अक्टूबर 2018 रचनाएँ

[01/10, 7:26 PM] ललित:
एक नया समसामयिक

🙏🙂🙏
मनहरण घनाक्षरी

कैसी ये हवाएँ चली।
भूले सब गाँव गली।
शहर की आबोहवा
रास बड़ी आ रही।

कंकरीट के ये जाल।
अँधियारे ये विशाल।
आड़ में जिनकी शर्मो
हया खोती जा रही।

द्वार द्वार के है पास।
जानकारी नहीं खास।
पड़ोसी न आए रास।
प्राईवेसी खा रही।

पूरी हुई अब साध।
पाप नहीं अपराध।
पापों की नगरिया ये।
सबको लुभा रही।

ललित
[02/10, 12:45 PM] ललित:
मनहरण घनाक्षरी

राधा जी का प्यारा नाम।
जपे जा तू आठों याम।
कभी न कभी तो श्याम।
तेरे पीछे आएगा।

राधा जी सुखों का धाम।
पीछे-पीछे चले श्याम।
राधा जी का नाम तुझे।
श्याम से मिलाएगा।

दुनिया से मिले घाव।
भँवर में फँसी नाव।
राधा-राधा जप तुझे।
दुख न सताएगा।

राधा का गुलाम श्याम।
उसे प्यारा राधा नाम।
राधा-राधा जपे जा तू।
भव तर जाएगा।

ललित
[02/10, 3:28 PM] ललित:
मनहरण घनाक्षरी
भ्रूण हत्या

मैया तू है एक नारी।
फिर काहे मैं बिसारी।
जग में आने दे मुझे।
कच्ची हूँ अभी कली।

तेरे जैसे नैन-नक्श।
और पापा जैसा अक्स।
सुंदर परी मैं ऐसी।
जैसे साँचे में ढली।

देखना है जग मुझे।
चढ़ने हैं नग मुझे।
जरा पकने दे अभी।
पकी नहीं ये फली।

काम बड़े करूँगी मैं।
देश-हित लड़ूँगी मैं।
सिद्ध कर दूँगी बेटे
से है बिटिया भली।

ललित

मनहरण घनाक्षरी
भ्रूण हत्या

मैया तू है एक नारी।
मुझे काहे को बिसारी।
जग में आने दे मुझे।
कच्ची हूँ अभी कली।

तेरे जैसे नैन-नक्श।
और पापा जैसा अक्स।
सुंदर परी मैं ऐसी।
जैसे साँचे में ढली।

देखना है जग मुझे।
चढ़ने हैं नग मुझे।
जरा पकने दे अभी।
पकी नहीं ये फली।

काम बड़े करूँगी मैं।
देश-हित लड़ूँगी मैं।
सिद्ध कर दूँगी बेटे
से है बिटिया भली।

ललित
[02/10, 8:00 PM] ललित:
मनहरण घनाक्षरी

रूप रंग का खुमार
उतरेगा कब यार।
वृद्धावस्था जिंदगी में
घुसी चली आ रही।

हो रहे सफेद बाल
खिंचने लगी है खाल।
नौजवानी खूब तेरे
दिल पे है छा रही।

धुँधला गई है आँख
मन को लगे हैं पाँख।
कामनाएँ नित नई
मन को लुभा रही।

अब तो समझ यार
जिंदगी के दिन चार।
कर ले भजन वर्ना
नाव डूबी जा रही।

ललित
[04/10, 4:35 PM] ललित:
दोहा छंद

विषय:  माँ

बचपन में था पूछता,माँ से बहुत सवाल।
अब वो माँ से बोलता,काहे करे बवाल।।

दान  किये जप भी किये,तीरथ किये हजार।
माँ को जो बिसरा दिया,सब कुछ है बेकार।।

माँ के आँचल की जिसे,मिली हुई है छाँव।
हरदम सीधे बैठते,उसके सारे दाँव।।

माँ की याद सुवास सी,मन निर्मल हो जाय।
जैसे तुलसी आँगने,हरि की याद दिलाय।।

हरि का सुमिरन जो करे,माँ चरणों में बैठ।
हरि उसको आशीष दें,माँ के उर में पैठ।।

माँ साँसों में बस रही,माँ धड़कन,माँ प्राण।
माँ से उऋण न हो सके,सुत देकर भी जान।

'ललित'
[07/10, 12:39 PM] ललित:
मनहरण घनाक्षरी

दिल में अशांतिवास
शांति क्यों नहीं है पास?
गली-गली खोजता हूँ
शांति नहीं मिलती।

तांडव है चारों ओर।
दानव मचाएँ शोर।
खूब सींचूँ दिल की ये
कली नहीं खिलती।

नैन बंद कर देखा
टेढी मिली भाग्य-रेखा।
लाख करूँ जतन ये
रेखा नहीं हिलती।

पड़ गई एक बार
यदि दिल में दरार।
किसी सुई-धागे से वो
कभी नहीं सिलती।

ललित
[07/10, 5:38 PM] ललित:
मनहरण घनाक्षरी

माली को पुष्पों से प्यार
फूलों से ही है बहार।
रानियों का ये श्रृंगार
सुमनों से जिन्दगी।

सौरभ फूलों का सार
खुशबू बढ़ाए प्यार।
सुमनों से हार जाती
काँटों की दरिंदगी।

सब की यही है चाह।
फूलों से भरी हो राह।
सुमन हैं दुनिया में।
सबकी पसन्दगी।

वन-उपवन बाग
बाँसुरी के सब राग।
करते हैं फूलों से ही
कान्हा जी की बन्दगी।

ललित
[07/10, 7:41 PM] ललित:
मनहरण घनाक्षरी
3
भूलकर भूख-प्यास।
छोड़कर रंग-रास।
बागबाँ रहा था सदा
बाग को सँवारता।

कलियों पे था निखार
बागबाँ हुआ निसार।
प्यार भरी अँखियों से
बाग को निहारता।

कलियाँ जो बनी फूल।
बागबाँ को गई भूल।
बाग और बागबाँ से
दिल में न प्यार था।

सूना हुआ सारा बाग।
फूल सब गए भाग।
बागबाँ तो सुमनों की
खुशी पे निसार था।

ललित
[08/10, 6:20 PM] ललित:
मनहरण घनाक्षरी

चाहे जपो राम नाम।
चाहे कहो सीताराम।
राम जी का ध्यान धर
सारे काम करिए।

चाहे जपो राधा नाम।
चाहे कहो राधेश्याम।
राधा-कृष्ण चरणों में
ध्यान नित धरिए।

नारायण जपो नाम
धन-धान्य-लक्ष्मी धाम।
आती-जाती साँस सँग
पुण्य-झोली भरिए।

दुखागर मृत्युलोक
प्रभु चरणों में ढोक।
विनती प्रभु से करो।
सारे दुख हरिए।

ललित
[11/10, 6:21 PM] ललित:
चौपाई छंद

मोर-मुकुट पीताम्बर धारी,
केशव माधव कृष्ण मुरारी।

अर्जुन जैसे शिष्य तुम्हारे।
सखा सुदामा से हैं प्यारे।

गोप-गोपियों के बनवारी।
जय-जय-जय गोवर्धन-धारी।

तुम राधा के दिल की धड़कन।
महके तुमसे व्रज का कण-कण।

दोहा

बजे सुरीली बाँसुरी,सारी-सारी रात।
कृष्ण तुम्हारे रास में,गोपी भूले गात।

ललित
[12/10, 10:10 PM] ललित:
चौपाईयाँ

ठुमक-ठुमक कर चले कन्हैया।
देख-देख हर्षित हो मैया।

छम-छम-छम पैंजनिया बजती।
अधर मधुर बाँसुरिया सजती।

बजे बाँसुरी हौले-हौले।
आलौकिक मद से व्रज डोले।

मटकी ले जब निकलें सखियाँ।
मट-मट-मट मटकाए अँखियाँ।

मार कंकरी मटकी फोड़े।
गोपी पीछे-पीछे दौड़े।

देख हो रही मटकी खाली।
ग्वाल हँसें सब दे-दे ताली।

दोहे

मनभावन लीला करे,व्रज में माखन-चोर।
गोप-गोपियाँ सब कहें,जय-जय नंदकिशोर।

ललित
[13/10, 2:34 PM] ललित:
आदर्श अतिथि स्वागत

द्वारपाल संदेशा लाया।
मित्र सुदामा द्वारे आया।

सुना कन्हैया ने जैसे ही।
छोड़ दिया आसन वैसे ही।

दौड़ पड़े दर्शन करने वो।
प्रेम-सुधा वर्षण करने वो।

देख मित्र की जर्जर काया।
श्याम नयन में जल भर आया।

तुरत मित्र को गले लगाया।
कहा नहीं क्यों पहले आया?

सिंहासन पर मीत को,बिठा द्वारिकाधीश।
चरणों को निज अश्रु से,धोते हैं जगदीश।

ललित
क्रमशः
[13/10, 7:54 PM] ललित:
चौपाइयाँ
अतिथि भाग दो

सजल नयन थे रुँधे गले थे।
बचपन में वो लौट चले थे।

बात कर रहे दोनों मन की।
रही नहीं सुधि उनको तन की।

कहा कृष्ण ने मत सकुचाओ।
भाभी जी के हाल सुनाओ।

भेजी है क्या भेंट बताओ?
और नहीं अब मुझे सताओ।

मीत सुदामा अब सकुचाए।
तंदुल की क्या भेंट बताए?

दोहा

तंदुल की वो पोटली,कान्हा ने ली छीन।
चकित नयन से देखते,रहे सुदामा दीन।

ललित
[14/10, 3:30 PM] ललित:
चौपाइयाँ

सतरंगी दुनिया को देखा।
देखी बेरंग भाग्य-रेखा।

अपनों ने वो रंग दिखाए।
दूजा कोई रंग न भाए।

रंगों से मनती है होली।
रंग हाथ में बेरँग बोली।

रंग-बिरंगी जवाँ दिवाली।
मात-पिता की झोली खाली।

बदल गए अब सबके ढँग हैं।
रुपयों ने भी बदले रँग हैं।

पार्टी-ध्वज में जैसा रँग है।
वैसा नेता जी का ढँग है।

श्वेत रोशनी सूरज देता।
प्रिज्म उसे रंगीं कर लेता।

ऐसा ही कुछ हम भी कर लें।
नए रंग जीवन में भर लें।

दोहा

धुंधला कोई रंग है,कोई है रतनार।
हर रँग में नौका चला,मत छोड़े पतवार।

ललित
[16/10, 6:00 PM] ललित:
सार छंद
भूल-भुलैया

जीवन की ये भूल-भुलैया,सबको है भटकाती।
आती-जाती साँसों को ये,हौले से अटकाती।
कौन कहाँ कैसे जाएगा,छोड़ जगत का मेला?
जान नहीं पाता है कोई,कैसा है ये खेला?

ललित
[18/10, 6:41 PM] ललित:
चौपाई
पंचतत्त्व

पंचतत्त्व की देह बनाई,
आत्मा इक उसमें बिठलाई।

दूर बैठ दाता फिर देखे।
देह लिखे कर्मों के लेखे।

वही लेख फिर भाग्य बनाते।
कर्म समय से फल दिखलाते।

पुण्य करे कितने भी मानव।
नष्ट न हों कर्मों के दानव।

पाप कर्म से आत्मा रोके।
कदम-कदम पर नर को टोके।

पंचतत्त्व की देह से,मत कर इतना प्यार।
जितने इससे कर सके,कर ले तू उपकार।

ललित
[19/10, 7:44 PM] ललित:
चौपाई

जीत सत्य की होती आई,हरी जड़ें सच ने ही पाई।

सुंदर बुरका ओढ़ बुराई,चुपके से नर मन में आई।

कलियुग में दे सत्य दुहाई,विजय झूठ की देत दिखाई।

लेकिन इक दिन बुरका फटता,तभी झूठ से परदा उठता।

सत्य सामने जब आ जाता,झूठ नहीं फिर टिकने पाता।

दोहा

दामन थामे सत्य का,बढ़ मंजिल की ओर।
नहीं झूठ से छू सके,मंजिल का तू छोर।

ललित
[20/10, 7:49 AM] ललित:

चौपाई

जीत सत्य की होती आई,हरी जड़ें सच ने ही पाई।

सुंदर बुरका ओढ़ बुराई,चुपके से नर मन में आई।

कलियुग में दे सत्य दुहाई,विजय झूठ की देत दिखाई।

लेकिन इक दिन बुरका फटता,तभी झूठ से परदा हटता।

सत्य सामने जब आ जाता,झूठ नहीं फिर टिकने पाता।

दोहा

दामन थामे सत्य का,बढ़ मंजिल की ओर।
नहीं झूठ से छू सके,मंजिल का तू छोर।

ललित
[20/10, 8:39 PM] ललित:
चौपाई
अमृतसर दुखान्तिका

मौत कहाँ कैसे आएगी,
साथ किसे कब ले जाएगी?

जान कहाँ मानव है पाता,
दबे पाँव यम है आ जाता । 

साठ जनों को मौत दिखाई,
अमृतसर कैसा वो भाई।

कहीं न कोई पत्ता खड़का,
जलता रावण ऐसा भड़का।

मौत दौड़ती सरपट आई,
कहो कौन था वहाँ कसाई?

किसकी थी ये जिम्मेदारी,
लाशें बिछी धरा पर सारी।

दोहा

रोक सको तो रोक लो,
अनहोनी को आप।
वरना मौत कहाँ कभी,
देती अपनी थाप?

ललित
[21/10, 4:21 PM] ललित:
चौपाइयाँ

नाम राधिका का यदि जपते,
जीवन के ये पथ क्यों तपते?

राधा का जो नाम सुमिरते,
वो नर भवसागर से तरते।

नाम जपे हर पल राधा का।
नहीं उसे डर भव-बाधा का।

उसी कृष्ण को प्यारी राधा।
करे दूर जो सबकी बाधा।

राधा नाम उसे है प्यारा।
जो है जग का तारण-हारा।

जय-जय श्याम-राधिका प्यारे।
ताप-व्याधि हर सब नर तारे।

दोहा

राधा-राधा जो जपे,भव-सागर तर जाय।
दर्शन कान्हा के मिलें,आत्म-ज्ञान फल पाय।

ललित
[22/10, 7:27 PM] ललित:
मुक्तक 14:14

न समझे प्यार की भाषा,न खोले प्यार का खाता।
निगाहों  से हसीं दिलवर,नशीले तीर बरसाता।
बना अंजान वो फिरता,चलाकर तीर नजरों के।
यहाँ दिल है हुआ घायल,वहाँ वो गीत है गाता।

ललित
[27/10, 10:51 AM] ललित:
हरिगीतिका छंद

करवा चौथ स्पेशल

है आज करवा चौथ का व्रत,
                 आप ही तो खास हो।
मैं प्यार करतीे आपसे ही,
                 आज तो विश्वास हो।
व्रत आज ये मैंने रखा जी,
                  आपके हित के लिए।
ला दीजिए उपहार कोई,
                  इस पुजारिन के लिए।
                   
ललित
[27/10, 6:19 PM] ललित:
हरिगीतिका छंद

पूजा करूँगी मैं तुम्हारी,
             मान लो मनुहार तुम,
जो बन पड़े तुम से वही कुछ,
              आज दो उपहार तुम।
लो सूट ये पहनो नया तुम,
               और टाई घाल दो।
सेल्फी खिंचा कर साथ मेरे,
               फेस बुक पर डाल दो।
ललित
[27/10, 7:31 PM] ललित:
आधार छंद

नाक नथनियाँ झूमती,अधरों पर मुस्कान।

हार गले में नौलखा,चितवन तीर कमान।

पायल की छम-छम करे,खुशियों की बौछार।

सजनी के इस रूप पर,साजन जी कुर्बान।

ललित
[28/10, 8:06 PM] ललित:
कुण्डल छंद

जिंदगी किताब जान,ध्यान से पढ़ो जी।
शब्दों का गूढ़ अर्थ,जान तुम बढ़ो जी।
मित्र और अमित्र का,भेद जरा जानो।
शत्रु की मिठास भरी,बात नहीं मानो।

ललित
[28/10, 8:11 PM] ललित:
कुण्डल छंद

देख दिवाली मकान,साफ कर लिया है।
फालतू कबाड़ खूब,बेच भी दिया है।
लेकिन मन का न मैल,छूट हाय पाया।
जाए न मन को छोड़ ,अंत हीन माया।

ललित

सितम्बर 2018


मनोरम छंद

जय श्री राधेकृष्णा...!

~~~~💝~~~~💝~~~~💝~~~

बाँसुरी सौतन सरीखी,फिर अधर पर आज दीखी।

राधिका ने रार ठानी,श्याम की लीला न जानी।

वेणु वो क्यों कर बजाता,नैन क्यों नटखट नचाता ?

जान ये राधा न पाए,फेरकर मुख बैठ जाए।

पुष्प ले फिर श्याम आता,केश राधा के सजाता।

मुस्कुरा बहियाँ मरोड़े,हाथ राधा का न छोड़े।

राधिका कुछ सकपकाई,श्याम सम्मुख मुस्कुराई।

नैन कान्हा से मिलाए,बाँसुरी खुद ही बजाए।

~~~~💝~~~~💝~~~~💝~~~~

ललित किशोर 'ललित'



मनोरम छंद
प्रकृति

चाँदनी ऐसी दिवानी।
पूर्णमासी की जवानी।
चाँद भी है शीत सुंदर।
प्रीत का प्यासा समंदर।

चाँदनी जो हो गई गुम।
होगया वो चाँद गुमसुम।
हाय धोखा दे गई क्यों?
चैन दिल का ले गई क्यों?

ललित
[02/09, 1:03 PM] ललित:
मनोरम छंद

आ गया व्रजधाम में वो।
गोपियों के ग्राम में वो।
बाँसुरीधर ग्वाल छुटका।
नंद का गोपाल छुटका।

माँ यशोदा का दुलारा।
गोपियों का श्याम कारा।
राधिका का बावरा वो।
गोपियों का साँवरा वो।

गोप-ग्वालों का कन्हैया।
रास का नटखट नचैया।
बाँसुरी जब भी बजाए।
प्रीत के ही सुर सजाए।

चोर माखन का निराला।
बाँट देता हर निवाला।
मोर पंखी मुकुट धारी।
प्रेम का पक्का पुजारी।

क्रमशः
ललित
[02/09, 5:03 PM] ललित: 2
मनोरम छंद

मुस्कुराहट का खजाना।
गम उदासी को न जाना।
हर दुखी की पीर हरता।
नाव सब की पार करता।

ललित
[03/09, 8:18 AM] ललित:
मनोरम छंद

जन्म दिन शुभकामना है
साँवरे   मनमोहना     हे!
माँ यशोदा को बधाई
नंद बाबा  दें    दुहाई।

धन्य राधा धन्य व्रज है।
धन्य गोकुलधाम-रज है।
धन्य हैं सब गोप-ग्वाले।
धन्य माखन के निवाले।

धन्य भारत की धरा है।
धन्य यमुना को करा है।
धन्य वंशी गुंज माला।
मोरपंखी ताज वाला।

रास अब दिन-रात करना।
आत्म-रस बरसात करना।
हर असुर का नाश हो अब।
नष्ट दुख का पाश हो अब।

ललित
[03/09, 3:36 PM] ललित:
छलिया घनश्याम
निश्चल छंद

राधा जी की रूप माधुरी,ललित ललाम।
चकित नैन कनखी से निरखे,मनहर श्याम।

अँखियों ही अँखियों से पीता, माखन चोर।
राधा के नैनों की मदिरा,वो नित भोर।

ऐसा जादू करता छलिया,वो घनश्याम।
खिंची चली आती है राधा,सुबहो शाम।

गोप-गोपियाँ हँसी उड़ायें,दे दे ताल।
वो नटखट नैना मटकाए,चूमे गाल।

कैसे कैसे नाच नचाता,नटवर श्याम।
आत्मानंदी रास रचाता,वो निष्काम।

मधुर बाँसुरी से छेड़े कुछ,ऐसी तान।
आलौकिक मद से भर देता,सबके कान।

जादू की मुरली ले आया,माखन चोर।
बजा मधुर वंशी खींचे वोे,मन की डोर।

व्रज का छोरा बरसाने की,छोरी साथ।
जोरा-जोरी करे छुड़ाए,गोरी हाथ।

ललित
[03/09, 5:54 PM] ललित:

मेरी एक रचना
२१२२ २१२२ २१२२ २१२

आज घड़ियां नन्द घर आनंद की हैं छा रही ,
बावरी बनकर यशोदा आज है हरखा रही  ।

कृष्ण आने की ख़ुशी दिल में उभर कर आ गई ,
गाँव गोकुल की सभी गलियाँ दिए सजवा रही ।

माँ यशोदा पारणा में लाल को झूला रही ,
गीत , हालरडा बहुत अरमान से है गा रही ।

[03/09, 8:03 PM] ललित:
मनोरम छंद

श्याम मथुरा चल दिया क्यों?
राधिका से छल किया क्यों?
साथ छोड़ा बाँसुरी का।
रुख किया मथुरा पुरी का।

हो गया क्यों श्याम ऐसा?
रास के बिन चैन कैसा?
गोपियों से दूर जाकर।
क्या मिला व्रज को भुलाकर?

ललित
[04/09, 10:15 AM] ललित:
मनोरम छंद

पायलों की छम-छमा-छम।
बाँसुरी की मस्त सरगम।
बादलों की गड़-गड़ाहट।
जन्म की हर द्वार आहट।

काँपते सारे असुर हैं।
जन्मते कान्हा चतुर हैं।
ढोल-बजते हर गली में।
ख्वाब सजते हर कली में।

माँ यशोदा नंद बाबा।
गोपियों की कांंति आभा।
चाँद तारों सी बढ़ी है।
आ गयी प्यारी घड़ी है।

क्रमशः
ललित
[04/09, 2:21 PM] ललित: मनोरम छंद
2

झूमते हैं गोप-ग्वाले।
आगए मोहन निराले।
भोग माखन का लगेगा।
रास में अब व्रज जगेगा।

दूर होंगें कष्ट सारे।
मित्र सबके श्याम प्यारे।
पीर सब की ही हरेंगें।
पार हर नैया करेंगें।

ललित
[05/09, 5:21 PM] ललित: मनोरम छंद
आदरणीय राकेश जी को सादर समर्पित रचना

ज्ञान का दीपक जलाकर।
शिष्य का हर-पल भलाकर।
'राज' गुरुवर मुस्कुराते।
शिष्य को दर्पण दिखाते।

छंद-लय का ज्ञान देते।
मूल्य विद्या का न लेते।
'राज' से शिक्षक जहाँ हों।
क्यों न शारद माँ वहाँ हों?

कर रहे साहित्य सेवा।
चाहिए उनको न मेवा।
'राज' अब डॉक्टर बने हैं।
मूँछ अरु भौंहें तने हैं।

है 'ललित' का कोटि वंदन।
ये गुरू हैं या कि चंदन?
फैलती सौरभ दिशा-दस।
शीश चरणों में धरूँ बस।

ललित
[06/09, 2:15 PM] ललित: मनोरम छंद

रंग गिरगिट सा बदलते।
छातियों पर मूँग दलते।
आपकी दुर्भावनाएँ।
वोट की ये कामनाएँ।

अब सहन होती नहीं हैं।
काँच वो मोती नहीं हैं।
मोतियों का मूल्य जानो।
काँच को मोती न मानो।

ललित
[06/09, 6:13 PM] ललित:
मनोरम छंद

आदमी से आदमी को।
बाँट डाला इस जमीं को।
दुष्टता की लाँघ सीमा।
मुस्कुराते आप धीमा।

क्यों नहीं हो सोच पाते?
जब नए कानून लाते।
क्या गलत है क्या सही है?
गंग उल्टी क्यों बही है?

ललित
[07/09, 8:30 AM] ललित:
मुक्तक

फूल एक दिन मुख मोड़ेंगें,माली ने ये था माना ।
फूलों की फितरत से माली,नहीं रहा था अंजाना।
अपना फर्ज मान कर उसने,सींचा था फुलवारी को।
फूलों की दुनिया से नाता,तोड़ चला वो दीवाना।

ललित
[07/09, 10:35 AM] ललित: घोड़ों के पैरों को बाँधा,दिए गधों के पंख लगा।
माटी के सब पुतले हैं क्यों,एक पराया एक सगा ?
वोटों के चक्कर में कैसी,दगा आप हो कर बैठे ?
बहुत देर से जागा लेकिन,अब है सारा देश जगा।

ललित
[07/09, 6:47 PM] ललित:
लावणी मुक्तक

कान्हा के सिर मोरपंख जब,धीरे-धीरे हिलता है।
राधा के कोमल दिल में तब,सुमन प्यार का खिलता है।
पुण्य किए क्या मोरपंख ने,जो उसको सिर धार लिया?
सोचे राधा मोरपंख ये,इतराता क्यूँ मिलता है?

ललित
[07/09, 7:59 PM] ललित:

लावणी मुक्तक

मोरपंख कान्हा के सिर जब,धीरे-धीरे हिलता है।
राधा के कोमल दिल में तब,सुमन प्यार का खिलता है।
पुण्य किए क्या मोरपंख ने,जो उसको सिर धार लिया?
सोचे राधा मोरपंख ये,इतराता क्यूँ मिलता है?

ललित
[08/09, 7:11 PM] ललित:
मनोरम छंद

जो निराली नार है ये।
जिंदगी का सार है ये।
जन्म नर को नार देती।
और उसको प्यार देती।

है खुशी का ये खजाना।
हारना इसने न जाना।
प्यार का उपहार देती।
दो कुलों को तार देती।

ललित

[09/09, 11:57 AM] ललित:
मुक्तक क्रमाँक -1
16:12

क्योंं रे कान्हा यमुनातट पर,काहे धूम मचाई?

गोप-गोपियों के सँग कमसिन,राधा खूब नचाई।

सारी रात रास करने से,मिला तुझे क्या कान्हा?

मुरली की सब धुनें बजा दी,या दो-चार बचाई?

ललित
[09/09, 1:14 PM] ललित:
मुक्तक क्रमाँक -2
16:12

जितना रगड़ो उतना जैसे,स्वर्ण चमकता जाता।

रूप सवर्णों का भी वैसे,और दमकता जाता।

इनको और दबाना अब है,मुश्किल ओ मोदी जी।

इनकी आँखों में गुस्सा नित,और धमकता जाता।

ललित
[09/09, 7:56 PM] ललित:
मुक्तक -3
16:12

छोटी सी ये आद्या रानी,कितनी प्यारी- प्यारी?
है दादू की राज-दुलारी,दुनिया भर से न्यारी।
घर भर में फुदकी फिरती है,इक पल चैन न लेती।
मुस्कानें हैं ऐसी जैसे,हो फूलों की क्यारी।

ललित

मेरी पोती को समर्पित
[10/09, 6:22 PM] ललित:
आल्हा छंद
1
गोरी राधा श्यामल कान्हा,
रंग-रँगीला है व्रजधाम।

व्रज के कण-कण में है राधा,
और बसे हर कण में श्याम।

कान्हा के उर में बसती है,
राधा बरसाने की शान।

राधा का जो नाम जपेगा,
श्याम रखेंगें उसकी आन।

ललित
[10/09, 9:27 PM] ललित:
आल्हा छंद
2
जला दिया हर उस टायर को,
जिससे महँगा था पेट्रोल।

तोड़े शीशे उन कारों के,
जिनका महँगाई में रोल।

बीच सड़क पर पीटा उनको,
जिनकी थी कुछ सस्ती जान।

सस्ताई अब हो जाएगी,सोच  रहा है हिंदुस्तान।

ललित
[11/09, 2:44 PM] ललित:
आल्हा छंद
1
बदल गई सब परिभाषाएँ,
बदले सब आचार-विचार।

निर्विकार वो कहलाते हैं,
जिनके मन में भरे विकार।

फटे वस्त्र से बढ़ती शोभा,
धनवानों की वैसे आज।

साजों का पारंगत जैसे,
बजा रहा हो बिगड़े साज।

ललित
[11/09, 6:15 PM] ललित:
आज के समाचार पर

आल्हा छंद
2

घूँघट खुलते ही कलियों की,
छिन जाती हो जब मुस्कान।

कैसे मानें आजादी की,
साँस ले रहा हिंदुस्तान?

नारों और चुनावों में ही,
खोए हों जो पक्ष-विपक्ष।

नारी की रक्षा करने में,
क्यों कर होंगें वो सब दक्ष?

ललित
[13/09, 7:50 AM] ललित:
कुण्डलिया छंद
गजानन

राजा महा गजानना,आये तेरे द्वार।
हाथ जोड़ विनती करे,कायसृजन परिवार।

काव्यसृजन परिवार,विनायक आस लगाये।
कर दो ये उपकार,कभी भी विघ्न न आये।

'ललित' सहित कविराज, रचें नित रचना ताजा।
प्रथम पूज्य हो आप,गजानना महा राजा।

ललित

2
[14/09, 10:27 AM] ललित:
कुछ दोहे

हिंदी में ही बोलिए,अंग्रेजी को भूल।
हिंदी की सुरताल से,झड़ें लबों से फूल।।

हिंदी में जो शान है,उसको तू पहचान।
इतना निश्चय जान ले,हिंदी तेरी जान।।

हिंदी में जो लिख सके,वो है बड़ा अमीर।
हिंदी को जो पढ़ सके,खुल जाए तकदीर।।

राधे-राधे बोलता,हिंदी में जो आज।
उसके पीछे डोलता,कान्हा करता नाज।।

हिंदी में जो मान है,हिंदी में जो प्यार।
दूजी भाषा में नहीं,देखा सब संसार।।

'ललित'
[14/09, 3:01 PM] ललित:
कुण्डलिनी छंद
हिंदी

हिंदी में ही बोलिए,अपने मन की बात।
अपनों से होगी तभी,अपनेपन की बात।

अपनेपन की बात,बनाए सबको अपना।
वरना तो संसार,सदा लगता है सपना।

ललित
[14/09, 4:35 PM] ललित:
आल्हा छंद

मधुर-मधुर कविताएँ लिख दो,
मधुर-मधुर छंदों के साथ।

झूम रहे हैं साजन-सजनी,
लिए हुए हाथों में हाथ।

हिंदी भाषा में छंदों की,
पाओगे नित नई बहार।

हिंदी में कुछ ऐसा लिख दो,
झूम उठें पढ़कर नर-नार।

ललित
[14/09, 6:43 PM] ललित:
आल्हा छंद

भारत की जो प्यारी भाषा,
करती है हर दिल पर राज।

माँ शारद के मुख से निकली,
भाषाओं की वो सरताज।

रंग-रँगीली छैल-छबीली,
रहती सबके दिल के पास।

शब्द-शब्द महके है जिसका,
हिंदी है वो भाषा खास।

ललित
[15/09, 9:20 PM] ललित:
आल्हा छंद

हिंद देश की जनता अब तो,
गहरी नींदों से तू जाग।

जला रहे हैं कुछ अपने ही,
तेरे सपनों का ये बाग।

लोकतंत्र का गला घोंटकर,
वोटतंत्र में डूबा राज।

नहीं अगर अब रोक लगाई ,
बढ़ती जाएगी ये खाज।

ललित

[[18/11, 3:26 PM] ललित:
मरहटा छंद
1

ओ कान्हा कारे,मत तरसा रे,
दर्शन दे इक बार।

गोवर्धन-धारी,कृष्ण-मुरारी,
मान जरा मनुहार।

ओ रास रचैया,धेनु चरैया,
आ जा नंदकुमार।

वृषभानु-दुलारी,राधा प्यारी,
भूली सब संसार।

ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मरहटा छंद

3

नाचो ओ राधा,क्या है बाधा,
सुनो मुरलिया तान।

मनमोहन ग्वाला,मुरली वाला, वारे तुझ पर जान।

करताल बजाएँ,धूम मचाएँ,
ग्वाले कर गुणगान।

ये मुरली प्यारी,सौतन न्यारी,
मधुरस की है खान।

ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मरहटा छंद
2

जग से है न्यारा,सबसे प्यारा,
कान्हा नंदकुमार।

वृषभानु-दुलारी,राधा प्यारी,
करती जिससे प्यार।

नैना मटकावे,मधुर बजावे,
वंशी कृष्ण-मुरार।

यमुना के तीरे,धीरे-धीरे,
झूमें सब नर-नार।

ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित:

मरहटा छंद

नाचो ओ राधा,क्या है बाधा,
सुनो मुरलिया तान।

मनमोहन ग्वाला,मुरली वाला, वारे तुझ पर जान।

करताल बजाएँ,धूम मचाएँ,
ग्वाल करें गुणगान।

ये मुरली प्यारी,सौतन न्यारी,
मधुरस की है खान।
ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित: मरहटा छंद
विरह

ओ बदरा कारे,सुनता जारे,आज हृदय की पीर।

परदेश गए रे,साजन मेरे,
रखा न जाए धीर।

अब मिले न चैना,कटे न रैना,
विरह रहा दिल चीर।

कहना रसिया से,मन-बसिया से,
नैन बहाएँ नीर।

ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित: आज उज्जैन में महाकाल के दर्शन का लाभ मिला और यह छंद बना.....

🙏🌷👏
मरहटा छंद
जय महाकाल

शिवशंकर भोले,बम-बम बोले,जीवन के आधार।

उज्जयनी नगरेे,ज्योतिर्लिँग रे,
कर दे बेड़ा पार।

गल सर्प भयंकर,तू अभयंकर,
गले मुण्ड की माल।

भोले अविनाशी,हे कैलाशी, महाकाल बन ढ़ाल।

ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मरहटा छंद
जय महाकाल

इक लोटा जल मैं,कनकी फल मैं,
नित्य चढ़ाऊँ नाथ।

फल-फूल चढ़ाऊँ,बेल चढ़ाऊँ,
धरूँ चरण में माथ।

करुणाकर भोले,नैया डोले,
बीच भँवर दे साथ।

शिव पार करा ये,नाव जरा ये,
थाम भक्त का हाथ।

ललित

[18/11, 3:26 PM] ललित:
रस बरसा दो~~~~💝~~~~~~

वृषभानु-दुलारी,   राधा  प्यारी,
                      कर   आई    श्रृंगार।
तुम बाँसुरिया से,धुन बढ़िया से,
                      बरसा  दो  ना  प्यार।
मुरली जब बाजे,  राधा     नाचे,
                      हिलें  पुष्प गल-हार।
नैना मटका कर,रस  बरसा कर,
                      हँस दो कृष्ण-मुरार।

ललित किशोर 'ललित'~~~~💝~~
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मरहटा छंद

फूलों की दुनिया,देखे मुनिया,
लिए अधर मुस्कान।

दुष्टों से बचना,बचकर चलना,
नहीं रहा आसान।

काँटों से लड़ना,आगे बढ़ना,
फूलों से ले जान।

फिर बढ़ते जाना,चढ़ते जाना,
नित्य नए सोपान।

ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मुक्तक कोशिश
गोरी

दीवाना कर देती हम को,पायल की छम-छम।

दिल की धड़कन बढ़ जाती है,साँस चले धम-धम।

घूँघट लम्बा ताने गोरी,आए जब पनघट।

एक झलक पाने को उसकी,निकला जाए दम।

ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मरहटा छंद
विषय से इतर

ये खाँसी वाला,जुकाम ढाला,आया तेज बुखार।
जब नब्ज टटोली,डाक्टर बोली,मौसम की है मार।
अब और न अकड़ो,बिस्तर पकड़ो,गोली लेलो चार।
अब गोली खाकर,पानी पीकर,सोया हूँ मन मार।
ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित:

मरहटा छंद
माँ

मृदु यादें तेरी,ओ माँ मेरी,रहतीं दिल के पास।

तेरी ममता का,पावनता का,अब तक है अहसास।

वो नेह फुहारें, वो मनुहारें,थी माँ कितनी खास।

जो राह दिखाईं ,तूने माई,सब आती हैं रास।

ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मरहटा छंद क्रमांक 1
श्रृंगार रस

बारिश को लाई ,बदरी आई,कर सोलह श्रृंगार।

बूँदें छम-छम-छम,करती सरगम,बरसें सजनी द्वार।

भीगा जब तन-मन,चंचल चितवन,ठण्डी चली बयार।

साजन बौराया,नियरे आया,लिए अधर में प्यार।

ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मरहटा छंद क्रमांक 2
श्रृंगार रस

साजन जब आया,मन मुस्काया,कहे सजनिया झूम।

ओ साजन प्यारे,मुझे दिखा रे,रंगीं दुनिया घूम।

कैसी है ऊटी,और अनूठी ,गोवा की वो धूम।

रीज़ोर्ट जहाँ हो,प्यार वहाँ हो,लूँ मैं तुझको चूम।

ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मरहटा छंद क्रमांक 3
श्रृंगार रस

राधा प्यारी का,सखि न्यारी का,कृष्ण करें श्रृंगार।

वो नंदन-वन से, चुन कर मन से,लाए पुष्प हजार।

हाथों में गजरा,नैना कजरा,वेणी जूही दार।

सपनों सा सुंदर,प्रीत समंदर,पहनाया गलहार।

ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मरहटा छंद

प्रकृति रस में श्रृंगार घुस गया
मैं कुछ न कर सका
🙏

ओ सुंदर सजनी,महके रजनी,बात दिलों की मान।

चमके है चंदा,रजनीगंधा,
खुशबू दे वरदान।

ये उपवन सुंदर,शीतल सरवर,
नौका आलीशान।

मत झपका अँखियाँ,
दिल की बतियाँ,सुन ले मेरी जान।

ललित🙂
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मुक्तक

इस जीवन की धूप-छाँव से,हमने  इतना जाना है।

जीवन में सब  बाधाओं से,पार अकेले  पाना है।

साथ नहीं देती है जग में,अपनी सुंदर काया भी।

हाय बड़ी जालिम ये दुनिया,औ' बेदर्द जमाना है ।                   ****ललित                                                                                                                                               
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मरहटा छंद

तू मात-पिता की,सज्जनता की,बात सदा ही मान।

पथ जगमग होगा,रहे निरोगा,चढे नए सोपान।

निकले जो मन से,आशिष बरसे,नित होगा उत्थान।

ये जीवन खेला,दो दिन मेला,बन जाए वरदान।

ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मरहटा छंद

चल हँसते गाते,साथ निभाते,जीवन के दिन चार।

तू चलता जा रे,सोच न प्यारे,चिंता है बेकार।

ये सफर सुहाना,भूल न जाना,अपनों को तू यार।

दिल खोल हँसाना,सदा लुटाना,जीवन में तू प्यार।

ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित: रचना क्रमांक -1
मनहरण घनाक्षरी

बीत रहे पल-छिन,रात-दिन नोट गिन।
जिंदगी की डोर तेरी,छोटी होती जा रही।।

साँसों का खजाना मिला,पर तू ये भूल चला।
राम-नाम बिना हर,साँस रोती जा रही।।

कर ले जतन कुछ,हरि का भजन कुछ।
गीत गाने में ही तेरी,साँस खोती जा रही।।

नर जो भजन करे,सात-सात कुल तरें।
जनमों के पाप हर,साँस धोती जा रही।।

ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित: रचना क्रमांक -2
मनहरण घनाक्षरी

गुप-चुप कर वार,वक्त करे ऐसी मार।
लखपति आदमी को,खाकपति करता।

वक्त करे ऐसी पैठ,कल तक था जो सेठ।
दूसरों के घर में है,पानी वही भरता।

वक्त से गया जो हार,शिवजी से करे प्यार।
भोले जी के चरणों में,शीश वही धरता।

एक राम जी का नाम,जपता जो आठों याम।
शिव-भोला उसके है,ताप सारे हरता।

ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित: रचना क्रमांक -3
मनहरण घनाक्षरी

अँखियाँ तेरी कटार,गर्दन सुराहीदार।
सेब जैसे लाल गाल,गोरी तू कमाल है।

चले तू जो इठलाती,कमर ये बल खाती।
शहर की सड़कों पे,मचाती धमाल है।

हरदम साथ रहे,छूता तेरे हाथ रहे।
किसमत वाला गोरी,तेरा वो रुमाल है।

काश मैं रुमाल होता,रंग मेरा लाल होता।
पर मेरे पास गोरी,रंग है न माल है।

ललित

अगस्त 2018

[01/08, 5:29 PM] ललित:
मदिरा सवैया छंद

यौवन बीत गया सुख से अब सोच दिमाग लगा कुछ तो।

जो हरि वास करे मन में उस से अब प्रीत पगा कुछ तो।

तात सुता सुत भ्रात सखा इन साथ विराग जगा कुछ तो।

जो हरि एक रमा जग में बस वो बन जाय सगा कुछ तो।

ललित
[01/08, 8:20 PM] ललित:
मदिरा सवैया छंद
2
चाहत है इतनी मनमोहन,
आन बसो मन-आँगन में।

नैन करूँ जब बन्द प्रभो तव,
दर्शन हों इस सावन में।

हाथ पसार करूँ विनती प्रभु,
दाग लिए इस दामन में।

साँस रहे तन में प्रभु तो नित,
जाप चले मन पावन में।

ललित
[02/08, 1:50 PM] ललित:
आल्हा छंद

जीवन बीता समझ न पाया,
अब तक मैं सपनों की बात।

स्वप्न सुनहरे खत्म न होते,
सपनों में ही बीती रात।

रंग-बिरंगे सपने मन जो,
रहा देखता उम्र तमाम।

उन टूटे सपनों की किरचें,
अब बहलाएँ सुबहो-शाम।

ललित
[02/08, 3:14 PM] ललित:
आल्हा छंद

कान्हा के कदमों की आहट,
सुनने को तरसे हैं कान।

कानों में हर-पल गूँजे है,
मधुर बाँसुरी की वो तान।

तान बाँसुरी की ऊधौ जी,
सुन लेता है जो इक बार।

ध्यान-धारणा बिना कन्हैया,
कर देते उसको भव-पार।

ललित
[02/08, 7:29 PM] ललित:
आल्हा छंद

सावन की रिम-झिम बौछारें,
भिगो गई गोरी का गात।

गाल गुलाबी नैन शराबी,
अधरों पर अटकी कुछ बात।

पानी की कुछ चंचल बूँदें,
चूम रही   गोरी के गाल।

प्यार भरी नीली अँखियों में ,
तैर रहे हैं डोरे लाल।

ललित
[03/08, 9:55 PM] ललित:

मदिरा सवैया छंद

यौवन में इतरा कर तू अब वृद्ध हुआ पछताय रहा।

जीवन व्यर्थ गवाँय दिया अब क्यों मुँह को बिचकाय रहा?

नाम न राम जपा मुख से दिल से प्रभु को बिसराय रहा।

राम-हरे अब तो जप ले अब क्यों जग में भरमाय रहा ?

ललित

[06/08, 1:46 PM] ललित:
त्रिभंगी छंद
10-8-8-6

बिजुरी जब चमके,
जियरा धड़के,
खन-खन खनके,कँगना रे।

मतवारे साजन,
प्यारे राजन,
सूना सावन,अँगना रे।

सावन हरियाला,
बदरी वाला,
मथ-मथ डाला,इस मन को।

जल्दी घर आ जा,
रस बरसा जा,
भूल न राजा,विरहन को।

ललित
[06/08, 5:29 PM] ललित:

त्रिभंगी छंद

छोटा सा बाजा,बन्दर राजा,खाकर खाजा,ले आया।

कुर्ता पाजामा,बन्दर मामा,मस्जिद-जामा,
से लाया।

सुन ढोल-धमाँसे,छम-छम नाचे, भरे कुलाँचे,बन्दरिया।

बिजुरी जब चमके,नाचे जम के,लगाय ठुमके,सुंदरिया।

ललित
[06/08, 6:56 PM] ललित:
त्रिभंगी छंद
3

रख प्रभु से आशा,छोड़ हताशा,घोर-निराशा,तज दे रे।

जीवन क्षण-भंगुर,
होकर आतुर,
नित मुरली-धर,भज ले रे।

सुन मेरे भैया,
जीवन नैया,
कृष्ण-कन्हैया,खेवेंगें।

गहरा भव-सागर,
पार सकें कर,
हरि को जो नर,सेवेंगें।

ललित
[07/08, 6:46 AM] ललित:
त्रिभंगी छंद

जय राधे-कृष्णा,जय श्री कृष्णा,कृष्णा-कृष्णा,जय राधा।

जय-जय सुख सागर,जय मुरली धर,नटवर नागर,हर बाधा।

जय बाल-मुकुंदा,जय गोविंदा,यशुदा-नंदा,दुख हारी।

गोवर्धन-धारी,मुकुट-बिहारी,कृष्ण-मुरारी,सुख कारी।

ललित
[08/08, 7:30 AM] ललित:
त्रिभंगी छंद

यमुना के तीरे,ढोल-मँजीरे,
धीरे-धीरे,बजते हैं।

वंशी-वट झूमे,भँवरे घूमें,मोर पंख सिर,सजते हैं।

जब नँद का लाला,मुरली-वाला,कान्हा काला,हँसता है।

राधा का मनवा,चंचल चितवा,मुस्कानों में,
फँसता है।

ललित
[10/08, 6:54 PM] ललित:
त्रिभंगी छंद

लालच के मारे,नेता सारे,लगा मुखौटे,फिरते हैं।

दाढ़ी में जिनके,लाखों तिनके,सीना जोरी,करते हैं।

जनता को लूटें,नेता झूँठे,सौदागर ये,सपनों के।

कानून बनाते,फिर इतराते,नहीं सगे ये,अपनों के।

ललित
[11/08, 5:56 AM] ललित:
त्रिभंगी छंद

जय श्री राधा कृष्ण

राधा की बहियाँ,पकड़ कन्हैया,यमुना तीरे जब मोड़े।

राधा शरमाए,कुछ सकुचाए,
पकड़ कन्हैया,कब छोड़े?

दिल धक-धक धड़के,
राधा भड़के,
मन ही मन में,
खुश हो ले।

नैना मटकाए,हँसता जाए,
राधा का घूँघट खोले।

ललित
[11/08, 4:36 PM] ललित:
त्रिभंगी छंद

ये बाग-बगीचे,महल-गलीचे,
साथ समय पर,कब देते?

ये रिश्ते-नाते,प्यार-दिखाते,
हाथ समय पर,कब देते?

वो एक निराला,मुरली वाला,
पीर सभी की,हरता है।

बस उसको भज लो,नाम सुमिर लो,
हाथ वही सिर,धरता है।

ललित
[12/08, 7:52 PM] ललित:

ताटंक छंद

कहलाता आजाद देश ये,अंदर से टूटा-टूटा।

उलट-फेर कानूनों में कर,नेताओं ने ही लूटा।

इकहत्तर की वय में भी है,लगा रैलियों का रेला।

नेताओं की मुट्ठी में क्यों,कैद बहारों का मेला?

ललित

[14/08, 7:50 AM] ललित:
रोला छंद
पूरा गीत
1
🙏🌸🙏

मुरली वाले श्याम,सुनो गोवर्धन धारी।
क्यों छोड़ा व्रजधाम,अरे ओ मुकुट बिहारी?

गोप-गोपियाँ बाल,सखा सब तुम्हें पुकारें।
राधा जी भी राह,तुम्हारी नित्य निहारें।

वंशीवट की छाँव,खड़ी है राधा प्यारी।
क्यों छोड़ा व्रजधाम,अरे ओ मुकुट बिहारी?

तरसे हैं अब कान,मधुर मुरली को प्यारे।
आ जाओ इक बार,अरे ओ कान्हा कारे।

माखन मिश्री भोग,लिए यशुदा बलिहारी।
क्यों छोड़ा व्रजधाम,अरे ओ मुकुट बिहारी?

सूना यमुना तीर,हुआ नंदन-वन सूना।
तुझ बिन ओ नँदलाल,राधिका का मन सूना।

बाँसुरिया की तान,सुना दो फिर से प्यारी।
क्यों छोड़ा व्रजधाम,अरे ओ मुकुट बिहारी?

ललित
🙏🌸🙏
[14/08, 10:19 AM] ललित:

रोला छंद
1

कहाँ गया सँविधान,मूल अधिकारों वाला।
लगा हुआ क्यों आज,न्याय के मुँह पर ताला?

बरगद पीपल नीम,आम का उठा जनाजा।
काँटे-दार बबूल,बना जंगल का राजा।

ललित
[14/08, 3:51 PM] ललित:
रोला छंद

देख लिया घनश्याम,तुम्हारा प्यार अनोखा।
छोड़ गए व्रजधाम,दे गए सबको धोखा।

ओ निष्ठुर मन मीत,कहो क्या थी मजबूरी।
भुला दिए सब मीत,करी राधा से दूरी।

ललित
[14/08, 4:34 PM] ललित:
रोला छंद

अँखियों से मत मार,करे मत तिरछे नैना।
तिरछे तेरे नैन,चुरा लेते हैं चैना।

चैन गया मुँह फेर,मिली हैं जब से अँखियाँ।
फिरती मैं बेचैन,हँसें हैं सारी सखियाँ।

ललित
[15/08, 8:19 PM] ललित:
रोला छंद

अपना हिन्दुस्तान,जहाँ में सबसे न्यारा।
सर्व धर्म सम्मान,हमारा पावन नारा।
देश-भक्ति की गंध,यहाँ माटी ने धारी।
तूफानों से जंग,रहे हरदम ही जारी।

ललित
[16/08, 6:41 PM] ललित:
दोहा

हंसों का रँग देखकर,काग चकित रह जाय।
चुपड़े पॉडर-क्रीम पर,कालिख छूट न पाय।

ललित
[17/08, 10:37 PM] ललित:
रोला छंद

मिलते रहते मीत,सभी को इस जीवन में।
होती सच्ची प्रीत,किसी विरले के मन में।
आदि समय से रीत,यही चलती आई है।
सच्ची जिसकी प्रीत,जीत उसने पाई है।

ललित
[18/08, 5:34 PM] ललित:
रोला छंद

बोर हुए दो यार,रेल में कविता करते।
देख रेल की चाल,आँख में आँसू भरते।

भारत की ये रेल,विश्व में सबसे प्यारी।
करवाती है सैर,पूर्ण भारत की न्यारी।

🙏🙂🙏ललित
[18/08, 5:56 PM] ललित:
रोला

जीने का अंदाज,सजन का सबसे न्यारा।
हँसी-ठिठोली-बाज,साजना मुझ
को प्यारा।
अँगना हो गुलजार,सजनवा के आने से।
तन में बजें सितार,बाँह में भर जाने से।

ललित
[18/08, 6:36 PM] ललित:
रोला छंद

नीले तेरे नैन,समन्दर से भी गहरे।
प्यारे तेरे कान,मगर क्यों इतने बहरे?
दिल की ये आवाज,नहीं क्यों सुन हैं पाते?
क्यों मेरे जज्बात,नहीं तुझको छू जाते?

ललित
[19/08, 5:40 AM] ललित: आइए सुबह की शुरुआत बिटिया रानी के साथ करते हैं...
🙏🌷🙏🙂

रोला छंद

बाबुल का घर-द्वार,छोड़ कर बिटिया रानी।
चली आज ससुराल,लिए नयनों में पानी।
ये आँगन ये गाँव,भूल कैसे पाएगी?
ममता की वो छाँव,और माँ यादाएगी।

भर आई हैं मात,पिता भाई की अँखियाँ।
क्यों जाती हो छोड़,कहें बचपन की सखियाँ?
कहें बहन अरु भ्रात,सदा खुश रहना बहना।
मोबाइल से बात,हमेशा करती रहना।

ललित
[19/08, 2:38 PM] ललित:
रोला सागर

भर ले जिसमें पीर,राधिका सागर जैसी।
कहाँ मिलेगी श्याम,बता दे गागर ऐसी।
काला था जो नीर,कन्हैया यमुना जी का।
उसका रँग भी हाय ,हुआ अँसुवन से फीका।

ललित
[20/08, 12:23 PM] ललित:
रोला छंद
जय गुरूदेव

👏👏👏👏👏👏👏

गुरूदेव का प्यार,मिला है हमको जैसा।
आज उन्हें सम्मान,मिला है बिल्कुल वैसा।
जय-जय शारद मात,आपकी कृपा निराली।
काव्यसृजन परिवार,बजाए खुश हो ताली।

ललित

👏👏👏👏👏👏👏
[21/08, 11:26 AM] ललित: 21.8.18
दोहा क्रमांक : 1

फूल नहीं हैं छोड़ते,मुस्काना दिन-रात।
चाहे कुदरत दे उन्हें,काँटों की सौगात।

ललित
[21/08, 11:46 AM] ललित:
दोहा क्रमांक : 2

मीठा-मीठा रस मिला,खुशबू की सौगात।
भौंरे ने जब फूल से,कही प्यार की बात।

ललित
[21/08, 3:01 PM] ललित:
दोहा क्रमांक : 3

छोटा सा जीवन मिला,सपनों में मत डूब।
निश-दिन हरि का नाम ले,पुण्य कमाले खूब।

ललित
[21/08, 7:12 PM] ललित:
दोहा क्रमांकः4

दुख के पी लेे घूँट जो,लेकर हरि का नाम।
सुख उसका पीछा करे,भजता जो निष्काम।

ललित
[21/08, 7:56 PM] ललित:
दोहा क्रमांक : 5

क्यों भेजा संसार में,हरि ने हमको हाय?
काम क्रोध मद लोभ से,मन जो छूट न पाय।

ललित
[23/08, 8:50 AM] ललित:
मुक्तक प्रतियोगिता
मेरा प्रयास

घाव जो तुमने दिया है क्या कभी भर पाएगा?

क्या खुशी का वो समन्दर लौटकर फिर आएगा?

कौन सा मरहम भला इस दिल को सकता जोड़ है।

दिल खिलौना तो नहीं जो टूटकर जुड़ जाएगा।

ललित
[24/08, 4:54 PM] ललित:
रोला छंद

झूम रहे हैं मोर,देख सावन का मेला।
अम्बर में है शोर,गरजते वारिद छैला।

बगिया में हर ओर,लगे सावन के झूले।
इठलाती हर नार,आज बन-ठन के झूले।

ललित
[24/08, 6:43 PM] ललित:
रोला छंद

रिम-झिम ये बरसात,देख मनवा हर्षाता।
बूँद छुए जब गात,भीग मन भी है जाता।

नदिया झूमी जाय,महकता है हर धोरा।
जोरा-जोरी आज,करे है बाँका छोरा।

ललित
[25/08, 4:11 PM] ललित:
रोला छंद

लोकतंत्र का लाभ,उठाया तुमने कैसा?
हथियाने को वोट,लुटाया कितना पैसा?

सत्ता का है शौक,पागलों तुम पर तारी।
जा-जा कर परदेश,दे रहे भाषण-भारी।

ललित
[26/08, 9:18 AM] ललित:
रोला छंद

लोकतंत्र का लाभ,उठाया तुमने कैसा?
हथियाने को वोट,लुटाया कितना पैसा?

सत्ता का है शौक,पागलों तुम पर भारी।
जा-जा कर परदेश,कर रहे भाषण जारी।

ललित
[26/08, 10:54 AM] ललित:

राखी दोहे

रक्षा बंधन की पहली प्रस्तुति
समीक्षा हेतु

भेज रही हूँ नेह की,
               इक छोटी सी डोर।
दे दे ना भैया मुझे,
                खुशियों का इक छोर।

भाई मेरा खुश रहे,
                  यही प्रभू से आस।
जीवन में देखे नहीं,
                  कभी गमों की त्रास।

वीरा तुझसे है बँधा,
                   मन का हर इक तार।
तेरे मधुर सनेह से,
                    जीतूँ सब संसार।

'ललित'
[27/08, 1:45 PM] ललित:
मनोरम छंद

उठ रहा दिल में बवंडर।
भावनाओं का समंदर।
सिर्फ जी ली जिंदगी है।
या करी कुछ बंदगी है?

ललित
[27/08, 1:51 PM] ललित:
मनोरम छंद
2
बंदगी मैं कर न पाया।
जिंदगी ने यूँ सताया।
आस पूरी हो सकी कब?
कामनाएँ खो चुकी सब।

ललित
[27/08, 2:33 PM] ललित:
मनोरम छंद

क्या कहा दिल ने न जाने?
जिंदगी ढूँढे बहाने।
प्यार यूँ गम से किया क्यों?
दूसरों का गम पिया क्यों?

ढूँढती खुशियाँ ठिकाना।
जान कब पाया जमाना?
जिंदगी जिंदादिली है।
रस तभी पीता अली है।

ललित
[27/08, 3:52 PM] ललित:
मनोरम छंद
रास

बाँसुरी बजती सुहानी।
गोपियाँ नाचें दिवानी।
पायलें छम-छम बजे हैं।
राधिका के सुर सजे हैं।

रात भर चलता रहा रे।
रास वंशी के सहा रे।
चाँद भी रुकने लगा है।
आसमाँ झुकने लगा है।

शाँत सुरभित हैं हवाएँ।
झूमती हैं सब दिशाएँ।
श्याम-राधा नैन अंदर।
प्रीत का छलके समंदर।

ललित
[27/08, 4:29 PM] ललित:
मनोरम छंद

नन्द-यशुदा की दुआ है।
जन्म लल्ला का हुआ है।
है बिरज में धूम मचती।
गोपियाँ दर्शन न तजती।

ललित
[28/08, 9:35 AM] ललित:
मनोरम छंद

राधिका रो-रो पुकारे।
आ मिलो अब श्याम प्यारे।
भूल क्यों व्रज को गए हो?
किस जहाँ में खो गए हो?

नंद-बाबा राह देखे।
क्या यही थे भाग्य-लेखे?
माँ यशोदा गोपियाँ सब।
हैं नहीं क्या याद भी अब?

इक घड़ी को दर्श दे दो।
मुस्कुरा कर हर्ष दे दो।
बाँसुरी फिर से बजा दो।
रास में हमको नचा दो।

ललित
[28/08, 8:08 PM] ललित:

मनोरम छंद

प्यार की दीवानगी थी।
क्या तुम्हारी बानगी थी?
दिल जवाँ था तब तुम्हारा।
प्यार जीवन था हमारा।

वक्त ने ये दिन दिखाए।
दो कदम तन चल न पाए।
वक्त करता क्या सितम है?
आज तन में क्यों न दम है?

ललित


[29/08, 9:05 AM] ललित:
मनोरम छंद
बुढापा

वक्त ने क्या दिन दिखाए?
दो कदम तन चल न पाए।
वक्त करता क्या सितम है?
आज तन में क्यों न दम है?

जो चला था हर महीना।
जिंदगी भर तान सीना।
आज वो झुक सा गया क्यों?
राह में रुक सा गया क्यों?

ये बुढ़ापा क्या बला है?
वक्त की ये क्या कला है?
आज पथराई नजर है।
और धुँधलाई डगर है।

धमनियाँ जमने लगी हैं।
साँस भी थमने लगी है।
दिल मचलता और ज्यादा।
और जीने का इरादा।

ललित
[29/08, 9:44 PM] ललित:
मनोरम छंद

बाग की नन्हीं कली थी।
शीत-छाया में पली थी।
तात की थी लाडली वो।
थी बड़ी चंचल कली वो।

अब लगी थी वो चहकने।
घर लगा उससे महकने।
तात घर वो रह न पाई।
हो गयी इक दिन पराई।

ललित
[30/08, 11:15 AM] ललित:
सार छंद
चाह

नैन नहीं कुछ चाहें कान्हा,
चाहें दर्शन तेरा।

राधा के सँग निधिवन में वो,
प्यारा नर्तन तेरा।

श्रवण चाहते सुनना अद्भुत,
वंशी-वादन तेरा।

जिव्हा मेरी चखना चाहे,
मिश्री-माखन तेरा।

'ललित'