रासमाधुरी पुस्तक का विमोचन

अत्यंत हर्ष का विषय है कि
माँ शारदे,गुरुदेव आदरणीय राकेश दीक्षित 'राज' जी,व श्री कृष्ण-राधिका की असीम कृपा-वृष्टि से
दिनांक 28.12.2023 को अहमदाबाद में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय काव्य सृजन परिवार के भव्य व दिव्य दशाब्दी समारोह व कवि सम्मेलन में मेरी पुस्तक 'रासमाधुरी' व काव्य सृजन परिवार के साझा-संकलन 'काव्य कलश' का विमोचन सम्पन्न हुआ।
रासमाधुरी पुस्तक हिंदी भाषा के 56 छंदों में श्री राधाकृष्ण की विभिन्न लीलाओं को समाहित करती हुई मेरी स्वरचित  रचनाओं का संग्रह है जो मेरे परम पूज्य स्वर्गीय माता पिता को समर्पित है।
ललित किशोर 'ललित'

महाश्रृंगार छंद विधान व रचनाएँ

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महाश्रृंगार छंद विधान
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              छंद विधान 

यह छंद 16,16 कुल 32 मात्राओं वाला मात्रिक छंद है।

इस छंद  में यति पूर्व गुरु लघु वर्ण रखा जाता है।

हर चरण का अंत सदा गुरु लघु वर्ण से ही किया जाता है।

दो- दो पंक्तियों में तुकांत सुमेलित किए जाते हैं।

16 -16 मात्राओं के पश्चात यति चिन्ह रखें जाते हैं।

*******उदाहरण*******
*****महाश्रृंगार छंद*****

कठिन हैं जीवन के पथ खूब,चलाचल हौले हौले मीत।
किसी से जाएगा तू हार,किसी से होगी तेरी जीत।
बिछेंगें कभी राह में पुष्प,चुभेंगें कभी पाँव में शूल।
जपे जा भोले का तू नाम,शूल भी बन जाएँगें फूल।

*******रचनाकार*********
***ललित किशोर 'ललित'***

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महाश्रृंगार छंद

हुआ आजाद युवा यूँ आज,नई है सोच नया व्यवहार।
नहीं दिल में कोई जजबात,करे वो खुद ही खुद से प्यार।
उड़े वो दूर गगन की ओर,जैसे कटी पतंग की डोर।
उसे लुटना ही है हर हाल,नहीं चकरी में जिसका छोर।
ललित किशोर 'ललित'

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9.1.18

महाश्रृंगार छंद
गीत

चला आया मैं तेरे द्वार,छोड़कर ये सारा संसार।
श्याम बस इतनी है दरकार,मुझे कर देना भव से पार।

नहीं कर पाया तेरा ध्यान,नहीं पढ़ पाया वेद-पुरान।
नहीं कर पाया पूजा-पाठ,नहीं कर पाया गंगा-स्नान।
हाथ मैं तेरे जोड़ूँ रोज,एक तेरा ही है आधार।
श्याम बस इतनी है दरकार,मुझे कर देना भव से पार।

बनाया तूने सब संसार,चढ़ाऊँ क्या तुझको फल-फूल?
लगाना चाहूँ अपने भाल,प्रभो तेरे चरणों की धूल।
नहीं इस जग में कोई और,सुने जो मेरी करुण पुकार।
श्याम बस इतनी है दरकार,मुझे कर देना भव से पार।

करूँ कैसे तेरा गुणगान,श्याम तू तो है गुण की खान।
लगा दे मेरी नैया पार,जानकर बालक इक नादान।
अरे ओ मुरलीधर घनश्याम,मुझे दर्शन दे दे साकार।
श्याम बस इतनी है दरकार,मुझे कर देना भव से पार।

ललित किशोर 'ललित'

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महाश्रृंगार छंद

छोड़ कर प्यारा घर परिवार,चला तू किस दुनिया की ओर।
वदन मासूम तड़पता छोड़,अरे टूटी साँसों की डोर।
कहाँ तो तिनका तिनका जोड़,बसाया था तूने घर-बार।
कहाँ तू चला गगन की ओर,छोड़ कर काया के नव द्वार।

ललित किशोर 'ललित'


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चौपाई विधान


चौपाई छंद विधान

 यह एक सम मात्रिक छंद है जिसके प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं अंत बेहतरीन लय के लिए दो गुरु वर्णों से ही होता है जो सम तुकांत हों।

 दो चरणों के मेल से एक चौपाई बनती है किन्तु इसमें पूर्णता दो चौपाई अर्थात् चार चरणों से ही आती है।

 चौपाई छंद के दो चरणों में 16,16 =32 मात्राएँ होती हैं...

 तुलसीदास जी कृत "रामचरित मानस" मुख्यतः चौपाई छंद में ही लिखा गया है।

 यह छंद किसी कथा का वर्णन करने के लिए अधिक उपयुक्त है इसमें कथानक आगे बढ़ता जाता है।

  आठ या दस चौपाइयों के पश्चात् एक दोहा आवश्यक रूप से लिखा जाता है जिससे इसमें लय और रोचकता आती है।

 इस छंद की अनेक लोकप्रिय धुन हैं जो सबके मन मानस में रची बसी हैं।

" मंगल भवन अमंगल हारी।
द्रवहुँ सुदशरथ अजिर विहारी।
ये एक प्रसिद्ध चौपाई है...

उदाहरण 

चौपाई छंद

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छद श्री सम्मान