ताटंक छंद सृजन 2

ताटंक छंद सृजन 2  (31.03.16)
1
केडीआरजी5,2,17
श्याम तुम्हारे नयनों का ये,कजरा मुझे सताता है।
कान्हा की आँखों में रहता,कहकर ये इतराता है।
आज तुम्हीं सच कहना कान्हा,देखो झूँठ नहीं बोलो।
गर मैं हूँ कजरे से प्यारी,अपने नयन अभी धोलो।
2
केडीआरजी 3-2-17
राधा तू नयनों में बसती,दिल ये तेरा दीवाना।
तेरे सिवा किसी को मैंने,अपना कभी नहीं माना।
चाहे तो ये दिल मैं रख दूँ ,कदमों में तेरे राधा।
जिससे होता पूरा होता,प्यार नहीं होता आधा।
3
केडीआरजी 4-2-17
सबसे सुंदर है इस जग में,राधा-कान्हा की जोड़ी।
जिसने हृदय बसा ली ये छवि,प्रीत वही समझा थोड़ी।
चौंसठ कला निपुण हैं कान्हा,शक्ति स्वरूपा हैं राधा।
राधा-कृष्ण की भक्ति कर लो,मिट जाएगी भव बाधा।
4
डूब गये जब सिर तक उनके,ख्वाबों और खयालों में।
तब दिल ने आवाज लगाई,घेरा हमें सवालों में।
खुद खोई है जो सपनों में,और किसी दिलवाले के।
घास कहाँडालेगी आगे,हम जैसे मतवाले के?
5
बाँट सको तो खुशी बाँट दो,गम अपने खुद ही झेलो।
फुरसत कहाँ किसी को इतनी, करले जो तुमसे हैलो।
आँख चुराकर निकलें सारे,अपने खास सगे जो हैं।
उनकी कद्र नहीं है कोई,गम में आज पगे जो हैं।
6
और किसी से आस करें क्या,अपना  सिक्का ही खोटा।
पढ लिख कर सुत बड़ा हुआ तो,पत्थर दिल बन वो लौटा।
हर ग़म सहकर बेटे हमने,मुश्किल से तू पाला है।
बस माँ तुमने फर्ज निभाया, मेरी किस्मत आला है।

7
पत्थर पत्थर में भी देखो,कितना अन्तर होता है।
इक मूरत बन पूजा जाता,इक नाली में रोता है।
इक पर बैठी शोख हसीना,इक को लहरें ठोकें हैं।
इस किस्मत का खेल निराला,कर्मों ने सब झोंके हैं।
8
कर्म बने सत्कर्म तुम्हारा,हर पल ऐसे जी जाओ।
दीन दुखी की सेवा कर लो,उनके सब गम पी जाओ।
गौमाता की रक्षा कर लो,गौसेवा में मेवा है।
अपनी खातिर जिये मरे तो,कोई नाम न लेवा है।
9
जय मत बोलो जय मत बोलो,जय को धर्म नहीं माना।
गंगा को माता माना है,धरती को माता जाना।
लेकिन अब भारत में कोई,जय कारा मत ही बोलो।
यही हमारी आजादी है,अपना मुँह मत ही खोलो।
10
हिम्मत देखो,जीनत देखो,ताकत उड़ने की देखो।
सबको गगन उड़ाता था जो,खुद उड़ आज गया है खो।
नेता लूटें,माल्या लूटे,जनता का पैसा जानो।
पुल टूटें या दुनिया छूटे,ईश्वर की मर्जी मानो।
11
अब तो काँप उठी ये धरती,ऐसे झंझावातों से।
जिनके जिम्मे पुल था उनकी,उल्टी सीधी बातों से।
बनते बनते पुल गिर जाता,ईश्वर की मर्जी होती।
जिन माँओं की गोदें उजड़ी,जीवन भर रहतीं रोती।
12
कितनी चीखें निकल रही हैं,निर्दोषों की राखों से।
घड़ियाली आँसू बहते हैं,नेताओं की आँखों से।
पुल टूटा या दिल टूटे हैं,खामोशी बतला देगी।
इक दिन लावा फूट पड़ेगा,सरगोशी बदला लेगी।
13
दीया बाती

करने नाम दीप का रौशन,बाती खुद जल जाती है।
तन मन अपना सौंप दिये को,मनवा शीतल पाती है।
पर विडम्बना कैसी है ये,दिये तले तम है छाया।
सीता की ली अग्नि परीक्षा,शक ऐसा मन में आया
14
पलकें झपका भोर रही है,निशा चली मुँह फेरे है।
कली-कली ने घूँघट खोला,तितली रंग बिखेरे है।
आसमान पर छायी लाली,गोरी ले अँगड़ाई रे।
पनघट पर बाजें पैंजनियाँ,चूड़ी बजे कलाई रे।
15
शहर की भोर की
एक तस्वीर

कुछ को बिस्तर-चाय चाहिए,कुछ बागों में जाते हैं।
कुछ चाटें अखबार सुबह का,कुछ मन्दिर हो आते हैं।
ऐसी सुबह शहर की देखो,बच्चे बिस्ते ढोते हैं।
कुछ बीनें कचरे में थैली,कुछ कचरे में खोते है
16
4.4.16
कन्या भ्रूण हत्या

माँ तू नारी होकर इतनी,निष्ठुर क्यूँ बन जाती है।
कन्या की आहट सुन तेरी,चिन्ता क्यूँ बढ़ जाती है।
तेरी हिम्मत से ही माता,युग परिवर्तन आएगा।
तू आवाज उठाएगी तो,कोई दबा नहीं पाएगा।
17
नारी शोषण

मन ही मन में खुश होकर हम, नारा खूब लगाते हैं।
जहाँ होय नारी की पूजा ,देव वहीं रम जाते हैं।
नारा देने वाले ने यह,सपने में कब सोचा है।
नारी के अधिकारों को तो,हर युग में ही नोंचा है।
18
बेटी

बेटी बनकर जन्मी हो तुम,बेटा बनकर जी जाओ।
अपनी रक्षा करने के गुर,घुट्टी में ही पी जाओ।
हार किसी से नहीं मानना,आगे बढ़ते जाना है।
जिसने मन में ठानी उसके,कदमों तले जमाना है।
19
कन्या भ्रूण हत्या
माँ के गर्भ में से कन्या की पुकार

माँ मै तुझ सी प्यारी सूरत,लेकर जग में आऊँगी।
किलकारी से घर भर दूँगी,पैंजनियाँ छनकाऊँगी।
तेरी गोद हरी कर दूँगी,साँस मुझे भी लेने दे।
जीवन रूपी रथ की ऐ माँ,रास मुझे भी लेने दे।
जब तू मुझको छूती है माँ,अपने मन की आँखों से।
मन करता है उड़ जाऊँ मैं,तेरे मन की पाँखों से।
माँ इतना ही वादा कर ले,मुझको जग में लाएगी।
किसी दुष्ट की बातों में आ,मुझको नहीं मिटाएगी।।
2
गर्भवती माँ का उत्तर

मेरे अन्दर पनप रही जो,एक कली अरमानों की।
नजर न लगने दूँगी उसको,इन बेदर्द सयानों की।
बेटी मेरी माँ बनने की,आस तभी पूरी होगी।
गोदी में खेलेगी जब तू,नहीं तनिक दूरी होगी।
लड़ जाऊँगी मैं दुनिया से,बेटी तुझे बचाने को।
सीखूँगी सब दाँव पेंच मैं,ताण्डव नाच नचाने को।
मेरे आँगन में किलकारी,भरने तू ही आएगी।
तेरी जान बचाने में ये,जान भले ही जाएगी।

ललित किशोर'ललित'

नारी शक्ति
5.4.16
ताटंक
आर जी 8.2.17

मोक्ष नहीं मैं चाहूँ कान्हा,वंशी बन जीना चाहूँ।
तेरे मधुर मधुर अधरों का,अधरामृत पीना चाहूँ।
क्या मैं ऐसा पुण्य करूँ जो,बन मुरली तेरी पाऊँ।
लगी रहूँ अधरों से तेरे,गुण राधा जी के गाऊँ।
'ललित'

छंद मुक्त रचनाएं 4

छंद मुक्त रचनाएं   4

1

गम और खुशी

खुशी में ही गम अब समाने लगे हैं
गम में ही खुशी अब मनाने लगे हैं।
गम औ' खुशी को कहाँ तक सहेजें
खुद ही खुद को हम बौराने लगे हैं।

'ललित'

2

सरताज

जिस डाल,जिस पात,जिस परवाज को देखूँ
इक तू नजर आये मैं जिस भी साज को देखूँ ।
समाँ ऐसे भी बदलेगा न सोचा था कभी मैंने,
ख्वाबों में ही आजा, अपने सरताज को देखूँ।

'ललित'

3

काश

काश ऐसा भी कभी नजारा होता
आँख तेरी औ'आँसू हमारा होता।
जागती आँखों से देखे जो सपने
काश तूने ही उनको सँवारा होता।

'ललित'

4

परछाई

आदमी सुबह जागा,
अपनी परछाई के पीछे भागा ।
दोपहर हुई,
परछाई खुद में समा गई,
तबीयत खुश होगई,
शाम हुई,
परछाई पीछे रह गई,
दिन भर भागा,
जीवन भर भागा,

हाथ कुछ न लागा,
परछाई को,
कोई और ले भागा ।

'ललित'

5

खुशियाँ

खुशियाँ करे अठखेलियाँ तुम्हारे द्वारे
हमारा क्या,कल हम रहें ना रहें प्यारे।
जिन्दगी लबरेज रहे खुशियों से सदा
गम को कभी ना मिलें तुम्हारे द्वारे।

उस द्वार से भी गम दूर रहें सारे
जिस द्वार से मिलें तुम्हारे द्वारे।
उन गमों के तलुए में पडे छाला
ढूंढने निकलें जो तुम्हारे द्वारे ।

हर भोर लेकर आये सतरंगे उजारे
हर साँझ देकर जाये खुशनुमा इशारे।
जीवन में कोई भी दिन न आये काला
हर दिन लेकर आये प्रभु की कृपा रे।

'ललित'

6

जीवन का सफर

जीवन का सफर,
लाया है किधर,
अपना सा कोई,
नहीं है जिधर।

इक नयी डगर,
चलना है मगर,
अपना सा कोई,
नहीं है उधर।

सूनी हर डगर,
चलना है मगर,
अपना सा कोई,
कहाँ है किधर?

झूँठी हर डगर,
अब थाम जिगर,
अपना सा कोई ,
नहीं है इधर।

'ललित'

7

संस्कार

छिपाने से संस्कार छिपते नहीँ हैं ,
ज्ञानी भी इकसार दिखते नहीं हैं।
पढे पोथी-पाने जमाने में जितने,
निरर्थक वे सारे दिखते यहीं हैं ।

'ललित'

8

छंद मुक्त मुक्तक

हँसना चहकना मुस्कुराना आ गया,
गम को छिपाकर खिलखिलाना आ गया।
हो जायें दो-दो हाथ अब ऐ जिन्दगी,
हम को भी अपना दिल जलाना आ गया ।

'ललित'

9

दो मुक्तक छंद मुक्त

ज़िन्दगी

पिलायेगी कब तक ग़मों के पियाले,
खिलायेगी कब तक दुखों के निवाले ।
ऐ ज़िन्दगी अब कुछ तो रहम कर,
दिखायेगी कब तक छलों के हिमाले।

दिखा दे हमें सतरंगी उजाले ,
कर दे हमें भी सुखों के हवाले।
ऐ जिन्दगी अब ऐसी दुआ कर,
निकल जायें सब ग़मों के दिवाले ।

'ललित'

10

मुक्तक

सतरंगी दुनिया

सतरंगी दुनिया के सातों रंग बडे ही प्यारे हैं।
उड जाओ अब नील गगन में करते यही इशारे हैं।
जो होगा देखा जायेगा कदम नहीं रुकने पायें।
धरती अपनी,अम्बर अपना दरिया भी हमारे हैं।

'ललित'

11

दो मुक्तक -दो पीढियाँ

माँ मुझे इक शर्ट सिला दो,
बाऊजी इक घडी दिला दो।
और नहीं कुछ मुझे चाहिये,
बस इक हॉकी मुझे दिला दो।

मम्मा मझे पिज्जा खाना है,
पापा इक लेप टॉप लाना है ।
और बहुत कुछ मुझे चाहिये,
अभी तो मोबाइल लाना है ।

'ललित'

12

छंद मुक्त मुक्तक

जो माँगा

जो माँगा हरि से पाया है,भक्तों ने हरदम देखो।
मुरली की वो तान सुन रहे,ऋषियों का दमखम देखो।
गोपी बनकर बृज में जन्मे,प्रेम पगे ऋषिवर सारे।
आना पड़ा कान्ह को उनका,बनकर प्रिय हमदम देखो।

ललित

13

एक छंद मुक्त मुक्तक

मुखौटे

जख्मे दिल तो छिपाने ही पडते हैं,
वर्ना लोग जख्म कुरेदने लगते हैं।
यही तो दस्तूर है इस जहाँ का,
हँसी के मुखौटे ही अच्छे लगते हैं।

'ललित'
14

कृष्णा

जिन्दगी है धूप छाँव,
                       तू मेरी परछाई है।
हर घडी हैसाथ तेरा,
                    फिर कहाँ तन्हाई है।

वक्त की गर्दिश में हरदम,
                     साथ तू ही आई है।
देख मेरे गम को हमदम,
                      आँख तेरी भर आई है।

भोर की लाली भी लेती,
                       तुम से ही अरुणाई है।
साथ तेरे हर सुबह,
                       हर शाम इक शहनाई है।

जीवन की इस संध्या में जब,
                       वक्त हुआ हरजाई है।
साथ अपना बना रहे ये,
                        रब से टेर लगाई है।

'ललित'

15

       एक छंद मुक्त रचना

जड़ें

जो जडे हैं वृक्ष को निज रस पिलातीं,
जीना सिखातीं और जीवन दान देतीं ।
थामे रखतीं, हर बला को टालतीं, उन्नत बनातीं।

वे स्वयं पाताल का ही रुख हैं करतीं,
तन जलातीं,खुद को माटी में मिलातीं।

वृक्ष जितना गगन में है सर उठाता,
फूलता-फलता,हवाओं को लजाता।

वे भी उतना और नीचे को हैं जातीं,
नाज करतीं औ' जगत को भूल जातीं।

वृक्ष से वे मन ही मन ये आस करतीं,
पर नहीं लब पर ये अपने बात लातीं।

मैं तुम्हारा स्नेह,आदर,प्यार पाना चाहती हूँ
तुम रहो खुशहाल,सालों-साल,रब से माँगती हूँ

ललित

16
एक छंद मुक्त रचना

सपने

पलकों के पीछे से कोईबोला यूँ चुपके सेआकर,
खोये हो तुम जिन सपनों में,ले जाउंगा उन्हें चुराकर ।
जिसको सपनों में बोया था,जिसके सपनों में खोया था ।
पलकों की कोरों से आकर,ले गया वो,सपनों को चुरा कर ।

सपनों से अब नाता तोड़ो,
केवल रब से नाता जोड़ो ।
केवल रब ही है बस अपना,
सच है वह, न कोई सपना ।

ललित

17

एक छंद मुक्त मुक्तक
'ममता'

नौ माह तक गर्भ में रखकर,
                 ढोया था जिसको मैंने ।
बहा पसीना,लहू पिला कर,
                 सींचा था जिसको मैंने।
मेरे कलेजे का वो टुकडा,
               आखिर पत्थर दिल निकला।
आज ढो रही उस पत्थर को,
                 पाला था जिसको मैंने।
                 
'ललित'

मुक्तक
छतरी

छतरी छोटी लगती अच्छी,नीली नीली सी प्यारी ।
जो इसके नीचे आजाए,उससे किस्मत भी हारी।
छतरी चाहे छोटी हो पर,दिल तो बहुत बडा है जी।
सबको बाँटेगें हम छाते,वर्षा रहने दो जारी।
ललित

छंद मुक्त रचनाएं 3

छंद मुक्त रचनाएं 3

1

साया

मैं अपने साये के पीछे भागता रहा,
ना समझ पाया क्या मुगालता रहा।
इक दिन ऐसा भी आया जिन्दगी में,
साया पीछे छूटा औ' मैं भागता रहा।

भीड में खुद को ही अकेला पाया
तब कहीं जाकर ये समझ या।
अकेले चलना पडेगा जिन्दगी में
साथ नहीं देता अपना ही साया ।

'ललित'

2

विधाता

वो शातिर एक खिलाडी है
            शतरंज का खेल खिलाता है।
बना शतरंज के प्यादे
              सभी को नाच नचाता है।
देता है एक को शह पे शह
              दूजे को मात दिलाता है।
देता है एक को गम ही गम
               दूजे को खुशी दिलाता है
देता है एक को युवा मौत
               दूजे को खाट - सुलाता है।
देता है एक को कंचन- तन
               दूजे को रूप छकाता है।
देता है एक को सजन -संग
                दूजे को विरह रुलाता है।
देता है एक को रतन -धन
                दूजे को फाके कराता है।
देता है एक को आरक्षण
                 दूजे को सवर्ण बनाता है।
देता है एक को राज-सदन
                 दूजे को वोटर बनाता है।
देता है एक को फाड छपर
                 दूजे को सडक पे लाता है।
देता है एक को सपूत
                 दूजे को कपूत रुलाता है।
समझ न पाये जो नर-मन
                  ऐसे वो खेल खिलाता है।
समझ न पाये ज्ञानी जन
                   मजा उसे क्या आता है?
देता सब को  कर्मों का फल
                  उस एक का नाम विधाता है।

'ललित'

3

पहली गजल

 आया जब तन पर बुढापा
                        दिल लगाने लग गये।
याद करते थे खुदा को
                         अब भुलाने लग गये।
पैर लटके कबर में
                      सबको हँसाने लग गये।
आँख में आँसू भी अब
                 ग्लिसरिन से आने लग गये।
प्यार जो करते थे हरदम
                      अब सताने लग गये।
प्यार से वो पीठ में
                    खंजर चुभाने लग गये।
देख कर जिनकी खुशी को
                       हम सराने लग गये।
आज वे ही हर खुशी
                        हम से छिपाने लग गये।
'ललित'

 4

दोस्ती

 दोसतों ने निभाई जो है दोसती
आसमाँ झूमकर देखता रह गया।

बादलों ने जमीं को किया तर-बतर
दाग दामन का वो भागता रह गया।

चाँद ने चाँदनी को जो छू भर दिया
रूप उसका जहाँ देखता रह गया।

चाँदनी ने जमीं को जो रोशन किया
आसमाँ देखकर देखता रह गया।

दोसतों ने जो दी हैं मिसालें यहाँ
ये जहाँ देखकर देखता रह गया।

ये जो 'काव्योदय' ने दिया आशियाँ
कवियों को जहाँ देखता रह गया।

अब छुएंगें कवि इक नया आसमाँ
रब हमें देखकर सोचता रह गया।

'ललित'

5

शादी

कैसा लगता है ?
जब आप
किसी शादी में जायें ,
गेट पर मेज़बान को ,
बड़ा सा बैग लिये ,
स्वागत करता पायें ,

किसी सजायाफ्ता की तरह ,
खड़े - खड़े बेस्वाद भोजन
आधापेट  खायें ,
गिफ्ट दे आयें
और
वापसी में
पेट भरने,
चौपाटी पर जायें ।

'ललित'

6

चाँदनी

कभी जो सोचा न था वो आज हो गया
खुशी रूठी हमराह गम आज हो गया ।
अमावस की रात बनी तमों की रानी
चाँद से चाँदनी को चुरा सूरज ले गया ।

कहे ये चाँदनी हूँ मैं सूरज की माया
चाँद  भी सदा से ही मुझे देख शरमाया ।
चाँद की चँदनिया हूँ मैं चाँद की रानी
चाँद को छू कर ही मैंने ये रूप पाया ।

'ललित'

7

छंद मुक्त मुक्तक

दिल के छाले
जो   छिपालें।
कहाँ   हैं   वे
अब   निराले।

नन्हा सा छाला
दिखा ही डाला।
मरहम के जैसा
काव्य रस हाला।

दर्द की ये दवा है
प्रगति की हवा है।
कविता न समझो
माँ की ये दुवा है।

'ललित'

8

अंतिम विचार

आता है याद , जीवन का नाद ।
आया खाली हाथ,कुछ न लाया साथ ।
बचपन की नादानी,अल्हड जवानी ।
घर - परिवार , नाते - रिश्तेदार ।
दो स्त - यार , प्यार - मनुहार ।
जमीन - जायदाद , बरकत - इमदाद ।
पूजा - पाठ , तीरथ - धाम ।
नौकरी - व्यापार , उत्सव - त्यौहार ।
सावन - भादो , बसन्त - बहार ।
मण्डल - बारात , शादी - सौगात ।
सजनी का साथ , प्यारे दिन - रात ।
महीने - साल , यही जंजाल ।
बिजली - फोन , लकडी,तेल,नोन ।
होली - दिवाली , राखी भी मनाली ।
टी वी - फ्रिज , बंगला - कार - एसी ।
जी ली जिंदगी , राजाओं जैसी ।
नेता को वोट , दे कर खाई चोट ।
बेटी - दामाद , बेटा और बहू ।
नाती - पोते , परदेसी होते ।
अधूरे जजबात , पुराने खयालात ।
अब है खाली हाथ , नहीं कुछ साथ ।
सोचता 'ललित' , यह जीवन - चरित ।
फिर वही बात , क्या जायेगा साथ ?

सद्गुरु के द्वारे , मिले ये इशारे ।
धन वो कमाओ प्यारे , जो जाये साथ तुम्हारे ।

'ललित'

9

ममता का रंग

सात रंगों से रब ने सारी,जगती को जब रंग दिया ।
एक अनोखा, जीवन दाता ,ममता का वो रंग  दिया।
कैसे मैजिक रंग को  रब ने,भरा है माँ की ममता में।
भाता हैसबको  बचपन में ,पर न भाये  युव रंग में।

माँ की ममता से रंग लेकर ,भरा है जिसने जीवन में ।
नहीं कोई ग़म उसको व्यापा ,खुशियाँ हैं घर-आंगन में।
'ललित' करे यह विनती रब से ,हमको केवल यह वर दो ।
माँ की ममता के रंगों को भर दो मेरे जीवन में ।

'ललित'

10

मोबाइल

काश, यह मोबाईल ईज़ाद न होता,
किसी के फोन का इंतज़ार न होता।
खुलकर साँस लेते सुकून से जीते
गर कम्बख्त फोनावतार न होता ।

जीवन इस कदर बेजार न होता
इंसाँ सरेराह गिरफ्तार न होता ।
अपनों की यादों में खोये ही रहते
गर यह जी का जंजाल न होता ।

'ललित'

मुक्तक
साया

वो अपने साये के पीछे भागता रहा,
नहीं समझ आया उसे क्या मुगालता रहा।
एक दिन ऐसा आया उसकी जिन्दगी में,
साया पीछे छूटा औ' वो भागता रहा।

भारी भीड में खुद को ही अकेला पाया।
तब कहीं जाकर उसे ये राज समझ या।
अकेले चलना पडेगा उसे जिन्दगी में,
साथ नहीं देता अपना ही प्यारा साया ।

'ललित'

ताटंक छंद सृजन 1

ताटंक छंद सृजन 1
28.03.16

1
कितनीे  भी आवाजें दे लो,बेशर्मों के कानों में।
उनकी नींदें नहीं उड़ेंगी,खोये जो परिधानों में।
राजा और प्रजा दोनों ही,पूरे पूरे दोषी हैं।
लूट रहे जनता को फिर भी,पसरी जो खामोशी है।

जिसकी लाठी भैंस उसी की,सच्ची यही कहानी है।
मतदाता के मन की पीड़ा,शासन ने कब जानी है।
मत दो,मत दो कहते थे जो,हाथ जोड़ते आते थे।
जनता की पीड़ा में भी जो,डुबकी खूब लगाते थे।

आज खोजती जनता उनको,सत्ता के गलियारों में।
लेकिन वो तो घूम रहे हैं,वोटों के बाजारों में।
घर का पूत कुँवारा डोले,पाड़ोसी के फेरे हैं।
ऐसे राजा को तो कोसे,जनता शाम सवेरे है।

'ललित'

2

ताटंक छंद

पूज्य समझते थे जो बेटे,मात पिता के पाँवों को।
अनजाने में भूल चले हैं,मात पिता के गाँवों को।
कंकरीट के जंगल में जब,रुपयों की बू भायेगी।
गाँवों की मिट्टी की खुशबू,उनको याद न आयेगी।

'ललित'

ताटंक छंद
29.03.16
3

सुबह सुबह अपने खेतों में,धूप सुहानी भाती थी।
पनघट से गगरी ले गोरी,ठुमक ठुमक जब आती थी।
उसकी पायल की छम छम तब,नए तराने गाती थी।
दिल जाता था भूल धड़कना,साँसें थम ही जाती थीं।

'ललित'

ताटंक छंद
29.03.16
4

कभी किसी को मत दिखलाओ,अपने दिल के छालों को।
घावों को सहला कर उन पर,नमक लगाने वालों को।
जिसने दिल को चीर दिया है,दौलत की तलवारों से।
उसको भी दो खूब दुआएं,जख्मी दिल के तारों से।

ललित

ताटंक छंद
29.03.16
5

जीवन की इस भाग दौड़ से,फुरसत जब भी पाता हूँ।
मन की गहराई में यारों,डुबकी खूब लगाता हूँ।
मन में जो भी भाव उठें मैं,कागज पर ले आता हूँ।
छंदों की जाजम पर उनकी,लय औ ताल मिलाता हूँ।

ललित

ताटंक छंद
29.03.16
6

अपने होकर भी जो हमसे,मिलते थे बेगानों से।
जिनकी अपनी नींव जमीं में,जुड़ी हुई तहखानों से।।
वो ही हमसे आज मिलें तो,खूब बलैयाँ लेते हैं।
शायद वो अब जान गए हम,बरगद छैयाँ देते हैं।
'ललित'

ताटंक छंद
29.03.16
7

अपनों की बस्ती में मैंने,कुछ बेगाने देखे हैं।
बेगानों से प्यार करें जो,वो मस्ताने देखे हैं।
भेद नहीं कर पाता अब मैं,अपनों और परायों में।
लगें पराये अपने जैसे,अपने मिलें सरायों में।।
'ललित'

ताटंक छंद
29.03.16
8

पंछी उड़ते देख हमारा,उड़ने का मन होता है।
मानव मन में भी इक पंछी,पंख समेटे सोता है।
उड़ने दो मन के पंछी को,छंदों औ' लय तालों में।
कविता तुम्हें नजर आएगी,मन के सभी सवालों में।

'ललित'

ताटंक छंद
29.03.16
9

थोक दुकानें खुली हुई हैं,कुछ बेखौफ दलालों की।
रोज खरीदा करते हैं जो,इज्जत नमक हलालों की।
सत्ता के ऊँचे शिखरों औ',सरपंची चौपालों में।
डूबा राम राज्य का सपना,अनदेखे घोटालों में।

'ललित'

ताटंक छंद
30.03.16
10

श्रीमद्भगवद्गीता
अध्याय दो
22,23वें श्लोक

खोल पुराने कपड़ों को ज्यों,वस्त्र नए नर ये  धारे ।
जीर्ण शरीर त्याग कर धारें,गात नया देही सारे।
इस आत्मा को शस्त्र न भेदें,आग जला कब पाती है।
जल आत्मा को गला न सकता,हवा सुखा कब पाती है।

ललित

ताटंक छंद
30.03.16
11

राम तुम्हारी राह देखती,शबरी साँझ सवेरे है।
आश्रम का पथ रोज बुहारे,माला दिन भर फेरे है।
मीठे मीठे बैर चुने हैं,चख चख तुम्हें खिलायेगी।
आश्रम जब पावन होगा वो,भोर कभी तो आयेगी।

ललित

ताटंक छंद
30.03.16
12

हनुमान जी की भक्ति

राम नाम की माला फेरूँ,उन के ही गुण  गाता हूँ।
सीता राम बसे हैं मन में,नित मैं ध्यान लगाता हूँ।
जो सिन्दूर राम को प्यारा,तन पे वो लिपटाया है।
सीता माता के चरणों में,वो वैकुंठ समाया है।

ललित

ताटंक छंद
31.03.16
13
कृष्ण दीनाने 7.1.17
कान्हा आज तुम्हारी राधा,यमुना तट पर आयी है।
सुध बुध भूले घूम रही है,दुनिया लगे परायी है।
श्याम तुम्हारे आने से ही,मन-उपवन के फूल खिलें।
बंशी की धुन सुने बिना तो,कानों में हैं शूल चलें।

'ललित'

ताटंक छंद
31.03.16
14
कृष्ण दीवाने7.1.17

वृक्षों से लिपटी लतिकायें,
                झूम-झूम मुस्काती हैं।
श्याम तुम्हारी राधा की ये,
                छुप छुप हँसी उड़ाती हैं।
मेरे मन में अगन लगी है,
                शीतल जल बरसा जाओ।
अपनी राधा से मिलने तुम,
                 एक बार तो आ जाओ।

'ललित'

ताटंक छंद
31.03.16

जिसके मन में अगन लगी है,विरहा की चिन्गारी से।
उसकी पीर वही जाने है,घायल जो दो धारी से।
कान्हा तुझ बिन मधुबन सूना,सूनी दिल की क्यारी है।
प्रीत विरह में बदल गई ये,कैसी तेरी यारी है।

'ललित'

ताटंक छंद
31.03.16
16

श्याम तुम्हारी छाया हूँ मैं,पलभर साथ न छोड़ूँगी।
मुरली की हर मधुर तान पर,मधुर गीत बन दौड़ूँगी।

अधरों से मुरली चिपका लो,नयन सुधा तुम बरसाओ।
इस पगली राधा को कान्हा,नहीं मिलन को तरसाओ।

ललित

20-11.16
ताटंक छंद
अपने-बेगाने

अपने होकर भी जो हमसे,मिलते थे बेगानों से।
जिनकी अपनी नींव जमीं में,जुड़ी हुई तहखानों से।।
वो ही हमसे आज मिलें तो,खूब बलैयाँ लेते हैं।
शायद वो अब जान गए हम,नोट बदल कर देते हैं।

'ललित'

ताटंक छंद
नोट

नोट -नोट में भी ऐ यारों,कितना अंतर है होता।
एक चढ़े देवों के दर पर,दूजा नाली में सोता।
एक बना आँखों का तारा,दूजे ने सपने तोड़े।
चोट दे गए वही नोट जो,तनका तिनका कर जोड़े।

'ललित'