किस्मत घंटियों की


गीतिका छंद
~~~~~~किस्मत घंटियों की~~~~~~
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मंदिरों में  आरती  बिन,घंटियों  के  हो  रही।   
घंटियां इस्कूल वाली,ढाँक कर मुँह सो  रही।
घंटियाँ मोबाइलों की,दन-दना-दन-दन बजें। 
द्वार-घर की घंटियाँ महमान की आशा तजें।

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ललित किशोर 'ललित'

Vidhan:Geetika गीतिका छंद विधान


गीतिका छंद

चार चरण
प्रत्येक चरण में 26 मात्रायें
14..12  पर यति
2/4 चरणों में समतुकांत

मात्रिक विधान
2122  2122 ,
2122  212

उदाहरण धुन
हे प्रभो आनन्द दाता
ज्ञान हम को दीजिए।

मनहरण घनाक्षरी विधान एवँ रचनाएँ

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 ------मनहरण घनाक्षरी छंद विधान-----

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1.यह एक वर्णिक छंद है।


2.इस छंद में वर्णों (अक्षरों) की गणना (गिनती) की जाती है।


3.इसमें आधे वर्ण को नहीं गिना जाता है..जैसे 'तृष्णा' इसकी गणना दो वर्ण के रूप में ही की जाएगी।


4. इसमें 8, 8, 8, 7 कुल  31 वर्ण होते हैं।


5. कुल 8 पंक्तियाँ और 16 चरण होते हैं जिनमें 1,2,3,5,6,7,9,10,11,13,14,15 चरण 8 ,8 वर्ण के होते हैं तथा 4,8,12 एवं 16 वां चरण 7 वर्ण के होते हैं इन्हीं चरणों में समतुकान्त मिलाने होते हैं..।

अंत में लघु गुरू वर्ण होते हैं लय की सुगमता के लिए...


6.चार समतुकान्त होते हैं


           ***** उदाहरण *****

            मनहरण घनाक्षरी छंद

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जो न बोलो  सत्य कटु,

मीठा सच तो बोल दो।

नहीं जो किसी को डसे,

वो सच तो बोलिए।


लेते हुए राम नाम,

होते रहें सारे काम।

जग के रचयिता को,

भूल तो न डोलिए।


गीता और रामायण,

ऋषियों की बात मान।

मनीषियों के बोल को,

झूठ से न तोलिए।


जिंदगी के कारवाँ में,

जिसका भी मिले साथ।

हँसी के दो बोल बोल

प्रेम रस घोलिए।


**********रचनाकार*************

          ललित किशोर 'ललित'

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मनहरण घनाक्षरी रचनाएँ

1

शहर

कैसी ये हवाएँ चली।
भूले सब गाँव गली।
शहर की आबोहवा
रास बड़ी आ रही।

कंकरीट के ये जाल।
अँधियारे ये विशाल।
आड़ में जिनकी शर्मो
हया खोती जा रही।

द्वार द्वार के है पास।
जानकारी नहीं खास।
पड़ोसी न आए रास।
प्राईवेसी खा रही।

पूरी हुई अब साध।
पाप नहीं अपराध।
पापों की नगरिया ये।
सबको लुभा रही।

ललित किशोर 'ललित'

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02.10.2018

2.

राधा जी

राधा जी का प्यारा नाम।
जपे जा तू आठों याम।
कभी न कभी तो श्याम।
तेरे पीछे आएगा।

राधा जी सुखों का धाम।
पीछे-पीछे चले श्याम।
राधा जी का नाम तुझे।
श्याम से मिलाएगा।

दुनिया से मिले घाव।
भँवर में फँसी नाव।
राधा-राधा जप तुझे।
दुख न सताएगा।

राधा का गुलाम श्याम।
उसे प्यारा राधा नाम।
राधा-राधा जपे जा तू।
भव तर जाएगा।

ललित किशोर 'ललित'

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[02/10/2018
मनहरण घनाक्षरी

3.
भ्रूण हत्या

मैया तू है एक नारी।
फिर काहे मैं बिसारी।
जग में आने दे मुझे।
कच्ची हूँ अभी कली।

तेरे जैसे नैन-नक्श।
और पापा जैसा अक्स।
सुंदर परी मैं ऐसी।
जैसे साँचे में ढली।

देखना है जग मुझे।
चढ़ने हैं नग मुझे।
जरा पकने दे अभी।
पकी नहीं ये फली।

काम बड़े करूँगी मैं।
देश-हित लड़ूँगी मैं।
सिद्ध कर दूँगी बेटे
से है बिटिया भली।

ललित किशोर 'ललित'

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[02/10/2018
मनहरण घनाक्षरी

4.

रूप-रंग 

रूप रंग का खुमार
उतरेगा कब यार।
वृद्धावस्था जिंदगी में
घुसी चली आ रही।

हो रहे सफेद बाल
खिंचने लगी है खाल।
नौजवानी खूब तेरे
दिल पे है छा रही।

धुँधला गई है आँख
मन को लगे हैं पाँख।
कामनाएँ नित नई
मन को लुभा रही।

अब तो समझ यार
जिंदगी के दिन चार।
कर ले भजन वर्ना
नाव डूबी जा रही।

ललित किशोर 'ललित'

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07/10/2018 
मनहरण घनाक्षरी

5.

अशांतिवास

दिल में अशांतिवास
शांति क्यों नहीं है पास?
गली-गली खोजता हूँ 
शांति नहीं मिलती।

तांडव है चारों ओर।
दानव मचाएँ शोर।
खूब सींचूँ दिल की ये
कली नहीं खिलती।

नैन बंद कर देखा
टेढी मिली भाग्य-रेखा।
लाख करूँ जतन ये
रेखा नहीं हिलती।

पड़ गई एक बार
यदि दिल में दरार।
किसी सुई-धागे से वो
कभी नहीं सिलती।

ललित किशोर 'ललित'

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[07/10/2018
मनहरण घनाक्षरी

6.

माली

माली को पुष्पों से प्यार
फूलों से ही है बहार।
रानियों का ये श्रृंगार
सुमनों से जिन्दगी।

सौरभ फूलों का सार
खुशबू बढ़ाए प्यार।
सुमनों से हार जाती
काँटों की दरिंदगी।

सब की यही है चाह।
फूलों से भरी हो राह।
सुमन हैं दुनिया में।
सबकी पसन्दगी।

वन-उपवन बाग
बाँसुरी के सब राग।
करते हैं फूलों से ही
कान्हा जी की बन्दगी।

ललित किशोर 'ललित'

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[07/10/2018
मनहरण घनाक्षरी
7.

बागबाँ


भूलकर भूख-प्यास।
छोड़कर रंग-रास।
बागबाँ रहा था सदा
बाग को सँवारता।

कलियों पे था निखार
बागबाँ हुआ निसार।
प्यार भरी अँखियों से
बाग को निहारता।

कलियाँ जो बनी फूल।
बागबाँ को गई भूल।
बाग और बागबाँ से
दिल में न प्यार था।

सूना हुआ सारा बाग।
फूल सब गए भाग।
बागबाँ तो सुमनों की
खुशी पे निसार था।

ललित किशोर 'ललित'

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[08/10/2018
मनहरण घनाक्षरी

8.

राम-नाम

चाहे जपो राम नाम।
चाहे कहो सीताराम।
राम जी का ध्यान धर
सारे काम करिए।

चाहे जपो राधा नाम।
चाहे कहो राधेश्याम।
राधा-कृष्ण चरणों में
ध्यान नित धरिए।

नारायण जपो नाम
धन-धान्य-लक्ष्मी धाम।
आती-जाती साँस सँग 
पुण्य-झोली भरिए।

दुखागर मृत्युलोक
प्रभु चरणों में ढोक।
विनती प्रभु से करो।
सारे दुख हरिए।

ललित किशोर 'ललित'

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9.

7.9.15

मनहरण घनाक्षरी

थाम ले गुरू का हाथ
एक वो ही देंगें साथ।
हाथ वो रखें जो माथ
पाप कट जाएँगें।

काम,क्रोध,लोभ,मोह
विष के समान त्याग।
राम नाम सुख धाम
धुन वो सुनाएँगें।

भाई,बंधु,पितु,मात
कोई नहीं देगा साथ।
हरि के हजार हाथ
काम वो ही आएँगें।

चल दे प्रभू की ओर
सारे बंधनों को तोड़।
साँस की जो टूटे डोर
जोड़ वो ही पाएँगें।

ललित किशोर 'ललित'

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10
8.9.15

मनहरण घनाक्षरी

लोकतंत्र का निखार,
चाहता है देश आज।
सारी रीति-नीतियों में,
बदलाव चाहिए।

काले धन का हो नाश
भ्रष्ट तंत्र का विनाश।
रामराज की है चाह,
दृढभाव  चाहिए।

देश में करे पढाई,
नौकरी विदेश पाई।
देश में विभूतियों का,
ठहराव चाहिए।

नारी होय पूजनीय,
लोक में सराहनीय।
वक्त को बदल देगी,
सदभाव चाहिए।

ललित किशोर 'ललित'

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11.
9.9.15
सूने सूने अँगना में,
मेरी प्यारी बगिया में।
आई क नन्ही परी,
घर महका दिया।

बोलती है तुतलाती,
चलती है इठलाती।
फुदक-फुदक आती,
पग लहका दिया।

कूकती है कोयल सी,
झूमती है बदरा सी।
चुलबुली चिड़िया सी,
मन चहका दिया।

चमके ज्यूँ चँदनियाँ,
पहने है पैंजनियाँ।
पराई हूँ यही बोल,
मन दहका दिया।

ललित किशोर 'ललित'

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12.
9.9.15
मनहरण घनाक्षरी

बेटी

मैया मैं दुलारी तेरी,
सुनले अरज मेरी।
जग में आने दे मुझे,
कभी न सताऊँगी।

कलेजे का टुकड़ा हूँ,
तेरा ही तो मुखड़ा हूँ
घर में आने दे मुझे,
सदा मुसकाऊँगी।

तू जो मुख मोड़ लेगी,
मेरा दम तोड़ देगी।
समझ न पाऊँ तुझे,
कैसे भूल पाऊँगी।

तू भी जब आई होगी,
तेरी कोई माई होगी।
जैसे पाल लिया तुझे,
मैं भी पल जाऊँगी।


ललित किशोर 'ललित'

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13.

10.9.15
मनहरण घनाक्षरी

वक्त

वक्त कभी रुके नहीं,
वक्त कभी झुके नहीं।
वक्त को सँवारने से,
बनें ज़िन्दगानियाँ।

वक्त से ही भोर चले,
वक्त से ही साँझ ढले।
वक्त की बहार से ये,
झूमती जवानियाँ।

वक्त से ही यार मिलें,
वक्त से ही रूठ चलें।
वक्त की शरारतों से,
बनें ये कहानियाँ।

वक्त से मिला के हाथ,
वक्त के चले जो साथ।
रोक ले वो हौसलों से,
वक्त की रवानियाँ।

ललित किशोर 'ललित'

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14.

10.9.15

मनहरण घनाक्षरी
💔💔💔💔💔💔💔💔
नार अलबेली थी वो,
साथ मेरे खेली थी वो।
मेरी प्रीत तोड़ कर,
महलों की हो गई।

जिसने कहा था मुझे,
भूलूँगी कभी न तुझे।
वो ही मुझे भूल कर,
सपनों में खो गई।

प्रेम की ये डोर ऐसी,
पतंग की डोर जैसी।
बादलों से होड़ कर,
पीर वो पिरो गई।

खुद गर्ज प्रीत थी वो,
मेरी मनमीत थी जो।
लोक-लाज छोड़ कर,
नैया ही डुबो गई।

ललित किशोर 'ललित'

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15.

11.9.15

मनहरण घनाक्षरी

चाँदनी ने दाग सारे,
धो दिये चँदा के प्यारे।
चुप हो रहा आईना,
वे नजारे मौन हैं।

चाँदनी का दिल जला,
चाँद सितारों में चला।
आसमाँ चुप हो रहा,
वे सितारे मौन हैं।

चाँदनी जो फिर गई,
इशारा वो कर गई।
चाँद घायल हो रहा,
वे बहारें मौन हैं।

चाँद से होकर खफा,
होती चाँदनी जो दफा।
बेसुध हो रहा चाँद,
देव सारे मौन हैं।

ललित किशोर 'ललित'

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16

11.9.15

मनहरण घनाक्षरी

फूलों ने हँस ये कहा,
जिन्दगी  है कह-कहा।
हँसते-हँसाते रहो,
जीने की यही कला।

झरने भी रुन-झुन,
कहते चलें गुन-गुन।
सदा गीत गाते रहो,
टलेगी वहीं बला।

भँवरा ये कहे सुनो,
कलियों की राह चुनो।
प्रेम-रस पीते रहो,
जिन्दगी यूँ ही चला।

पेड़ हवा छाया देते,
फल और फूल देते।
खुशियाँ लुटाते रहो,
करो सब का भला।

ललित किशोर 'ललित'

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17

12.9.15

मनहरण घनाक्षरी

खुशी हर दम देते,
सभी गम हर लेते।
राम ने भी करी पूजा,
जग में माँ-बाप की।

मात-पिता के अपने,
सच कर सभी सपने।
खुशियाँ मिलेंगीं तुझे,
यहाँ बिना माप की।

गम सब हर ले तु,
बन जा खुशी का सेतु।
जिन्दगी बसर करें,
यहाँ बिना ताप की।

करते जो बदनाम,
मात-पिता का नाम।
सुनते वो बद दुआ,
उनके विलाप की।

ललित किशोर 'ललित'

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18

13.9.15
मनहरण घनाक्षरी
राम-केवट प्रसंग

सुनी मम श्रवणों की,
रज तव चरणों की।
मानुष बनाय दिया,
पाहन जो छू लिया।

नाव पे किरपा करो,
या में पग मत धरो।
बन जाए मुनि-नारी,
पावन जादू किया।

पग जो पखार लूँगा,
पार मैं उतार दूँगा।
दशरथ राज की सौं,
दाम जो कछू लिया।

केवट की गुहार है,
उतराई उधार है।
भव से लगाना पार,
नाम जबहू लिया।

ललित किशोर 'ललित'

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19.

22.11.16

मनहरण

रुक गया देश वहाँ
आठ को था खड़ा जहाँ।
छोड़ सब काम काज
लाईन लगा रहा।

लगा रहा जयकारे
मन में उठे है हूक।
सूनी सूनी अँखियों मे
कामना जगा रहा।

खड़ी हैं दुल्हन आज
भूल सब लोकलाज।
अंत हीन लाईनों में
नोट दे दगा रहा।

सड़क किनारे वाला
भिखारी भी देखो आज।
पाँच सौ के नोट वाले
सेठ को भगा रहा।

ललित किशोर 'ललित'

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20.

मनहरण घनाक्षरी

नोट बंदी के कारण बेबस एक बाप 
के मन की बात

नोट नहीं पास आज
बचे कैसे मेरी लाज।
सात फेरे बिटिया के
कैसे करवाऊँगा।

तार तार जोड़ी थी जो
जिंदगी की जमा पूँजी।
दो हजारी नोटों में वो
कैसे बदलाऊँगा।

पतनी विमूढ़ हुई
आँखें फाड़ फाड़ देखे।
उसकी आँखों मे आँसू
कैसे देख पाऊँगा।

घोर अँधियारी रात
कैसे पीले होंगे हाथ।
लाडली के माथ बिंदी
कैसे लगवाऊँगा।

ललित किशोर 'ललित'

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21.

मनहरण घनाक्षरी

जनता का पैसा छीन
हा-हा कर हँस रहा।
बैठ गया कौन आज?
कोई न बता रहा।

किसका था दोष कौन
सजा का हकदार था?
समझ न आए  बात
कोई न बता रहा।

पूछ रही ये जमीन
पूछ रहा आसमान।
काहे को मचा बवाल?
कोई न बता रहा।

सूँघ रहा पत्रकार
देख रहा चित्रकार।
जनता की पीर आज
कोई न बता रहा।

पूछे हर नौनिहाल
पूछे हर बदहाल।
मैंने किया क्या कसूर?
कोई न बता रहा।

पूछे बिटिया का बाप
कौन अब देगा साथ?
कैसे होगें पीले हाथ?
कोई न बता रहा।

ललित किशोर 'ललित'

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22.

समसामयिक प्रार्थना

थक गये अब नाथ,
नैया खेते मेरे हाथ।
आप ही सँभालो अब,
पतवार नाव की।

पतवार नाव की लो.
थाम करकमलों में।
झलक दिखादो जरा,
दयालु स्वभाव की।

दयालु स्वभाव की वो,
छवि तारणहार की।
दवा आज दे दो प्रभु,
मेरे हर घाव की।

मेरे हर घाव की वो,
दवा राम नाम की जो।
लगन लगा दो तव
चरणों में चाव की।

ललित किशोर 'ललित'

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23.

मनहरण घनाक्षरी

बेटी

मैया मैं दुलारी तेरी,
सुनले अरज मेरी।
जग में आने दे मुझे,
सुनले पुकार माँ।

कलेजे का टुकड़ा हूँ,
तेरा ही तो मुखड़ा हूँ।
मेरी हर धड़कन 
करे है गुहार माँ।

तू जो मुख मोड़ लेगी,
मेरा दम तोड़ देगी।
दुनिया में होगा तेरा
कहाँ से उद्धार माँ।

सीने से लगाना मुझे
नहीं दुख दूँगी तुझे।
तेरी बगिया में ले
आऊँगी बहार माँ।

ललित किशोर 'ललित'

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24.

मनहरण
नारी

नारी से ही ये समाज
नारी से ही शोभें साज।
वनिता ही घर को है
ढंग से सँवारती।

किसी को लगा हो मर्ज
घर पे चढ़ा हो कर्ज।
हर दुविधा से सदा
नारी ही उबारती।

देती सारे सुख वार
पाले सारा परिवार।
सदा प्यार से पति को
नारी ही निहारती।

नारी है शक्ति की देवी
वही है भक्ति की देवी।
यमराज से भी यहाँ
नारी नहीं हारती।

ललित किशोर 'ललित'

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25.

मनहरण घनाक्षरी

तेज धूप और छाँव
धूल भरे गली गाँव
और भूले मात पिता 
सुत परदेश में।

सदाचार लोकलाज
भूल जिंदगी के साज
जी रहे हैं पूत आज
नये परिवेश में।

प्यार भरी सुर ताल
बीवी और ससुराल
खुश है इसी में लाल
पिता पशोपेश में।

काम काज का है बोझ
कैसे याद रखें रोज।
कोई याद करे उन्हें
आज भी स्वदेश में।


ललित किशोर 'ललित'

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विष्णुपदछंद विधान एवँ रचनाएँ(जनवरी 2020)

जनवरी 2020

विष्णुपद छंद विधान

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      ------विष्णुपद छंद विधान------
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विधान 

1. यह चार पंक्तियों वाला मात्रिक छंद है।

2. इसमें 16, 10 = कुल 26 मात्राएँ तथा 16, 10 पर यति चिन्ह होता है।

3. अंत गुरु वर्ण से होता है

4. दो-दो पंक्तियों में तुकांत सुमेलित किए जाते हैं।

5. लय-माधुर्य और छंद की सुंदरता बढाने के लिए अंत में दो लघु वर्ण और एक गुरु वर्ण रखना चाहिएँ।



             **** उदाहरण ****
                  विष्णुपद छंद
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जीवन   की   तस्वीर   निराली,सतरंगी  गहरी।
कभी बोलती-सुनती दिखती,और कभी बहरी।
रंग-बिरंगी  तितली  सी  ये,कभी  बहुत चहके।
और कभी  ये  अपनी  रंगत ,बदले  रह  रहके।

**********रचनाकार*************
          ललित किशोर 'ललित'
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विष्णु पद छंद रचनाएँ
1.
16-10

भरी हुई है पूरी जिनके,पापों की गगरी।
जय-जयकार करे उनकी ही,ये माया- नगरी।
वे ही दानी कहलाते जो,जन-धन हैं हरते।
पुण्यों का वो करें तमाशा,दान-यज्ञ करते।

ललित
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विष्णु पद छंद
16-10

2.


जहरीले कुछ शब्द नुकीले,घाव करें गहरे।
दीवाना दिल टीस भरे उन, घावों में ठहरे।दिल की दीवारों में छुपकर,दर्द हँसा करता।
मरहम तीर चला कर हारे,दर्द नहीं मरता।

ललित
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विष्णु पद छंद
3.

कैसे-कैसे रंग अनोखे,रँगते जीवन को।
नीले-पीले-लाल-सुनहरे,हरते जो मन को।
कुछ गहरे कुछ हल्के-फुल्के,
कुछ इँगलिश झलकें।
कुछ सुख बरसाते हैं कुछ से,दर्द सदा छलकें।

ललित
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विष्णु पद छंद
4.

प्यार सभी को इस जीवन में,कहाँ भला मिलता?
सौरभ की क्या बात करें,इक फूल नहीं खिलता।
भूले से भी फूल खिले तो,कंटक साथ खिलें।
कंटक से जो नहीं डरे नर,खुशबू उसे मिले।

ललित
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विष्णु पद छंद
5.
चम-चम-चम-चम ओस चमकती,फूल- कली चहके।
पत्ता-पत्ता डाली-डाली,सौरभ से महके।
कुहरे की झीनी सी चादर,कलियों को ढकती।
कलियाँ फिर घूँघट-पट खोले,मुक्तावलि तकतीं।

ललित
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विष्णु पद छंद
6.

पायल के घुँघरू सी छम-छम,करती दौड़ रही।
झूम-झूम कर नदिया सारे,बंधन तोड़ बही।
सागर से मिलने की मन में,हर-पल हूक उठे।
मधुर-मिलन की मधुर धुनों में,कोयल कूक उठे।

ललित
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विष्णु पद छंद
7.
पर्वत की ऊँची चोटी पर,बादल झूम रहे।
मतवाले दो पागल-प्रेमी,वन में घूम रहे। 
काले-काले बदरा से कुछ,बूँदें टपक रही।
चमक-चमक कर चम-चम-चम-चम,बिजली चमक रही।

ललित 
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विष्णु पद छंद
8.

महावीर बजरंग-बली की,प्यारी सूरत है।
उसके दिल में सिया-राम की,मनहर मूरत है ।
राम-नाम का जाप निरंतर,रसना पर रखता।
अमर हुआ अपनी सेवा का,अब तक फल चखता।
 
ललित
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12.1.2020

विष्णुपद छंद
9.
पतझड़  के   सूखे   पत्तों  सम, कुछ  नर-नार दिखें।
अलग डालियों से होकर जो,निज नव-भाग्य लिखें।
पवन-वेग  के  संग  अकेले, नभ  में वो उड़ते।
उन के दिल के तार नहीं फिर,डाली से जुड़ते।

ललित
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विष्णुपद छंद
10.

तात-मात की परी-लाडली,जब ससुराल चली।
आँखों में आँसू भर देखे,वो मासूम कली।
उसकी आँखों से बहता हर,आँसू यही कहे।
माँ-पापा-भैया क्यों मुझको,पर-घर भेज रहे?

ललित
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विष्णुपद छंद
11.
हर सुबहा सूरज के स्वागत,में धरती महके।
मधुर-मधुर कलरव करते सब,पक्षी भी चहकें।
आत्मा को गहराई तक जो,उत्साहित करती।
पूरब की वो लाली दिल में,नव-उमंग भरती।

ललित

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विष्णुपद छंद
12.
डोल रही है नाव कन्हैया,नदिया है गहरी।
कौन सुने अब पीर जिया की,दुनिया है बहरी?
नैया की पतवार थाम लो,तुम पल-दो-पल को।
या इस गहरी नदिया से कुछ,कम कर दो जल को।

ललित
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विष्णुपद छंद
13.

जीवन की बगिया में चाहो,हरियाली भरना।
स्नान-ध्यान करके हर सुबहा,सूर्य-दर्श
करना।
सूर्य-देव का स्वागत करना,इक लोटा जल से।
भाग्य खुलेंगें जग जीतोगे,विद्या-यश-बल से।

ललित

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विष्णुपद छंद
14.
भाग-दौड़ में जीवन की नर,इतना दौड़ रहा।
लोकाचार-धर्म-संस्कृति को,पीछे छोड़ रहा।
हाय कहाँ तक दौड़ेगा ये,दौड़ेगा कितना?
खुद अपनी निजता से ही मुख,मोड़ेगा कितना?

ललित
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विष्णुपद छंद
15.
दिल की बातें दिल के भीतर,अक्सर छुप रहतीं।
दिल कुछ कहना चाहे भी तो,अँखियाँ चुप रहतीं।
आँखों में ही छुप रहते हैं,अक्सर ग़म जिनके।
अधरों पर मुस्कान सदा ही,रहती है उनके।

ललित
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विष्णुपद छंद
श्रृंगार रस का प्रयास
16.
रिम-झिम रिम-झिम मावठ बरसे,गोरी के अँगना।
छप्पर पर ओले बजते ज्यों,खनक रहा कँगना।
शीतल पवन भेदती तन को,मनवा बहक रहा।
ठिठुराती सर्दी में बैरी,साजन चहक रहा।

ललित किशोर 'ललित'
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विष्णुपद छंद
श्रृंगार रस 
17.
सरवर के पानी में चंदा,ऐसे चमक रहा।
अलसाई सजनी का मुखड़ा,जैसे दमक रहा।
रात चाँदनी उपवन सूना,राह तके सजनी।
आ जा जल्दी आ जा साजन,महकाएँ रजनी।

ललित किशोर'ललित'
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विष्णुपद छंद
श्रृंगार रस 
18.
नदी किनारे बैठी है जो,सुंदर सी लड़की।
नजर मिली जब उससे मेरी,हर धड़कन धड़की।
अधर मधुर मुस्कान भरे वो,नैना तीर भरे।
नाक नुकीली ठोड़ी का तिल,दिल को चीर धरे।

ललित किशोर 'ललित'
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19.
विष्णुपद छंद
श्रृंगार रस 

घुँघराले केशों वाली इक,चंचल शोख कली।
कटि पर मटकी अटका पनघट,गज की चाल चली।
जल में मटकी उल्टी पटकी,मछली देख डरी।
सिमटी-सकुचाई-घबराई,मटकी नहीं भरी।

ललितकिशोर'ललित'
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20.
विष्णुपद छंद
श्रृंगार रस

राधा की वेणी को माधव,मुड़-मुड़ देख रहे।
वेणी के पुष्पों से हर-पल,प्रीत-सुगंध बहे।
प्रीत-सुगंध भरी मुरली को,कान्हा अधर धरें।
प्यार भरी धुन से वंशी व्रज-जन को धन्य करे।

ललित किशोर 'ललित'
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विष्णुपद छंद
21.
जीवन के पथ में कुछ कंटक,कुछ-कुछ फूल मिलें।
कंटक भी कुछ ऐसे पनपें,बनकर शूल मिलें।
शूल हटाकर राह बना लो,गीता-ज्ञान कहे।
हँसते-गाते जीवन जी लो,खुद भगवान कहे।

ललित
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विष्णुपद छंद
22.
सोच सदा ऊँची हो अपनी,ऊँचे हों सपने।
लक्ष्य रखो पूरे करने का,स्वप्न सभी अपने।
अपनी पूरी क्षमता से फिर,उद्यम आप करो।
आएँ जो बाधाएँ पथ में,उनसे नहीं डरो।

ललित
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विष्णुपद छंद
23.
तर्कहीन शंका से चिंता,उठती है मन में।
चिंता करना छोड़ ज़रा तुम,डूबो चिंतन में।
वह संशय-सागर वास्तव में,है कितना गहरा।
दिशाहीन चिंता पर कैसे,रखना है पहरा।

ललित
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विष्णुपद छंद
मुस्कान
24.
फूलों से मुस्कान चुराकर,अधरों पर रख लो।
मदमाती सौरभ को अपने,नथुनों से चख लो।
मुस्काने वाले को हरदम,मुस्कानें मिलती।
खुशबू बिखराने वाले की,नींव नहीं हिलती।
 
ललित किशोर 'ललित'
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हंस गति छंद विधान एवँ रचनाएँ

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      ------हंसगति छंद विधान------
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विधान...

1. यह  20 मात्राओं वाला  मात्रिक छंद है।
2. इसमें 11,9 मात्राओं पर यति होती है।तथा यति पूर्व लघु वर्ण रखा जाता है।

3. दो-दो पंक्तियों में तुकांत सुमेलित किए जाते हैं।

4. अंत में 2 गुरु वर्ण आवश्यक हैं।

         **** उदाहरण ****
               हंसगति छंद
         *****************  
जीवन की ये नाव,चले बलखाती।
ग़म-खुशियों के गाँव,हमें दिखलाती।
सुख की ले पतवार,मस्त चलती ये।
दुख-रुपी कुछ छेद,सहे हिलती ये। 

**********रचनाकार*************
          ललित किशोर 'ललित'
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हंसगति छंद रचनाएँ
1.
हंसगति छंद
पूजा
भाव-भक्ति के साथ,करूँ मैं पूजा।
तुझ सा जग में मीत,नहीं है दूजा।

किरपा ओ घनश्याम,जहाँ तेरी हो।
कदम-कदम पर जीत,वहाँ मेरी हो।

ललित किशोर 'ललित'
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2.
हंसगति छंद
चंचल मन
चंचल मन ये हाय,अश्व सम दौड़े।
सपनों में ही स्वप्न,हजारों जोड़े।
टूटे कोई स्वप्न,नहीं मन चाहे।
पूरा हो हर स्वप्न,यही मन चाहे।

ललित किशोर 'ललित'
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3.
हंसगति छंद
दिल की बात
दिल में है जो बात,कहूँ मैं कैसे?
रखूँ अधर मैं भींच,कहाँ तक ऐसे?
होगा क्या परिणाम,बात कहने का?
संशय दे संकेत,मौन रहने का।

ललित किशोर 'ललित'
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4.
हंसगति छंद
गरल
कुछ बातों में गरल,भरा है होता।
जिनसे दिल का घाव,हरा है होता।
कुछ आँखों में प्रीत,हिलोरें मारे।
दुखते दिल के घाव,भरे जो सारे।

ललित किशोर 'ललित'
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5.
हंसगति छंद
निशाना
साध निशाना तीर,राम ने मारा।
सत्य गया फिर जीत,दशानन हारा।
कुछ ही दिन तक झूठ,यहाँ ठुमकेगा।
घोर अँधेरे बीच,सत्य चमकेगा।

ललित किशोर 'ललित'
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6.
हंसगति छंद
प्लास्टिक
थैला सच्चा मीत,बात ये मानो।
प्लास्टिक थैली शत्रु,सत्य ये जानो।
सिंगल प्लास्टिक यूज़,बड़ा दुखदायी।
छोड़ो इसका साथ,आज से भाई।

ललित किशोर 'ललित'
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7.
हंसगति छंद
पनघट
पनघट पर है शोर,मचा कुछ ऐसा।
नहीं कोई चितचोर,कन्हैया जैसा।
आई हूँ चुपचाप,बिरज में ऐसे।
दो नैनों से नींद,उड़ी हो जैसे।

बाँसुरिया को छोड़,जरा बनवारी।
मैं हूँ गोरी नार,गजब मतवारी।
एक नज़र तो देख,राधिका को तू।
और सताना छोड़,कन्हैया यों तू।

ललित किशोर 'ललित'
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8.
हंसगति छंद
भोर
स्वर्णिम चुनरी ओढ़,भोर इतराई।
धरती पर रंगीन,छटा बिखराई।
सूर्यदेव से लाज,धरा को आए।
बादल की ले ओट,जरा मुस्काए।

ललित किशोर 'ललित'
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9.
हंसगति छंद
जीवन की नाव
जीवन की ये नाव,चले बलखाती।
ग़म-खुशियों के गाँव,हमें दिखलाती।
सुख की ले पतवार,मस्त चलती ये।
दुख-रुपी कुछ छेद,सहे हिलती ये। 

ललित किशोर 'ललित'
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10.
हंसगति छंद
व्यथित मन
व्यथित हुआ मन आज,दूर अपने हैं।
क्यों इस ढँग से चूर,हुए सपने हैं?
मन से ग़ायब चैन,नींद कब आए?
 रोक न पाएँ नैन,अश्रु जब आएँ।

ललित किशोर 'ललित'
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11.
हंसगति छंद
वक्त
वक्त कहाँ हर वक्त,सही रहता है?
वही वक्त हर वक्त,नहीं रहता है।
क्या जाने किस वक्त,वक्त किसका हो?
जीते वो हर जंग,वक्त जिसका हो।

ललित किशोर 'ललित'
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12.
हंसगति छंद
रास
शरद पूर्णिमा रास,रात भर होता।
आत्मानंदी प्रेम,कौन है खोता।
नाचें सारे गोप,गोपियाँ झूमें।
कान्हा को सब भक्त,नैन से चूमें।

ललित किशोर 'ललित'
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13.
हंसगति छंद
पूर्ण चंद्र
पूर्ण चंद्र को आज,चाँदनी चूमे।
शरदपूर्णिमा रात,लताएँ झूमें।

शीतल अमृत बूँद,चाँदनी लाई।
धरती पर हर ओर,बहारें आई।

तारों की बारात,चाँद है लाया।
ब्याह चाँदनी संग,रचाने आया।

पूनम की है रात,चंद्र-मुख कैसा?
परियों के सरदार,इंद्र-मुख जैसा।

चंदा की बारात,द्वार पर आई।
अमृत की सौगात,चाँदनी लाई।

स्वप्न सुनहरे आज,चाँद दिखलाए।
डोली में ससुराल,चाँदनी जाए।

घुँघरू करते शोर,रात मदमाती।
पायल की आवाज,छनन्-छन आती।

पूनम की है रात,चाँदनी प्यासी।
चंदा की वो आज,हुई है दासी।

ललित किशोर 'ललित'
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अक्टूबर 2019 की रचनाएँ

अक्टूबर 2019 की रचनाएँ


दोहा

मैया तेरे द्वार पर,है भक्तों की भीड़।
समय मिले तो आ जरा,मैया मेरे नीड़।

ललित

मुक्तक 16-14
किश्ती

डूब  गई   जब  किश्ती  मेरी,नदी  किनारे  आए वो।
दुखती  रग   को  और दुखाने,ले  पतवारें        आए  वो।
हर सुख-दुख में साथ निभाने,का जो दावा करते थे।
चाँद  छुपा  था जब  बादल में,ले कुछ तारे आए वो।

ललित

सोरठा
जय माता दी
फूलों के गलहार,लाया हूँ माँ प्यार से।
कर लेना स्वीकार,विनती है ये आप से।

चुनरी गोटेदार,काजल बिंदी चूड़ियाँ।
करने को श्रृंगार,महँदी भी है साथ माँ।

धूप दीप से मात,नित्य करूँ मैं आरती।
हर लेना हर घात,माता मेरे भाग्य से।

चना-घूघरी और,ले आया हूँ लापसी।
प्रेम-सहित हर कौर,कर लेना स्वीकर माँ।

ललित

मुक्तक
मरहम
जिसने जितना साथ निभाया,चार-पलों के
जीवन में।
वही बड़ा उपकार मान लो,उसका तुम अपने मन में।
अपने-अपने घाव सभी के,हैं अपने-अपने मरहम।
दिल के गहरे घाव भरे वो,मरहम है अपने-पन में।

ललित

02.10.19
कुण्डलिया
अम्बे माँ
माता अम्बे मैं करूँ,विनती ये कर-जोड़।
काम-क्रोध-मद-लोभ से,मेरे मन को मोड़।

मेरे मन को मोड़,ईश के ध्यान-भजन में।
मायावी संसार,न झाँके मेरे मन में।

कहे 'ललित' हे मात,न कोई तुझ सा दाता।
तुझसे ही सब ज्ञान,मिला है अम्बे माता।

ललित

समान/सनाई छंद
माँ जगदम्बा
जय-जय-जय-जय माँ जगदम्बा,
जय-जय-जय-हे मात भवानी।
जय-जय-जय-जय हे माँ दुर्गा। 
जय-जय-जय शिव की पट-रानी।

पाट दिए सारे नद-नाले।
फेरी सब वृक्षों पर आरी।
आस लिए आए दर तेरे।
पीर पड़ी भक्तों पर भारी।

प्लास्टिक-मोबाइल का जादू।
काट नहीं ये मानव पाया।
इस प्लास्टिक से पीछा छूटे।
दिखला दो कुछ ऐसी माया।

ललित

ताटंक छंद
मैया जगदम्बा
मैया जगदम्बा जगजननी,चरण-शरण मैं हूँ आया।
पूजन-अर्चन नहीं जानता,पुष्प-हार मैं हूँ लाया।
भूल हुई हो जो भी मुझसे,माफ ज़रा कर दो माता।
मेरी खाली झोली अपनी,किरपा से भर दो माता।

ललित


14.10.19
मदिरा सवैया छंद
वार्णिक छंद
7 भगण + अंत में एक गुरु वर्ण
अर्थात 211×7 + गुरु वर्ण
चार सम तुकांत
12 वें वर्ण के बाद यति दर्शाएँ।

मदिरा सवैया छंद
डोलती नाव
डोल उठे जब नाव प्रभो रहना तब आप
कृपालु हरे।
पाप विनाशक मोहन नाम जपे उसका
भव-ताप टरे। 
हो तुम एक हमार प्रभो अब कौन हमें भव-पार करे।
कृष्ण करो किरपा इतनी भव सागर से यह नाव तरे।

ललित

मदिरा सवैया छंद
शत्रु-मित्र
कौन बने कब शत्रु यहाँ अरु कौन बने कब मित्र यहाँ?
मेल बने अनमोल यहाँ कब मेल कहाय विचित्र यहाँ?
बात बड़ी असमंजस की कब मानव खोय चरित्र यहाँ?
मात-पिता तज पुत्र चले जब वो बनता खुद पितृ यहाँ?

ललित

मदिरा सवैया छंद
जग छोड़ चले
कौन कहाँ कब छोड़ चले जग,जीवन से मुख मोड़ चले?
तोड़ चले जग के सब बंधन,मित्र-सखा कब छोड़ चले?
अंध भविष्य न जान सके नर,वो सब के दिल तोड़ चले।
याद करें उसके गुण को सब,जो तज वैभव-होड़ चले।

ललित

मदिरा सवैया छंद
रवि पावन
भोर भए हरता जग का तम पावन वो रवि क्या कहना?

मोहन की मुरलीधर की मनमोहन की छवि क्या कहना?

शांति-प्रदायक शुद्धि-प्रसारक अग्नि-मयी हवि क्या कहना?

छंद नए नित जो सिखलावत 'राज' गुरू कवि क्या कहना?

ललित

ताटंक छंद
हँसते-गाते
जीवन के हर दोराहे पर,साथ सदा तुमको पाया।
हरदम मेरे साथ चली हो,तुम बनकर मेरा साया।
अब बासठ का हुआ यार मैं,उन्सठ की तुम हो प्यारी।
हँसते-गाते प्यार जताते,जीने की अब है बारी।

ललित

मदिरा सवैया छंद
मानव-जीवन
पाकर मानव जीवन धन्य हुआ यह जीव 
हँसे जग में।
यज्ञ नहीं जप-ध्यान नहीं भटके यह जीव फँसे जग में।
ईश्वर ने जब जन्म दिया धरती पर मानव के तन में।
क्यों न जपे तब नाम अहर्निश मोहन का मन ही मन में?

ललित

मदिरा सवैया छंद
तप्त-दिल
तप्त बड़ा दिल का तल है मन सोच रहा यह बात बड़ी।
बीत गए सुख-शांति भरे दिन, क्यों न कटे
यह दुःख-घड़ी?
वक्त रहा शुभ साथ नहीं तब,वक्त बुरा यह क्यों न टले?
बीत गया उजला दिन क्यों तम-घोर-घना 
दिल को कुचले?

ललित

मदिरा सवैया छंद
माँ
याद करें तुमको हम माँ घिरती जब राह घने तम से।
छाँव न हो सुख की मन में जब प्राण थकें गहरे ग़म से।
शांति न हो मन बेकल हो तब पीर तुम्हीं हरती छम से।
दूर भले कितनी तुम हो पर नेह सदा रखतीं हम से।

ललित

मदिरा सवैया छंद
वृषभानुसुता
लाल गुलाब खिले बगिया व्रज-नंदन-कानन डोल गया।

देख गुलाब सुगंध भरे वृषभानुसुता मन डोल गया।

भूल गया मुरली मुरलीधर वो मनमोहन डोल गया।

बंद हुए नयना-पट सौरभ से सगरा तन डोल गया।

ललित

मदिरा सवैया छंद
यौवन
सावन बीत चला सजना अरु,भूल गया कँगना बजना।
प्रीत बड़ी हमको तुमसे तुम, भूल गये हमको सजना।

सून पड़ा मन का अँगना हम भूल गए सजना-धजना।
यौवन के दिन चार पिया इस यौवन में हमको तज ना।

ललित

मदिरा सवैया छंद
व्यस्त-नर
व्यस्त हुआ नर मस्त हुआ अरु
यौवन में तन पस्त हुआ।

पस्त हुआ भटके  नर वो धन-वैभव
पाकर मस्त हुआ।

मस्त हुआ अपनी धुन में अपने सपनों सँग व्यस्त हुआ।

व्यस्त हुआ दिन-रात भगे नहिं फुर्सत काम-परस्त हुआ।

ललित

मुक्तक
मोबाइल
फूल-बहारों का मौसम ही,जीवन में चहुँ ओर रहे।
दीवाली खुशियाँ ले आए,हँसी-खुशी का दौर रहे।
माँ शारद की कृपा रहे औ',लक्ष्मी जी धन-धान्य भरें।
शांति रहे घर में मोबाइल,का ही केवल शोर रहे।

ललित किशोर 'ललित'


मदिरा सवैया छंद
शुभ दीपावली

मौसम फूल-बहार भरा घर-बाहर में चहुँ ओर रहे।
दीप करें घर-आँगन रौशन,और खुशी हर भोर रहे।
शारद-मातु कृपालु रहें अरु श्री घर में हर ठौर रहें।
शांति रहे मन-जीवन में नित ईश्वर-पूजन जोर   रहे।

ललित

दीपावली-शुभकामना

मंगलमय शुभकामना,के जितने संदेश।
मित्र मिले हैं आपको,दीवाली के पेश।
दीवाली के पेश,सभी शुभ-फल दे जाएँ।
रिद्धि-सद्धि गणनाथ,सहित माँ लक्ष्मी आएँ।

ललित किशोर

मुक्तक
दीवाली
कुछ यंत्रों का कुछ मंत्रों का,शोर मचाए दीवाली।
कुछ दीपक को कुछ बिजली को,नाच नचाए दीवाली।
सब मित्रों से सब रिश्तों से,स्नेह दिलाए दीवाली।
मन में नई उमंगों की इक,ज्योत जलाए दीवाली।

ललित

🍃🌹जयकारी छंद🌹🍃
शारद माँ
शारद  माँ   तैरा   दो  नाव।
लेखन  के  दे दो नव-भाव।
बुद्धि और मन हों इक ठौर।
छंद-सृजन  होवे नित भोर।

🌹🍃ललित🍃🌹

गीत का प्रयास
🍃🌹जयकारी छंद🌹🍃
उलझी डोर
जीवन की है उलझी डोर।
श्याम तुम्हीं पकड़ो इक छोर।

सुलझा दो कुछ ऐसे श्याम।
लगें सँवरने बिगड़े काम।
सुमिरन होवे आठों याम।
मन मेरा पाए विश्राम।
प्यारी सी होवे इक भोर।
श्याम तुम्हीं पकड़ो इक छोर।

श्याम करो ऐसी तदबीर।
चिंता की टूटे तस्वीर।
जय श्री कृष्णा जय श्री राम।
थके न जिव्हा जपते नाम।
मन मेरा बैठे इक ठौर।
श्याम तुम्हीं पकड़ो इक छोर।

बाधाओं की तपती धूप।
कंटक जिसमें पलें अनूप।
छाँव ज़रा सी कर दो नाथ।
रख कर मेरे सिर पर हाथ।
फिर आए खुशियों का दौर।
श्याम तुम्हीं पकड़ो इक छोर।

🌹🍃ललित🍃🌹

🍃🌹जयकारी छंद🌹🍃
राधे-श्याम
सुंदर मनहर प्यारा नाम।
राधे-कृष्णा राधे-श्याम।

जो नर जपता सुबहो-शाम।
उसका मन पाए विश्राम।
भजनों की गंगा में डूब।
मस्त हुआ वो नाचे खूब।
नटवर-नागर जप अविराम।
राधे-कृष्णा राधे-श्याम।
ललित

🍃🌹जयकारी छंद🌹🍃

खुशियाँ
मिलती जो खुशियाँ अविराम।
दुख का कहीं न होता नाम।
खुशियों का क्या रहता मोल?
थोड़े से दुख से मत डोल।

ललित


शुमकामना

मदिरा सवैया छंद विधान एवँ रचनाएँ


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  ------मदिरा सवैया छन्द विधान------

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1.  यह एक वार्णिक छंद है 


2. इसकी हर पंक्ति में 7 भगण तथा अंत में एक गुरु वर्ण होता है।

अर्थात ..गुरु लघु लघु ×7 + गुरु वर्ण।


3. इसमें चार पंक्तिया तथा चार ही सम तुकांत होते हैं।


4. लय की सुगमता के लिए 12 वें वर्ण पर यति चिन्ह दर्शाएं।


5. यह वर्णिक छंद है अतः लघु के स्थान पर लघु और गुरु के स्थान पर गुरु वर्ण ही आना चाहिए दो लघु वर्णों की गणना एक गुरु वर्ण के रूप में नहीं की जा सकती।


         **** उदाहरण ****

           मदिरा सवैया छंद

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फागुन में मन झूम रहा अब आन मिलो हमसे सजना।

रंग गुलाल मलो मुख पे अब पायल चाह रही बजना।

भीग रहा तन आज पिया मन बोल रहा हमको तजना।

छेड़ रही सगरी सखियाँ हम भूल गये सजना-धजना।


**********रचनाकार*************

          ललित किशोर 'ललित'

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मदिरा सवैया छंद रचनाएँ

7.3.17

मदिरा सवैया
1
फाग

खेल रहे सब.फाग,सखी तज लाज नचावत है अँखियाँ।

रंग अबीर गुलाल, बजा कर ताल लगावत हैं सखियाँ।

साजनवा मुँह जोर,करे बर जोर बनावत है बतियाँ।

खूब मचा हुड़दंग,छिड़ी जब जंग छुड़ावत है बहियाँ।

ललित किशोर 'ललित'

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*मदिरा सवैया छन्द*
2
गुरू

डाँट लिया मनुहार किया फिर नेह दिया अरु ज्ञान दिया।
छंद सिखा लय ताल दिया हमको तुमने हर मान दिया।
और कृपा यह खूब करी हमको जग का सब भान दिया।
आज न मैं कह हूँ सकता गुरु देव कहाँ तक ज्ञान दिया?

ललित किशोर 'ललित'

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*मदिरा सवैया छन्द*
3
हार-जीत

चाह रहा वह जीत यहाँ जिसने न कभी कुछ काम किया।
देख रहा अब हार वही जिसने खुद को रब मान लिया।
देश रहा रब मान उसे जिसने सबको नवज्ञान दिया।
भारत देश बढा उस राह कि चौंक गयी अब ये दुनिया।

ललित किशोर 'ललित'

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मदिरा सवैया छंद 

4.
फागुन

फागुन में मन झूम रहा अब आन मिलो हमसे सजना।
रंग गुलाल मलो मुख पे अब पायल चाह रही बजना।
भीग रहा तन आज पिया मन बोल रहा हमको तजना।
छेड़ रही सगरी सखियाँ हम भूल गये सजना-धजना।

ललित किशोर 'ललित'

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मदिरा सवैया
5.
मधुमास

चंचल मैं चित चोर पिया मिल नैन गये अब चैन कहाँ?
चाहत की बँध डोर गयी कटती अब तो हर रैन वहाँ।
होश नहीं कुछ भी रहता करता जब साजन प्यार यहाँ।
जीवन का मधुमास जवाँ वह प्यार जहाँ दिलदार जहाँ।

ललित किशोर 'ललित'

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मदिरा सवैया

6.
दिलदार

जीवन के दिन चार अरे दिलदार मिला मुझसे अँखियाँ।
प्रेम भरा यह हाथ जरा अब थाम हँसें सब हैं सखियाँ।
चंचल नैन चकोर मिली मुँहजोर कि साजन नौसिखिया।
पायल बाजत पाँव कि साजन ढीठ उधेड़ रहा बखियाँ।

ललित किशोर 'ललित'

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अक्टूबर 2019

मदिरा सवैया छंद

7.

डोलती नाव

डोल उठे जब नाव प्रभो रहना तब आप कृपालु हरे।

पाप विनाशक मोहन नाम जपे उसका भव-ताप टरे। 

हो तुम एक हमार प्रभो अब कौन हमें भव-पार करे।

कृष्ण करो किरपा इतनी भव सागर से यह नाव तरे।

ललित किशोर 'ललित'

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मदिरा सवैया छंद

8.

शत्रु-मित्र

कौन बने कब शत्रु यहाँ अरु कौन बने कब मित्र यहाँ?

मेल बने अनमोल यहाँ कब मेल कहाय विचित्र यहाँ?

बात बड़ी असमंजस की कब मानव खोय चरित्र यहाँ?

मात-पिता तज पुत्र चले जब वो बनता खुद पितृ यहाँ?

ललित किशोर 'ललित'

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मदिरा सवैया छंद

9.

जग छोड़ चले

कौन कहाँ कब छोड़ चले जग,जीवन से मुख मोड़ चले?

तोड़ चले जग के सब बंधन,मित्र-सखा कब छोड़ चले?

अंध भविष्य न जान सके नर,वो सब के दिल तोड़ चले।

याद करें उसके गुण को सब,जो तज वैभव-होड़ चले।

ललित किशोर 'ललित'

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मदिरा सवैया छंद

10.

रवि पावन

भोर भए हरता जग का तम पावन वो रवि क्या कहना?

मोहन की मुरलीधर की मनमोहन की छवि क्या कहना?

शांति-प्रदायक शुद्धि-प्रसारक अग्नि-मयी हवि क्या कहना?

छंद नए नित जो सिखलावत 'राज' गुरू कवि क्या कहना?

ललित किशोर 'ललित'

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मदिरा सवैया छंद

11.

मानव-जीवन

पाकर मानव जीवन धन्य हुआ यह जीव 

हँसे जग में।

यज्ञ नहीं जप-ध्यान नहीं भटके यह जीव फँसे जग में।

ईश्वर ने जब जन्म दिया धरती पर मानव के तन में।

क्यों न जपे तब नाम अहर्निश मोहन का मन ही मन में?

ललित किशोर 'ललित'

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मदिरा सवैया छंद

12.

तप्त-दिल

तप्त बड़ा दिल का तल है मन सोच रहा यह बात बड़ी।

बीत गए सुख-शांति भरे दिन, क्यों न कटे

यह दुःख-घड़ी?

वक्त रहा शुभ साथ नहीं तब,वक्त बुरा यह क्यों न टले?

बीत गया उजला दिन क्यों तम-घोर-घना 

दिल को कुचले?

ललित किशोर 'ललित'

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मदिरा सवैया छंद

13.

माँ

याद करें तुमको हम माँ घिरती जब राह घने तम से।

छाँव न हो सुख की मन में जब प्राण थकें गहरे ग़म से।

शांति न हो मन बेकल हो तब पीर तुम्हीं हरती छम से।

दूर भले कितनी तुम हो पर नेह सदा रखतीं हम से।

ललित किशोर 'ललित'

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मदिरा सवैया छंद

14.

वृषभानुसुता

लाल गुलाब खिले बगिया व्रज-नंदन-कानन डोल गया।

देख गुलाब सुगंध भरे वृषभानुसुता मन डोल गया।

भूल गया मुरली मुरलीधर वो मनमोहन डोल गया।

बंद हुए नयना-पट सौरभ से सगरा तन डोल गया।

ललित किशोर 'ललित'

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मदिरा सवैया छंद

15.

यौवन

सावन बीत चला सजना अरु,भूल गया कँगना बजना।

प्रीत बड़ी हमको तुमसे तुम, भूल गये हमको सजना।

सून पड़ा मन का अँगना हम भूल गए सजना-धजना।

यौवन के दिन चार पिया इस यौवन में हमको तज ना।

ललित किशोर 'ललित'

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मदिरा सवैया छंद

16.

व्यस्त-नर

व्यस्त हुआ नर मस्त हुआ अरु यौवन में तन पस्त हुआ।

पस्त हुआ भटके  नर वो धन-वैभव पाकर मस्त हुआ।

मस्त हुआ अपनी धुन में अपने सपनों सँग व्यस्त हुआ।

व्यस्त हुआ दिन-रात भगे नहिं फुर्सत काम-परस्त हुआ।

ललित किशोर 'ललित'

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मदिरा सवैया छंद

17.

शुभ दीपावली

मौसम फूल-बहार भरा घर-बाहर में चहुँ ओर रहे।

दीप करें घर-आँगन रौशन,और खुशी हर भोर रहे।

शारद-मातु कृपालु रहें अरु श्री घर में हर ठौर रहें।

शांति रहे मन-जीवन में नित ईश्वर-पूजन जोर   रहे।

ललित किशोर 'ललित'

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मधुमालती छंद विधान एवँ रचनाएँ


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   ------मधुमालती छंद विधान-----
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विधान ....
1. यह एक मात्रिक छंद है।
2. इस छंद की प्रत्येक पंक्ति में 14 मात्राएँ होती हैं।
3. मात्रिक भार..( मापनी )
     2212  2212
     लय.. गागालगा गागालगा
अंत में 212 मात्रिक भार होता है।
5 वीं और 12 वीं मात्रा सदैव लघु ही           होती है..
4. चार पंक्तियाँ...दो-दो पंक्तियों में तुकांन्त सुमेलन।
 
         **** उदाहरण ****
             मधुमालती छंद
         *****************
नव वर्ष में है कामना।
माँ हाथ मेरा थामना।
मुश्किल न आए राह में।
हर-पल रहूँ उत्साह में।

**********रचनाकार*************
          ललित किशोर 'ललित'
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मधुमालती छंद रचनाएँ

2212  2212

1.

मधुमालती छंद

जन्माष्टमी पर विशेष
महारास

वो गोपियाँ का साँवरा।
वंशी बजाता बावरा।
बाँका बिहारी लाल था।
जो दानवों का काल था।

राधा दिवानी श्याम की।
उस साँवरे के नाम की।
उसकी मुरलिया जब बजे।
बस प्रीत के ही सुर सजें।

राधा करे यह कामना।
हो श्याम से जब सामना।
दूजा न कोई पास हो।
मनमोहना का रास हो।

वंशी अधर से दूर हो।
बस राधिका का नूर हो।
इक टक निहारे साँवरा।
इस प्रेयसी को बावरा।

कैसी निराली प्रीत थी।
जिसमें न कोई रीत थी।
वो राधिकामय श्याम था।
या रास का विश्राम था।

हर ओर सुंदर श्याम था।
हर छोर रस मय नाम था।
था राधिका का साँवरा।
या रासमय था बावरा।

वो भूल खुद ही को गई।
बस श्याम में ही खो गई।
चलने लगी पुरवाइयाँ।
बजने लगीं शहनाइयाँ।

वो चाँदनी में रास था।
या चाँद का सहवास था।
मुरली बजाता श्याम था।
या श्याम ही गुमनाम था।

यह प्यार का विश्वास था।
या मद भरा अहसास था।
परमातमा से मेल था।
या आत्म रस का खेल था।

वो आत्म रस का बोध था।
या प्रेम रस का मोद था।
निजतत्व का आभास था।
या तत्व ही अब पास था।

दो ज्योतियाँ थी नाचती।
हर ज्योत में इक आँच थी।
दो रश्मियाँ थी घुल रही।
सब गुत्थियाँ थी खुल रही।

चारों दिशा उल्लास था।
मनमोहना का रास था।
कान्हा दिखे हर ओर था।
चंचल बड़ा चितचोर था।

परमात्म का वह रास था।
यह गोपियों को भास था।
मुरली मनोहर श्याम था।
जो नाचता निष्काम था।

ललित किशोर 'ललित'

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25.8.16

2212   2212

मधुमालती छंद

2

मुरली मनोहर

मुरली मनोहर तू बता।
क्या राधिका को था पता?
तू बस चराता ढोर था।
या खूबसूरत चोर था।

दिल राधिका का ले गया।
सुख चैन भी हर ले गया।
वंशी बजा जादू किया।
मन गोपियों का हर लिया।

ललित किशोर 'ललित'

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मधुमालती छंद
3
व्रजधाम

क्यूँ आ गया व्रजधाम तू?
बन राधिका का श्याम तू।
मनमोहना निष्काम था।
फिर रास का क्या काम था?

क्यूँ चोर माखन का बना?
क्यूँ मिट्टियों से मुख सना?
मुख में दिखा सारा जहाँ।
लीला निराली की वहाँ।

ललित किशोर 'ललित'

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मधुमालती छंद
4
प्रश्न

प्रश्नों के उत्तर में श्री कृष्ण महिमा छिपी है

क्यूँ हर गली में शोर था?
कान्हा बड़ा मुँह जोर था।
माता यशोदा का लला।
क्यूँ छोड़ गोकुल को चला?

जिस पूतना ने था छला?
वैकुण्ठ उसको क्यो मिला?
तू पूर्णिमा का चाँद था।
या प्रेम पूरित बाँध था?

ललित किशोर 'ललित'

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मधुमालती छंद
5
सुुदामा

आया सुदामा द्वारका।
उपहार लेकर प्यार का।
उसको लगाया क्यों गले?
थे पाँव नंगे क्यों चले?

ललित किशोर 'ललित'

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मधुमालती छंद

6.
प्रकृति 

आकाश कुछ नाराज है।
देती धरा आवाज है।
कब मिल सके दो छोर हैं।
दिखता मिलन हर ओर है।

धरती सजी दुल्हन बनी।
आकाश से पर है ठनी।
नभ वो बड़ा इतरा रहा।
जो चाँदनी बिखरा रहा।

ललित किशोर 'ललित'

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मधुमालती छंद
7.

फूलों भरी क्यारियाँ

फूलों भरी ये क्यारियाँ।
ज्यों प्रीत की फुलवारियाँ।
खुशबू बिखेरें प्यार की।
देती खबर हैं यार की।

मदमस्त सावन की घटा।
रिमझिम फुहारों की छटा।
हर वृक्ष से लिपटी लता।
देती बहारों का पता।

ललित किशोर 'ललित'

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मधुमालती छंद
8.

नया दौर
आया नया अब दौर है।
बच्चा हुआ मुँह जोर है।
हर आदमी अब मानता।
बच्चा सही है जानता।

अनुभव गया अब भाड़ में।
सब नेट की है आड़ में।
जो सीख बच्चों से रहे।
माँ बाप वो खुश हो रहे।

हर बात उनसे सीख लो।
जजबात की मत भीख लो।
क्या है बुरा क्या है भला?
देगा तुम्हें घुट्टी पिला।

अब बात मेरी मान लो।
इस दौर को पहचान लो।
जो हो रहा सब ठीक है।
छोड़ो उसे जो लीक है।

'लीक'=पुरानी विचार धारा

ललित किशोर 'ललित'

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मधुमालती छंद

9.
एक आप न बीती


जो बात वो थे कह गए।
सुन दंग उसको रह गए।
किससे कहें दिल की लगी।
वो कर रहे थे दिल्लगी।

पहले दिखाए ख्वाब थे।
जलवे बड़े नायाब थे।
हम थे अदाओं पर फिदा।
सोचा नहीं होंगें जुदा।

लेकिन अचानक ये हुआ।
वो प्यार निकला इक जुआँ।
जब हुस्न पर हम मर मिटे।
सब कुछ लुटा कर खुद लुटे।

हम भूल कर सारा जहाँ।
हर शाम मिलते थे वहाँ।
जिस पर हुए थे हम फिदा।
वो कह रही थी अलविदा।

ललित किशोर 'ललित'

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10.

अप्रेल 2019

मधुमालती छंद

2212 2212

पथिक

जीवन पुकारे ओ पथिक।
रुकना न तू इक पल तनिक।
चलता निरंतर जो रहे।
मंजिल उसी की हो रहे।

हो कंटकों से सामना।
तो पग न अपना थामना।
फूलों भरी राहें मिलें।
सम्भव नहीं ये सिलसिले।

ललित किशोर 'ललित'

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अप्रेल 2019

11.

मधुमालती छंद

2212 2212

नेता निराले

हर आदमी इस देश का।
हर जाति का हर वेश का।
हर राज्य का हर गाँव का।
पूछे पता बस छाँव का।

हर छाँव उससे छिन गई।
बस धूप है हर दिन नई।
अब छाँव भी बिकने लगी।
रोटी कहीं सिकने लगी।

कुछ भाषणों में खो रहे।
कुछ बोझ अपना ढो रहे।
जनता झुकी ही जा रही।
बस स्वप्न में सुख पा रही।

नेता निराले हैं यहाँ।
पग-पग शिवाले हैं यहाँ।
नेता वहीं सुख पा रहे।
निश-दिन शिवाले जा रहे।

है देश की चिन्ता किसे?
नेता बना जो क्या उसे?
ये सोचने की बात है।
नेता करे क्यों घात है?

ललित किशोर 'ललित'

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12.

मधुमालती छंद

कलियाँ

नदिया जहाँ कल-कल बहे।
सुरभित हवा शीतल बहे।
सुख-छाँव वंशीवट करे।
नित भोर गोरी घट भरे।

फूलों भरी सब क्यारियाँ।
मुस्कान की फुलवारियाँ।
कलियाँ सभी खिलने लगें।
प्रेमी हृदय मिलने लगें।

ललित किशोर 'ललित'

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13.

मधुमालती छंद

नव-वर्ष

नव वर्ष में है कामना।
माँ हाथ मेरा थामना।
मुश्किल न आए राह में।
हर-पल रहूँ उत्साह में।

सत्संगियों से नित मिलूँ।
सद्धर्म के पथ पर चलूँ।
करता रहूँ माँ बन्दगी।
पुरुषार्थ मय हो जिंदगी।

ललित किशोर 'ललित'

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14.

मधुमालती छंद

प्यार की दीवानगी

फिर सोचना क्या प्यार में?

जब रब दिखा दिलदार में।

संसार सुंदर हो गया।

जब यार में दिल खो गया।



इस प्यार में क्या बात है?

चंचल हुआ ये गात है।

मन की कली खिलने लगी।

दीवानगी पलने लगी।



ये प्यार की दीवानगी।

जिसकी नहीं कुछ बानगी।

साँसें रुकें रुक-कर चलें।

सुख-स्वप्न नयनों में पलें।



सजना नयन में आ बसा।

छाया बहारों पर नशा।

जब भी मिलें सजना कहें।

हर पल मिलें मिलते रहें।

ललित किशोर 'ललित'

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15.

मधुमालती छंद

धूप-छाँव

कुछ धूप में कुछ छाँव में।
जीवन जिया इस गाँव में।
कुछ प्यार में कुछ खार में।
भटका किया मँझधार में।

अब आ गया वो दौर है।
इक हाशिया हर ओर है।
यूँ ही गुज़ारी ज़िन्दगी।
कुछ हो न पाई बन्दगी।

जो ख्वाब थे दिल में पले ?
वो कब हकीकत में ढले ?
कुछ स्वप्न सपने रह गए।
कुछ आँसुओं में बह गए ।

जो ज़िन्दगी की चाल है।
उलझी हुई हर हाल है।
जैसी मिले स्वीकार है।
जैसी चले स्वीकार है

ललित किशोर 'ललित'

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16

मधुमालती
रास आनंद.
वंशी अधर से ज्यों छुई।

वो चाँदनी शीतल हुई।
मुरली मधुर बजने लगी।
घर गोपियाँ तजने लगी।

जो बाँसुरी की धुन सुने।
वो राह मधु-वन की चुने
चूड़ी बजे पायल बजे।
गजरा सजे वेणी सजे।

जब श्याम से नैना मिले।
गल-हार राधा का हिले।
सब गोप-गोपी झूमते।
बादल धरा को चूमते।

ललित किशोर 'ललित'

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अक्टूबर 2018 रचनाएँ




[04/10, 4:35 PM] ललित:
दोहा छंद

विषय:  माँ

बचपन में था पूछता,माँ से बहुत सवाल।
अब वो माँ से बोलता,काहे करे बवाल।।

दान  किये जप भी किये,तीरथ किये हजार।
माँ को जो बिसरा दिया,सब कुछ है बेकार।।

माँ के आँचल की जिसे,मिली हुई है छाँव।
हरदम सीधे बैठते,उसके सारे दाँव।।

माँ की याद सुवास सी,मन निर्मल हो जाय।
जैसे तुलसी आँगने,हरि की याद दिलाय।।

हरि का सुमिरन जो करे,माँ चरणों में बैठ।
हरि उसको आशीष दें,माँ के उर में पैठ।।

माँ साँसों में बस रही,माँ धड़कन,माँ प्राण।
माँ से उऋण न हो सके,सुत देकर भी जान।

'ललित'
[

[11/10, 6:21 PM] ललित:
चौपाई छंद

मोर-मुकुट पीताम्बर धारी,
केशव माधव कृष्ण मुरारी।

अर्जुन जैसे शिष्य तुम्हारे।
सखा सुदामा से हैं प्यारे।

गोप-गोपियों के बनवारी।
जय-जय-जय गोवर्धन-धारी।

तुम राधा के दिल की धड़कन।
महके तुमसे व्रज का कण-कण।

दोहा

बजे सुरीली बाँसुरी,सारी-सारी रात।
कृष्ण तुम्हारे रास में,गोपी भूले गात।

ललित
[12/10, 10:10 PM] ललित:
चौपाईयाँ

ठुमक-ठुमक कर चले कन्हैया।
देख-देख हर्षित हो मैया।

छम-छम-छम पैंजनिया बजती।
अधर मधुर बाँसुरिया सजती।

बजे बाँसुरी हौले-हौले।
आलौकिक मद से व्रज डोले।

मटकी ले जब निकलें सखियाँ।
मट-मट-मट मटकाए अँखियाँ।

मार कंकरी मटकी फोड़े।
गोपी पीछे-पीछे दौड़े।

देख हो रही मटकी खाली।
ग्वाल हँसें सब दे-दे ताली।

दोहे

मनभावन लीला करे,व्रज में माखन-चोर।
गोप-गोपियाँ सब कहें,जय-जय नंदकिशोर।

ललित
[13/10, 2:34 PM] ललित:
आदर्श अतिथि स्वागत

द्वारपाल संदेशा लाया।
मित्र सुदामा द्वारे आया।

सुना कन्हैया ने जैसे ही।
छोड़ दिया आसन वैसे ही।

दौड़ पड़े दर्शन करने वो।
प्रेम-सुधा वर्षण करने वो।

देख मित्र की जर्जर काया।
श्याम नयन में जल भर आया।

तुरत मित्र को गले लगाया।
कहा नहीं क्यों पहले आया?

सिंहासन पर मीत को,बिठा द्वारिकाधीश।
चरणों को निज अश्रु से,धोते हैं जगदीश।

ललित
क्रमशः
[13/10, 7:54 PM] ललित:
चौपाइयाँ
अतिथि भाग दो

सजल नयन थे रुँधे गले थे।
बचपन में वो लौट चले थे।

बात कर रहे दोनों मन की।
रही नहीं सुधि उनको तन की।

कहा कृष्ण ने मत सकुचाओ।
भाभी जी के हाल सुनाओ।

भेजी है क्या भेंट बताओ?
और नहीं अब मुझे सताओ।

मीत सुदामा अब सकुचाए।
तंदुल की क्या भेंट बताए?

दोहा

तंदुल की वो पोटली,कान्हा ने ली छीन।
चकित नयन से देखते,रहे सुदामा दीन।

ललित
[14/10, 3:30 PM] ललित:
चौपाइयाँ

सतरंगी दुनिया को देखा।
देखी बेरंग भाग्य-रेखा।

अपनों ने वो रंग दिखाए।
दूजा कोई रंग न भाए।

रंगों से मनती है होली।
रंग हाथ में बेरँग बोली।

रंग-बिरंगी जवाँ दिवाली।
मात-पिता की झोली खाली।

बदल गए अब सबके ढँग हैं।
रुपयों ने भी बदले रँग हैं।

पार्टी-ध्वज में जैसा रँग है।
वैसा नेता जी का ढँग है।

श्वेत रोशनी सूरज देता।
प्रिज्म उसे रंगीं कर लेता।

ऐसा ही कुछ हम भी कर लें।
नए रंग जीवन में भर लें।

दोहा

धुंधला कोई रंग है,कोई है रतनार।
हर रँग में नौका चला,मत छोड़े पतवार।

ललित
[16/10, 6:00 PM] ललित:
सार छंद
भूल-भुलैया

जीवन की ये भूल-भुलैया,सबको है भटकाती।
आती-जाती साँसों को ये,हौले से अटकाती।
कौन कहाँ कैसे जाएगा,छोड़ जगत का मेला?
जान नहीं पाता है कोई,कैसा है ये खेला?

ललित
[18/10, 6:41 PM] ललित:
चौपाई
पंचतत्त्व

पंचतत्त्व की देह बनाई,
आत्मा इक उसमें बिठलाई।

दूर बैठ दाता फिर देखे।
देह लिखे कर्मों के लेखे।

वही लेख फिर भाग्य बनाते।
कर्म समय से फल दिखलाते।

पुण्य करे कितने भी मानव।
नष्ट न हों कर्मों के दानव।

पाप कर्म से आत्मा रोके।
कदम-कदम पर नर को टोके।

पंचतत्त्व की देह से,मत कर इतना प्यार।
जितने इससे कर सके,कर ले तू उपकार।

ललित
[19/10, 7:44 PM] ललित:
चौपाई

जीत सत्य की होती आई,हरी जड़ें सच ने ही पाई।

सुंदर बुरका ओढ़ बुराई,चुपके से नर मन में आई।

कलियुग में दे सत्य दुहाई,विजय झूठ की देत दिखाई।

लेकिन इक दिन बुरका फटता,तभी झूठ से परदा उठता।

सत्य सामने जब आ जाता,झूठ नहीं फिर टिकने पाता।

दोहा

दामन थामे सत्य का,बढ़ मंजिल की ओर।
नहीं झूठ से छू सके,मंजिल का तू छोर।

ललित
[20/10, 7:49 AM] ललित:

चौपाई

जीत सत्य की होती आई,हरी जड़ें सच ने ही पाई।

सुंदर बुरका ओढ़ बुराई,चुपके से नर मन में आई।

कलियुग में दे सत्य दुहाई,विजय झूठ की देत दिखाई।

लेकिन इक दिन बुरका फटता,तभी झूठ से परदा हटता।

सत्य सामने जब आ जाता,झूठ नहीं फिर टिकने पाता।

दोहा

दामन थामे सत्य का,बढ़ मंजिल की ओर।
नहीं झूठ से छू सके,मंजिल का तू छोर।

ललित
[20/10, 8:39 PM] ललित:
चौपाई
अमृतसर दुखान्तिका

मौत कहाँ कैसे आएगी,
साथ किसे कब ले जाएगी?

जान कहाँ मानव है पाता,
दबे पाँव यम है आ जाता । 

साठ जनों को मौत दिखाई,
अमृतसर कैसा वो भाई।

कहीं न कोई पत्ता खड़का,
जलता रावण ऐसा भड़का।

मौत दौड़ती सरपट आई,
कहो कौन था वहाँ कसाई?

किसकी थी ये जिम्मेदारी,
लाशें बिछी धरा पर सारी।

दोहा

रोक सको तो रोक लो,
अनहोनी को आप।
वरना मौत कहाँ कभी,
देती अपनी थाप?

ललित
[21/10, 4:21 PM] ललित:
चौपाइयाँ

नाम राधिका का यदि जपते,
जीवन के ये पथ क्यों तपते?

राधा का जो नाम सुमिरते,
वो नर भवसागर से तरते।

नाम जपे हर पल राधा का।
नहीं उसे डर भव-बाधा का।

उसी कृष्ण को प्यारी राधा।
करे दूर जो सबकी बाधा।

राधा नाम उसे है प्यारा।
जो है जग का तारण-हारा।

जय-जय श्याम-राधिका प्यारे।
ताप-व्याधि हर सब नर तारे।

दोहा

राधा-राधा जो जपे,भव-सागर तर जाय।
दर्शन कान्हा के मिलें,आत्म-ज्ञान फल पाय।

ललित
[22/10, 7:27 PM] ललित:
मुक्तक 14:14

न समझे प्यार की भाषा,न खोले प्यार का खाता।
निगाहों  से हसीं दिलवर,नशीले तीर बरसाता।
बना अंजान वो फिरता,चलाकर तीर नजरों के।
यहाँ दिल है हुआ घायल,वहाँ वो गीत है गाता।

ललित
[27/10, 10:51 AM] ललित:
हरिगीतिका छंद

करवा चौथ स्पेशल

है आज करवा चौथ का व्रत,
                 आप ही तो खास हो।
मैं प्यार करतीे आपसे ही,
                 आज तो विश्वास हो।
व्रत आज ये मैंने रखा जी,
                  आपके हित के लिए।
ला दीजिए उपहार कोई,
                  इस पुजारिन के लिए।
                   
ललित
[27/10, 6:19 PM] ललित:
हरिगीतिका छंद

पूजा करूँगी मैं तुम्हारी,
             मान लो मनुहार तुम,
जो बन पड़े तुम से वही कुछ,
              आज दो उपहार तुम।
लो सूट ये पहनो नया तुम,
               और टाई घाल दो।
सेल्फी खिंचा कर साथ मेरे,
               फेस बुक पर डाल दो।
ललित
[27/10, 7:31 PM] ललित:
आधार छंद

नाक नथनियाँ झूमती,अधरों पर मुस्कान।

हार गले में नौलखा,चितवन तीर कमान।

पायल की छम-छम करे,खुशियों की बौछार।

सजनी के इस रूप पर,साजन जी कुर्बान।

ललित
[28/10, 8:06 PM] ललित:
कुण्डल छंद

जिंदगी किताब जान,ध्यान से पढ़ो जी।
शब्दों का गूढ़ अर्थ,जान तुम बढ़ो जी।
मित्र और अमित्र का,भेद जरा जानो।
शत्रु की मिठास भरी,बात नहीं मानो।

ललित
[28/10, 8:11 PM] ललित:
कुण्डल छंद

देख दिवाली मकान,साफ कर लिया है।
फालतू कबाड़ खूब,बेच भी दिया है।
लेकिन मन का न मैल,छूट हाय पाया।
जाए न मन को छोड़ ,अंत हीन माया।

ललित