मई 2017

मई 2017

9.5.17
मुक्तक

दिल का आईना जब टूटे,शोर नहीं क्यूँ कर होता?
आँखें क्यूँ हँसती रहती जब, ये दिल ज़ार ज़ार रोता?
सब अंगों का राजा है दिल,छला यही फिर जाता क्यूँ ?
सब अंगों को पाले जो दिल,तन्हाई में क्यूँ खोता?

9.5.17

मुक्तक

नैनों की भाषा जो समझे,दिल ऐसा कैसे पाऊँ।
नैनों से मदिरा जो पी ले,दिल ऐसा कैसे लाऊँ।
अब तो आस यही है मेरी,इक दिन ऐसा पल आए।
श्याम तुम्हारे अधरामृत को,वंशी बन मैं पी जाऊँ।

ललित

9.5.17

मुक्तक लावणी

कैसी थी वो मुरली कान्हा,कैसा वो यमुनातट था?
कैसे व्रज के गोप गोपियाँ,कैसा वो माखन घट था?
कैसी तेरी रूपमाधुरी,कैसी रूपवती राधा?
एक झलक दिखला दे कान्हा,कैसा वो वंशीवट था?
'ललित'

मुक्तक लावणी

कैसे मटकाता था अखियाँ,तू माखन चोरी करके?
कैसे गायब हो जाता था,मुट्ठी में माखन भर के?
एक बार तो सपने में ही,झाँकी वो दिखला  दे तू?
कैसे इतराता था कान्हा,वसन गोपियोंं के हर के?

'ललित'

मुक्तक लावणी

कैसी थी वो लकुटी तेरी,कैसा काला कम्बल था?
कैसा था वो नाग कालिया,कैसा यमुना का जल था?
वो लीला फिर से दिखला दे,कैसा था वो दीवाना?
राधा जी के पीछे पीछे,जो फिरता हो पागल था।

ललित

मुक्तक लावणी

प्यार भरी मुस्कानें तेरी,स्नेह भरा आलिंगन माँ।
फिर मेरे मस्तक पर तेरा,मीठा सा वो चुंबन माँ।
याद मुझे आती है तेरी,जब भी नींद नहीं आती।
और याद आता है तेरी,लोरी का वो गुंजन माँ।

'ललित'
दो मुक्तक 16 : 14

1 लावणी
क्या फिर बाकी रहा टूटना,शाखा से जब फूल झड़ा।
शाखा को अफसोस यही है,माली क्यूँ चुपचाप खड़ा?
डाली की नादानी ये थी,फूलों को माना अपना।
माली माया-मोह त्याग कर,बन बैठा उस्ताद बड़ा।

2 ताटंक आधारित

फूल एक दिन मुख मोड़ेंगें,माली ने ये था माना ।
फूलों की फितरत से माली,नहीं रहा था अंजाना।
अपना फर्ज मान कर उसने,सींचा था फुलवारी को।
फूलों की दुनिया से नाता,तोड़ चला वो दीवाना।

ललित

मुक्तक

श्याम-साँवरे कब आओगे ,भूली व्रज की गलियों में।
राधा खोज रही है तुमको,नन्दनवन की कलियों में।
भँवरे गुंजन भूल गए हैं,लतिका आलिंगन भूली।
राधा का दिल डूबा रहता,अनजानी खलबलियों में।

'ललित'

चार मुक्तक
रास
212 212 212 212

लो गजब होगया चाँदनी रात में।
श्याम राधा नचें हाथ ले हाथ में।
बाँसुरी जादुई सुर बिखेरे वहाँ।
पायलें गोपियों की बजें साथ में।

कोंपलें नाचती डालियाँ झूमती।
चाँद ठिठका उसे चाँदनी चूमती।
बादलों का नहीं है कहीं कुछ पता।
रात मदहोश होती धरा घूमती।

जुगनुओं की चमक ताल के साथ में।
बिजलियाँ सी चमकने लगी गात में।
हर किसी को यही एक अहसास है।
श्याम है नाचता हाथ ले हाथ में।

आत्मरस की फुहारें भिगोने लगी।
जागती कुण्डली आँख रोने लगी।
गात को भूल सब आत्म में खो गए।
रास ही रास में रात खोने लगी।

ललित

मुक्तक

बात ही बात में बात होने लगी।
चाँदनी में मुलाकात होने लगी।
दिल लबों से जुबाँ से लगे बोलने।
प्यार में मात पे मात होने लगी।
ललित

मुक्तक लावणी
16:14

कितने भी भर लो हाथों को,अंत इन्हें खाली होना।
कितने भी हँस लो जीवन में,अंत हाथ आए रोना।
देह छोड़कर जाना ही है,किसी मील के पत्थर पर।
कितना भी चमका लो तन को,अंत पड़ेगा तन खोना।

16.5.17

मुक्तक

देता कौन साथ है दुख में,देता कौन सहारा है।
खुद के गम में खोये नर ने,खुद का घाव निहारा है।
मरहम भी तो कहीं न मिलता,फिरते हैं सब गरल लिए ।
मेरा मेरा करता मानव,अंदर का सुख हारा है।

'ललित'
18.5.17
मुक्तक

इकदीवानी मीरा बाई,इक दीवानी राधा।
इसने विष को गले उतारा,उसने सुर को साधा।
विष अमृत बन गया निराला,सुर मुरली में
गूँजा।
जिसने पाया पूरा पाया,प्यार न होता आधा।
ललित

मुक्तक 16:14

रिश्तों में डूबा मानव मन,रिश्तों से लबरेज हुआ।
रिश्तों के 'पर' रंग न पाया,बावरा रंगरेज हुआ।
फिर भी कितने रंग दिखाते,रिश्तों के 'पर'
तितली से।
अब तो जैसे हर रिश्ता ही,जाति से अंगरेज हुआ।
ललित

मुक्तक
साँस

साँसों की गिनती करना क्यूँ,मानव सीख नहीं पाया?
मरते इंसाँ को साँसों की,दे क्यूँ भीख नहीं पाया?
रह जाता है एक अकेला,नर साँसों के मेले में।
अंतिम साँसें गिनने वाला,नर क्यूँ चीख नहीं पाया?

मदिरा सवैया

जो मुख पे लटकी लट में सबके मन को अटकाय रहा।
वो यमुना तट पे वृषभान-लली मटकी चटकाय रहा।
ग्वाल सखा मनमोहन माखन को छुपके सटकाय रहा।
सुंदर श्यामल कोमल मोहन नैनन को मटकाय रहा।

'ललित'

मुक्तक

कैसे कैसे ख्वाब सुनहरे,इस दिल में पलते?
कैसे कैसे रंगों में दिन,जीवन के ढलते?
जैसे इन्द्रधनुष दिखता है,रिमझिम बारिश में।
वैसे ही सतरंगी सपने,मानव को छलते।

दुर्मिल सवैया छंद

करताल लिए कर में चहकें ,सब गोप सखा नित भोर वहाँ।
पग गोपिन के बजते घुँघरू,मुरलीधर माखनचोर जहाँ।
वृषभानुसुता नित आ धमके,मनमोहन सा चितचोर कहाँ?
रस की बरसात करे नित वो,वसुदेव लला हर ओर यहाँ।

दुर्मिल सवैया छंद

कितना किससे हम प्यार करें,इसका न कहीं अनुबंध मिले।
दिल को अपने कितना मसलें,जिसका न कहीं मकरंद मिले।
मिलता उनसे कब प्यार हमें,जिनको हमसे रसरंग मिले।
मिलती उनसे बस रार हमें,जिनसे नजरें कर बंद मिले।

मुक्तक 16:14
कृष्ण भक्तियोग
चाह यही है कान्हा तेरे,शुभ दर्शन कर पाऊँ मैं।
राधा जी के दर्शन करके,भवसागर तर जाऊँ मैं।
राधिका भी सुना है तेरी,अँखियों में ही बसती है।
तेरे नयनों में ही कान्हा,राधा से मिल आऊँ मैं।
'ललित'

मुक्तक

किस आसानी से तोड़ा ये,दिल नादाँ तुमने मेरा ।
और लगाते हुए ठहाके,मुख मुझसे तुमने फेरा।
लेकिन मुझे बतादो इतना,हाथ जरा दिल पर रखकर।
हँसी ठहाकों के पीछे ही,क्यूँ डाला तुमने डेरा?
ललित

लावणी मुक्तक

जिसकी साँसों की सौरभ से,महक रहा व्रज का कण-कण।
महलों की वो राधा रानी,भटकी फिरती है वन-वन।
नयन श्याम-दर्शन के प्यासे,विरह वेदना तन-मन में।
कान्हा के कदमों की आहट,सुनने को आतुर क्षण-क्षण।
'ललित'

31.5.17
दुर्मिल सवैया

कुछ चंचल सी कुछ निश्चल सी,मचले मचले मन से ठहरी।
कुछ पागल सी कुछ बेसुध सी,सजनी वह श्वास भरे गहरी।
स्वर पायलिया न सुने सजनी,मिल साजन प्रीत हुई बहरी।
मनभावन काम प्रहार हुआ,लतिका अरु पात बने प्रहरी।
'ललित'

**************************************

4 साझा चार पृष्ठ लावणी मुक्तक

पेज 10
मुक्तक 16:14 (लावणी)
*1
फल
बीज प्यार का जिसने बोया,फल उसने है कब पाया?
बीज और अंकुर को सींचा,छलनी करके निज काया।
बीजों का सागर है जो फल,याद रखे क्यूँ माली को?
फल-फल फल-फल फल -फल फल-फल,फल की ही है सब माया।
*2
अधरामृत

जैसा प्यारा कृष्ण कन्हाई,वैसी न्यारी है राधा।
राधा औ' मुरली से कान्हा,प्यार करे आधा आधा।
अधरामृत पीती मुरली तो,राधा नैन सुधा पीती।
राधा राधा नाम जपो तो,मिट जाएगी भव बाधा।
*3
राधा

राधा के नैनों में मोहन,ने ऐसा डेरा डाला।
राधा वन-वन खोजे उसको,पर न दिखे मुरलीवाला।
पलकें बन्द करे राधा तो,मोहन के दर्शन होते।
खुली आँख से कहाँ किसी को,दिखता है नटखट ग्वाला।
*4
सपने

टूट -टूट कर टुकड़े होते,सपने हरजाई हरदम।
रूठ-रूठ कर दूर खिसकते,दिखते जो अपने हमदम।
दिल के अरमानों की किश्ती,भी टूटे मझधारों में।
चोट उन्हीं से है मिल जाती,बनना हो जिनको मरहम।
*5
मानव देह

मिट्टी जल आकाश हवा औ',अगन देव मिलकर सारे।
मानव देह बना बैठे सब,खेल खेल में मतवारे।
रब ने उसमें जान फूँक कर,आत्मा डाली इक प्यारी।
आत्मा ऐसी रमी देह में,भूल गयी हरि के द्वारे।
'ललित'

************************************

3.5.17
विष्णुपद छंद आधारित
छः मुक्तक
चाँद-चाँदनी

चाँद-चाँदनी प्रेमांकुर को,रोपित जब करते।
टिम -टिम करते तारे नभ में,प्रेम रंग भरते।
खुले आसमाँ के नीचे तब,प्रीत कमल खिलता।
साजन सजनी के अधरों से,प्रेम पुष्प झरते।

शीतल शांत सरोवर जल में,श्वेत चाँद चमके।
मंद समीर सुगंध बिखेरे,नयन काम दमके।
झीना आँचल भेद चाँदनी,सुंदरता निरखे।
सजनी का तन मन महके है,साजन में रम के।

रिमझिम बरस रही है बरखा,दादुर भी बहकें।
नीम निमोरी पग से चटकें,गुलमोहर महके।
सजनी की भीगी जुल्फों से,टपकें जब मोती।
हर मोती मुखड़े पर रुक रुक,रह रह कर चहके।

रह रह कर चमके जो बिजली,जियरा है धड़के।
साजन की बाहों में सजनी,वाम नयन फड़के।
चमक चमक चमकें हैं जुगनू,कोयल कूक रही।
साजन सजनी के मन में अब,काम अगन भड़के।

काले काले बदरा नभ में,रह रह गरज रहे।
ऊँचे पर्वत की चोटी पर,तरुवर लरज रहे।
पत्ता पत्ता खड़क रहा है,बरखा यूँ बरसे।
काम देव साजन सजनी के,मन में बरस रहे।

शांत सरोवर का जल भी अब,ऐसे उफन रहा।
बरखा की बूँदों को जैसे,कर वो नमन रहा।
प्रीत पगी अँखियों से साजन,को चूमे सजनी।
जवाँ प्यार की सौरभ में खो,सुरभित चमन रहा।

2.5.17
मुक्तक 14:14
1222 1222 1222 1222
हसीं दिलदार

हसीं दिलदार ने कुछ यूँ,डुबाई प्यार की नैया।
कमी बस रह गयी इतनी,कहा  हमको नहीं भैया।
नहीं जो प्यार को समझे,उसी से दिल लगा बैठे।
चली वो फेरकर नजरें,कहे हे राम!हे दैया।

ललित

7.3.17
पेज -11
मुक्तक 16:14(लावणी)
1
अपने और सपने

कुछ अपनों में कुछ सपनों में,जीवन के दिन बीत गए ।
कुछ पाने में कुछ खोने में,सुंदर सपने रीत गए।
जीवन का सपनों से रिश्ता,मन क्यूँ समझ नहीं पाया।
जिनके सपनों खोया मन,भूल वही मनमीत गए।
2
सच्चाई

बात सदा दुनियावी लिखता,नूरानी कोई गल लिख।
महबूबा की पायल लिखता,माँ का सूना आँचल लिख।
जो लायी थी तुझे धरा पर,आँखों में कुछ ख्वाब लिए।
उसकी बुझती आँखों में भी,सच्चाई का काजल लिख।
3
दुख-सुख

दिल की हर धड़कन कुछ बोले,पागल मनवा है सुनता।
सुनकर धड़कन की सुर तालें,ख्वाब अनोखे है बुनता।
सुंदर सपनों की वो दुनिया,कब किस को सुख दे पायी।
लेकिन समझ दार मानव तो,दुख में से भी सुख चुनता।
4
दिल

दिल की बातें दिल में रखकर,दिल से ही मैं कहता हूँ।
शोर बाहरी क्या सुनना जब,दिल के ताने सहता हूँ।
खोजा करता हूँ उस दिल को,शायर जिसको दिल कहते।
दिल के द्वार बन्द कर यारों,दिल में ही मैं रहता हूँ।
5
अरमान

बात कहूँ मैं अपने दिल की,औरों की मैं क्या जानूँ।
फूलों में जजबात नहीं हैं,भौंरों की मैं क्या जानूँ।
प्यार बिके अरमान बिकें हैं,आज यहाँ सब कुछ बिकता।
झरनों में आवाज नहीं है,धौरों की मैं क्या जानूँ।
'ललित'
************************************

कविताएँ

धक-धक करना भूल गया दिल,कविताएं अब लिखता है।
हरदम ये भावों की भँवरों,में ही फँसता दिखता है।
खुश रखना हर दिल को यारों,हरदम ही चाहे ये दिल।
बदले में खुद दीवानों सा,गम के हाथों बिकता है।

6
दो दिल वाले

दिल वालों की इक बस्ती में,दो दिल कविता कहते थे।
हँसते गाते इक दूजे की,कविताओं को सहते थे।
अपने सारे जजबातों को,ढाल दिया कविताओं मे।
कविताओं के झरने हरदम,उनके दिल में बहते थे।

7
गोवर्धन

धारण कर गोवर्धन देखो,साँवरिया गिरधारी ने।

इन्द्र देव का तोड़ा है भ्रम,बाँके मुकुट बिहारी ने।

भोगी की नहिं करनी पूजा,समझाया ब्रजवासिन को।

ईश तत्व जो जग में व्यापा,पुजवाया बनवारी ने।

8
विभीषण

मात्र विभीषण के घर में ही,था तुलसीवन लगा हुआ।
एक विभीषण का मन ही था,ईश-तत्त्व में जगा हुआ।
प्रात काल जिसकी जिव्हा पर,राम नाम आ जाता था।
उसके ही दर पहुँचा हनुमत,राम-काज में गा हुआ।

9
निराकार

समझें सब साकार जिसे वो,
निराकार हो रहता है।
कण-कण में वो व्याप रहा है,
मूरत में जो रहता है।
माया उसकी बड़ी निराली,
पारवती को भरमाया।
तीन लोक का स्वामी देखो,
वन-वन में खो रहता है।

10
होली

कुछ रंगीं कुछ बेरंगी सी,कुछ सतरंगी होली रे।
पचरंगी नारंगी साड़ी,भीगी चूनर चोली रे।
गदहों ने ढेंचू-ढेंचू कर,मारी ऐसी पिचकारी।
धूम मचाना भूल गई वो,दो छोरों की टोली रे।
11

बात कहूँ मैं अपने दिल की,औरों की मैं क्या जानूँ।
फूलों में जजबात नहीं हैं,भौंरों की मैं क्या जानूँ।
प्यार बिके अरमान बिकें हैं,आज यहाँ सब कुछ बिकता।
झरनों में आवाज नहीं है,धौरों की मैं क्या जानूँ।

*********************
पेज -13
मुक्तक लावणी
मुरझाई कलियाँ
1
फूलों ने हँसना छोड़ा है,कलियाँ भी मुरझाई हैं।
माली सींच रहा बगिया पर,पानी भी हरजाई है।
कली-कली पर भौंरे डोलें,प्रेम नहीं कुछ मन में है।
खिलने से पहले रस चूसा,अब केवल तनहाई है।
2
सुख का सागर

मात पिता के चरणों में ही,सुख का सागर बहता है।
वहीं डाल दो डेरा अपना,वहीं कन्हैया रहता है।
उन चरणों की सेवा करके,भार मुक्त हो जाओगे।
कान लगा कर सुनो जरा तुम,उनका दिल क्या कहता है?
3
राम नाम

कौन किसी का मीत यहाँ पर,कौन किसी का अपना है।
सबकी अपनी अपनी दुनिया,अपना अपना सपना है।
साथी पर जब पीर पडे तो,मोड सभी मुख जाते हैं।
गाँठ बाँध लो दुख आए तो,राम नाम ही जपना है।
4
संदेशा

छोड़ चले तारे अम्बर को,कान्हा की बंसी बोले।
गोप-गोपियाँ लें अँगड़ाई,मोहन की छवि मन डोले।
यमुना तीरे से बाँसुरिया,देती है ये संदेशा। 
उसकी बंसी बजे मधुर जो,बातों में मधु-रस घोले।
5
माँ-बेटी

माँ-बेटी का होता जग में,सबसे सुंदर नाता है।
प्यार दिया जो तू ने मुझको,झोली में न समाता है।
अपनी इस बेटी का दामन,खुशियों से माँ भर देना।
चूमे जब तू माथा मेरा,रोम रोम खिल जाता है।
'ललित'
************************************

मन

मन ही मन को समझ न पाए,मन ही मन का दुश्मन है।
मनमर्जी मे बहता जाए,वो जीवन क्या जीवन है?
वो ही तो इंसाँ कहलाए,जो मन को वश में कर ले।
संतोषी मन ही कहलाता,मानव का जीवन-धन है।
ललित

18
रोना

रोने-रोने में भी देखो,कितना है अंतर होता।
इक रोता ऊपर-ऊपर से,दूजे का अंतर रोता।
खुशियाँ रूठी रहती उससे,जो हर दम रोता रहता।
इक रोने का नाटक करता,इक रोने में सुध खोता।

19
वक्त

आसमाँ में उड़ रहा जो,उड़ कहाँ तक पायगा।
वक्त की इक मार से वो,गिर जमीं पर जायगा।
वक्त तो हरदम किसी का, एक सा रहता नहीं ।
वक्त को कमतर गिने जो,मूर्ख ही कहलायगा।

20
अकेला

साथ कुछ दिन जो चला था,राह में ही था मिला।
राह अपनी वो गया तो,अब किसी से क्या गिला।
यार जब तूने धरा पर,था कदम पहला रखा।
रो रहा था तू अकेला,दर्द का था सिलसिला।

21
चोट

ज़िन्दगी से आज हमको,चोट इक प्यारी मिली।
कौन सा मरहम लगाएँ,हर दवा खारी मिली।
ज़ख्म जो दिल में हुआ है,दीखता हरदम नहीं।
घाव पर मरहम लगाती,ख्वाहिशें सारी मिली।

22

मुक्तक

5 मुक्तक 14 ..14 की यति
नई दुनिया

चलो इक बार फिर से हम,नयी दुनिया बसाते हैं।
नयी सुर-ताल सरगम पर,नया इक गीत गाते हैं।
गिले-शिकवे दिलों में जो,दिलों में ही दफन कर दें।
चलो पतवार बनकर हम,भँवर को भी हराते हैं।

25

मुक्तक
इशारा
*
चाँदनी ने चाँद को कुछ, यूँ इशारा कर दिया।
बादलों ने रोष में आ,चाँद को ओझल किया।
चाँद से नजरें चुरा कर,चाँदनी रुखसत हुयी।
चाँद गुम-सुम सोचता क्यूँ, चाँदनी ने छल किया।
26
मुक्तक

28 मात्रा भार में
14 ..14 की यति पर
बहर 1222, 1222, 1222, 1222

जन्म दिन शुभकामना

सदा महको ,सदा चहको,
सदा सबको हँसाओ तुम।
सुहाने प्यार के नगमे,
हमेशा गुन गुनाओ तुम।
कभी गम की घटाओं का,
न हो आगाज़ भी मन में,
खुशी की धूप जीवन में,
सदा यूँ ही खिलाओ तुम।
'
27

28

पेज 14
मुक्तक 14:12  व 14:14

भ्रमर

क्यूँ भ्रमर गुंजन करें क्यूँ,श्याम की मुरली बजे?
राधिका के नाम से क्यूँ,बाँसुरी के सुर सजें?
क्यूँ लताएं झूमती हैं,साँवरे के नाम से?
बाँसुरी की तान पर क्यूँ,गोपियाँ घर को तजें?
2  
ढाँचा

हड्डियों का एक ढाँचा,आज बनकर रह गया।
जिन्दगी ने यूँ बजाया,साज बनकर रह गया।
स्वप्न सब आँसू बने अब,आँख से हैं बह रहे।
साथ छोड़ा चाम ने भी,खाज बनकर रह गया।
3  
यौवन

जिन्दगी जी भी न पाया,हाय यौवन खो गया।
भीग तन मन भी न पाया,और सावन खो गया।
ख्वाब खुश्बू के दिखा कर,फूल सब ओझल हुए।
कर्म फल दे भी न पाए,हाय जीवन खो गया।

***********************************
33
लावणी मुक्तक 16,,,,,14
*
जनता को जो मान रहे हैं,भीड़ मकोड़े- कीड़ों की।
लड़ते दिखते रोज लड़ाई,अपने सुंदर नीड़ों की।
कितने शातिर नेता हैं ये,कितनी बेबस है जनता।
नादानी का लाभ उठाते,ये जनता की भीड़ों की।

34
लावणी मुक्तक 16....14
*
दीवाली

क्या कहता है दीप सुनो तुम,दीवाली के मस्तानों।
खुद जलकर जग रोशन कर दो,ज्योति जगत के परवानों।
याद करेगी तुमको दुनिया,हर होली दीवाली पर।
दुश्मन को तुम धूल चटा दो,हिन्द फौज के दीवानों।

35
लावणी मुक्तक 16....14
गुरू

आज दिवाली के अवसर पर,याद गुरू को कर लो जी।
प्रेम प्यार से वन्दन करलो,शीश चरण में धर लो जी।
लौह धातु से स्वर्ण बनाने,वाले पारस को पूजो।
कृपा गुरू की बनी रहे ये,माँ लक्ष्मी से वर लो जी।
36
*
दीवाली की रौनक

दीवाली की रौनक है या,चाँद सितारों का मेला।
धरती पर उतरा है जैसे,दीप-बातियों का रेला।
हर आँगन में खनक रही हैं,खन-खन-खन खन-खन खुशियाँ।
लक्ष्मी जी के स्वागत की है,आयी मधुर-मधुर बेला।
*
दिल.की बगिया

दिल की बगिया में महका इक,सुंदर प्यार भरा सपना।
अपनापन पाकर निखरा वो,लेकिन हो न सका अपना।
सपने में यूँ खोया ये दिल,भूल गया अपनी धड़कन।
नींद खुली तो सपना टूटा,भूला सपनों में खपना।
38
मुक्तक 16 ..14
झोली

बहुत दिया दाता ने हमको,हम ही कुछ न समझ पाये।
इतनी महर करी भगवन् ने,झोली छोटी पड़ जाये।
फिर भी हम इंसाँ तो हरदम,रोना गम का हैं रोते ।
हँसकर जीना सीख लिया तो,गम ही गम को खुद खाये।
*****************
पेज 12
मुक्तक लावणी
1
अपने

"जब भी खुलकर हँसना चाहा,दिल ने अधरों को रोका।
जब भी हँसकर जीना चाहा,अपनों ने ही
तो टोका।
अब तो हमने सीख लिया है,दिल ही दिल में खुश रहना।
चाही दिल ने खुशियाँ तो फिर,मन्दिर में जाकर ढोका।
3
निगुरे

कुछ फूलों की चंचल खुशबू,संग हवा के चल देती।
औ' कुछ की खुशबू माली के,नथुनों को संबल देती।
कुछ ऐसे निगुरे होते जो,खुशबू कभी नहीं देते।
और कई पुष्पों की खुशबू,बगिया को हलचल देती।
4
दिल की दीवारें

दिल की दीवारों में कितने,ख्वाब सुनहरे पलते हैं।
उन ख्वाबों में डूबे मानव,अद्भुत चालें चलते हैं।
सपने तो सपने हैं आखिर,टूटा करते हैं अक्सर।
टूटे सपने भी इंसाँ को,जीवन भर फिर
छलते हैं।
5
नैन मटक्का

नैन मटक्का करे कन्हैया,राधा गोरी गोरी से।
छाँव कदम की बतियाता है,बरसाने की छोरी से।
गोप गोपियाँ आनन्दित हो,प्रेम-पुष्प वर्षा करते।
राधा रानी हाथ छुड़ाए,पकड़े कान्हा जोरी से।
'ललित'
***********************************

पेज 7 से 9 मुक्तक(कुकुभ आधारित)साझा संग्रह हेतु 25.10.17

25.10.17
साझा संग्रह हेतु
पेज - 7
मुक्तक(कुकुभ आधारित)
*1
माँ शारद की किरपा से ये,मन भावों में बहता है।
छंदो की नक्काशी से कवि,सुंदर कविता कहता है।
गुरू ज्ञान की सरिता से ही,'काव्य सृजन' ये निखरा है।
गुरू बिना तो मानो सब कुछ,बिखरा बिखरा रहता है।
*2
आज बिरज में कान्हा का इक,बाबा ने दर्शन पाया।
मोहन भी रोना भूला जब,भोला बाबा बन आया।
बाबा भूल गया बाबापन,जब मोहन की छवि देखी।
बाबा अपलक देख रहा था,अलख निरंजन हरि माया।
*3
रास रचाए रस बरसाए,रसिक रास की इक छोरी।
गोप गोपियों को नचवाए,बरसाने की इक गोरी।
मुरली से पायल बजवाए,वंशी का वादक न्यारा।
मट मट मट आँखें मटका जो,करता सबका दिल चोरी।
*4
प्रेम जगत के सुंदर सुंदर,ख्वाब हमें क्यूँ दिखलाए?
बरखा-सावन के वो नगमे,क्यूँ हमको थे सिखलाए?
झूँठी प्रीत तुम्हारी निकली,झूँठे निकले सब वादे।
हाय हमें बहलाने को तुम,झूँठे खत क्यूँ लिखलाए?
*5
प्रेम-प्यार औ' रिश्ते-नातों,से अब मानव घबरावे।
मात-पिता,भाई-भावज की,कोई बात न अब भावे।
टूटे दिल के तार यहाँ पर,कोई जोड़ न अब पाता।
अब तो बीबी-बच्चों में ही,सब संसार नजर आवे।
'ललित'
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पेज - 8
मुक्तक(कुकुभ आधारित)
*1
प्राची ने ओढ़ी है चुनरी,चमके ज्यों केसर क्यारी।
कलियों ने मुस्कान सजाली,अधरों पर निर्मल प्यारी।
तारों ने अम्बर को छोड़ा,डाल रहा दिनकर डेरा।
हर हर हर हर महादेव का,घोष कर रहे नर नारी।
*2
कैसी माया प्रभु ने रच दी,कैसा मन को भरमाया
मानव तन की कीमत प्राणी,जीवन भर न समझ पाया।
पैसा खूब कमाने में ही,बीता यह जीवन सारा।
खाली हाथ एक दिन जाना,कभी न मन को समझाया।
*3
सतरंगी दुनिया के सातों,रंग बड़े सुंदर प्यारे।
ममता रूपी रंग जहाँ हो,फीके रंग वहाँ सारे।
जितना प्यार करे माँ सुत को,उतना रंग निखरता है।
लेकिन सुत तो बूढ़ी माँ का,निश्छल रंग न मन धारे।
*4
नारंगी कुछ सतरंगी कुछ,बेरंगी कुछ गम होते।
कड़ुवे कुछ तीखे-खट्टे कुछ,गम मीठे कुछ कम होते।
गम ही तो बहलाते दिल को,खुशियाँ कब खुश रख पातीं।
वो सब का दिल हैं बहलाते,जो सुख-दुख में सम होते।
*5
काँटों की पहरेदारी में,फूल सुगंधित खिलते हैं।
प्यार करें कंटक फूलों से,रोज गले वो मिलते हैं।
दुश्मन के हाथों में चुभकर,शूल पुष्प को सहलाएं।
वो कंटक बदनाम हुए जो,दिल के टुकड़े सिलते हैं।
'ललित'
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पेज - 9
मुक्तक(कुकुभ आधारित)
*1
इस सुन्दर मोती को माँ तू ,रो रो कर मत बहने दे।
अपने दिल के अरमानों को,आँख के अंदर रहने दे।
तेरी दुआ से इन नैनों में,खुशी के आँसू भर दूँगा।
तेरी इस पीड़ा को माँ बस,कुछ दिन मुझको सहने दे।
*2
भोला-भाला औघड़ बाबा,करे बड़ा गड़बड़ झाला।
शीश शशि गल नील गरल धरे,औ' नागों की गलमाला।
राख-मसानी अंग-अंग में,सिर धारे पावन गंगा।
भांग धतूरा और हलाहल,खुश हो पीता मतवाला।
*3
पुष्प बहुत ऐसे देखे हैं,काँटों में जोें पलते हैं।
चुभन सहें कंटक की फिर भी,मुस्कानों में ढलते हैं।
सौरभ उनकी चहुँ दिशि फैले,काँटे बेबस रह जाते।
कंटक चुभ-चुभ थक जाते हैं,दिल ही दिल में जलते हैं।
*4
दिल छोटा औ' पीर बड़ी है,नहीं किसी से कह पाऊँ।
दिल में उठती टीस बड़ी है,नहीं जिसे मैं सह पाऊँ।
अपनों ने जो घाव दिए वो,दिल में गहरे उतरे हैं।
घावों का अपनापन प्यारा,कैसे उन बिन रह पाऊँ।
*5
सपनों से सुख सपने जैसा,हमको जैसे मिलता है।
अपनों से दुख अपना जैसा,हमको वैसे मिलता है।
टूट गया इक सपना प्यारा,अपना हमसे जब रूठा।
क्या बतलाएं अब वो अपना,हम से कैसे मिलता है?
*6
रास रचाए रस बरसाए,नंदन-वन में इक ग्वाला।
गोरी-गोरी व्रजवासिन को,नाच नचाए इक काला।
मधुर-मधुर अधरों से वंशी,लगा झूमता मतवाला।
आत्मानंदी प्रीत जगाए,गैयन का इक रखवाला।
'ललित'

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