राजनीति

कुण्डलिनी

वोटों की बौछार से,भिगो दिए जब आप।
नहीं भला क्यों हर सके,जनता के संताप?
जनता के संताप,बढ़े हैं हद से ज़्यादा।
कितनी जल्दी भूल,गए हो अपना वादा।

ललित

शुभकामनाएँ

आदरणीय राकेश जी व भाभीजी को
शादी की वर्ष-गाँठ पर मेरी ओर से अनन्त शुभ कामनाएँ

फूल-बहारों का मौसम ही,जीवन में चहुँ ओर रहे।
यश-माही ललिता जी में भी,प्यार सदा पुर जोर रहे।
माँ शारद की कृपा रहे औ',लक्ष्मी जी धन-धान्य भरें।
हर कवि सम्मेलन में केवल,'राज' 'राज' का शोर रहे।

ललित किशोर 'ललित'

कुण्डलिनी
यश

देखी यश की गायकी,और मधुर मुस्कान।
सुर औ' लय को साधकर,देता अद्भुत तान।
देता अद्भुत तान,गीत है गाता ऐसे।
बड़े मंच पर गीत,कुशल कवि गाते जैसे।

ललित

हास्य-व्यंग्य

पियूष वर्ष छंद
दर्द घुटनों का

दर्द घुटनों का हमें यह कह गया।
वक्त जीवन का बहुत कम रह गया।
जिन्दगी में भक्ति कुछ की तो नहीं।
श्याम सुंदर से लगाई लौ नहीं।

सोचते हम रह गये मन में यही।
भक्ति कर लेंगें अभी ठहरो सही।
पर जवानी ने छलावा यूँ किया।
बाल काले कर जिया बहला लिया ।

बाँटते सबको रहे थे ज्ञान हम।
अब करें कुर्सी लगा कर ध्यान हम।
हाय रे चंचल मना अब तो समझ।
ईश की आराधना अब तो न तज।

ललित
घुटनों के दर्द का मरीज

कुण्डलिनी
भाँग

कौन पकौड़े तल रहा,ऊँचे आसन बैठ।
कौन बैंक को लूटता,किसकी ऊँची पैठ?
किसकी ऊँची पैठ,सोचता काहे प्यारे?
आज कुएँ में भाँग,घोल बैठे हैं सारे।

ललित

ज़िंदगी,दिल,दर्द

पियूष वर्ष
कुछ यूँ ही

जिन्दगी का इक अजब अन्दाज है।
हर फसाने में छिपा इक राज है।
जिन्दगी ये गुल खिलाती है कभी। 
राह में कंटक बिछाती है कभी।

दंश दे देती कभी इतने बुरे।
खवाब में सोचे न थे जितने बुरे।
और बन जाती कभी है बन्दगी।
बन्दगी से ही निखरती जिन्दगी।

कौन जिन्दा है बिना गम के यहाँ।
बस गमों से ही भरा है ये जहाँ।
ईश में विश्वास रखते जो सदा।
हो नहीं पाते कभी वो गमज़दाँ।

ललित

सार छंद

कौन कहाँ कब दे जाएगा,दर्दे दिल दर्दीला?
जान नहीं पाता है कोई,ये विधना की लीला।
गरज-गरज जो बादल नभ में,झूम-झूम छाते हैं।
बिन बरसे ही जाने क्यों वो,दूर चले जाते हैं?

ललित

प्यार,प्रीत,प्रेम

पियूष वर्ष छंद
प्रेम/प्रीत/प्यार

प्यार की दुनिया भुलावा तो नहीं?
प्रीत तेरी इक छलावा तो नहीं?
प्रेम पर विश्वास मैंने है किया।
बुझ न पाए आस का दीपक पिया।

आस पर ही ये टिका संसार है।
प्यार करना क्यूँ बना व्यापार है?
हाथ जो थामा पिया मत छोड़ना।
प्रेम का धागा पिया मत तोड़ना।

है जरूरी प्रीत जीने के लिए।
प्रेम के बिन आदमी कैसे जिए?
प्रीत के बिन है भला क्या जिन्दगी?
प्रेम ही करना सिखाता बन्दगी।

ललित

पियूष वर्ष

देख लो हम को जरा तुम प्यार से।
मानते हो क्यों नहीं मनुहार से?
प्रीत के बिन जिन्दगी दुश्वार है।
जान लो हम को तुम्हीं से प्यार है।
ललित

पियूष वर्ष छंद
************
2122   2122   212
---------------------------
प्यार तेरा ये दिखावा तो नहीं।
वासना का इक छलावा तो नहीं।
दूरियों में प्यार की सौरभ
बसे।
प्रीत तन की वासना में कब बसे।
ललित

पियूष वर्ष
मसफर

हम सफर जो साथ मेरे थे चले।
नैन को भी जो रहे लगते भले।
खूब था जिन पर मुझे विश्वास भी।
और जिनसे थी लगाई आस भी।

छोड़ वो मुझको अचानक चल दिए।
प्रीत ने ऐसे भला क्यूँ फल दिए?
नाज था जिस प्यार पर मुझको सदा।
आज वो ही कह गया है क्यों विदा?

ललित

कुण्डलिनी
प्यार

प्यार तुझे यदि चाहिए,बाँट प्यार सौ बार।
बाँटे से फूले-फले,ये ऐसा व्यापार।
ये ऐसा व्यापार,नहीं जिसमें है घाटा।
जितना बाँटे प्यार,रहेगा उतना ठाटा।

ललित

8.2.18
सार छंद

कुछ अपनों में कुछ सपनों में,जीवन के दिन बीते।
अपनों ने अब तेवर बदले,सपने निकले रीते।
मानव-मन कितना पागल है,सोच नहीं जो पाए।
दोपहरी में गायब होते ,खुद अपने ही साए।

ललित

सार छंद

दिल कितना नाजुक होता है,ये हमने अब जाना।
वो ही तोड़ गया इस दिल को,जिसको था रब माना।
दिल के टूटी किरचों की भी,देखी खूब रवानी।
टूट-टूट कर और टूटती,जुड़ने की कब ठानी।

ललित

माता-पिता-बेटा-बेटी


पियूष वर्ष छंद
दुआ

फूल उपवन से चले मुख मोड़कर।
क्यारियों में डालियों को छोड़कर।
डालियाँ जड़ से बँधी हरदम रहीं।
और जीवन में सहा कुछ गम नहीं।

पुष्प चल पाए कदम दो चार ही।
और जड़ का पा न पाए प्यार ही।
कौन सुन पाए कभी उन की व्यथा?
भोगते जो आप ही अपनी खता।

दूर रहकर भी जड़ों को पूजते।
पुष्प वो क्यों आज गम से धूजते?
प्यार से देती जड़ें उनको दुआ।
तो हवा भी आज बन जाती दवा।

ललित

कुण्डलिनी छंद

प्यारी होती है सुता,प्यारा उसका साथ।
हो जाती इक दिन विदा,थाम सजन का हाथ।
थाम सजन का हाथ,चली जाती है जैसे।
उसके दिल की पीर,समझ आएगी कैसे?

ललित

कुण्डलिनी
नहीं हुआ पैदा अभी,कवि-लेखक निष्णात।
शब्दों में जो लिख सके,माँ-मन के जजबात।
माँ-मन के जजबात,समन्दर से भी गहरे।
इतने शांत कि पूत,नहीं सुन सकते बहरे।

ललित

समय

सार छंद

टिक-टिक-टिक-टिक करती घड़ियाँ,समय नापती जाती।
अच्छे बुरे पलों की सारी,खबर छापती जाती।
कैसा भी हो समय घड़ी को,फर्क कहाँ है पड़ता?
चलती रहती घड़ियाँ सूरज,गिरता चाहे चढ़ता।

ललित

श्रृंगार रस

सार छंद

नभ में काले बादल साजन,और इधर तुम काले।
तुम से तो अच्छे हैं गोरे,चार तुम्हारे साले।
काश तुम्हारा रँग भी साजन,मेरे जैसा होता।
सुंदर सेल्फी हम ले लेते ,बादल नभ में रोता।

ललित

सार छंद

साजन तेरी इस सजनी का,जियरा धक-धक करता।
मिलन-प्यास अति बढ़ जाती जब,सावन झर-झर झरता।
क्या तेरे सीने में जालिम,दिल का नाम नहीं है?
या मुझको बाहों में भरना ,तेरा काम नहीं है?

ललित

सार छंद

साजन तू क्यों समझ न पाए,उस बादल की बातें?
छोड़ देश परदेश बसा है,सूनी करके रातें।
क्या पैसा ही है सब कुछ ओ,पागल साजन मेरे।
कब तू उसको समझेगा जो,प्रीत बसी मन मेरे?

ललित

सार छंद

काले-काले बादल नभ में,उमड़-घुमड़ कर छाएँ।
सावन के झूलों में झूलें,सखियाँ सब इठलाएँ।
कोई चुनरी पहन नाचती,ओढ़ दुपट्टा कोई।
अँखियों में साजन की मूरत,लिए हुए सब खोईं।

ललित

श्रृंगार रस
पियूष वर्ष छंद

गाल पर लाली लगा नाजुक कली।
तीर नजरों में भरे पथ में मिली।
थे अधर आधे खुले कुछ इस तरह।
चूम लेगी पास आकर जिस तरह।

ललित

पियूष वर्ष छंद
पूरी रचना
श्रृंगार रस एक अलग अंदाज में

प्यार की दीवानगी भी खूब है।
शायरी करता जहाँ महबूब है।
प्रेमिका दिखती उसे वह हूर है।
नैन में जिसके परी सा नूर है।

पायलें बजती बड़ी प्यारी लगें।
धड़कनें रुकती उसे सारी लगें।
जब सजनियाँ अंक में उसके गिरे।
यूँ लगे आकाश तारों से घिरे।

चाँदनी उसको लगे प्यारी बड़ी।
शायरी पे जो सदा भारी पड़ी।
जब सजनियाँ चाँदनी में आ मिले।
भूल जाता प्यार में वो सब गिले।

सावनी शीतल फुहारों के तले।
तन-वदन अंगार पर जैसे जले।
जब सजनियाँ झूलती है बाग में।
डाल देती घी जिगर की आग में।

शायरी करनी जिसे आती न हो।
जुल्फ की छाया जिसे भाती न हो।
कब सजनियाँ फिर उसे प्यारी लगे?
शायरी भी एक बीमारी लगे।

शायरों की शायरी में प्यार है।
शायरी से ही जवाँ संसार है।
शायरी की रूह सजनी जब बने।
खूबसूरत सी गज़ल वो तब बने।

ललित

चित्र आधारित
विष्णु पद छंद

चंचल हिरणी जब नैनों से,छुप-छुप वार करे।
कजरारी अँखियों का कजरा,दिल को चीर धरे।
नैन झुका कर बिन बोले वो,बात कहे मन की।
साजन से जब नैन मिले त़ो,चूड़ी भी खनकी।

मिलने को आतुर हैं सजना,गजरा महक रहा।
सजनी का दिल धक्-धक् करता,थोड़ा बहक रहा।
नैनों में सजनी के सुंदर,सपने चमक रहे।
मादक सपनों में खोए दो,नैना दमक रहे।

कुछ ही पल में मधुर-मिलन के,सच होंगें सपने।
इक दूजे के मन में घुलते,तन होंगें अपने।
सजनी की साँसों में साजन,महकेंगें गुल से।
और करेंगें मीठी-मीठी,बातें बुल-बुल से।

मधुर मिलन की हाय रात ये,छोटी है कितनी।
उम्र सावनी लघु-बूँदों की,होती है जितनी।
साजन-सजनी कहें काश ये,वक्त यहीं ठहरे।
मगर प्यार की विनती सुनकर, वक्त नहीं ठहरे।

ललित किशोर 'ललित'

कुण्डलिनी
सावन और कवि

सावन की बातें मधुर,मधुर कोकिला गान।
कवियों का मन मोहती,सावन की मुस्कान।
सावन की मुस्कान,लेखनी में रस घोले।
कविता हो या शै'र,झमाझम झम-झम बोले।

ललित

सार छंद
श्रृंगार रस
1
सावन बादल और झमाझम,बारिश का यह रैला।
भिगो गया गौरी को नीरद,खेले अद्भुत खेला।
शीतल मंद समीर बिखेरे,खुशबू माटी वाली।
मदहोशी छाई गौरी पर,बढ़ी गाल की लाली।

साजन नजर चुराकर देखे,भीगा तन गौरी का।
कैसे चिपक गया है तन से,चुस्त वसन गौरी का।
शरमा कर फिर नजरें नीची,कर सजनी सकुचाई।
भीगे गालों पर सजना ने,अँगुली एक  नचाई।

अँगुली से छूकर साजन ने,कैसी अगन लगा दी?
प्रणय-प्यास सजनी के मन में,एकाएक जगा दी।
उलझ गईं मोती-सी बूँदें,गौरी के बालों में।
कुछ बूँदें चम-चम-चम चमकें,गौरी के गालों में।

सिकुड़ी-सिमटी पगली-सी वो,झूम उठी कुछ ऐसे।
आलिंगन में ले साजन ने,चूम लिया हो जैसे।
बदरा भी अब नील-गगन में,दूर कहीं छितराए।
बलखाती सजनी सजना की,बाहों में छिप जाए।

ललित

ओज

-ओज
पियूष वर्ष छंद

ऐ जवानों अब नहीं देरी करो।
आग से हर शत्रु की चौकी भरो।
चीरकर रख दो जिगर शैतान का।
नाम बच पाए न पाकिस्तान का।

ललित

माँ शारदा

. भक्ति रस
पियूष वर्ष छंद

शारदा माता कृपा इतनी करो।
काव्य-रस के ज्ञान से झोली भरो।
भाव अद्भुत भर सकूँ हर बंध में।
काव्य रचना कर सकूँ हर छंद में।

ललित

दोधक छंद
जय माँ शारदे

शारद माँ किरपा कर देना।
भाव जरा मन में भर देना।
भाव उठें मन में जितने ही।
सुंदर छंद रचूँ उतने ही।

मंदिर-मंदिर मूरत तेरी।
सुंदर शोभित सूरत तेरी।
मात करूँ नित वंदन तेरा।
भाव रहे अब मंद न मेरा।

ललित

रास माधुरी


20.05.19
रास माधुरी -1~~~💝~~~~💝

न चाहूँ श्याम मैं धन-धान्य या सोना।

न चाहूँ   साजना   की प्रीत में खोना।

मुझे  बस  चाहिए  मीठी   नजर तेरी।

भरे जो  प्रीत से  हर   इक डगर मेरी।

दिखा दे श्याम तेरी इक झलक मुझको।

रखूँ  फिर  याद मैं मरने तलक  तुझको।

मरूँ   जब   साँस   में    मेरी समाना तू।

नहीं  पथ   में   अकेला   छोड़ जाना तू।

~~~💝~~~ललित किशोर 'ललित'

वृद्धावस्था

सिंधु छंद
4
न जाने बागबाँ वो सुस्त सा क्यों है?
बुढ़ापे में दिखे वो पस्त सा क्यों है?
कि बोए बीज थे उसने सदा जैसे।
नहीं क्यों बाग में हैं फल हुए वैसे?

ललित

गीत संग्रह - 4

महाश्रृंगार छंद
गीत

चला आया मैं तेरे द्वार,छोड़कर ये सारा संसार।
श्याम बस इतनी है दरकार,मुझे कर देना भव से पार।

नहीं कर पाया तेरा ध्यान,नहीं पढ़ पाया वेद-पुरान।
नहीं कर पाया पूजा-पाठ,नहीं कर पाया गंगा-स्नान।
हाथ मैं तेरे जोड़ूँ रोज,एक तेरा ही है आधार।
श्याम बस इतनी है दरकार,मुझे कर देना भव से पार।

बनाया तूने सब संसार,चढ़ाऊँ क्या तुझको फल-फूल?
लगाना चाहूँ अपने भाल,प्रभो तेरे चरणों की धूल।
नहीं इस जग में कोई और,सुने जो मेरी करुण पुकार।
श्याम बस इतनी है दरकार,मुझे कर देना भव से पार।

करूँ कैसे तेरा गुणगान,श्याम तू तो है गुण की खान।
लगा दे मेरी नैया पार,जानकर बालक इक नादान।
अरे ओ मुरलीधर घनश्याम,मुझे दर्शन दे दे साकार।
श्याम बस इतनी है दरकार,मुझे कर देना भव से पार।

ललित

ताटंक छंद गीत

ऐसी सरगम छेड़े नटखट,आलौकिक धुन में प्यारी।
झूम उठें सब गोप-गोपियाँ,नाचें सब नर औ' नारी।

कान्हा की वंशी क्या बोले,राधा समझ नहीं पाई?
लेकिन वंशी सुनने को वो,नंगे पाँव चली आई।
मुरली की धुन ऐसी प्यारी,भूल गई दुनिया सारी।
ऐसी सरगम छेड़े नटखट,आलौकिक धुन में प्यारी।

कान्हा की बाहों में आकर,सिमट गई गोरी-राधा।
अधर अधर से मिलना चाहें,डाल रही मुरली बाधा।
वंशी ने क्या पुण्य किये थे,अधरों पर जो है धारी?
ऐसी सरगम छेड़े नटखट,आलौकिक धुन में प्यारी।

दुनिया में सबसे सुंदर है,राधा कान्हा की जोड़ी। 
जिसने हृदय बसा ली ये छवि,प्रीत वही समझा थोड़ी।
इसीलिए राधा-मोहन की,दीवानी दुनिया सारी।
ऐसी सरगम छेड़े नटखट,आलौकिक धुन में प्यारी।

ललित

भ्रूण हत्या

सिन्धु छंद
कोख से पुकार

अरे ओ तात माँ तुमसे करूँ विनती।
जरा तुम पाप की अपने करो गिनती।
न मारो कोख में मुझको बचाओ तुम।
न अपने पाप का बोझा बढ़ाओ तुम।

कि मैं भी चाहती हूँ देखना जग को।
न रोको आप अपने ईश के मग को।
करूँगी नाम रौशन आपका ऐसे।
नहीं करता कभी सुत तात का जैसे।

ललित

करुण रस
पियूष वर्ष छंद

बेटियों का कोख में करते शमन।
पुष्प कैसे अब खिलाएगा चमन।
मात को ही बेटियाँ दुश्मन लगें।
पूत से ही भाग्य क्या सबके जगें?

ललित

मुक्तामणि छंद विधान व उदाहरण

*********************************

    *** मुक्तामणि छंद विधान****

**********************************

1. यह एक मात्रिक छंद है जिसके विषम चरणों        में 13 एवं सम चरणों में 12 मात्राएँ होती हैं।
2. इसमें 13, 12 मात्रा पर यति चिह्न तथा कुल        25 मात्राएँ होती हैंं।
3. यति पूर्व लघु गुरु वर्ण तथा अंत दो गुरु वर्णों         से करनि है।
4. क्रमागत दो-दो पंक्तियों में तुकांत सुमेलनकरें।

      **** उदाहरण ****

मुक्तामणि छंद

माखन-मिश्री हाथ में,लेकर कान्हा भागा।

लीला जिसने देख ली,भाग्य उसी का जागा।

छोटा सा नँद-लाल ये,माखन-चोर निराला।

माखन जिसको दे वही, हो जाता मतवाला।

***रचनाकार***

ललित किशोर 'ललित'


दिसम्बर 2018 रचनाएँ

दिसम्बर 2018

मुक्तक

हाड़ कँपाती सर्दी में जब,काँप रहे हैं दोनों हम।
नए वर्ष के स्वागत में बम,फूट रहे हैं धड़ाक-धम।
झम-झम-झम-झम-झमाक झम-झम,
छम-छम-छम-छम छमाक-छम।
थाप दे रही नए साल की,हर दिल में मधुरिम सरगम।

'ललित'

छंद सिंधु
1222 1222 1222

निराली भोर  आई है नए रँग में।
सुनहरे स्वप्न लायी है नए सँग में।
चलो अब काम कोई हम नया कर लें।
नई इक सोच जीवन में जरा भर लें।
ललित

छंद सिंधु
1222 1222 1222

सिवा तेरे नहीं कोई कहीं दूजा।
करूँ मैं श्याम बस तेरी सदा पूजा।।
जपूँ मैं नाम आठों याम राधा का ।
नहीं है जिंदगी में नाम बाधा का।

ललित

छंद सिंधु
1222 1222 1222

अहंकारी जनों की बात है न्यारी।
न करते वो कभी इक बात भी प्यारी।
रहें खोए सदा अपने खयालों में।
उलझते हैं वहाँ रिश्ते सवालों में।

ललित

छंद सिंधु
1222 1222 1222

हवा भी अब यहाँ ग़मगीन सी दिखती।
युवाओं की यही तकदीर है लिखती।
हवा में भी घुला है अब गरल ऐसा।
नहीं है साँस लेना भी सरल जैसा।

ललित

छंद सिंधु
1222 1222 1222

बहारों सी महक तेरी अदाओं में।
सितारों सी चमक तेरी निगाहों में।
अधर तेरे लरज कर जब फड़क जाते।हजारों दिल धड़क कर फिर धड़क जाते।

ललित

छंद सिंधु
1222 1222 1222

बहारें छोड़ गुलशन को चली जाएँ।
नहीं खुशबू भरे तब फूल खिल पाएँ।
अरे ओ आसमाँ वाले कहाँ है तू?
बहारें भेज उस दर से जहाँ है तू।

ललित

उल्लाला छंद

जीत किसी की हो रही,और किसी की हार है।
जनता न्यायाधीश ये,जनता का दरबार है।

जनता के दरबार में,न्याय अनोखा होय है।
चुने किसी को प्यार से,और किसी को धोय है।

ललित

उल्लाला छंद

जीवन बीता जा रहा,पल-छिन सुबहो शाम में।
वो हर-पल अनमोल है,डूबे जो हरि-नाम में।

कई मीत मिलते हमें,जीवन की इस राह में।
सच्चा है वो मीत जो,चाह मिला दे चाह में।

ललित

उल्लाला छंद

होड़ा-होड़ी मत करो,जीवन की इस राह में।
खुशियाँ छूटी जा रही,और खुशी की चाह में।

छोर खुशी का ढूँढता,फिरता हर इंसान है।
मन में ही खुशियाँ छुपी,इस सच से अंजान है।

ललित

उल्लाला छंद

पूरब में सूरज उगा,सुबहा की सौगात में।
कान्हा की सूरत दिखी,किरणों की बरसात में।
'ललित'

उल्लाला छंद

सूरत से नमकीन है,मीठी-सी मुस्कान है।
बरसाने की छोकरी,थोड़ी सी नादान है।

रंग बिखेरे प्यार के,बाँसुरिया घनश्याम की।
हर धुन में माला जपे,राधा जी के नाम की।

ललित

उल्लाला छंद

पूजा जिसने प्यार से,उस लड्डू-गोपाल को।
कोय न बाँका कर सके,उस साधक के बाल को।

वर्षा होती प्यार की,अँखियों से घनश्याम की।
ओत-प्रोत है प्रीत से,माटी ये व्रज-धाम की।

ललित

उल्लाला छंद

बड़ी निराली चाल ये,चलता काल-कराल है।
राजा को करता यही,पल-भर में कंगाल है।

राज बदल जाता यहाँ,नेता बदले बात है।
जनता को छलती रही,नेताओं की जात है।

ललित

उल्लाला छंद

मीठी-सी मुस्कान जो,इन अधरों को चूम ले।
सँग-सँग तेरे साजना,सारा जग ही झूम ले।

झूम-झूम ये आसमाँ,देखे तुझको प्यार से।
जब भी तेरी ये नजर,चूमे मुझको प्यार से।

ललित

उल्लाला छंद

पिया मिलन की आस में,नाचे मन का मोर ये।
पुलक रहा हिय साजना, होकर भाव विभोर ये।

तेरे मेरे बीच में,बंधन ऐसा प्रीत का।
बंधन होता है पिया,जैसा सुर-संगीत का।

ललित
👌👌👌

उल्लाला छंद

समझ न पाए श्याम जी,राधा जी की प्रीत को।
हुई प्रेम में बावरी,छोड़ जगत की रीत को।

श्याम संग यूँ रास में,झूमे बेसुध राधिका।
कहें बिरज की गोपियाँ,राधा न्यारी साधिका।

ललित

उल्लाला छंद प्रयास

उलझी मन की डोर ये,माया के जंजाल में।
बुद्धिमान नर भी फँसे,मन की टेढ़ी चाल में।

मन साधे सधता नहीं,अज्ञानी इंसान से।
साध सके विरला कहीं,मन को गीताज्ञान से।
ललित

उल्लाला छंद
समीक्षा हेतु

चाहूँ इस संसार से,उतना आदर प्यार मैं।
जितना संभव ही नहीं,इस सारे संसार में।

प्यार हृदय में ही बसे,अँखियों से ही झाँकता।
प्यार दे और प्यार पा,जग से क्यूँ है माँगता?

ललित

उल्लाला छंद

खुशियों के उस छोर से,कितना ये दिल दूर है?
घूँघट में खुशियाँ छिपी,मिलने से मजबूर है।

खुशी और आनंद में,इतना केवल द्वंद है।
लौकिक होती है खुशी,इह-लौकिक आनंद है।

ललित

उल्लाला छंद

चलो दिखाऊँ मैं तुम्हें,खुशियों की बाजीगरी।
गम के पीछे भी छिपी,खुशियों की कारीगरी।

गम देकर जाती खुशी,ऐसी ये बदमाश है।
खुशियाँ जिसमें हैं छिपी,उस गम को शाबाश है।

ललित

उल्लाला छंद
आद्या के लिए

परियों से सुंदर परी,आद्या प्यारी आज है।
लम्बी हैं लटकी लटें,लजवन्ती सी लाज है।

गाल गुलाबी गोरिया,गमक रहा गलहार है।
चम-चम-चम-चम चम-चमा,चूनर की चमकार है।

ललित

उल्लाला छंद
समीक्षा हेतु

अंग अंग जलने लगा,लगी जिया में आग है।
कब आओगे साजना,सूना अमिया बाग है।

सेज सजाई प्यार से,दिल से उठी पुकार है।
तुझ बिन ओ मेरे पिया,फीका सब श्रृंगार है।

ललित

उल्लाला छंद

राधे-कृष्णा जो जपे,उसका बेड़ा पार हो।
चाहे जो तू साँवरे,प्राणी का उद्धार हो।

मन-मन्दिर में श्याम हो,जिव्हा पर हरि-नाम हो।
चाहे जो तू साँवरे,मन मेरा निष्काम हो।

भूल जगत को मैं रहूँ,तेरी ही छवि याद हो।
चाहे जो तू साँवरे,पूरी ये फरियाद हो।

कर्म सभी अपने करूँ,फल की इच्छा
त्याग दूँ।
चाहे जो तू साँवरे,छोड़ द्वेष अरु राग दूँ।

शाँत सरल निर्मल हृदय,मुख पर सच का नूर हो।
चाहे जो तू साँवरे,चिंता कोसों दूर हो।

दिल हरदम है चाहता,तुझसे आँखें चार हों।
चाहे जो तू साँवरे,सपनों में दीदार हों।

ललित

उल्लाला छंद

हाथों में लड्डू लिए, ये लड्डू  गोपाल जी।
ना-ना करते खा रहे,नन्हे से नँद-लाल जी।

घुटनों-घुटनों चल रहा,कान्हा श्यामल रंग में।
छम-छम छम-छम चल रही, छुटकी राधा संग में।

ललित

उल्लाला छंद

शीतल मंद समीर ये,जितनी ठंडी हाय रे।
उतनी ही मादक मुई,तन में आग लगाय रे।

आ प्यारी सजनी जरा,अब तो लग जा अंग से।
बर्फानी इस ठण्ड में,दूर न जा इस ढंग से।

ललित

उल्लाला छंद

माँ शारद विनती यही,करता बारम्बार मैं।झन-झन-झन निश-दिन करूँ,
छंदों की झंकार मैं।

छंद लिखूँ उस प्रेम के,जो था राधा श्याम में।
गुरू-कृपा मिलती रहे,पूजन से इस काम में।

ललित

उल्लाला छंद

फूलों की ये क्यारियाँ,जीवन को मुस्कान दें।
मदमाती सौरभ लिए,मौसम को वरदान दें।

रंगों की अद्भुत छटा,छितराते हैं फूल ये।
देवों के सिर चढ़ तभी,इतराते हैं फूल ये।

ललित

उल्लाला छंद

कर्जा ले वापस जमा,करता अगर किसान है।
बेवकूफ वो है निरा,कहता हिन्दुस्तान है।

कर्जा होगा माफ ही,इक दिन हर इंसान का।
' कर्जे सबके माफ हों ',नारा हिंदुस्तान का।

ललित

कुछ यूँ ही😊

जिसका भी चल जाए सिक्का,
सिंहासन पर जाता बैठ।

पढ़ा-लिखा हो या अनपढ़ वो,
राजनीति में जिसकी पैठ।

सीखा है हमने यारों इस,
उछल-कूद से ये ही पाठ।

जुमलों से बनती सरकारें,
जुमलों से ही जाती बैठ।

'ललित'

उल्लाला छंद

भक्तों की विनती प्रभो,कर लेना स्वीकार ये।
छले नहीं हमको कभी,माया का विस्तार ये।

चलें धर्म की राह पर,करें कर्म उत्साह से।
सदा दूर रखना प्रभो,हमें पाप की राह से।

ललित

उल्लाला छंद

जीवन निकला जा रहा,पल-पल करके हाथ से ।
अब तो लगन लगा जरा,श्याम-द्वारकानाथ से।

क्यों तू अब भी खो रहा,माया-मोह बिछोह में?
खोजेगा कब जीव तू , ईश छिपा किस खोह में?

ललित

उल्लाला छंद

मौन रहो दिल में गुनो,जीवन की सौगात को।
गर्दन झटका झटक दो,ऐसी-वैसी बात को।

शाँत रहो समता रखो,राग-द्वेष को त्याग दो।
बाँसुरी को जीवन की,हल्का-फुल्का राग दो।

ललित
चौपाई

हे भक्तों के संकट हारी,कर्ज दिलाओ कृष्ण-मुरारी।
कर्जा लेकर मैं न चुकाऊँ,दीन-दुखी निर्बल कहलाऊँ।
सारा ऋण प्रभु माफ कराना,राजा से इंसाफ कराना।
मध्यम-जन पर टैक्स बढ़ाना,धनिकों पर ऋण बोझ चढ़ाना।
धनिक दिवाला रोज निकालें,राजनीति का आश्रय पालें।
बैंकों के भण्डार भरे हों,नेताओं के वोट खरे हों।

दोहा

विकास-वादी देश ये,रहा कर्ज में डूब।
वोटों की खातिर यहाँ,बनें नीतियाँ खूब।

ललित

उल्लाला छंद

इतनी सी करता अरज,श्याम तुम्हारा दास ये।
तुम हो मेरे साथ में,सदा रहे आभास ये।

रहना मेरे साथ तुम,विपदा में अरु हर्ष में।
नित्य-नियम से भक्ति हो,आगामी नव -वर्ष में।

'ललित'

उल्लाला छंद

चली गई वो बैठकर,छुक-छुक करती रेल में।
खरीदने कुछ साड़ियाँ,जयपुर से वो सेल में।

चार पराँठे दे गई,सूखी सब्जी साथ में।
और पुराना सूट हम,लेकर बैठे हाथ में।

ललित

रजनी छंद

2122  2122 ,2122  2

जिंदगी ये दर्द की ऐसी कहानी है।
हर खुशी में गम छिपाए जिंदगानी है।
खोजने जाएँ खुशी तो दर्द मिलता है।
नष्ट होने के लिए हर फूल खिलता है।

ललित

रजनी छंद

2122  2122 ,2122  2

आपकी मुस्कान से सारा समाँ निखरे।
फूल की खुशबू हवा में,जिस कदर बिखरे।
है यही तारीफ देखी, हुस्न वालों की।
शोखियों से मुस्कुराते,लाल गालों की।

ललित

रजनी छंद

2122  2122 ,2122  2

राधिका के श्याम-सुंदर, बाँसुरी वारे।
जादुई वंशी बजाकर गम हरे सारे।
साँवरे  तेरे दिवाने हैं सभी ग्वाले।
क्यों पिला डाले इन्हें ये प्रीत के प्याले?

ललित

रजनी छंद

2122  2122 ,2122  2

थामकर दामन हवा का साँस लेती है।
पर कहाँ खुशबू पवन का, साथ देती है?
कुछ पलों की ताजगी देकर हवाओं को।
भूल जाती वायु की दुर्लभ दुआओं को।

ललित

रजनी छंद

2122  2122 ,2122  2

रंग दिखलाए खुशी के, साथ में ग़म के।
जिंदगी का कारवाँ फिर, रह गया थम के।
ग़म खुशी के खोल देता, है कभी द्वारे।
नाव खुशियों की मगर, ग़म से नहीं हारे।

ललित