नवम्बर 17

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हरिगीतिका
किसको कहूँ अपना यहाँ मैं,कौन मेरा मीत है?
सच्चा हितैेषी कौन मेरा,कौन करता प्रीत है?
मुश्किल बड़ी आगे खड़ी अब,पीर ये किससे कहूँ?
भगवान सच्चा मीत है कर-जोड़ मैं जिससे कहूँ।

ललित

27.11.17
हरिगीतिका
चश्मा

देखी अनोखी सूरतें चश्मा लगाए धूप का।
खाली दिमागों से मगर अभिमान जिनको रूप का।
क्या धूप क्या छाया उन्हें,चश्मा सदा प्यारा लगे।
रंगीन चश्मे से हरा संसार ये सारा लगे।

ललित

चलते चलते
हरिगीतिका

जब वक्त का चक्का चलेगा,आहटें होंगीं नहीं।
सारा अहं धुल जायगा पछतायगा भोगी वहीं।
अब सोच ले सत्कर्म करले कर जमा कुछ पु्ण्य तू।
खोल कर अपनी तिजोरी ले कमा कुछ पुण्य तू।

ललित

27.11.17

हरिगीतिका

चारों दिशा उल्लास है इस शांत शीतल भोर में।
बल दे रहे श्री राम हैं तन्हाइयों के दौर में।
कर राम पर विश्वास बंदे पूज सीताराम को।
होगा सफल हर काम में जपता रहे जो नाम को।

ललित
26.11.17

गीतिका छंद
5
आ गए उस मोड़ पर हम,जो न सोचा था कभी।
लौटना मुश्किल नहीं है,सोच लें जो हम अभी।
याद कर वो प्यार मेरा,और वो अपना  मिलन।
चल पड़े थे साथ जब हम,छोड़ दुनिया का चलन।
ललित

गीतिका छंद
4
काश मैं भी पा सकूँ वो,मंजिलें मनभावनी।
जिंदगी को दे सकूँ कुछ,भावनाएँ पावनी।
नैन में हरि को बसा लूँ,नाम मैं अविरल जपूँ।
भूल सारी मोह माया,साधनाओं में तपूँ।

ललित

गीतिका छंद
1
प्यार का अद्भुत तमाशा,जिन्दगी दिखला गई।
प्रीत कोरी कल्पना है,बात ये सिखला गई।
कौन किससे प्यार करता,कौन किसका मीत है?
प्रेम का झूठा दिखावा,इस जगत की रीत है।

रीत हो तो ठीक पर ये ,रीत भी तो है नहीं।
नैन से झलके नहीं जो,प्रीत भी तो है नहीं।
प्रेम का लेकर सहारा,दिल धड़कते हों जहाँ।
उन दिलों की धड़कनों में,प्यार की खुशबू कहाँ?

प्यार की खुशबू जहाँ हो,प्रेम का संगीत हो।
रीत दुनिया की भुलाकर,जब पनपती प्रीत हो।
दो दिलों की धड़कनें जब,नेह में होती रवाँ।
प्यार तब परवान चढ़ता,प्यार तब होता जवाँ।
ललित

गीतिका छंद
प्रार्थना

जिंदगी तेरे हवाले,आज कर दी श्याम ये।
दे रहा तू ही निवाले,हाथ मेरा थाम ये।
मोह-माया-जाल को अब,साँवरे तू काट दे।
अब हमारे बीच की सब,खाइयों को पाट दे।

'ललित'
गीतिका छंद
(व्रज भूमि छोड़ने के बाद श्याम ने बाँसुरी नहीं बजाई)

श्याम तेरी बाँसुरी ने,था बड़ा जादू किया।
गोपियों की पीर हर ली,छीन कर उनका हिया।
राधिका का चैन छीना,जिस मुरलिया ने सदा।
श्याम क्यों अब ले गया तू,उस मुरलिया से विदा।
'ललित'

गीतिका छंद

नाम जपता है तुम्हारा,रात-दिन अविराम जो।
द्वार पर आकर खड़ा वो,है सुदामा नाम जो।
दर्श दे दो श्याम उसको,दर्श का प्यासा खड़ा।
मीत बचपन का सुदामा,आपका प्यारा बड़ा।

'ललित'

24.11.17
गीतिका छंद
झाँकी

युग्म की झाँकी दिखा दो,राधिका प्यारी मुझे।
दर्श कान्हा के करा दो,साधिका न्यारी मुझे।
धुन मुरलिया की सुनाता,है तुम्हें जो मद भरी।
राधिका उस श्याम की सूरत दिखा दो मनहरी।

'ललित'

24.11.17
गीतिका छंद

शोख सी कमसिन हसीना,नाक पर चश्मा चढ़ा।
ले गई अखबार मेरा,हाथ नाजुक सा बढ़ा।
और खाया फिर समोसा,रख उसी अखबार पर।
कसमसा कर रह गया मैं,था फिदा उस नार पर।

'ललित'

23.11.17
गीतिका छंद

राधिका का साँवरा वो,गोपियों के साथ में।
नाचता है भूल दुनिया,हाथ लेकर हाथ में।
आत्म-रस का स्वाद चखते,गोप-गोपी प्यार से।
बाँसुरी सुर-ताल लाई,इक अलग संसार से।

ललित

गीतिका छंद
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देखना मुड़कर तुम्हारा,कनखियों से वो हमें।
प्यार का नटखट इशारा,दे दिया हो ज्यों हमें।

तीर दिल के पार उतरा,चीर दिल को यों गया।
हाय ये नादान दिल अब,भूल धड़कन को गया।

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'ललित'
22.11.17
गीतिका छंद

प्रीत में दीवानगी की,बानगी मिलती जहाँ।
ज्ञान का उपदेश देने,आ गये उद्धव वहाँ।
ज्ञान का भंडार अपने,पास ऊधो तुम रखो।
गोपियों के प्रेम-रस का,स्वाद न्यारा तुम चखो।

'ललित'

गीतिका छंद
अपठनीय

मात शारद आज मुझको,ज्ञान का वरदान दे।
लिख सकूँ रचना जिसे हर,आदमी सम्मान दे।
होगई हो भूल मुझ से,तो क्षमा कर दे मुझे।
माँ निराशा दूर करके,आस से भर दे मुझे।

'ललित'

22.11.17

गीतिका छंद

जान कर अंजान बनना,आपकी फितरत रही।
प्यार की कीमत चुकाना,आपकी हसरत रही।
प्यार था अनमोल मेरा,पाक था मजबूर था।
दाम देकर भूल जाना,कौनसा दस्तूर था।

गीतिका छंद

जिंदगी का साफ पन्ना,भर गया उस रंग से।
जान से ज्यादा मुहब्बत,थी हमें जिस रंग से।
रंग फीका पड़ न जाए,उम्र के इस मोड़ पर।
रंग दूजा चढ़ न जाए,तूलिका को तोड़ कर।
ललित

गीतिका छंद

भोर का संगीत प्यारा,कौन सुनना चाहता?
आज तो हर शख्स अपना,फोन सुनना चाहता।
फोन की बारीकियाँ भी,दिल लगाकर सीखता।
भींच कर अपने लबों को,आज दिल में चीखता।

ललित

गीतिका छंद

जिंदगी में प्यार का इक,ख्वाब देखा था कभी।
ख्वाब क्या था प्यार का सैलाब देखा था कभी।

आज वो ही प्यार रूठा,इक अजब अंदाज में।
तोड़कर दिल को बदल डाला अनोखे साज में।

ललित

गीतिका छंद

साज से दिल के निकलती,दर्द की आवाज है।
दर्द के नगमे सुनाए,वो भला क्या साज है?
दर्द को दिल में  छिपाकर,गीत गाना सीख लो।
साज टूटे को भुला कर,मुस्कुराना सीख लो।

ललित

गीतिका छंद

आप को जो पा लिया तो,कुछ न फिर बाकी रहा।
जाम पीती है जमीं औ',आसमाँ साकी रहा।
देख लो इक बार हमको,आज याराँ प्यार से।
मीत कर दो खुश निराले,प्यार के इजहार से।

'ललित'

21.11.17
गीतिका छंद

थाम कर नाजुक कलाई,आगए थे पास में।
और वादे जो किए थे,आपने परिहास में।
भूल वो वादे हुए क्यों,आज हम से दूर हो?
खेल है ये आपका या,हो गए मजबूर हो?

ललित

20.11.17
गीतिका छंद
2122 2122,2122 212

आँसुओं में डूब कर ये,गोप-गोपी बावरे।
हर घड़ी तुझको पुकारें,नंदलाला साँवरे।
प्यार की मत लो परीक्षा,साँवरे अब दर्श दो।
भूल बैठे हो जिसे उस,राधिका को हर्ष दो।
20.11.17
गीतिका छंद
2122 2122,2122 212

कौन सी पूजा करूँ मैं,और कैसा जप करूँ?
ध्यान कब किसका करूँ मैं,और कैसा तप करूँ?
साँवरी छवि को निहारूँ,राधिका को मैं भजूँ।
श्याम तेरे दर्श को मैं,कामनाएँ सब तजूँ।
'ललित'

20.11.17
ललित

न दिल है न दिल से जुड़े साज हैं।
न हैं पैन-कागज न सुर आज हैं।
न है लेखनी औ' न मन में लगन।
बुझेगी कहाँ यार मन की अगन?

ललित

17.11.17

शक्ति छंद
1

न समझा न जाना सबक प्यार का।
न सीखा कभी काम पतवार का।
नया दौर ये प्यार का चल पड़ा।
हुआ प्यार भी आज चंचल बड़ा।

न मजनूँ न लैला न वो हीर हैं।
न राँझा सरीखे यहाँ धीर हैं।
मगर प्यार की ले ध्वजा हाथ में।
चलें वासना के भ्रमर साथ में।

'ललित'

शक्ति छंद
हसीं रात में पादपों के तले।
मिले राधिका से कन्हैया गले।
सजे बाँसुरी श्याम के हाथ में।
बजें हैं सुरीली धुनें साथ में।

अधर श्याम के बाँसुरी चूमती।
लिपट वृक्ष से हर लता झूमती।
हसीं चाँदनी ने किया वो असर।
भ्रमर देखते पुष्प को भर नजर।

16-11-17

शक्ति छंद

न देखा न जाना जमाना अभी।
न आया हमें धन कमाना कभी।
वही धन न जो साथ जाए वहाँ।
वही धन सदा काम आए यहाँ।

कहें संत धन तो वही है असल।
मिले पुण्य की जो उगा कर फसल।
मगर धन न वो भी कमा हम सके।
न जप-ध्यान में मन रमा हम सके।

ललित

शक्ति छंद

पराई हुई चाँदनी भी वहाँ।
छिपा चाँद जाकर गगन में जहाँ।
हसीं चाँदनी बादलों के तले।
जवाँ मीत से मिल रही है गले।

ललित

शक्ति छंद

न सपनों भरी प्यास हो जिंदगी।
हकीकत भरी काश हो जिंदगी।
कि सपने गए छोड़ मझधार में।
सिसकती रही जिंदगी प्यार में।

ललित

शक्ति छंद

बिना प्यार के जिंदगी चल रही।
बिना ख्वाब के नींद भी खल रही।
नहीं प्यार का सिलसिला कुछ जहाँ।
नहीं ख्वाब हैं और न नींदें वहाँ।

कि ख्वाबों जरा प्यार दे दो मुझे।
हसीं यार दिलदार दे दो मुझे।
बिना शर्त जो प्यार मुझ से करे।
रहें ख्वाब भी यार जिससे परे।

ललित

शक्ति छंद

दिल्ली

न साँसें थमीं औ' न टूटा कहर।
हवा आज रूठी व रूठा शहर।
न दिल्ली  फलाहारियों की रही।
न दिल्ली कलाकारियों की रही।

'ललित'

15.11.17

शक्ति छंद

न कलियाँ सुनें गीत गाए भ्रमर।
वहाँ प्यार की टूटती है कमर।
नजारों सितारों बताओ जरा।
कहाँ प्यार खोया जले क्यूँ धरा?

ललित
शक्ति छंद

कहीं प्यार पाया कहीं नफरतें।
अधूरी रही यूँ कहीं हसरतें।
कहीं जल न पाया दिया आस का।
कहीं बुझ गया दीप अहसास का।
ललित

शक्ति छंद
2

किसी को किसी से नहीं कुछ गिला।
मगर चल पड़ा बैर का सिलसिला।
धधकती धरा पेट की आग से।
उलझने लगी हर लहर झाग से।
ललित

14.11.17
शक्ति छंद

न जाने जला आज किसका जिया?
सुलगने लगा आरती का दिया।
यहाँ दीपकों को जला मारती।
कहीं और जाकर करो आरती।
'ललित'

14.11.17
मुक्तक

अब तो अपना दिल भी हमको,लगता जैसे बेगाना।
दिल क्या दिल का हर कतरा ही,लगता जैसे अनजाना।
जितने स्वप्न सुनहरे देखे,इस दिल की दीवारों पर।
उन सपनों को दीवारों में,दिल ही चाहे दफनाना।

'ललित'

भुजंग प्रयात

कभी दूर जाना कभी पास आना।
कभी बात ही बात में यूँ खिजाना।
अदाएँ यही तो तुम्हारी निराली।
जिन्होंने अजी जाँ हमारी निकाली।

ललित

भुजंग प्रयात

नहीं देख पाया नहीं बोल पाया।
छिपा राज जो था नहीं खोल पाया।
कहाँ कौन कैसा बड़ा है खिलाड़ी।
नहीं जान पाया अजी मैं अनाड़ी।

ललित

भुजंग प्रयात

न काया तुम्हारी कभी साथ देगी।
न ऐसी सुहानी सदा ये रहेगी।
सँवारो सजाओ भले खूब काया।
न दे साथ माया न दे साथ छाया।

ललित

भुजंग प्रयात

कभी छाँव है तो कभी धूप भी है ।
कभी साग भाजी कभी सूप भी है।
कहीं है जुदाई कहीं रोज मेला।
खुदा वो यही तो करे रोज खेला।
ललित

भुजंग प्रयात

उसे याद आए सुहानी जवानी।
पिया की हुई थी कभी जो दिवानी।
उसे आज सैंया न देखे न चाहे।
नए फोन का वो दिवाना हुआ है।

'ललित'

भुजंग प्रयात
अद्भुत रास

अभी वो यहाँ था अभी वो वहाँ है
दिशा कौन सी है नहीं वो जहाँ है।
कभी गोपियों सा धरा रूप आला
कभी साँवरा श्याम दीखे निराला।

ललित

6.11.17
भुजंग प्रयात

कहीं और जाना नहीं रास आता।
मिले 'राज' जी सा कहाँ खास भ्राता।

यहीं सीख पाए कई छंद प्यारे।
यहीं तो लिखे हैं कई काव्य न्यारे।

ललित

रोला
बँधा मदारी हाथ,नाचता बंदर जैसे।
बँधा भाग्य के हाथ,नाचता मानव वैसे।

बिना थके जो खूब,नृत्य कर लेता है नर।
उसको हो मजबूर,विधाता देता है वर

'ललित'
अधूरा ख्वाब
रोला

दिल की सुनी पुकार,चली आई वो ऐसे।
बदरा में से चाँद,निकल आया हो जैसे।

देती हैं दिल चीर,शरबती आँखें उसकी।
देती हैं कुछ धीर,सुरीली बातें जिसकी।

क्या होता अहसास,प्यार का वो सिखलाती।
कभी-कभी मधुमास,नशीला वो दिखलाती।

पर दिल के सब ख्वाब,कहाँ हैं होते पूरे?
नींद खुले तो पास,खड़ी बीबी जी घूरे।

ललित

रोला रास

पूनम की है रात,चाँदनी निपट निराली।
झूम रहे हैं गोप-गोपियाँ देकर ताली।

मधुर-मधुर करताल,बजाएँ गोपी-ग्वाले।
बाँसुरिया की तान,उन्हें बेसुध कर डाले।

पायल की झनकार,राधिका जी के ठुमके।
मिला ताल में ताल,हिलें कानों के झुमके।

नाचे कान्हा साथ,गोप-गोपी हरषाए।
नटवर नंदकिशोर,रास में रस बरसाए।

'ललित'

4.11.17

रोला छंद

कैसे हैं हालात,आज कैसी लाचारी?
अपनी ही संतान,करे गैरों से यारी।

जिस पर सब संसार,वार डाला था हमने।
दे दुनिया का प्यार,जिसे पाला था हमने।

आज वही क्यूँ आँख,हमें है यूँ दिखलाता?
जीवन का हर पाठ,हमें है क्यूँ सिखलाता?

क्या कर डाली खोट,कहाँ गलती की हमने?
समझ न आए बात,जमाना लगा बदलने?

'ललित'
[02/11,
ताजा रोला

दिल को चुभती बात,यहाँ हर कोई कहता।
दिल को चुभती बात,कहाँ हर कोई सहता?

मन के सब उद्गार,यहाँ हर कोई लिखता।
पढ़ने को तैयार,कहाँ हर कोई दिखता?
'ललित'

रोला छंद

चिंगारी से आग,कहाँ अब लग है पाती।
हर चिंगारी आज,है दिखती आत्म-घाती।

[02/11,
कैसे कैसे लोग हैं,कैसी कैसी नार।
देखन को ही यार में,आया था हरिद्वार।
आया था हरिद्वार,चैन पाने को मन का।
कर गंगा-स्नान,पाप धोने को तन का।

[02/11,
जितनी सुंदर दीखती,मानव की ये देह।
सच्ची-मुच्ची काश ये,उतना करती नेह।
ललि

रोला छंद

गोरे-गोरे गाल,और नैना कजरारे।
शैम्पू वाले बाल,खुले कंधों पर कारे।

सूना-सूना भाल,हाथ बिन चूड़ी वाले।
पीछे सजना आय,हाथ में थैला डाले।

रोला छंद

हुई नहीं आवाज,न कोई पत्ता खड़का।
सम्मुख कान्हा देख,राधिका का दिल धड़का।
धड़कन भी तो हाय,नहीं काबू में आई।
सुर्ख हो गए गाल,राधिका यूँ शर्माई।

ललित
1.11.17

रोला
गीत

यौवन का उन्माद,आज उस पर है छाया।
अपना सुंदर रूप,देख कर वो बौराया।

देती है हर साँस,उसे कुछ नई अ7jदाएँ।
आती हैं अब रास,उसे नित-नई खताएँ।
बचपन के सोपान,लाँघ कर है वो आया।
अपना सुंदर रूप,देख कर वो बौराया।

बचपन का वो चाँद,रहा मामा का मामा।
बना ये अप-टू-डेट,करे हरदम हंगामा।
करतूतें ये देख,चाँद भी है शरमाया।
अपना सुंदर रूप,देख कर वो बौराया।
ललित