटाये,
कर्मों की बलिहारी है।
तात चार बेटों का रोता,
मरने की लाचारी है।
ललित किशोर 'ललित'
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8.
22.10.15
ताटंक छंद
राम जपे है मुख से लेकिन,
मन में माया का वासा।
ऐसे जापक का तो अक्सर,
उल्टा पड़ता है पासा।
ज्ञानी था वो रावण जिसने,
सतत राम को ध्याया था।
बन कर शत्रु राम का जिसने,
परम मोक्ष को पाया था।
ललित किशोर 'ललित'
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9
22.10.15
ताटंक छंद
कितने अरमानों से बेटे,
मैंने तुझको पाला था।
जग की सारी खुशियाँ तुझको,
देता मैं मतवाला था।
आज उन्हीं खुशियों के बदले,
हार गमों के देता तू।
कब जाओगे दुनिया से तुम,
पूछ प्यार से लेता तू।
ललित किशोर 'ललित'
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10
22.10.15
ताटंक छंद
मेरे घर के छज्जे पर जो,
कौआ हर दिन आता था।
आते हैं मेहमान कोई,
काँव-काँव चिल्लाता था।
अब तो कोई कौआ छत पर,
नहीं दिखाई देता है।
कंकरीट में खोया कौआ,
आज बन गया नेता है।
ललित किशोर 'ललित'
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22.10.15
11
ताटंक छंद
फूँक दिया है उस पुतले को,
जिसको पापी माना था।
निर्दोषी था वो पुतला तो,
रावण जिसको जाना था।
छुपे हुए हैं जीवित रावण,
कई मुखौटों के पीछे।
ढ़ूँढ निकालो उनको अब तो,
क्यों बैठे आँखें मीचे।
ललित किशोर 'ललित'
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23.10.15.
12
राधा गोविन्द12-2-17
ताटंक छंद
नाथ तुम्हारे दर्शन को ये,
भक्त दूर से आते हैं।
मनोकामना पूरी हो ये,
तुमसे आस लगाते हैं।
आया मैं भी द्वार तुम्हारे,
मुझे पिला दो वो हाला।
खो जाऊँ नैनों में तेरे,
भूल सभी कंठी माला।
ललित किशोर 'ललित'
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13.
23.10.15
ताटंक छंद
आदरणीय मित्रों विदुर नीति की पुस्तक में से विदुर जी की नीतियाँ
ताटंक छंद में क्रमश: प्रस्तुत करने की एक तुच्छ कोशिश कर रहा हूँ। आप सब का सहयोग व मार्ग दर्शन अपेक्षित है।
विदुर नीति
श्री गणेशाय नम:
श्री सरस्वती देव्यै नम:
असत् उपायों को अपनाकर,
कपट कार्य जो होते हैं।
उनमें अपना मन न लगाना,
घातक सब वो होते हैं।
सत्य उपायों को अपनाकर,
करते कर्म सदा जो हैं।
सफल नहीं यदि हो पाते तो,
ग्लानि नहीं करते वो हैं।
ललित किशोर 'ललित'
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14.
ताटंक छंद
विदुर नीति
भाग २
काम नया शुरु करने का जो,
कारण हो पहले जानो।
सोच-समझ कर कार्य करो तुम,
जल्दी बुरी बला मानो।
धीरज से हर काम सँवारो,
फल उसका पहले बाँचो।
कितना वो प्रगति में सहायक,
सोच जरा परखो जाँचो।
ललित किशोर 'ललित'
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15.
ताटंक छंद
विदुर नीति
भाग ३
नहीं जानता है जो राजा,
हानि-लाभो खजाने को।
राज-दण्ड की विधि नहि जाने।
असफल राज चलाने को।
इनको पूर्ण रूप से जाने,
धर्म-अर्थ का जो ज्ञानी।
प्राप्त राज्य को करता है वो,
राज करें राजा रानी।
ललित किशोर 'ललित'
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24.10.15
16
ताटंक छंद
विदुर नीति
भाग ४
महाबली से टकराये जो,
दुर्बल बिना सहारों के।
जिसका सब कुछ चोर ले गये,
जागे नीचे तारों के।
चोर तथा कामी जो होवे,
नींद नहीं ले पाता है।
बरबस जागे रातों में वो,
रोग उसे लग जाता है।
'ललित किशोर 'ललित'
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17
ताटंक छंद
अँगना में इक फूल खिला था,
उसको अपना माना था।
रंगों से हमने सींचा था,
खुशबूदार खजाना था।
झोंका एक हवा का आया,
रुख फूलों ने मोड़ा है।
जिस से आशा करता ये दिल,
दिल उसने ही तोड़ा है।
'ललित किशोर 'ललित'
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18
ताटंक छंद
मदिरा की मस्ती में खोना,
काम नहीं है वीरों का।
कहो सोमरस या शराब वो,
करती नाश शरीरों का।
मदिरा पीने वाले का तो,
मुख हरदम होता काला।
श्याम नाम की हाला पी लो,
मिल जाए मुरली वाला।
ललित किशोर 'ललित'
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25.10.15
19
ताटंक छंद
नन्हे-नन्हे हाथों में वो,
लकुटी ले वन जाते हैं।
गैयाँ हैं उनको अति प्यारी,
मुरली मधुर बजाते हैं।
गोप-ग्वाल सब मुग्ध हुए हैं,
दर्शन निपट निराले हैं।
छुटके कान्हा की छवि ऐसी,
बेसुध सारे ग्वाले हैं।
ललित किशोर 'ललित'
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20
ताटंक छंद
कितने अच्छे कितने सच्चे,
बचपन के दिन होते थे।
चिन्ता फिकर नहीं थी कोई,
तान चदरिया सोते थे।
काश लौट कर फिर आ जाएँ,
वो मदमस्त हँसीं शामें।
एक बार फिर जी लें हँसकर,
हाथ सहेली का थामे।
ललित किशोर 'ललित'
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21
ताटंक छंद
लडते हैं माँ बाप परस्पर,
बच्चा छुप छुप रोता है।
सोच रहा वो नादाँ मन में,
आखिर ये क्यों होता है।
टकराते हैं अहम दिलों के,
जैसे बम ही छूटे हों।
लडते रहते साँझ सवेरे,
जो अन्दर से टूटे हों।
ललित किशोर 'ललित'
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22
ताटंक छंद
आठ बरस का लाडा देखो,
सात साल की लाडी है।
शादी धूम धाम से होगी,
समधी बड़ा अनाड़ी है।
नेता मंत्री शामिल होंगे,
बाराती जल्लादी हैं।
लाडी भागी सीधी थाने ,
ये कैसी आजादी है?
ललित किशोर 'ललित'
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22.12.15
23
ताटंक छंद
नहीं सूझता कुछ भी अब तो,लिखने और छपाने को।
न्याय हो रहा केवल अब तो,दिखने और छकाने को।
ऐसी आजादी से अब तो,दिल मेरा घबराता है।
छूट भयंकर अपराधी भी,आज यहाँ इतराता है।
ललित किशोर 'ललित'
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23.12.15
24
ताटंक छंद
विषय माँ मुक्तक बनाया
क्यूँ होता है अक्सर ऐसा,माँ छुप-छुप कर रोती है?
बेटा नजरें फेर रहा क्यूँ,सोच दुखी वो होती है।
माँ के अरमानों का सूरज,दिन में क्यूँ ढल जाता है?
एक अँधेरे कोने में फिर,बिस्तर क्यूँ डल जाता है?
'ललित किशोर 'ललित'
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25
ताटंक छंद
माँ की याद में
माँ मैं मूरख समझ न पाया,तेरे दिल की बातों को।
मेरी राह तका करती थी,क्यूँ सर्दी की रातों को?
मेरे सारे सपनों को माँ,तू ही तो पर देती थी।
मेरी हर इक चिन्ता को तू,आँचल में भर लेती थी।
आज अकेला भटक रहा हूँ,मैं इस जग के मेले में।
तेरी कमी अखरती है माँ,जब भी पड़ूँ झमेले में।
माँ तेरी यादों में मेरी,आँखें नीर बहाती हैं।
तेरी सीखें अब भी मुझको,राह सदा दिखलाती हैं।
'ललित किशोर 'ललित'
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24.12.15
26
ताटंक छंद
श्रृद्धा से सिर झुक जाता है,पढ़कर गाथा वीरों की।
भारत माँ का ताज सुशोभित,करने वाले हीरों की।
हर रिश्ते को पीछे छोड़ा,आजादी दिलवाने को।
भूल उन्हें हम घूम रहे क्यूँ,सूट-बूट सिलवाने को।
ललित किशोर 'ललित'
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25.12.15
27
ताटंक छंद
सड़कें सारी खाली कर दो,नेता जी अब आयेंगें।
चिड़िया भी पर मार न पाये,नेता जी जब आयेंगें।
नेता जी के राज दुलारे,खोटे बंदे होते हैं।
नेता जी के दम पर सारे,खोटे धंधे होते हैं।
ललित किशोर 'ललित'
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27.12.15
28
ताटंक छंद
समसामयिक: शिक्षा अव्यवस्था
नेता से जब लड़ता नेता,जनता सिर को पीटे है।
कैसा है ये देश जहाँ सब, नेता चाहें सीटें हैं।
विद्यालय शिक्षक को तरसें,बच्चे बड़े अभागे हैं।
नेता सारे सुस्त पड़े हैं,बच्चे खुद ही जागे हैं।
दोपहरी में मिलता दाना,शिक्षक ही हलवाई है।
मंत्री जी से बच्चे कहते,हम से क्या रुसवाई है।
खाने की जब करी व्यवस्था,शिक्षा से क्यूँ
नाराजी।
शिक्षित सबको करना है अब,देते केवल नारा जी।
'ललित किशोर 'ललित'
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29
ताटंक छंद
समसामयिक : अप्रत्यक्ष समस्या
कानों पर क्यूँ जूएँ रेंगें,बहरे जब नेता जी हैं।
बीन कहाँ सुनती हैं सारी,भैंसेंं सब नेता ही हैं।
भेड़ चाल क्यूँ चलते नेता,जनता सारी पूछे है।
लंका इनकी नहीं जले क्यूँ,जलती देखी पूँछें हैं।
'ललित किशोर 'ललित'
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30
ताटंक छंद
समसामयिक : अच्छे दिन?
देखो जी ये मोदी जी भी,सबको खूब छकाते हैं।
दुश्मन हो या दोस्त सभी को,भैरव नाच नचाते हैं।
पर मैं मूरख समझ न पाया, इनकी न्यारी घातों को।
अच्छे दिन का सपना देखूँ,जाग-जागकर रातों को।
'ललित किशोर 'ललित'
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31.
ताटंक छंद
देखी दुनिया दारी हमने,देख लिये दुनियावाले।
माँ की सूनी आँखें देखी,देख लिये दिल के छाले।
चार चार बेटों की माँ को,रोते भी हमने देखा।
बेटों की आँखों को क्रोधित,होते भी हमने देखा।
माँ की आँखो की कोरें अब,टूटे ख्वाब सँजोती हैं।
रानी बनकर आई थी अब,लगती एक पनोती है।
जिस घर की ईंटो को उसने,रात रात भर था सींचा।
आज उसी घर से बेटों ने,हाथ पकड़ कर है खींचा।
'ललित किशोर 'ललित'
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ReplyDeleteआदरणीय महेंद्र जी,
Deleteसराहना और उत्साहवर्धन हेतु हृदय से आभार
बहुत बढ़िया आद. । उत्तम जानकारी।
ReplyDeleteसराहना व उत्साह वर्धन के लिए हृदय से आभार आदरणीय
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