नवम्बर 2018 रचनाएँ

नवम्बर 2018 (ई मेल)

सिंहावलोकन घनाक्षरी

एक अलबेली नार
अँखियों में लिए प्यार
झरोके से झाँककर
कुण्डी खड़का गई ।

कुण्डी खड़का गई वो
काले घुँघराले बाल
झटक-झटक कर
जिया धड़का गई ।

जिया धड़का गई जो
बोले मीठे-मीठे बोल
अधरों को कर गोल
नैन फड़का गई।

नैन फड़का गई जी
गजगामिनी सी चाल
छम-छम चलकर
डाल तड़का गई।

ललित

सिंहावलोकन घनाक्षरी

साँवरा वो नंद-लाल
सँग लिए ग्वाल-बाल
मधुर-मधुर वंशी
वन में बजा रहा।

वन में बजा रहा वो
राधा जी का चित-चोर।
मनोहर छवि देख
मदन लजा रहा।

मदन लजाए देख
घुँघराले काले बाल।
मोर-मुकुट शीश
साँवरा सजा रहा।

साँवरा सजा रहा वो
मटक-मटक कर।
नैनों से इशारे कर
राधा को खिजा रहा।

ललित

सिंहावलोकन घनाक्षरी

तीरथ किए तमाम
कर लिए चारों धाम।
मगर न साफ हुआ
मन में जो मैल था।

मन में जो मैल भरा
काम-राग-द्वेष भरा।
चलता उसीसे सदा
वासना का खेल था।

वासना का खेल छोड़
ममता की डोरी तोड़।
माया रूपी बन्धनों से
बना हुआ जेल था।

बना हुआ जेल था जो
सपनों का खेल था वो।
सपनों की दुनिया में
बना तू पटेल था।

ललित

शंकर छंद

प्यारी तेरी माया नगरी,साँवरे घनश्याम।
भोर सुनहरी सुंदर प्यारी,झिलमिलाती शाम।
दोपहरी में सूरज तपता,आग उगले धूप।
जितनी जलती धरती उतना,अन्न पके अनूप।

ललित

शंकर छंद

कितने ख्वाब पलें इस दिल में,अंत जाएँ टूट?
सपनों की माया नगरी में,भाग्य जाएँ फूट।

स्वप्नों की दुनिया से नाता,तोड़ मेरे मीत।
दौड़ हकीकत की धरती पर,निश्चित देख जीत।

ललित

शंकर छंद

जीवन की ये भूल-भुलैया,राह बदले खूब।
कुछ तर जाएँ भव से कुछ की,नाव जाती डूब।
पथरीले कंटकयुत पथ को,मान ले सौगात।
उस मानव को राह दिखाए,घोर काली रात।

ललित

शंकर छंद

कजरारे नयनों से छोड़े,राधिका जो तीर।
कान्हा जी का कोमल-कोमल,हृदय देते चीर।
बाँसुरिया बजना भूले जब,राधिका हो पास।
पायल की छम-छम से होता,अलौकिक आभास।

ललित

शंकर छंद

भीड़ बीच भी खुद को पाता,मैं अकेला आज।
आर्केस्ट्रा के सब दीवाने,मैं पुराना साज।
नए जमाने के बदलावों,को मेरा सलाम।
पिज्जा-बर्गर खाते दिखते,फैशन के गुलाम।

ललित

दोहे

कान्हा सुंदर साँवरे,विनती कर स्वीकार।
बीच भँवर नैया फँसी,तू ही खेवनहार।

नौका की चिन्ता नहीं,मुझको ऐ घनश्याम।
हाथ यहाँ थामे रहे,तू जो आठों याम।

ललित

शंकर छंद
गर्भ से बेटी की पुकार

माँ तू मुझको पैदा करके,मत होना उदास।
लड़की हूँ पर हिम्मत है माँ,खूब मेरे पास।

महका दूँगी तेरी बगिया,रौशन करूँ नाम।
थामूँगी तुझको मैं इक दिन,मुझको अभी थाम।

ललित

शंकर छंद

मैया मत कर शादी मेरी,मान इतनी बात।
छोटी सी गुड़िया मैं तेरी,कच्चा अभी गात।

शिक्षा मेरी अभी अधूरी,पढूँ ये है चाह।
पढ-लिख कर ही दिख सकती है,मात सच्ची राह।

ललित

शंकर छंद

उद्धव जी हम प्रेम दिवानी,छोड़ जग के काम।
हृदय हमारे में है बसता , साँवरा घनश्याम।
ध्यान-धारणा और तपस्या,योगियों सा ज्ञान।
नहीं जानतीं मगर हमारी,श्याम में है जान।

ललित

शंकर छंद

जीवन की आपा-धापी में,दौड़ आठों याम।
भूल गया था लेना मैं ओ,श्याम तेरा नाम।

माफ मुझे कर देना रखना,शीश पर तू हाथ।
नाम जपूँगा कान्हा मैं हर,साँस के ही साथ।

ललित

26.11.18

श्रृंगार छंद
1

जय-जय-जय-जय-जय सियाराम।
लिया जिसने भी पावन नाम।
बने हैं उसके बिगड़े काम।
अंत गया वो वैकुण्ठ-धाम।

ललित

श्रृंगार छंद

नमो नमस्ते श्री गणराय।
नमः नमः ऊँ नम: शिवाय।
अम्बिका माता करो सहाय।
सदाशिव भोला शंभु कहाय।

ललित

श्रृंगार छंद

सुना है हमने ओ घनश्याम।
तुम्हें प्यारा है ये व्रजधाम।
यहीं पनपी राधा सँग प्रीत।
यहीं गाए गोपी सँग गीत।

चुराया माखन मचा धमाल।
मधुर वंशी ने किया कमाल।
रचाया रास चाँदनी रात।
आत्म-रस में डूबे सब गात।

ललित

श्रृंगार छंद

बाग से चुन-कर सुंदर फूल।
कन्हैया आए यमुना कूल।
बना कर मधुर मनोहर हार।
किया राधा जी का श्रृंगार।

प्यार का गजरा पहन अनूप।
खिला राधा जी का रँग-रूप।
अलौकिक सौरभ से भरपूर।
राधिका की वेणी का नूर।

ललित

श्रृंगार छंद

सजा है कान्हा का दरबार।
ग्वाल सब बोलें जय-जय कार।
बाँसुरी वाला वो नँदलाल।
बजाए वंशी बड़ी कमाल।

चुराए माखन माखन-चोर।
साँवरा प्यारा नंदकिशोर।
खिलाकर मिश्री-माखन-भोग।
हरे भव-बन्धन रूपी रोग।

ललित

श्रृंगार छंद

साँवली सी इक सुंदर नार।
गले में पहन नौलखा हार।
चली इठलाती बीच बजार।
हाथ में पहने कंगन चार।

बजें छम-छम-छम पायल पाँव।
चले गजगामिनि झूमे गाँव।
लिए दिल में साजन का प्यार।
नैन में सपनों का संसार।

ललित

श्रृंगार छंद गीत

किसी को जितना तुमसे प्यार।
करो हँसकर उतना स्वीकार।
मिलो खुश होकर उतने यार।
किसी को जितना.........

नहीं होती है जबरन प्रीत।
मिलें मुश्किल से मन के मीत।
प्रीत की समझोगे जब रीत।
तभी पाओगे जग को जीत।
मिलेंगें ऐसे भी कुछ मित्र,
छोड़ देंगें तुमको मझधार।
किसी को जितना.........

कभी जब होने लगो हताश।
मित्र सब करदें तुम्हें निराश।
रखो तब मन में ये विश्वास।
कभी तो पूरी होगी आस।
नैन में जिसके देखो प्रेम,
उसीका मानो तुम उपकार।
किसी को जितना.........

जगत के सब बंधन बेकार।
लिए सब काँटों के गलहार।
ईश ही है इक सच्चा यार।
करो मन ही मन उससे प्यार।
बाँध लो उससे मन की डोर,
करे जो सबका बेड़ा पार।
किसी को जितना.........

ललित

श्रृंगार छंद
'स' शब्द से....

समस्या आज बड़ी गम्भीर।
सभी नेता खो बैठे धीर।
सुनें कब जनता की वो पीर।
सहेजें खुद अपनी ही खीर।

स्वप्न सब दिखलाते रंगीन।
सुरीली खूब बजाते बीन।
सुनेगी कब तक जनता दीन।
सुरीले बोलें नेता तीन।

ललित

श्रृंगार छंद
'स' शब्द से....

शारदे मात अरज है आज।
सदा रखना तुम मेरी लाज।
सहज सुंदर शीतल हों छंद।
सुहानी सुरभित शामें चंद।

शब्द संयोजन हो कुछ खास।
समेटे ईश्वर का अहसास।
सुरीली लय में हो जब गान।
सुरों में आए अद्भुत शान।

ललित

श्रृंगार छंद

दुलारी प्यारी बिटिया आज।
हमारे दिल पर करती राज।
करें हम उसको इतना प्यार।
नहीं है जिसका पारावार।

खिलौना जाता है जब टूट।
तभी वो हमसे जाती रूठ।
मनाना उसको तब हे!राम।
बड़ा मुश्किल होता है काम।

ललित

श्रृंगार छंद
टूटा फूटा प्रयास

साथ साजन सजती सारंग।
सुरीला सावन साजन संग।
सुनाएँ सखियाँ सब संगीत।
शर्म से सजी सुहानी प्रीत।

रैन में लगे बहकने नैन।
होगया है जियरा बेचैन।
नैन में नैन दिए यूँ डाल।
शर्म से लाल होगए गाल।

ललित

श्रृंगार छंद

चले तुम कहाँ गए दिलदार।
हुआ सूना मेरा संसार।
छा रहे बादल नभ में आज।
देख बजते हैं दिल में साज।

मोटरें आती हैं दिन-रात।
देख भड़कें दिल में जजबात।
चले तुम आओ जी इक बार।
छेड़ने मेरे दिल के तार।

ललित

श्रृंगार छंद
चित्र आधारित

राधिका कर लो ये विश्वास।
सदा से श्याम तुम्हारा दास।
रखूँ वंशी अधरों से दूर।
करो मत मुझको यूँ मजबूर।

बाँसुरी से है मेरी आन।
मगर तुम तो हो मेरी जान।
इशारों में समझो ये बात।
रास करना है सारी रात।

ललित

सिया-राम

तोटक छंद
सिय-राम

सिय-राम सदा जप लो मुख से।
जय तारण-हार कहो सुख से।
जप ये हनुमान सदा करते।
भव-ताप दुखी-जन के हरते।

दिल में सिय-राम बिठाय लिए।
दिल-चीर सबै दिखलाय दिए।
हनुमान समान न भक्ति कहीं।
सिय-राम समान न शक्ति कहीं।

शबरी तकती नित राह जहाँ।
वन में पहुँचे प्रभु राम वहाँ।
चख बैर खिलाय रही शबरी।
पद-पंकज ध्याय रही शबरी।

मन केवट पावन भाव रहा।
तट-गंग लिए निज नाव रहा।
उसको पग राम पखारन दें।
निज भक्तन जन्म सुधारन दें।

सिय-राम सदा जप लो मुख से।
जय तारण हार कहो सुख से ।

ललित