गीतिका छंद 2

गीतिका छंद 2
1
राकेश जी व माँ शारदा को नमन

काव्य गंगा की लहर हो,सृजन की पतवार हो।
'राज' सा नाविक जहाँ हो,फिर वहाँ क्यूँ हार हो।
अनवरत लेखन जहाँ हो,हर हृदय में प्यार हो।
क्यूँ न शारद माँ वहाँ पर,आपका दरबार हो।
'ललित'
2
राधिका के नाम से क्यूँ,बाँसुरी के सुर सजें?
बाँसुरी की तान पर क्यूँ,गोपियाँ घर को तजें?
क्यूँ लताएं झूमती हैं,साँवरे के नाम से।
क्यूँ भ्रमर गुंजन करे व्रज,वाटिका में शाम से?
ललित
3
नींद रातों की चुराई,चैन दिन का ले गया।
बाँसुरी का वो बजैया,सुर गमों के दे गया।
फूल सब मुरझा गए हैं,हर भ्रमर खामोश है।
आँसुओं से आँख नम है,सब दिलों में रोष है।
'ललित'

क्यूँ बहारों के नजारे,श्याम तू दिखला गया।
आँसुओं को नैन का क्यूँ

"

गीतिका छंद
2
समीक्षा हेतु

श्याम सुन्दर नाचता है,माथ कालिय नाग के।
और छेड़े बाँसुरी पर,सुर अनोखे राग के।
नाग के सिर पर चढा वो,मुस्कुराता शान से।
जीत लेता जो दिलों को,बाँसुरी की तान से।
"गीतिका4" ललित

गीतिका छंद
2
समीक्षा हेतु

श्याम सुन्दर नाचता है,माथ कालिय नाग के।
और छेड़े बाँसुरी पर,सुर अनोखे राग के।
नाग के सिर पर चढा वो,मुस्कुराता शान से।
जीत लेता जो दिलों को,बाँसुरी की तान से।
"00

"

बालकों को ज्ञान देना,आप माता शारदे।
बुद्धि,बल औ' तेज दे माँ,इक यही उपहार दे।
राह में कंटक बिछे जो,चुभ न पाएँ वो इन्हें।
पुष्प ये महकें सदा जो,आप सौरभ दो इन्हें।

"
आगया कान्हा शरण मैं,आपकी जग छोड़ के।
प्रेम की ले लो परीक्षा,मैं खड़ा कर जोड़ के।
आपने गीता सुनाकर,ज्ञान अनुपम दे दिया।
देह नश्वर है जगत में,जान देही ने लिया।"

पीर भक्तों की हरी है,आपने हरदम हरे।
दीनदुखियों के सदा ही,आपने सब गम हरे।
आज याचक बन खड़ा हूँ,द्वार पर मैं आपके।
दूर बादल आप कर दो,पाप के संताप के।

क्या कहूँ कैसे कहूँ मैं,आप से मन की व्यथा।
है सुनी हरि खूब मैंने,आपकी पावन कथा।
पापियों को तार देते,आप भव से जब प्रभो।
क्य़ों न मुझको तार सकते,आप भव से तब प्रभो।

ललित
गीतिका
हड्डियों का एक ढाँचा,आज बनकर रह गया।
जिन्दगी ने यूँ बजाया,साज बनकर रह गया।
स्वप्न सब आँसू बने अब,आँख से हैं बह रहे।
साथ छोड़ा चाम ने भी,लब न कुछ भी कह रहे।

जिन्दगी जी भी न पाया,हाय यौवन खो गया।
भीग तन मन भी न पाया,और सावन खो गया।
ख्वाब खुश्बू के दिखा कर,फूल सब ओझल हुए।
बीज बोए आम के थे,नीम के क्यूँ फल हुए।

ललित

देश की धरती पुकारे,क्या कहे सुन लो जरा?
देश का हो नाम रौशन,राह वो चुन लो जरा।
शौर्य पुरखों का रहा जो,याद वो कर लो जरा।
गर्व हो इतिहास को भी,काम वो कर लो जरा।

ललित

गीतिका
आरजी 5,2,17
रास का रसिया रसीला,श्याम सुंदर साँवरा।
राधिका के संग नाचे,नंदलाला बावरा।
जादुई मुरली बजे है,जादुई सुरताल है।
झूमते सब गोप-गोपी,हाथ में करताल है।
ललित

"

क्या हुआ जो आज अपने,दूर तुझ से हो गए?
भूल जा उनको खुशी से,जो मिले औ' खो गए।
है बसा परमातमा जो,आज तेरी देह में।
ले शरण बस एक उसकी,खो उसी के नेह में।

""

चौपाई

चौपाई छंद
वृद्धावस्था

खुशी नजर के पास न आती।
दुख की सदा घटाएं छाती।

ऐसे दुर्दिन उनके आये।
दूर हुए सुख के सब साये।

बूढे मात पिता रोते हैं।
आँसू में अरमाँ खोते हैं।

जिस बेटे को नाजों पाला।
उसने छीना चाबी ताला।

काश बुढापा रहम दिखाता।
आँखों से यूँ नूर न जाता।

काश सोच पाते वो पहले।
बेटे तो हैं होते दहले।

बेटा यूँ न निगोड़ा होता।
यूँ विश्वास न तोड़ा होता।

वृद्धावस्था के लिए,रखलो कुछ धन जोड़।
बेटे तो करते सदा,धन से ही मन जोड़।

ललित

चौपाई छंद
श्वान सेवा

सुबह सैर को निकले थे वो।
चैन हाथ में पकड़े थे जो।

बँधा चैन से इक कुत्ता था।
मत पूछो प्यारा कित्ता था।

कुत्ता भागे आगे आगे।
साहब उसके पीछे भागे।

साहब कुत्ते से कुछ कहते।
कुत्ते जी चुप सुनते रहते।

साहब को अब रोना आया ।
कुत्ते से क्यूँ भाग्य बँधाया।

करते मात पिता की सेवा।
तो शायद मिल जाता मेवा।

बिस्कुट देता श्वान को,मानव अंधा हाय।
मात पिता को रोज जो,रोटी को तरसाय।

ललित

पनघट पर आई नखराली।
गोरी सी वो झुमके वाली।।

चाल चले मतवाली प्यारी।
अँखियाँ हैं काली कजरारी।

पायलिया छम छम छम बजती।
माथे पर है बिंदी सजती।।

पहने वो लहँगा पचरंगी।
हाथों में चूड़े सतरंगी।।

ललित

जिंदे को रोटी

चौपाई सृजन 2

चौपाई सृजन 2

दर्द दाँत का इतना प्यारा।
तुच्छ लगे है जग ये सारा।

खाने का इक कौर न भाता।
हर पल हरि की याद दिलाता।

मुख सीधा ही कब रह पाता।
सूजे सूजे गाल दिखाता।

आती है अब याद जवानी।
जब हर रग ही थी दीवानी।

जीभ अदा अब खूब दिखाती।
दुखती रग को है सहलाती।

दुखते दाँतों पर फिर जाती।
अपनी नरमाई दिखलाती।

दाँतों के इस दर्द ने,जीना किया हराम।
खाना पीना छोड़ नर,जपे राम का नाम।

रुबाई सृजन 2


रुबाई छंद
16.1.17
1
फूल
फूल महकते जब बगिया में,झूमे खुश होकर माली।
गजरे में कुछ गुँथ जाएंगें,पहने कोई मतवाली।
कुछ माला में बँध महकेंगें,मन्दिर-मस्जिद-गुरुद्वारे।
कुछ मरने वाले की अर्थी,की हर लेंगे बदहाली।
2
मोहन
रात सखी मेरे सपने में,श्यामल वो मोहन आया।
दिनकर से तपती धरती कोे, दे दी हो ज्यों घन छाया।
मुरली की आलौकिक धुन पर,झूम रहा था मतवाला।
वंशी की वो मधुर तान दिल,भूल नहीं अब तक पाया।

ललित
3.
माखन-चोरी

मैया तेरा वो नटखटिया,करता है माखन चोरी।
नैन मटक्का करता है जब,दिखे कहीं सुंदर छोरी।
जादू की बाँसुरिया से वो,तान मधुर मनहर छेड़े।
सुन जिसको छम-छम नाचे वृषभानु सुता चंचल गोरी।

ललित
4.
दिल

प्रेम भरा हो दिल में जितना,उतना ही वो छलकेगा।
नैन झरोखे से वो शीतल,मोती बनकर ढलकेगा।
जिसके सीने में नाजुक सा,प्यार भरा इक दिल होगा।
उसकी उठती गिरती पलकों,में हरदम वो झलकेगा।
ललित
5
नेता

बदल रहे हैं नेता पाला ,बदल रहे हैं अब चोला।
क्या जनता सब समझ रही है,क्या है ये घोटम घोला?
नीति नहीं है नियम नहीं हैं,क्या है ये गड़बड़ झाला।
जनता से सब वोट छीनने,निकल पड़ा है हर टोला।
'ललित,

6.
सपने
सपनों में रँग भरने वाले,थोड़ा सा तू रुक जा रे।
बहुत सुनहरे रँग सपनों में,मत भरना तू सुन प्यारे।
सपनों का जब उड़ता है रँग,वो पल बड़ा दुखद होता।
बदरँग सपनों में रँग भरना,सीख जरा तू मतवारे।
ललित

गीत संग्रह 3

ताटंक
गीत

देखो री वो कुँवर कन्हाई,अब तक लौट न आयो री।
भोर भये जो नंदनवन में,मुरली मधुर बजायो री।

पाँवों में पैंजनियाँ बाजें,मोर मुकुट सिर धारौ है।
वाकी तिरछी चितवन ऊपर, मैंने तो जग वारौ है।
उस नटखट नागर कान्हा ने,सबको नाच नचायो री।
भोर भये जो नंदनवन में,मुरली मधुर बजायो री।

गोप-गोपियों का प्यारा जो,गौओं का रखवाला है।
चोरी करता माखन की वो,माखन-चोर निराला है।
एक वही बदनाम हुआ क्यों,माखन सबने खायो री?
भोर भये जो नंदनवन में,मुरली मधुर बजायो री।

ललित

दोधक छंद
प्रार्थना

राम-लला अरजी इतनी है।
ध्यान न दो गलती कितनी है।

मोह-मयी ममता छलती है।
काम-क्षुधा मन में पलती है।
लोभ दिनों दिन खूब बढ़े है।
क्रोध नसों में खूब चढ़े है।
कंचन देह यहीं गलनी है।
राम-लला अरजी इतनी है।
ध्यान न दो...

रैन-दिना बस राम जपूँ मैं।
चाह नहीं अब काम खपूँ मैं।
दूर करो मन का सब मैला।
देख लिया तन का सब खेला।
प्यास नहीं इसकी बुझनी है।
राम-लला अरजी इतनी है।
ध्यान न दो...

पूजन-पाठ-विधान न जानूँ।
शास्त्र -विचार पुरान न जानूँ।
भक्ति-प्रभो मन में भर देना।
पार मुझे भव से कर देना।
पीर हरो मरजी जितनी है।
राम-लला अरजी इतनी है।
ध्यान न दो....

ललित

दोधक छंद
गीत

बाँसुरिया मधु तान सुना रे।
आन मिलो अब श्याम सखा रे।

यूँ हम से मुख तो मत मोड़ो।
यूँ  व्रज-वासिन को मत छोड़ो।
गोप-सखा  सब राह निहारें।
आन मिलो अब श्याम सखा रे।

नित्य सुभोर भए बज जावे।
वो मुरली सब के मन भावे।
नंद-जसोमति के तुम प्यारे।
आन मिलो अब श्याम सखा रे।

माखन के घट फूट न पाते।
गोपिन-माखन लूट न पाते।
सून पड़े वन बाग बहारें।
आन मिलो अब श्याम सखा रे।

रास नहीं व्रज में अब होते।
नाच बिना घुँघरू अब रोते।
नैन करें कब दर्श तुम्हारे?
आन मिलो अब श्याम सखा रे।

मोहन ये रज भूल गए क्या?
गैयन का व्रज भूल गए क्या?
वो वृषभानु सुता न भुला रे।
आन मिलो अब श्याम सखा रे।

ललित

तोटक सृजन 2

35-6
2600
619 किमी

चले1..17
तोटक छंद
1
महका महका गजरा सजता।
बहका बहका कँगना बजता।
सजनी कहती सुन रे सजना।
मनभावन पायल का बजना।

'ललित'

जितना समझा जितना परखा।
इस जीवन को जितना निरखा।
गम का दरिया उतना गहरा।
हर साँस करे जिस पे पहरा।

ललित

तोटक

जनमा व्रज में जब नंदलला।
सब के दिल में नव प्यार पला।
उस गोप सखा मनमोहन से।
सब प्रेम करें छुटके पन से।

मुखड़े पर है लट यों लटकी।
कलियाँ लतिका पर ज्यों अटकी।
वह चाल चले लहकी लहकी।
यशुदा फिरती चहकी चहकी।

'ललित'

हर मानव की बस नींव यही।
जिसने उसकी सब पीर ही।
जब वो नर नींव बिसार रहे।
चुप नींव रहे बस नीर बहे।

'ललित'

तोटक छंद

राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत

हिलती डुलती हर नाव चले।
सहती अपनों के घाव चले।
यह नाव हिले परवाह नहीं।
कुछ घाव मिल़ें परवाह नहीं।

जब नाम जपे दिनरात यहाँ।
तब पार लगे यह नाव वहाँ।।
हरि की मरजी खुश हो सह ले।
जब नाव हिले सुमिरो पहले।।

'ललित'
💐💐💐💐💐💐

बरसे बदरा हमरे अँगना।
अब आन मिलो कहता कँगना।
तब चैन मिले जब नैन मिलें।
मन मन्दिर के सब फूल खिलें।

'ललित'

छमियाँ छलिया छलती छलसे।
बलमा बलखाय बड़े बल से।
चमके चिहुँके चुटकी भर से।
नित रास रचाय नए नर से।

'ललित'

घट-माखन फोड़ दिया झट से।
फिर माखन चाट गया घट से।
सब गोप पसार रहे कर को।
पर माखन-चोर भगा घर को।

'ललित'

जब प्रीत हुयी मन फूल खिला।
जिस राह चले इक शूल मिला।
जब प्यार किया तब क्या डरना?
जग की परवाह नहीं करना।

कब कौन न प्रीत करे जग में?
सुनते सब प्यार भरे नगमे।
सुन साजन ताल मिला मुझसे।
करना मत आज गिला मुझसे।

ललित

अब तो परिवर्तन हो प्रभु जी।
अब तो मन मर्दन हो प्रभु जी।
अब काम विकार निकाल धरो।
अब राम विचार दिमाग भरो।

🌿तोटक छंद🌿

सब देख लिये हमने अपने।
दिल तोड़ गए बनके सपने।
हम आज कहें जिनको अपना।
सब वो दिखलाय रहे सपना।

ललित

🌺🌿तोटक छंद🌿🌺

😃😃😃😃😃😃

जब 'राज' यहाँ कविता लिखते।
हर रोज नए मुखड़े दिखते।
अब काव्य यहाँ नव रूप धरे।
मन का हर भाव यहाँ निखरे।

'ललित'

✈✈✈✈✈✈
1
अब नूतन भाव भरो मन के।
कविता हर याम लिखो तनके।
अरु 'राज' सुधार करें नित ही।
कविता लिखलो मनवांछित ही।
2
जब मात पिता तदबीर करें।
तब ही सुत के सब काज सरें।।
जब मात पिता सिर हाथ धरें।
सुत की विपदा भगवान हरें।

3
सीता माता कहिन
(दीनदयाल विरिदु..)

प्रभु दीन दयाल कहावत हैं।
अरु दीनन पीर मिटावत हैं।
पर दुःख मुझे यह घोर मिले।
दुख राम हरें सुख छोर मिले।

4
बस नाम मुलायम था जिसका।
सुत बाप बना अब है उसका।
अखिलेश रहा समझा उसको।
पतवार नहीं दिखती जिसको।

कृष्ण दीवाने

एकुकुभ छंद
आर जी 7.2.17
नज़रें

नज़र बचा कर चोरी करता,
          गोपी का माखन कान्हा।
नजर मिलाकर चोरी करता,
          हर गोपी का मन कान्हा।
कान्हा ऐसी किरपा करदो,
          नज़रों में तुम बस जाओ।
पलक बन्द हों फिर भी कान्हा,
          नज़र सदा बस तुम आओ।

ललित

ताटंक
आरजी 5,2,17
छू कर देखे हीरे मैंने,छू कर देखे हैं मोती।
पर तेरे नयनों की जैसी,चमक नहीं उनमें होती।
प्रीत दिखी संसारी जब भी,सजनी का दिल छू देखा।
प्यार अलौकिक पाया कान्हा,जब भी मैंने तू देखा।
'ललित'

गीतिका
आरजी 5,2,17
रास का रसिया रसीला,श्याम सुंदर साँवरा।
राधिका के संग नाचे,नंदलाला बावरा।
जादुई मुरली बजे है,जादुई सुरताल है।
झूमते सब गोप-गोपी,हाथ में करताल है।
ललित

ताटंक़

केडीआरजी5,2,17
श्याम तुम्हारे नयनों का ये,कजरा मुझे सताता है।
कान्हा की आँखों में रहता,कहकर ये इतराता है।
आज तुम्हीं सच कहना कान्हा,देखो झूँठ नहीं बोलो।
गर मैं हूँ कजरे से प्यारी,अपने नयन अभी धोलो।

ताटंक
केडीआरजी 4-2-17
सबसे सुंदर है इस जग में,राधा-कान्हा की जोड़ी।
जिसने हृदय बसा ली ये छवि,प्रीत वही समझा थोड़ी।
चौंसठ कला निपुण हैं कान्हा,शक्ति स्वरूपा हैं राधा।
राधा-कृष्ण की भक्ति कर लो,मिट जाएगी भव बाधा।

ताटंक
केडीआरजी 3-2-17
राधा तू नयनों में बसती,दिल ये तेरा दीवाना।
तेरे सिवा किसी को मैंने,अपना कभी नहीं माना।
चाहे तो ये दिल मैं रख दूँ ,कदमों में तेरे राधा।
जिससे होता पूरा होता,प्यार नहीं होता आधा।

Kdrg 2.2.17
हरिगीतिका

21.8.17
आल्हा छंद रचना

प्रातकाल ले लेते हैं जो,राम-राम अति पावन नाम।
उन के दुखड़े हर लेते हैं, मर्यादा पुरुषोत्तम राम।
दीनबंधु दुखहर्ता उसको, सुख-वैभव देते हैं खूब।
राम नाम सुमिरन में जिसका,मन पूरा जाता है डूब।
ललित

21.8.17
आल्हा छंद रचना

छप्पन इंची सीने का तो,हरदम करते रहे बखान। सीने से बाहर निकलो जी,सीमा पर आया तूफान।
दुश्मन अपना ढीठ है ऐसा, नहीं बदल सकता जो चाल।
छलनी कर दो उसका सीना, जो बनता दुश्मन की ढाल।

'ललित'
जो दे नई खुशियाँ सभी को,
नाम उसका भोर है।
जब पूर्व में लाली मचलती,
नाचता मन मोर है।
चिड़ियाँ लगें जब चहचहाने,
घण्ट मंदिर में बजें।
प्रभु राम के सुमिरन भजन के,
भाव तब मन में सजें।
"

केडीआरजी1-2-17
भक्तों का विश्वास,न तोड़ो मुरली वाले।
आ जाओ इक बार,पुकारें गोपी-ग्वाले।।

मुरली की वो तान,सुना दो फिर से प्यारे।
तरस रहे हम श्याम,तुम्हारी राह निहारें।।

'ललित'

31.1.17
प्रार्थना यही है नाथ,
लगो मुझे प्यारे आप।
एक यही मेरी माँग,
हाथ मेरा थामना।

हाथ मेरा थामना यूँ,
चाह करूँ स्वर्ग की तो।
नर्क मुझे भेज देना,
ये है मनोकामना।

ये है मनोकामना जी,
नहीं मिले मुझे चैन।
होय नहीं जब तक,
आप से ही सामना।

आप से ही सामना जी,
आप सिवा कौन मेरा।
कहूँ कासे,कौन सुने,
विनती महामना।

ललित

केडीआरजी 30.1.17
शक्ति छंद
4

दसों ही दिशाएं लगी झूमने।
धरा भी गगन को लगी चूमने।
सजे मोगरा वेणियों में जहाँ।
कन्हैया बजाए मुरलिया वहाँ।

ललित

केडीआरजी29.1.17
सोरठा

ज्यों काँटों के बीच,फूल गुलाबी खिल उठे।
दलदल में अति नीच,कमल पुष्प दल ज्यों खिले।
ज्यों ठोकर की धूल,लगे गगन को चूमने ।
त्यों पूजा के फूल, प्रकट करें घनश्याम को।

'ललित'

केडीआरजी28.1.17
तोटक छंद

पट खोल जरा अपने मन का।
हर रोम जगा अपने तन का।।
हरि नाम जपे हर रोम जहाँ।
खुद आन बसें घन श्याम वहाँ।।

उस गोप सखा मनमोहन की।
छवि श्यामल की मनभावन
की।।
भरले मन में अरु नैनन में।
वह पार करे इक ही छन में।।

ललित

केडी आरजी28.1.17
सोरठा

बाँकी सी वो चाल,राधा को प्यारी लगे।
घुँघराले हैं बाल,मोर मुकुट सुंदर सजे।

चंचल वो चितचोर,राधा का चित ले गया।
ग्वाल-बाल हर ओर,कान्हा को ढूँढत फिरें।

ललित
सोरठा
केडी आरजी27.1.17

कान्हा जाता हार,राधा की मनुहार से।
छेड़े मन के तार,मुरली की हर तान से।

सखियाँ जाती झूम,मोहन की छवि देखके।
गोकुल में है धूम,लीलाधर के नाम की।

'ललित'

केडीआरजी26*1*17
शक्ति छंद

कहे राधिका श्याम ये तो बता।
बजा के मुरलिया रहा क्यूँ सता?
हसीं गोपियों को रहा यूँ नचा।
सिवा रास के क्या नहीं कुछ बचा?

निगाहें मिलें तो बताए धता।
कन्हैया नहीं कुछ बताए खता।
कहे राधिका श्याम ये ही अदा।
लगे खूब प्यारी हमें है सदा।

अरी बाँसुरी राज तू ही बता।
कन्हैया रहा है मुझे क्यूँ सता
अधर से लगाए रहे वो तुझे।
नहीं प्यार से वो निहारे मुझे।

ललित

7.1.17

जरा खोलो नयन बनवारी,आ गयी राधिका प्यारी।
ये गोप गोपियाँ सब बोलें,
अधर लगाकर बाँसुरिया छेड़ो धुन मतवारी।

हम संग राधिका के नाचें,खुल जायँ भाग्य के ताले।

कृष्ण दीवाने  10.1.17
दुर्मिल सवैया

ललना जनमा ब्रज में सुख से,सुर पुष्प सबै बरसाय रहे

दर नंद यशोमति के सबरे,ऋषि गोपिन रूप धराय रहे।

शिव रूप धरे तब साधुन को,शिशु-दर्शन को ललचाय रहे।

डर मातु मनोहर मोहन को,निज आँचल माँहि छुपाय रहे।

'ललित'

कुण्डलिनी 11.1.17

कान्हा तेरे प्रेम में,बड़ी अनोखी बात।
नाचें प्यारी गोपियाँ,सारी सारी रात।
सारी सारी रात,भूल सुध बुध वो डोलें।
भूलें अपने गात,साँवरी खुद भी हो लें।
                   'ललित'

कृष्ण दीवाने 12.1.17
मुक्तक  16   ..14

बिन पतवार चले ये नैया,
             कुछ हिचकोले खाती रे।
नज़र न आये माँझी कोई,
             नदिया भी गहराती रे।
मन कहता है मेरा कान्हा,
              तुम वो अंतर्यामी हो।
पार करे जो नैया सबकी,
              बिना अरज बिन पाती रे।
       
          💝💝'ललित'💝💝

कृष्ण दीवाने13.1.17
राधिका छंद

है कैसा तेरा प्यार,साँवरे प्यारे?
राधा तरसे दिन रैन,बाँसुरी वारे।
छीने तू सबका चैन,नींद हरता है।
क्यूँ तिरछे करके नैन,हास करता है।

'ललित'

कुकुभ छंद
कृष्ण दीवाने 13.1.17
कानहा की मानस पूजा

कान्हा मेरे मन मन्दिर में,
            आकर तुम यूँ बस जाओ।
जब भी बन्द करूँ पलकों को,
             रूप मनोहर दरशाओ।
गंगाजल-पंचामृत से प्रभु,
              रोज तुम्हें मैं नहलाऊँ।
वस्त्र और गहने अर्पण कर,
              केसर-चन्दन घिस लाऊँ।

धूप-दीप नेवैद्य चढ़ाकर,
             पुष्प-हार सुन्दर वारूँ।
त्र-गुलाल लगाकर कान्हा,
             चरणों की रज सिर धारूँ।
मन ही मन फिर करूँ आरती,
             चरण-कमल में झुक जाऊँ।
जग की झूठी प्रीत भुलाकर,
              प्यार तुम्हीं से कर पाऊँ।

'ललित'
 आल्हा छंद14.1.17  

कृष्ण कहें अर्जुन से रण में,खास बात ये तू ले जान।
सुख दुख लाभ हानियों को तू ,मान सदा ही एक समान।
स्वर्ग मिलेगा मरने पर तो,राज्य मिलेगा पाकर जीत।
मन में कर ले निश्चय रण का,युद्ध पुकारे तुझ को मीत।

ललित

कृष्ण दीवाने 14.1.17
जलहरण

नाच रही राधा-रानी
साथ घनश्याम के तो।
सखियाँ भी झूम रही
बाँसुरिया की तान पे।

झूम रही लतिकाएं
पादपो की बाहों में तो।
मोरपंख नाज करे
साँवरिया की शान पे।

चाँद भूला चाँदनी को
रास में यूँ रम गया।
राधिका का रास भारी
चँदनिया के मान पे।

सुरमई उजालों में
रेशम से अंधेरों में।
राधा श्याम नाच रहे
मुरलिया है कान पे।

'ललित'

दुर्मिल सवैया
कृष्ण दीवाने14.1.17

भज नदं  यशोमति के सुत को,मुरलीधर पूरण काम मिले।

मनमोहन कृष्ण दयामय को,जिस की किरपा अविराम मिले।

जिस की करुणा पल में हरले,सब मोह निशा सुख धाम मिले।

तर कंस गया जब पाप मयी,तब क्यों न तुझे घनश्याम मिले।

'ललित'

कुण्डलिनी
कृष्ण दीवाने15.1.17
राधा गोविंद 15.1.17

कुसुम करें अठखेलियाँ,कलियाँ झूमी जायँ।
जब मुरली की तान पर,गीत गोपियाँ गायँ।

गीत गोपियाँ गायँ,भूल सुध-बुध वो झूमें।
हर गोपी के साथ,रास का रसिया घूमे।
ललित

16.1.17
जय श्री कृष्णा

नींद लगे तो तुझको देखूँ,आँख खुले तो तुझको।
ऐसा जादू वाला चश्मा,दे दे कान्हा मुझको।
ऐसी ही तो थी वो ऐनक,राधा पहने जिसको।
क्यों तू चश्मा देकर कान्हा,भूल गया था उसको।
'ललित'
मदिरा सवैया
कृष्ण दीवाने18.1.17
राधा गोविंद 18.1.17
गोप रहे करताल बजा मुरलीधर माधव
नाच रहा।
ग्वाल सखा हर एक वहाँ मन ही मन श्याम उवाच रहा।
तत्त्वगुणी नटनागर वो निज ज्ञान कथा सब बाँच रहा।
गोपिन रास सुहाय रहा मनमोहन बोलत साँच रहा।

रुबाई
कृष्ण दीवाने18.1.17
राधा गोविंद 18.1.17
मोहन

रात सखी मेरे सपने में,श्यामल वो मोहन आया।
दिनकर से तपती धरती कोे, दे दी हो ज्यों घन छाया।
मुरली की आलौकिक धुन पर,झूम रहा था मतवाला।
वंशी की वो मधुर तान दिल,भूल नहीं अब तक पाया।

ललित

कृष्ण दीवाने18.1.17
राधा गोविंद 18.1.17

विष्णु पद

काश राधिका मोहन से यूँ,प्यार नहीं करती।
अपने चंचल नैनों में वो,प्यास नहीं भरती।
अगन विरह की उसके दिल में,आज नहीं जलती।
उस छलिया की यादों में हर,शाम नहीं ढलती।
'ललित'
KD&RG19.1.17
जलहरण घनाक्षरी

कान्हा से नजर मिली,राधा सुध भूल चली।सरकी जाए चुनरी,पायलिया बेजान है।।

सखियाँ इशारे करें, मुख फेर फेर हँसे।
राधा छवि देख रही,साँवरिया नादान है।।

बाँसुरी बजाए कान्हा,गइयाँ है चरा रहा।
राधाजी को प्यारी लगे,बाँसुरिया की तान है।।

राधा जी की सखी संग,मोहन करे बतियाँ।
राधे रानी रूठे कैसे,मनवा बेईमान है।।

दोहा छंद
KD & RG 20.1.17

प्रेम सुधा बरसाय जो,नयनों से अविराम।
मुरलीधर, मनमोहना,कान्हा उसका नाम।
'ललित'

KD & RG 21.1.17
रुबाई

छोड़ चले तारे अम्बर को,कान्हा की बंसी बोले।
गोप-गोपियाँ लें अँगड़ाई,मोहन की छवि मन डोले।
यमुना तीरे से बाँसुरिया,देती है ये संदेशा।
उसकी बंसी बजे मधुर जो,बातों में मधु-रस घोले।

रुबाई
थोड़ा सा जीवन दर्शन
केडी/आरजी 21.1.17
प्रेम भरा हो दिल में जितना,उतना ही वो छलकेगा।
नैन झरोखे से वो शीतल,मोती बनकर ढलकेगा।
जिसके सीने में नाजुक सा,प्यार भरा इक दिल होगा।
उसकी उठती गिरती पलकों,में हरदम वो झलकेगा।
ललित

कुण्डलिनी
कृष्ण दीवाने 22.1.17
राधा गोविंद 22.1.17
कंकर से घट फोड़ता,नटखट माखन चोर।
गोपी पीछे दौड़ती,पकड़ न पाए छोर।

पकड़ न पाए छोर,कन्हैया घर को भागे।
सोये चादर ओढ़,उनींदा सा वो जागे।

'ललित'
1
कुण्डलिनी
कृष्ण दीवाने 23.1.17
राधा गोविंद 23.1.17
फूल सुगंधित खिल रहे,बगियन में हर ओर।
राधा जी से आ मिले,साँवरिया चितचोर।
साँवरिया चितचोर,आँख से करें इशारे।
जग के सारे फूल,राधिका तुझ पर वारे।

ललित

जलहरण
KD and RD 23.1.17

जले दिन रात जिया,
कहाँ है तू श्याम पिया।
याद तुझे करती ये,
राधा व्रज में डोलती।

पूछती है गलियों से
बाग वन लियों से।
बाँसुरी वाले का पता
राज दिल के खोलती।

अँखियों में वास करे
दिल पे जो राज करे।
निंदिया चुराके गया
छलिया श्याम बोलती।

करी साँवरे से प्रीत
भूल दुनिया की रीत।
गलती तो नहीं करी
आज मन टटोलती।

'ललित'
KD /RG 24.1.17
सार छंद
कान्हा वंशी मुझे बना तू,अधरामृत बरसा दे।
कहे राधिका मतमोहन ,मुझको यूँ तरसा दे।
याद करूँ आलिंगन तेरा,सुधबुध मैं बिसराऊँ।
लगकर तेरे सीने से मैं,तुझ में ही खो जाऊँ।

ललित

भुजंग प्रयात
केडी/आरजी 24.1.17
कहें गोपियाँ माँ दुलारा तुम्हारा।
चुरा भागता है जिया ये हमारा।
कभी ये नचाता कभी ये लजाता।
कभी बाँसुरी को सुरों से सजाता।

कभी फोड़ जाता हमारे घटों को।
कभी नाच के वो लजा दे नटों को।
करे क्या यशोदा न माने कन्हैया।
कभी डाँट दे औ' कभी ले बलैया।
ललित

केडीआरजी25.1.17
जलहरण घनाक्षरी
मीरा

मीरा जपे कान्हा नाम,कान्हा ही सुखों का धाम।
अपनी साँसों के तार,कान्हा संग जोड़ दिए।

महलों को छोड़ चली,श्याम की दीवानी मीरा।
श्याम रंग ओढ चली,सब रंग छोड़ दिए।

अपना ही आपा भूली,श्याम चरणों में खोई ।
भगती की राह चली,सारे बंध तोड़ दिए।

राणा जी ने विष दिया,सेवन सहज किया।
विष बना सोम रस,पुण्य ज्यूँ निचोड़ दिए।

'ललित'