आधारछंद रचना(ईमेल13.8.16)

27.06.16

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आधार छंद रचनाएँ
1
जिस कारण से तू हुआ,गुस्से से भरपूर।
मुझको वो बतला जरा,कर दूँ उसको दूर।
बिन बदरा बरसे नहीं,कभी धरा पर मेह।
फिर हम क्यों कर हो गए, मिलने से मजबूर।
2
याद मुझे माँ आ रहा,तेरा निश्छल प्यार।
वो ममता की छाँव वो,प्यार भरी मनुहार।।
क्या तू बैठी है कहीं,नील गगन में दूर?
क्या अब भी सुन पायगी,मेरी करुण पुकार?
3
जनता की सब सम्पदा,नेता मंत्री खायँ।
पतवारों के बोझ से,नौका डूबी जाय।
कंचन किश्ती में चढे,नेता मंत्री चार।
पतवारें ही बेच दी,डूबी नैया हाय।
4
बूँद बूँद बरखा गिरे,शीतलता बरसाय।
लगे धरा को झूमके,बदरा चूमें आय।
हर्षाती नवयौवना,आयी पिय के पास।
बाहों में भर ले मुझे,नैनों से समझाय।
5
सावन बरसे आँगना,पायल करती शोर।
नैना चंचल हो रहे,देख पिया की ओर।
बैरी पिय समझे नहीं,बना धीर गंभीर।
कविता रचने में मगन,उसके मन का मोर।
6
बाहों में भर ले मुझे,सजना मेरे आज।
बरखा ने मन को नयी,दे दी है परवाज।
शीतल मंद सुगंध से,महका हर इक अंग।
दिल चंचल बस में नहीं,झंकृत हैं सब साज।
7
सतरंगी नभ से चलें,कामदेव के बाण।
धीर मना चंचल हुए,कामुक है पाषाण।
हिरणी सी नवयौवना,झूला झूले बाग।
साजन के दिल की बढी,धड़कन बे परिमाण।
8
बरसात

बेशरम बैरी बरखा ,गौरी को नहलाय।
ज्यों ज्यों भीगे गात त्यों,छमियाँ सिमटी जाय।
तन से चिपका है वसन,छाँव नहीं है पास।
शीतलहर ऐसी चले,तन मन सिहरा जाय।
9
लातूर

सूख सूख पापड़ हुआ,कल तक जो लातूर।
इंद्रदेव ने दे दिया,जल उसको भरपूर।
जीवन देता है वही,नारायण हर बार।
मानव समझ न पा रहा,कुदरत का दस्तूर।

10
आधार छंद
प्रीत और मीत

कौन  सगा अपना यहाँ,और कौन है मीत?
इस दुविधा को छोड़ दे,गाये जा तू गीत।
सब को खुश कैसे रखे, एक अकेली जान।
मतलब के सब यार हैं,स्वारथ की है प्रीत।

फूल और भँवरे दिखें,इक दूजे के मीत।
भौंरा बस रस चूसता,झूँठी उसकी प्रीत।
प्यार भरे व्यवहार के,पीछे ये ही राज।
जो है अपने काम का,गाओ उस के गीत।

समझ न आता है यहाँ,प्रीत मीत का खेल।
लिपटी है क्यों वृक्ष से,वह कोमल सी बेल?
क्या ये सच्चा प्यार है,या स्वारथ की प्रीत?
मतलब के सब मीत हैं,नहीं प्यार का मेल।

मीरा जैसी प्रीत हो,राधा जैसा प्यार।
गोपी जैसा प्रेम तो,कान्हा जाते हार।
प्रीतम के दुख में दुखी,सुख में सुखिया होय।
पावन बंधन नेह का,क्या जाने संसार।

11
कुछ तो है इस देश में,जो है सबसे खास।
हर मन में उमगे यहाँ,रोज नया उल्लास।

वीरों की ये भारती,जननी है कहलाय।
कोई दुश्मन भूल के,आए कभी न पास।
12
एक अकेला चल पड़ा,सत्याग्रह की राह।
गीता के उपदेश ले,लड़ने की थी चाह।

प्रबल आत्म विश्वास था,उस गाँधी के पास।
'भारत छोड़ो' घोष सुन,भरते गोरे 'आह'।
13
छप्पन का सीना यहाँ,तू ले अपना नाप।
फुँफकारेगा इण्डिया,जाएगा तू काँप।

फूँकों से तू मत बजे,ओ रे मूरख शंख।
भारत की तू शक्ति को,कम करके मत माप।

'ललित'

आधार छंद

खाने यारों हम गये,बूफे में इक बार।
इक मैडम से होगयी,हलवे पर तकरार।

छीना झपटी से नहीं,मैडम आयी बाज।
हमने शादी को कहा,कर बैठी इकरार।

ललित

आधार छंद

जय बोलो नारायणा,जय जय सीताराम।
राधे की जय बोलिये,मिल जाएं घनश्याम।

सुमिरो हरि जगदीश को,निशि दिन बारम्बार।
भव बाधा सब दूर हो,टले न कोई काम।

ललित
आधार

प्यार हमारा बन गया,आज गले का हार।
प्यारी बीबी जी हमें,ले आयीं बाजार।
फिर साड़ीदूकान में,साड़ी देखी खूब।
ले ही ली दो साडियाँ,उमड़ा ऐसा प्यार।

ललित

आधार छंद

मीठे सुर में कोकिला,कहती मन की बात।
कावं कावं करता सदा,वो कौए की जात।
कड़ुए मीठे बोल का,मिश्रण होती नार।
बाहर मिश्री माखना,घर में तीखा भात।

'ललित'

आधार छंद

माँ का आशीष

जब माँ आँखें बन्द कर,चूमे शिशु का भाल।
विधि से पूछे ही बिना,लिख दे भाग्य विशाल।
बच्चों को आशीष दे,माँ का पावन हाथ।
टल जाए हर आपदा,काँपे काल कराल।

'ललित'

आधार छंद
समय

बजे समय की बाँसुरी,बिना रुके दिन रात।
मुरली की धुन को सुनो,सुनो समय की बात।
ऊँचे नीचे राग में,समता रखना आप।
काल चक्र को रोक ले,किसकी है औकात।

बेपेंदे का है घड़ा,कालचक्र ये देख।
एक जगह रुकता नहीं,चाहे खींचो रेख।

बदले करवट कब कहाँ,नहीं किसी को भान।
पल में मिट जाते यहाँ,कर्मों के भी लेख।

रुकना जो जाने नहीं,नाम उसी का काल।
रोक सको तो रोक लो,सिर के झड़ते बाल।

कभी दिलाए राज तो,कभी बनाए रंक।
समझ न पाए नर कभी,ढीठ समय की चाल।

'ललित'
आधार छंद

समय समय की बात है,कहते हैं सब कोय।
समय बड़ा बलवान है,ये भी कहते रोय।
बलिहारी है समय की,कोय बलैयाँ लेत।
उन्नत होने का समय,कोय बिगाड़े सोय।

'ललित'

आधार छंद

समय पाय भर जात हैं,गहरे गहरे घाव।
समय आय तर जात है,शुभ कर्मों की नाव।
क्रूर कर्म में रत रहें,जो नर आठों याम।
इक दिन दिखलाये उन्हें,समय बड़ा ही ताव।
ललित

कुण्डलिया सृजन 26-06-16 सेकुण्डलिया आगे आगे जा रही,एक अनोखी नार। कूल्हे थी मटका रही,पहने थी सलवार। पहने थी सलवार,चाल उसकी मतवाली। करने को दीदार,जरा सी चाल बढ़ाली। 'ललित' रहा मुरझाय,जोर से झटके लागे। वो था मजनूँ हाय,जा रहा आगे आगे। 'ललित'

कुण्डलिया

बोली वो मुस्काय के,प्यारी पत्नी आज।
नये वसन ले लीजिए,कुछ तो अपने काज।

कुछ तो अपने काज,सजनवा मेरे प्यारे।
सूट बूट में आप,लगोगे कितने प्यारे।
रहा ललित पछताय,खाय के मीठी गोली।
साड़ी भी हो जाय,यही मुस्का के बोली।

'ललित'

कुण्डलिया

आगे आगे जा रही,एक अनोखी नार।
कूल्हे थी मटका रही,पहने वो सलवार।
पहने थी सलवार,चाल उसकी मतवाली।
करने को दीदार,जरा सी चाल बढ़ाली।
'ललित' रहा मुरझाय,जोर से झटके लागे।
वो था मजनूँ हाय,जा रहा आगे आगे।

'ललित'

चौप

बेलन निदान
सभी पुरुषों के लिए उपयोगी

बेलन का सह सकता वार
नहीं कहीं वो सकता हार।
कहे बेलनी बारम्बार
बेलन से मैं करती प्यार।

बेलन बेले रोटी चार
मर्दों पर क्यूँ खाता खार।
इक दिन ऐसा होगा यार।
मर्द मिलेगा जब दमदार।

कर के इस बेलन से वार
देगा भार्या को ही मार।
बेलन के कर टुकड़े चार
फेंकेगा वो बीच बजार।

फिर मशीन रोटी की लाय
देगा बीवी को सँभलाय।
झगड़े में कब कोई सार
होगा फिर दोनों में प्यार।

'ललित'

चौपई रचना 2 ई मेल 13.8.16

चौपयी

आकर बोली मेरे पास
नारी सुंदर बड़ी झकास।
ओ मेरे प्यारे मनमीत
सुन ले मेरे प्यारे गीत।

पीछे से आई आवाज
जैसे कोई कर्कश साज।
कब तक सोना है दिलदार
उठ जाओ मेरे सरकार।

'ललित'

चौपयी
श्रृंगार में ज्ञान

कभी दिखे जो सुंदर नार
मन में अपने सोचो यार।
कितना सुंदर वो करतार
जो है इसका रचनाकार।

ललित

चौपयी
काव्य सृजन बहार

काव्यसृजन पर कविता बाज
रंग बिरंगे सब सरताज।
कोई लिखता दिल की पीर
कोई घाव भरे गंभीर।

किसी हृदय मे छलके प्यार
कोई दिल से है बेजार।
दिखती नेताओ में खोट
नेता भागें ले लंगोट।

कोई समधन का बीमार
कुछ को समधी से ही प्यार।
कलम सियाही की दरकार
कागज लेकर सब तैयार।

राज रोज करते मनुहार
छंदों की कर दो भरमार।
काफी पी कर सारे यार
करते लेखन बारम्बार।

'ललित'

चौपयी

बेटी को मत मानो शाप
वो तो लक्ष्मी जी की छाप।
बिटिया से रौशन घर द्वार
सुता करे जग में उजियार।

रानी झाँसी को ही देख
छोड चली चाँदी की मेख।
तानी उसने थी तलवार
मानी नहीं कभी भी हार।

[24/06 12:32] L K. Gupta: चौपयी

रिक्शा में जब बैठो आप
थोडा सा लो मन में नाप।
उसके जीवन का संताप
जो माँगे दे दो चुपचाप।

ललित
[24/06 12:44] L K. Gupta: चौपयी

पसीना बहाये मजदूर
ठेके दार देखता घूर।
एक गरीबी से मजबूर
दूजा हुआ नशे में चूर।

ललित

चौपयी छंद
बाल दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
बच्चों के लिए एक विशेष रचना

शेरों का जंगल में राज
जंगल में मंगल है आज।
बंदर जी लाये बारात
बंदरिया से फेरे सात।

आज दोपहर होगा भात
डाँस चलेगा सारी रात।
बंदरिया का लहँगा लाल
सखी सहेली करें धमाल।

बंदर सारे हैं उस्ताद
चम्मच से खा रहे सलाद।
सखियाँ दिखा रही है नाच
बंदर भी भर रहे कुलाँच।

पंडित जी हैं धोती बाज
झूठ बोलते आवे लाज।
हँसकर बोले मंतर चार
दूल्हे को दुल्हन से प्यार।

'ललित'
काव्य सृजन परिवार

चौपयी छंद
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत

नभ में बादल करते शोर
तभी नाचते वन में मोर।
जब होती है पावन भोर
कुकड़ू कूँ मुर्गे हर ओर।

चिड़ियाँ जब चहकें चहुँ ओर
मन को भाता है वह शोर।
बकरी की मैं मैं आवाज
बछिया यहाँ रंभाती आज।

कुत्ता भौंके भागे चोर
गधा करे ढेंचूँ का शोर।
बिल्ली की म्याऊँ आवाज
चूहे भागे बिन ही काज।

अपने सुंदर मुख को खोल
बोलो मीठे मीठे बोल।
बात सदा मन में लो तोल
तभी बढेगा जग में मोल।

'ललित'

चौपई

जंगल में पहुँचा शमशेर
खाने मीठे मीठे बेर।
काँटों में फिर उलझा पैर
सबसे रखता था वो वैर।

भीम नाम का बालक एक
सबसे सुंदर सबसे नेक।
आया सुनकर उसकी चीख
मदद करी उसको दी सीख।

करो सभी से हँसकर बात
कभी नहीं करना तुम घात।
सेवा के नित करना काम
तभी मिलेंगें तुमको राम।

'ललित'

चौपई छंद

उड़ती पतंग नभ की ओर
लेती है सबका दिल चोर।
ऊपर से देखे संसार
उसे नहीं पंछी से प्यार।

डोरी पतंग की बेकार
उड़ते पंछी देती मार।
इसीलिए मैं देता सीख
सुनो जरा पक्षी की चीख।

जान किसी की लेना पाप
मत लेना पंछी का शाप।
नहीं करो अब ऐसा खेल
करलो हर पक्षी से मेल।

'ललित'

सुंदर और सुहानी भोर
नवयौवन की पकड़े डोर।
हर मुख को देती मुस्कान
चढ़ती हैं खुशियाँ परवान।

[26/06 07:36] L K. Gupta: चौपयी

सुंदर मन के सुंदर साज
सुंदर बरखा का आगाज
शीतल सौम्य सजन का साथ
भीगें ले हाथों में हाथ

ललित
[26/06 07:44] L K. Gupta: चौपयी

चौपई छंद

भौंरों की फूलों में जान
फूलों के खुशबू में प्रान।
खुशबू को है भाता रास
सौरभ सुंदरता के पास।

चंचल मन के मादक साज
मनहर बरखा का आगाज।
शीतल सौम्य सजन का साथ
भीगें ले हाथों में हाथ।

'ललित'

चौप

बेलन निदान
सभी पुरुषों के लिए उपयोगी

बेलन का सह सकता वार
नहीं कहीं वो सकता हार।
कहे बेलनी बारम्बार
बेलन से मैं करती प्यार।

बेलन बेले रोटी चार
मर्दों पर क्यूँ खाता खार।
इक दिन ऐसा होगा यार।
मर्द मिलेगा जब दमदार।

कर के इस बेलन से वार
देगा भार्या को ही मार।
बेलन के कर टुकड़े चार
फेंकेगा वो बीच बजार।

फिर मशीन रोटी की लाय
देगा बीवी को सँभलाय।
झगड़े में कब कोई सार
होगा फिर दोनों में प्यार।

'ललित'

चौप

पहन टोपियां निकले यार
आम आदमी की छवि धार।
निकले सबके सब ही चोर
धरने में ही चलता जोर।

कितने दिन चलता व्यापार
छोड चले कुछ तो मझधार।
मतदाता पर दुगनी मार
बैठ गया चुप मानी हार।

'ललित'

चौपयी

बेलन ही है तारन हार
समझ न आए हमको यार।
हम भी ले आएंगें चार
बेलन नये जरा दम दार।

बेलन से गर बढता प्यार
जीना हो जाता दुश्वार।
दुनिया के सब नर औ' नार
बेलन के भरते भण्डार।

ललित

चौपयी

इसकी टोपी उसपे वार
लिख डाली कविताएं चार।
होगा कैसे बेडा पार
ऐसे कवियों का अब यार।

धरे शारदा माँ का ध्यान
कर देता जो सत्य बखान।
सब देते हैं उसको कान
उसकी कविता में है जान।

ललित

भारत माँ के वीर सपूत।
चाचा नेहरू शांति दूत।।
किया गरीबों का उद्धार।
बच्चों से था उनको प्यार।।

चौपई छंद रचना 1


20.06.16

चौपई छंद

1
मिले मान या हो अपमान
नहीं घटे आतम की शान।
अपनी इज्जत अपने हाथ।
दुश्मन से मत खाना मात।

सीमा पर बैठे जो वीर
दुश्मन को वो देंगे चीर।
देश उन्हीं को देता मान।
रखें तिरंगे की जो शान।

देश हमारा हिंदुस्तान
प्यारा जिसका हर इंसान ।
हमने हरदम देखी जीत
खुशियों के हम गाते गीत।

आये भारत माँ को आँच
कभी न हो सकता ये साँच।
हमने ठान लिया ये आज
भारत ही होगा सर ताज।
'ललित'

चौपई छंद
2
केला जामुन केसर आम
अच्छे लगते सुबहा शाम।
खाकर इनको सब इंसान।
चलें सड़क पर सीना तान।

फल खाते जो बच्चे रोज
ढोते नहीं दवा का बोझ।
फल सब्जी खाओ दिल खोल
देते ये ताकत अनमोल।

'ललित'

चौपई छंद
3
बच्चों के लिए

बोल करेले कुछ तो बोल
क्यों है कड़वा तेरा घोल।
इतना मीठा होता आम
लेते हैं सब बाहें थाम।

अंगूरों की देखो शान
सभी लुटायें इन पर जान।
नारंगी इतनी रंगीन।
खा लें इसको बच्चे तीन।

बोल करेले कुछ तो बोल
राज सभी अपनों के खोल।
अनन्नास की मोटी खाल।
रस कर देता मोटे गाल।

मौसम्मी छलकाती प्यार
रस पीते इसका बीमार।
गन्ना मीठे रस की खान
फल हैं ईश्वर का वरदान।

ललित
है कड़वा तेरा घोल।
इतना मीठा होता आम
लेते हैं सब बाहें थाम।

अंगूरों की देखो शान
सभी लुटायें इन पर जान।
नारंगी इतनी रंगीन।
खा लें इसको बच्चे तीन।

बोल करेले कुछ तो बोल
राज सभी अपनों के खोल।
अनन्नास की मोटी खाल।
रस कर देता मोटे गाल।

मौसम्मी छलकाती प्यार
रस पीते इसका बीमार।
गन्ना मीठे रस की खान
फल हैं ईश्वर का वरदान।

ललित

चौपई छंद
4

राम नाम जीवन का सार
भवसागर से करता पार।
अंत समय बोले जो राम
जावे सीधा भगवत धाम।

हनुमत ध्यावें सीताराम
अमर होगये जपकर नाम।
संशय करो न आठों याम
जपलो करते करते काम।

'ललित'

ममता की मूरत हर नार
देवी का जैसे अवतार।
बच्चों को दे प्यार अपार
माँ के बिन सूना संसार।

ललित

चौपई छंद
5

कड़वा सच तू कभी न बोल
मीठा सच भी खोले पोल।
नेताओं के बजते ढोल।
कभी न बोलें बातें तोल।

देखा नेताओं का राज
झूठों के जो हैं सरताज।
आम आदमी पिसता आज
हम को नेताओं पे नाज।

ललित

चौपई छंद

चंदन से लिपटे ज्यों साँप
रोगों से मन जाता काँप।
योग सिखावे ऐसे खेल
रोगों का तो निकले तेल।

जीवन से जो करते प्यार
वही योग हैं करते यार।
भोगों से उपजे जो रोग
मार भगाये उनको योग।

ललित

चौपयी

कुछ यूँ ही

देखी जो मतवाली चाल
बुरा हुआ भौरों का हाल।
गुंजन करना भूले आज
देखे जो गौरी के साज।

लहँगा महँगा पहना खास
साजन जी आए फिर पास।
हुई प्यार में आँखें चार।
वो भी बैठी दुनिया हार।

ललित

लेखन भी है इक सौगात
देती है जो शारद मात।
'राज' बहायें निर्मल ज्ञान
छंद बनें फिर आलीशान।

छंदो की रचना में आज
काव्यसृजन ने पहना ताज।
मोती चुन चुन लाते रोज
काव्यसृजन में आता ओज।

चौपयी

देशी नार विदेशी चाल
बिगड़ी हो चाहे सुरताल।
मटकी जैसे फूले गाल
आँखों में दे आँखें डाल।

सोने जैसे दिखते बाल
लडकी चाहे हो कंगाल।
मजनूँ देख हुआ बेहाल
बदल गयी उसकी भी चाल।

सैंडिल महँगे दिखते लाल
मजनूँ के बिखरे हैं बाल।
लडकी निकली वो दमदार
पापा उसके थानेदार।

ललित

चौपई

जामुन खाने हों या आम
मणि जी की लो बाहें थाम।
बने फिरे हैं वो गुलफाम
पर लेते हैं कम ही दाम।

भाभी जी रहती हैरान
देख देख इनकी मुस्कान।
कहाँ लडा कर आते नैन
रातों को रहते बेचैन।

ललित

चौपई छंद

सबकी अपनी अपनी नाव
सबके अपने अपने घाव।
हाथों से छूटी पतवार
मरहम कौन लगाए यार।

नाव लगाती है उस पार।
घाव लगाता है संसार।
पार लगानी गर हो नाव
भूलो अपने सारे घाव।

देख लिया सारा संसार
नहीं रखा इसमें कुछ सार।
देखी हमने सबकी प्रीत
मतलब के हैं सारे मीत।

हार मिली हो या हो जीत
झूम खुशी से गाओ गीत।
गूँजे फिर ऐसा संगीत
दुश्मन भी बन जाए मीत।

'ललित'

चौपयी छंद
प्यार

सूझ गया इक ऐसा गीत
सा रे गा मा सा संगीत।
परदेसी कर बैठा प्रीत
मन मिलने से बनते मीत।

सबके सुर हैं सुंदर यार
एक बेसुरा मैं किरदार।
जो मिल जाए सबका प्यार
सबको मैं पहनाऊँ हार।

दीवाना होता है प्यार
क्या समझेगा ये संसार।
समझे नहीं प्यार का सार
जीवन है उसका निस्सार।

सोच सोच जो करते प्यार
अक्सर डूबे वो मझधार।
मत सोचे तू कुछ भी यार
प्यारों की है नैया पार।

प्यार सदा से सदाबहार
पहनाए अपनों को हार।
जिसका प्यारा है व्यवहार
उसने जीता है संसार।

ललित

ललित

चौपई

पीली मुर्गी चूजे लाल
नरम नरम हैं उनके बाल।
उड़ने को अब हैं तैयार
मुर्गी के वो बच्चे चार।

ललित

चौपई

जंगल में जब चारों ओर
बंदर लगे मचाने शोर।
दौड़ा आया राजा शेर
बंदरों की अब नहीं खैर।

ललित

चौपईचौपई

गुलाब जामुन आइसक्रीम
खाने बैठा देखो भीम।
खाये कैसे खट्टे आम
केला खाए वो हर शाम।

ललित

गुलाब जामुन आइसक्रीम
खाने बैठा देखो भीम।
खाये कैसे खट्टे आम
केला खाए वो हर शाम।

ललित

चौपई छंद

भारत में है कितना शोर
इतने रावण इतने चोर।
अंधकार छाया हर ओर
नेताओं का चलता जोर।

नेता करते टालम टोल
बोलें मीठे मीठे बोल।
घोटाले करते गंभीर।
जनता बैठी है धर धीर।

हमने सोचा है इस बार
नेता बन जाएं हम यार।
कर लें कुछ सेवा व्यापार
तर जाएं पीढी दो चार।

खादी का कुर्ता जो एक
पहने वो कहलाता नेक।
खादी पर अब लगते दाग
नेता सब बन बैठे काग।

ललित
काव्यसृजन परिवार

22.06.16
चौपयी

बागों में झूले हर ओर
मोर पपीहे करते शोर।
सावन की पहली बरसात
भीग रहा गौरी का गात।

ललित

चौपई

श्रृंगार रस

कानों में झुमके मुँहजोर
पाँवों में पायल बरजोर।
मुखमण्डल यौवन की आभ
चंचल चितवन मनहर नाभ।

गौरी तेरा रूप कमाल
मधुर सुरों की मधुरिम ताल।
लटके लट मुख पर चितचोर
शीश नहीं हो जैसे ठौर।

नखशिख अनुपम तेरा रूप
सावन की ज्यों पहली धूप।
एक नजर देखे जिस ओर
सुंदर सुमन खिलें उस ओर।

ललित

चौपयी

नयनो में सुरमे की रेख
नथनी शान लबों की मेख।
दंतावलि मोती की माल
ठोड़ी का तिल करे कमाल।

ललित

चौपयी
बिना रस का श्रृंगार

जींस टॉप में करे धमाल
सुंदरता में वो कंगाल।
ऐसी छोरी देखी आज
सोचूँ मै तो आवे लाज।

बाल कटे हैं बेसुरताल
कंधों पर टैटू हैं लाल।
मटक मटक यूँ चलती चाल
मजनूँ हो जाएँ बेहाल।

ललित

चौप ई छंद

बरसातों की करते बात
साजन जी परसों की रात।
आज होगयी है बरसात
रोके नहीं रुकें जज्बात।

सौंधी सौंधी खुशबू साथ
बूँदे गिरती सजनी माथ।
आँचल भीगा भीगे गात
पायल भी छेड़े सुर सात।

साजन ले हाथों में हाथ
सजनी की भर लेते बाथ।
बादल गर्जें नाचें मोर
साँसें खूब मचाती शोर।

झूले की लम्बी है डोर
सजनी ने पकड़ा इक छोर।
झूल रही साजन के साथ
सजनी दे हाथों में हाथ।

बरस रहे मेघा चहुँ ओर
मन मयूर भी करते शोर।
गर लम्बी होती ये रात
करते रहते मीठी बात।

ललित

चौपयी की चौप

है पडोस में ऐसी नार
सारे नर टपकाते लार।
भूले जाना आफिस आज
घर से ही निपटाते काज।

तभी रसोई से आवाज
बेलन चकला जैसे साज।
चाकू जैसे हो तलवार
मैडम जी से आँखें चार।

स्नान ध्यान की आई याद
डर के मारे निकला नाद।
पहने कपडे जूते साथ
पड ही जाते जूते माथ।

ललित

बहना का भाई से प्यार
क्या समझेगा ये संसार।
समझे नहीं प्यार का सार
जीवन है उसका निस्सार।

23.10.16
चौपयी
नेता भरते खूब उड़ान।
कुर्सी पर हैं सब कुर्बान।
देश और दुनिया को भूल।
खुद के सपनों मे मशगूल।

नेताओं की रेलम पेल।
जनता भी नित देखे खेल।
कुल्हड़ ने अब छोड़ा चाक।
लोकतंंत्र बन गया मजाक।

ललित

🙏🌺🙏

धरती कहे गगन से आज।
तारों पर मेरा है राज।
मीठे ऐसे मेरे आम।
चंदा करता मुझे सलाम।

सूरज करता सुबहा शाम।
फसल उगाना मेरा काम।
पेड़ हरे मैं पालूँ खूब।
अच्छी लगती मुझको दूब।

ललित

चौपयी

नहीं सूझता कोई गीत।
गाए जा तू फिर भी मीत।
साजन से मिलने की आस।
मन ही मन में होता रास।

खुश रहना जीवन का सार।
हँस ले और हँसा ले यार।
वक्त कहाँ तक देगा साथ?
वक्त कहाँ आएगा हाथ?

पड़ता है तू क्यों कमजोर?
अरे कभी तो होगी भोर।
जीवन से तम जाएं भाग।
जाती है जब किस्मत जाग।

ललित
नापाक-पाक

पहले पाले काले साँप।
अब क्यों पाक रहा तू काँप?
बोए तूने खूब बबूल।
अब क्यों चाह रहा तू फूल?

खूब दिया दुनिया को जूल।
पड़े भुगतनी अब ये भूल।
खूब मचाई बन्दर बाँट।
अब सुन ले दुनिया की डाँट।

'ललित'

चौपयी
मेरी आज की प्रस्तुति

कैसी जनता कैसे लोग?
नेता को बस प्यारा भोग।
कुर्सी में अटकी है जान।
कुर्सी से नेता की शान।

पढ़े लिखे सब चाटें धूल।
नेता जी पर वारें फूल।
वाह हमारा देश महान।
नेताओं का हो गुणगान।

नहीं किसी नेता में खोट।
हाथ जोड़ सब माँगें वोट।
जब नेता जी जाते जीत।
फिर गाते अपना ही गीत।

मैं हूँ ताकतवर इंसान।
खद्दर कुर्ता है पहचान।
गाड़ी पर है बत्ती लाल।
नाचें चमचे दे दे ताल।

पक्का है जो बेईमान।
उसे कहें सब ही भगवान।
जय जय जय जय जय श्रीराम।
नेता जी हैं झण्डू बाम।

'ललित'

चौपयी छंद

हर चैनल पर है अखिलेश।
अखिलेशों में खोया देश।
मंचों पर है इनकी धाक।
लोकतंत्र रगड़े है नाक।

पढ़े लिखे सब चाटें धूल।
नेता जी पर वारें फूल।
वाह हमारा देश महान।
नेताओं का हो गुणगान।

कैसी जनता कैसे लोग?
नेता को बस प्यारा भोग।
कुर्सी में अटकी है जान।
कुर्सी से नेता की शान।

'ललित'

चौपयी छंद

पावन है बेटी का पाँव।
घर में ज्यों तुलसी की छाँव।
बेटी होती घर की शान।
चलती फिरती लक्ष्मी मान।

बेटी बदले भाग्य लकीर।
मात पिता की समझे पीर।
बेटी ईश्वर का वरदान।
रखती जो दो घर की आन।

बिल्कुल सच्चे हैं ये बोल।
बेटी एक रतन अनमोल।
शिक्षा पाकर बने महान।
होने दो उसका उत्थान।

करने दो उसको तदबीर।
बदलेगी इक दिन तकदीर।
देखोगे तुम ये परिणाम।
जग में होगा रौशन नाम।

'ललित'

चौपयी छंद

खास दिवाली का त्यौहार।
खुशियाँ लाया अपरम्पार।
करता हो जो तुमसे प्यार।
उसके ही घर जाना यार।

दिल को दिल से होती राह।
प्रेम प्रीत की होती चाह।
जिसकी आँखों में हो प्यार।
उसके ही घर जाना यार।

लब पर जिसके हो मुस्कान।
करता हो सबका सम्मान।
बातें करता हो रसदार।
उसके ही घर जाना यार।

ले जाना प्यारा मिष्ठान।
साथ लबों पर तुम मुस्कान।
नहीं करे जो कटु व्यवहार।
उसके ही घर जाना यार।

'ललित'