गीतिका छंद विधान एवँ रचनाएं




गीतिका छंद विधान एवँ रचनाएँ

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     -------गीतिका छंद विधान-----
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 गीतिका छंद का विधान ः

1. इसमें चार चरण होते हैं।
2. प्रत्येक चरण में 26 मात्रायें होती हैं।
3.14,12 मात्रा पर  यति दर्शायी जाती है।
2.इसमें 2/4 चरणों में समतुकांत मिलाए जाते हैं।

मापनीः
2122  2122 ,
2122  212

            **** उदाहरण ****

गीतिका छंद

नींद खुलते ही खुशी से मुस्कुरा भर दीजिए।
उस प्रभो को शुक्रिया फिर मुस्कुरा कर
दीजिए।
हे प्रभो धन-धान्य वैभव आपने मुझको दिया।
शांति-सुख-आनंद दे कर धन्य है मुझको किया।

**********रचनाकार*************
ललित किशोर 'ललित'
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7.12.15
गीतिका छंद
1
खोजते हैं साँवरे को,हर गली हर गाँव में।
आ मिलो अब श्याम प्यारे,आमली की छाँव में।।
आपकी मन मोहनी छवि,बाँसुरी की तान जो।
गोप ग्वालों के शरीरोंं,में बसी ज्यों जान वो।।
2
प्रार्थना
हे प्रभो!अब ज्ञान ऐसा,दो यही विनती करें।
रात दिन हर साँस में प्रभु, नाम की गिनती करें।।
अति मनोहर आपकी छवि,नैन नित देखा करें।
आपका शुभ नाम लेकर,भाग्य का लेखा भरें।।
8.12.15
3
विषय...स्वच्छता
भूमि निर्मल स्वच्छ हो यह,भावना मन में रखें।
गंद कचरा-पात्र में हो,पात्र आँगन में रखें।।
नागरिक इस देश के यह,बात मन में ठान लें।
हर गली हर गाँव अपना,साफ रखना जान लें।।
स्वच्छता मन में रखें हम,आचरण भी स्वच्छ हो।
स्वस्थ तन हो स्वस्थ मन हो,आवरण भी स्वच्छ हो।।
मन प्रफुल्लित तन प्रफुल्लित,स्वच्छता से भासते।
देश भारत चल पड़ा है,स्वच्छता के रास्तेे।।
'ललित'
4
प्रकृति से खिलवाड़
काट डाला अब वनों को,स्वार्थ साधन के लिए।
कंकरीटी-लौह निर्मित, भवन वा धन के लिए।
नद-सरोवर सोख डाले,भूमि कर दी बाँझ ही।
क्यों पुकारे ईश को जब,भोर कर दी साँझ ही।
5
दो दिशाओं को मिलाना,कौन मुश्किल काम है।
चाँद तारों को हिलाना,कौन दुष्कर काम है।
जो दिलों में ठान लें वो,मंजिलें तय कर सकें।
जोड़ कर टूटे दिलों को,घाव गहरे भर सकें।
11.12.15
6
राज रजवाड़े गये तो,भूख के मारे मिले।
देश को चूना लगाते,आज वो सारे मिले।।
राजनेता आज सारे,शोषकों से कम नहीं।
देश को लूटें नहीं तो,राज नेता हम नहीं।
7
आज भारत देश सारा,मानता नेता जिन्हें।
खीजती हैं माइयाँ भी,आज पैदा कर उन्हें।।
किस घड़ी किस काल में था,पूत ये पैदा किया।
बिन चबाये खा गया सब,नाज को मैदा किया।।
8
पायजामा और कुर्ता,पहन के खुश हो रहे।
गाँव के सब लोग उनकी,क्रीज में ही खो रहेे।
आज हमको याद आया,देश का जो हाल है।
देश की भी क्रीज अब तो,दीखती बदहाल है।
12.12.15
9
वो दुआएं ही फली जो,दी मुझे हैं मात ने।
और सब संसार की हैं,तालियाँ खैरात में।।
माँ तुम्हारी हर दुआ से,भाल चमका है सदा।
भूल सकता मैं नहीं माँ,अब तुम्हारी आपदा।।
10
कौन सी माटी लगाकर,देह माँ की है घड़ी।
कौन सी विद्या लगाकर,पूत में तृष्णा जड़ी।
दो जहाँ का प्यार माँ से,पूत को मिलता यहाँ।
मात की सेवा करे जो,पूत वो मिलता कहाँ।
11
राह सीधी छोड़कर तू,चाल टेढ़ी चल रहा। राम को भूला अरे तू,काम मन में पल रहा।।
काम जो मन में बसे तो,आत्म को दे घाव रे।।
राम जो मन में बसे तो,पार कर दे नाव रे।।
काव्य सृजन
गीतिका छंद
12
माँ
माँ बलाओं से बचाकर,पूत को पाले सदा।
वो न जाने पूत देगा,क्या बला क्या आपदा?
दो जहाँ का प्यार माँ से,पूत को मिलता यहाँ।
मात की सेवा करे जो,पूत वो मिलता कहाँ।
13
जान ले जो पीर मन की,मीत उसको मानिए।
थाम ले जो डोर मन की,प्रीत उसको जानिए।
कामना मन की मिटा दे,प्यास सारी दे बुझा।
ज्ञान उसको मानिए जो,राह सच्ची दे सुझा।
14
माँ तुम्हारे प्यार की मैं,थाह भी नहिं पा सका।
मैं तुम्हारे आँसुओं के,पास भी कब आ सका?
मूढ़ मैं था माँ तुम्हारी,आँख का तारा रहा।
पर तुम्हारी आँख से मैं,बन सदा धारा बहा।।
15
धर्म
धर्म जीवन की धुरी है,धर्म मय जीवन सही।
धर्म अपना त्याग दे जो,मूढ मानव है वही।
धर्म है विश्वास देता,धर्म देता है खुशी।
धर्म से जो च्युत हुआ वो,कर रहा अब खुदकुशी।
16
वह सफल है जिन्दगी में,सादगी से जो जिए।
छलकपट पाखण्ड से जो,बैर है पाला किए।
17
माँ को समर्पित
माँ तुम्हारा पाक दामन,याद मुझको आ रहा।
वो तुम्हारा स्नेह मन को,आज भी सहला रहा।
रोज पाता था जहाँ मैं,दो जहाँ का प्यार माँ।
खोजता मैं फिर रहा हूँ,फिर वही संसार माँ।
18
आँचल
आपका आँचल वदन से,आज ढलका जो जरा।
कह रहे धरती गगन ये,और ढलका दो जरा।
बस रही खुशबू नशीली,आपके आँचल तले।
चाँद तारों को लजाते,आप बल खाते चले।
19
नकाब
वो नकाबों में छुपे कुछ,चाल ऐसी चल रहे।
बेनकाबों के दिलों पर,दाल जैसे दल रहे।
जब नकाबों को उठाकर,कनखियों से झाँकते।
ढेर हो जाते वहीं जो,खूब ऊँची हाँकते।
'ललित'
20
देवर भाभी
आज भाभी आप देवर,की सुनो ये कामना।
चाँद सा मुखड़ा चुनो हो,नेक जिसकी भावना।
फिर मुझे दूल्हा बना दो,उस परी सी मेम का।
रात दिन सेवा करे जो,हो समन्दर प्रेम का।
21
जीजा साली
झूलबा ने चालरी छै,कै अरी तू दामली।
और थारी बै ने मत,साथ लीजै बावली।।
बाग में बाताँ कराँगाँ,फूल तोड़ाँगाँ घणा।
आज दिन भर मौज लेवाँ,खूब खावाँगाँ चणा।
22
हाथ में हाथ
हाथ में जो हाथ थामा,साजना मत छोड़ना।
प्रीत के वादे किये जो,तुम कभी मत तोड़ना।
है भँवर में नाव मेरी,और तुम पतवार हो।
जिन्दगी बेज़ार मेरी,आप से गुलजार हो।
29.02.16
23
भोर-संदेश
अनसुने कुछ गीत गाती,
                     भोर उतरी आँगने।
चाँद शरमाकर लगा फिर,
                     आशियाना माँगने।।
भोर की लाली छुपाये,
                     फिर रही ये राज रे।
जिन्दगी का गीत गालो,
                     हाथ में ले साज रे।।
'ललित'
चौपयी छंद
बच्चों के लिए एक रचना
शेरों का जंगल में राज
जंगल में मंगल है आज।
बंदर जी लाये बारात
बंदरिया से फेरे सात।
आज दोपहर होगा भात
डाँस चलेगा सारी रात।
बंदरिया का लहँगा लाल
सखी सहेली करें धमाल।
बंदर सारे हैं उस्ताद
चम्मच से खा रहे सलाद।
सखियाँ दिखा रही है नाच
बंदर भी भर रहे कुलाँच।
पंडित जी हैं धोती बाज
झूठ बोलते आवे लाज।
हँसकर बोले मंतर चार
दूल्हे को दुल्हन से प्यार।
'ललित'
काव्य सृजन परिवार

2 comments:

  1. सादर प्रणाम श्री ललित जी।
    बहुत अच्छी रचनाएं । सुंदर शब्द चयन और भिन्न भिन्न मानवीय संवेदनाओ से सुसज्जित । प्रेरणादायक।
    गीतिका छ्न्द में जिस प्रकार दो एकलो को गुरु की तरह माना जाता है उससे कहीं कहीं गीतिका छ्न्द में की गई रचना, में (मेरी समझ में) और भी अलंकृत हो जाती है।
    साभार,
    अंकित नौटियाल

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  2. आदरणीय नौटियाल जी,
    सराहना व उत्साह वर्धन हेतु हृदय से आभार।
    ललित किशोर 'ललित'

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