दुर्मिल सवैया छंद विधान व रचनाएं


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 --दुर्मिल सवैया छंद विधान---

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1. यह एक वार्णिक छंद है।

2.इसमें चार चरण होते हैं।

3.चार समतुकांत रखे जाते हैं।

4.आठ सगण अर्थात्  
112 112 112 112 112 112 112 112

5.लघु लघु गूरू ×8

6.लय की सुगमता के लिए  12 वें वर्ण पर यति विधान..

7.क्योंकि यह एक वार्णिक छंद है अतः इसमें लघु के स्थान पर लघु व गुरू के स्थान पर गुरू ही रखना होता है।

~~~~~उदाहरण~~~~~

मन के तम को अब दूर करो,विनती करता कर जोड़ हरे।
इस जीवन में अब आस यही,कर दो मन की सब त्रास परे।
प्रभु आप अधार हो प्राणन के, जब होय कृपा हर ताप टरे।
हर लो अब घोर निशा तम को, मम जीवन में नव दीप जरे।


*********रचनाकार************
          ललित किशोर 'ललित'
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दुर्मिल सवैया छंद रचनाएँ

1

निरखें नभ से

निरखें नभ से सुख से सुर हैं, प्रभु राम चले गृह से वन को।
पद चिन्ह गहे सुकुमारि चले,अरु भ्रात निहारत पावन को।
मुसुकाति चले वनवास सिया,परखे मन मोहक सावन को।
पगलाय रहे वन के बसिया,अब देख हाँ मन भावन को।

ललित किशोर 'ललित'

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2
टेर

करते कर जोड़ गुहार प्रभो,रख लो अब लाज हमार हरे।

इस जीवन के तुम प्रान सुधा,कर दो हमरी सब पीर परे।

मन चंचल होय रमे जग में,हरि की छवि से यह दूर टरे।

भव सागर पार उतारन को,तुम से मनवा यह टेर करे।

ललित किशोर 'ललित'

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3.

पथ को मथ दो

पल को न रुको पथ को मथ दो,रन में कुचलो रिपु के फन को।
अब काल कराल करो वश में,कलि काल भजो मनमोहन को।
जिसने मन को निज जीत लिया,करता क्षण में वश में जन को।
उस नाथ दया मय को सुमिरो,जिसने कुचला तब रावन को।

ललित किशोर 'ललित'

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4

करुणा निधि जी

करुणा करके करुणा निधि जी, हर लो सब पीर बसो मन में।
हर पातक लो विनती सुन लो,उजियार भरो  इस जीवन में।
तुम दीनदयाल कहावत हो,भर दो खुशियाँ मन पावन में।
अब तो बस है इक आस यही,हरि आन बसो इन नैनन में।

ललित किशोर 'ललित'

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सुख में सुमिरो

सुख में सुमिरो दुख में जप लो नटनागर नाग नचावन को।
भव सागर पार उतारन को भजलो उस प्रीत सिखावन को।
लख श्याम मनोहर की छवि को सुख से भर लो इन नैनन को।
सब ओर मचा यह शोर सुनो मनमोहन  के  सच वाचन को।

ललित किशोर 'ललित'

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दुर्मिल सवैया छंद

मन के तम को अब दूर करो,विनती करता कर जोड़ हरे।
इस जीवन में अब आस यही,कर दो मन की सब त्रास परे।
प्रभु आप अधार हो प्राणन के, जब होय कृपा हर ताप टरे।
हर लो अब घोर निशा तम को, मम जीवन में नव दीप जरे।

ललित किशोर 'ललित'

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२.९.१५
सब बात गई जब रात गई, कल की मत बात करो बहना।

कहते कँगना चुप ही रहना,अब प्रीत छुपा कर है रहना।

चुनरी सरके मनवा बहके, चुड़ियाँ खनकें झुमका पहना।

मन मीत मिला मन फूल खिला,यह प्यार बना तन का गहना ।

ललित किशोर 'ललित'

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दुर्मिल सवैया छंद

इसमें भगवान विष्णु के 29 नाम हैं।
आशा है सबको पसन्द आयेगी।
समीक्षाहेतु

अपराजित साधु मनोहर हो, मधुसूदन हो भयनाशन हो।
जय रोहित जीव प्रभूत गुरू,रविलोचन हो अमिताशन हो।
हरि केशव वीर गभीर प्रभू ,अज वारुण भानु  प्रकाशन हो ।
शुचि साधु अमोघ हलायुध हो,शिव राम प्रजापति पावन हो।

ललित किशोर 'ललित'

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जब राम कहा मुख से तब ही,अघ कोटि विनाश हुआ सिर से।

नहि ज्ञात कहाँ ,कब,जीवन में,मुख मोड़ चले तन मंदिर से।

हरि नाम जपो प्रभु नाम रटो,अविराम सुधारस पी फिर से।

यह देह विदेह कहे तुझसे,प्रभु नाम सदा मुख से निकसे।


ललित किशोर 'ललित'

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१०
दुर्मिल सवैया छंद

अब धीरज भी मुख मोड़ रहा,बरसें नयना मन डोल रहा।

इस जीवन में सुख के सपने ,सब टूट गये जग गोल रहा।

इक बार जरा किरपा कर दो,तव दर्शन तो
अनमोल रहा।

यह दास करे विनती सुन लो,हर रोम शिवोहम् बोल रहा।

ललित किशोर 'ललित'

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4.9.15
प्रकृति चित्रण

दुर्मिल सवैया छंद

बिजुरी चमके जियरा हुलसे,बहती मनमें रसधार पिया।

बरसें बदरा हमरे अँगना,खनकें कँगना अब ओ रसिया।

सतरंग भरा नभ ये कहता,परदेस न जा
मन के बसिया।

तन भीग गया मन भीग गया,चुनरी सरके बस में न जिया।

ललित किशोर 'ललित'

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12

भज नदं  यशोमति के सुत को,मुरलीधर पूरण काम मिले।

मनमोहन कृष्ण दयामय को,जिस की किरपा अविराम मिले।

जिस की करुणा पल में हरले,सब मोह निशा सुख धाम मिले।

तर कंस गया जब पाप मयी,तब क्यों न तुझे घनश्याम मिले।

ललित किशोर 'ललित'

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13

श्री कृष्ण जन्म
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धरती सहती हर मानुष को,पशु-पेड़-पहाड़ व कानन को।

नद-नाल-सरोवर-पाहुन को,सब तीरथ पाप नसावन को।

पर पाप यहाँ जब घोर बढे,नित ढोकर कंस-दुशासन को।

तब नंद-यशोमति के प्रकटे, धरनीधर बोझ उतारन को।
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ललित किशोर 'ललित'

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14

दुर्मिल सवैया छंद

टोल
'पथ राज' बना 'कर' ले जन से ,'कर-टोल' वसूल रहे हम से।

दरबारि अड़े खुद बोल रहे,दरबार नहीँ चलता शम से।

घपले करते सब ही जम के,सच ओझल हैं करते दम से।

अब राज करें वह काज करें,परदेस रमें दम औ' खम से।

पथराज=हाई वे रोड
कर=रोड टेक्स


ललित किशोर 'ललित'

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15

दुर्मिल सवैया छंद

ललना जनमा

ललना जनमा ब्रज में सुख से,सुर पुष्प सबै बरसाय रहे

दर नंद यशोमति के सबरे,ऋषि गोपिन रूप धराय रहे।

शिव रूप धरे तब साधुन को,शिशु-दर्शन को ललचाय रहे।

डर मातु मनोहर मोहन को,निज आँचल माँहि छुपाय रहे।

ललित किशोर 'ललित'

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16

दुर्मिल सवैया छंद

मात-पिता

मात पिता सुत बंधु सखा,सब साथ रहें निज काम परें।

जब जीवन साथ छुड़ावत है,सब रोदन का बस नाम करें।

अपने उस बंधु सखा को सच,शव केवल मान मसान धरें।

जलता शव तो निज बात करें,घर आँगन शेयर सावन की।

ललित किशोर 'ललित'

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17
दुर्मिल सवैया छंद
हास्य व्यंग्य

अब आज यहाँ इस दौर कहो,कब कौन किसे हँसवाय सके।

जब प्याज मिले सब प्यार मिटे,तब भोजन कौन बनाय सके।

जिसके घर में इक प्याज मिले,वह प्याज पती कहलाय सके।

जब प्याज रुलाय रहा सबको,फिर क्यों यह छंद हँसाय सके।

ललित किशोर 'ललित'

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18

दुर्मिल सवैया छंद

करता कर जोड़ गुहार प्रभो,रख लो अब लाज हमार हरे।

इस जीवन के तुम प्रान सुधा, कर दो हमरी सब पीर परे।

मन चंचल होय रमे जग में,हरि की छवि से यह दूर टरे।

भव सागर पार उतारन को, तुम से मनवा यह टेर करे।

ललित किशोर 'ललित'

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19

दुर्मिल सवैया छंद

धीरज

अब धीरज भी मुख मोड़ रहा,बरसें नयना मन डोल रहा।

इस जीवन में सुख के सपने ,सब टूट गये जग गोल रहा।

इक बार जरा किरपा कर दो,तव दर्शन तो
अनमोल रहा।

यह दास करे विनती सुन लो,हर रोम शिवोहम् बोल रहा।

ललित किशोर 'ललित'

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20

दुर्मिल सवैया छंद
गीत

करुणा कर के

करुणा करके करुणा निधि जी,हर लो सब पीर बसो मन में।
हर पातक लो विनती सुन लो, उजियार भरो  इस जीवन में।

मन के तम को अब दूर करो,विनती करता कर जोड़ हरे।
इस जीवन में अब आस यही,कर दो मन की सब त्रास परे।
प्रभु आप अधार हो प्राणन के,जब होय कृपा हर ताप टरे।
हर लो अब घोर निशा तम को,मम जीवन में नव दीप जरे।
तुम दीनदयाल कहावत हो, भर दो खुशियाँ मन पावन में।
हर पातक लो विनती सुन लो,उजियार भरो इस जीवन में।

करता कर जोड़ गुहार प्रभो,रख लो अब लाज हमार हरे।
इस जीवन के तुम प्रान सुधा, कर दो हमरी सब पीर परे।
भव सागर पार उतारन को, तुम से मनवा यह टेर करे।

अब तो बस है इक आस यही, हरि आन बसो इन नैनन में।
हर पातक लो विनती सुन लो, उजियार भरो  इस जीवन में।

ललित किशोर 'ललित'

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21


दुर्मिल सवैया छंद

निज-पीर दिखे सबसे महती,पर-पीर
कहाँ नर जान रहा ?
निज-घाव दिखें सबसे गहरे,हर घाव हरा दिल मान रहा।
मुड़ देख जरा जग के दुख को,दुख-दारुण
की जग खान रहा।
दुख सौंप दिया जिसने हरि को,उसको दुख का कब भान रहा ?

ललित किशोर 'ललित'

अक्टूबर 2021

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22

दुर्मिल सवैया छंद

जग के सब बंधन तोड़ सखा,कब कौन कहाँ मुख मोड़ चले?
चलती-फिरती यह देह तजे,कब कौन कहाँ जग छोड़ चले?
यह मुश्किल है कहना सजना,कब प्यार भरा दिल तोड़ चले?
उस मौत समक्ष कभी नर का,कुछ भी न कहीं गठ-जोड़ चले।

ललित किशोर 'ललित'

अक्टूबर 2021

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23

दुर्मिल सवैया छंद

गणनाथ गजानन को सुमिरो,हरि मन्दिर में नित शीश धरो।
हरिनाम जपो सियराम जपो,नँदलाल जपो भव पार करो।
वृषभानु-लली सँग मोहन की,छवि नित्य लखो भव-सिंधु तरो।
शिव शम्भु भजो जप-ध्यान करो,मन आँगन में नित पुण्य भरो।

ललित किशोर 'ललित'

अक्टूबर 2022
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24

दुर्मिल सवैया छंद

प्रभु नाम जपें सिय-राम जपें,बजरंग-बली हनुमान सदा।
हरि-कीर्तन में मद-मस्त रहें ,सुनते हरि का गुण-गान सदा।
प्रभु राम सिया हिय में बसते,करते प्रभु का वह ध्यान सदा।
निज-भक्तन की सब पीर हरें,अधरों पर है मुसकान सदा।

ललित किशोर 'ललित'

अक्टूबर 2023

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दुर्मिल सवैया छंद

बदरा बलखाकर यूँ बरसा,चिपकी चुनरी
चिकने तन से।
पग पैंजनियाँ पहने सजनी,सिमटी सकुचा  कर साजन से।
मुख लाल लजा कर आज हुआ ,सजना निरखे मदनी-मन से।
सुलगी सजना-सजनी तन में,इक आग झमाझम सावन से।

ललित किशोर 'ललित'

अक्टूबर 2023

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6 comments:

  1. वाह कविवर अनुपम रचना।
    साधुवाद

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    1. आदरणीय 'प्रसाद'जी
      रचना की सराहना हेतु आपका हृदय से आभार

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  2. अतीव अनुपम सृजन आदरणीय। विधा की सम्पूर्ण जानकारी हेतु साधुवाद🙏

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    1. सराहना व उत्साह वर्धन के लिए आपका हृदय से आभार आदरणीया

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