छंद मुक्त रचनाएं
1
जड़ें
जो जडे हैं वृक्ष को निज रस पिलातीं,
जीना सिखातीं और जीवन दान देतीं ।
थामे रखतीं, हर बला को टालतीं, उन्नत बनातीं।
वे स्वयं पाताल का ही रुख हैं करतीं,
तन जलातीं,खुद को माटी में मिलातीं।
वृक्ष जितना गगन में है सर उठाता,
फूलता-फलता,हवाओं को लजाता।
वे भी उतना और नीचे को हैं जातीं,
नाज करतीं औ' जगत को भूल जातीं।
वृक्ष से वे मन ही मन ये आस करतीं,
पर नहीं लब पर ये अपने बात लातीं।
मैं तुम्हारा स्नेह, संवेदन,समादर चाहती हूँ,
तुम रहो खुशहाल,सालोंसाल,रब से माँगती हूँ
जड से अपनी जुड के ही तुम खुश रहोगे,
फूलो फलोगे,महकोगे ,ऊपर उठोगे।
'ललित'
2
वक्त
खरीदना है वक्त को
नहीं किसी के बस में,
आदमी पर सोचता
है वक्त मेरे बस में।
इसी कशमकश में
वक्त गुजरता जाता,
अंतिम साँस अनंतिम करना
नहीं किसी के बस में।
वक्त से मुहलत माँगना
नहीं किसी के बस में।
वक्त की चाबुक पकडना
नहीं किसी के बस में।
कहते हैं लाठी वक्त की
आवाज रहित है होती।
वक्त -वक्त की बात भी
नहीं किसी के बस में।
वक्त को यदि है पकडना
हर काम वक्त से करना।
वक्त से यदि है निपटना
तो दीन धर्म पर चलना।
वक्त जिस पर है महरबाँ
रिद्धि - सिद्धि है पाता।
दोहराना है वक्त को
तो संस्कारी बन रहना।
'ललित'
3
उन्नति
उन्नति के शिखर छुए तो
बैठ वहीं ना तुम जाओ।
वापस आकर औरों को भी
साथ अपने ले जाओ।
उन्नति है सफल तभी जब
साथ सभी उन्नत होवें।
देश-गाँव को उन्नत करके
नाम रोशन कर जाओ।
'ललित'
4
जीवन साथी
जिन्दगी है धूप छाँव,
तू मेरी परछाई है।
हर घडी हैसाथ तेरा,
फिर कहाँ तन्हाई है।
वक्त की गर्दिश में हरदम,
साथ तू ही आई है।
देख मेरे गम को हमदम,
आँख तेरी भर आई है।
भोर की लाली भी लेती,
तुम से ही अरुणाई है।
साथ तेरे हर सुबह,
हर शाम इक शहनाई है।
जीवन की इस शाम में जब,
वक्त हुआ हरजाई है।
यह साथ अपना बना रहे,
रब से ये टेर लगाई है।
'ललित'
5
श्रृंगार रस
हँसीं जुल्फों से टपक कर
बना जो मोती सुन्दर।
बरखा की बौछार भी
न इतनी होती सुन्दर ।
आपके नयनों से जो
प्यार का छलके समन्दर।
धरती के सागर सातों
समा रहे हैं उसके अन्दर ।
आपके हसीन लबों पर
प्यार का रंग है सरासर।
इन्द्र धनुष के रंग सातों
समा रहे हैं उसके अन्दर ।
ललित
6
सपना(पुत्र का पत्र पिता को)
किया जो आपने वो फर्ज रहा होगा,
सोचते हो मुझ पर कर्ज रहा होगा।
फर्ज था वो कोई अहसान नहीं था,
फर्ज अदा करना मजबूरी रहा होगा।
सपना जो सच हुआ मेरा ही रहा होगा,
मेहनत मेरी भाग्य भी मेरा ही रहा होगा।
पहुँचना युँ बुलंदियों पे आसान नहीं था,
पहुँचा तो आगाज भी मेरा ही रहा होगा।
सपना जो हकीकत में बदलता रहा होगा,
पराया था वो सपना न आपका रहा होगा।
दूजे की आँखों से जो देखा किये सपना,
आपको वो मृग - मरीचिका रहा होगा।
मेरे भी सपना कोई बाकी रहा होगा,
पूरा करूँ उसे ये अरमाँ रहा होगा।
आता है मुझे सच करना वो सपना,
अब वक्त मेरे पास न बाकी रहा होगा।
'ललित'
7
सपने
अजीबोगरीब होते हैं सपने
नसीबों के करीब होते हैं सपने
सभी को नसीब होते हैं सपने ।
अंतर्मन को सहलाते हैं सपने
दवा हर जख्म पर लगाते हैं सपने
आस - विश्वास जगाते हैं सपने ।
सपनों की शायद यही नियति है
अधूरे ही टूट जाते हैं सपने
पीछे ही छूट जा ते हैं सपने ।
'ललित'
8
चश्मा
नंगी आँखों से जरा देखो दुनियाँ
रंगीं काँचों से ना देखो दुनियाँ ।
लगाओगे यहाँ जिस रंग का चश्मा
रंगी उस रंग में ये दिखेगीे दुनियाँ।
'ललित'
9
महफिल
ओ चाँद तेरी महफिल सबसे जुदा है,
चाँदनी तेरी जो इस जमीं पे फिदा है।
पाया जो रूप चाँदनी ने तुझे छूकर ,
चली आई उसे बिखेरने वो जमीं पर।
चाँदनी की भी कैसी ये प्यारी अदा है,
जमीं से यारी है चाँद पर भी फिदा है।
'ललित'
10
सच के बोल
कडवा सच न बोल लेकिन ,
मीठा सच तो बोल तू।
जिससे कोई खफा न हो,
ऐसा सच तो बोल तू।
प्यार के हसीन पथ पे
चल पडी है जिन्दगी।
भले कुछ न बोल लेकिन,
झूठ तो न बोल तू।
कथनी में सदा अपनी ,
प्रेम -रस तो घोल तू।
इस जहाँ में जो मिले,
हँस के तो बोल तू।
प्यार के हसीन पथ से,
कह रही है जिन्दगी।
जग के रचयिता को,
भूल तो न डोल तू।
करनी से सदा अपनी,
किस्मत तो खोल तू।
जिसमें सबका हो भला,
ऐसा कुछ तो बोल तू।
प्यार के हसीन पथ से,
फिर गई है जिन्दगी।
अपने ही आपे को,
भूल तो न डोल तू।
'ललित'
11
संस्कार
चन्दन न छोडे सुवास
सर्प लिपटें चाहे कितने ही।
इंसाँ न छोडे संस्कार
वक्त बदलें चाहे कितने ही।
संस्कार ही तो जीवन में
इंसाँ को इंसान बनाते हैं।
'हंस' न बन सकें कागा
रूप बदलें चाहे कितने ही।
12
लहर
लहर की लहर से जुदाई जो होती,
दिल टूट जाता,छलकते हैं मोती।
बस दिल वालों को देती सुनाई,
दिल टूटने से जो आवाज होती।
लहरों का अब न कोई पता है,
इसमें किसी की न कोई खता है ।
खुद ही मैं खुद से जुदा हो गया हूँ,
खुदी का मेरी न कोई पता है ।
अब तन्हाईयाँ ही मेरा पता है,
अब वीरानियाँ ही मेरा पता है।
जमाने से जैसे जुदा हो गया हूँ,
अब रुसवाईयाँ ही तेरा पता है।
13.
माँ का आशीष
माँ का आशीष मिले सब को
बनकर गुलाब सब ही महको।
जीवन-पथ में बिछे जो कंटक
बनकर पुष्प महकायें पथ को।
14.
वक्त
वक्त की कारीगरी कुछ यों नुमायां हुयी।
हट गईं सारी बंदिशें औ'शामें बेहया हुयीं।
15.
फोटो
फोटो की महिमा तो देखो ,
सबको अच्छा लगता है।
हाथ में झाडू हो तो फोटो,
और भी अच्छा लगता है।
फोटो देख लगता था सारा,
देश स्वच्छ हो जायेगा ।
मगर आज लगता ये नारा,
सुनने में अच्छा लगता है।
'ललित'
16.
सपने
पलकों के पीछे से कोईबोला यूँ चुपके सेआकर,
खोये हो तुम जिन सपनों में,ले जाउंगा उन्हें चुराकर ।
जिसको सपनों में बोया था,जिसके सपनों में खोया था ।
पलकों की कोरों से आकर,ले गया वो,सपनों को चुरा कर ।
सपनों से अब नाता तोड़ो,
केवल रब से नाता जोड़ो ।
केवल रब ही है बस अपना,
सच है वह, न कोई सपना ।
ललित
17.
असह्य वेदना
एक हस्ती महान
एक नन्ही सी जान
एक स्वप्न सुन्दरी
एक नन्ही सी परी
एक फिल्मी सितारा
एक नयनों का तारा
एक रथ में चढी
एक पथ में पडी
एक मीडिया में छायी
एक ने जान गंवाई
गर मिलती सहाय
बच जाती जान हाय !
'ललित'
18.
अल्हड़ प्रेमी
एक अल्हड प्रेमी के उद्गार
जो कवि नहीं बन पाया....
चौदवीं का चाँद
गुले गुलजार
बहारों की रानी
पहला पहला प्यार
मृगनयनी
दिले दिलदार
मौसमे बहार
पायल की झनकार
गजगामिनी
नयन कटार
रेशमी सलवार
गर्दन सुराही दार
मतवाली चाल
सावन की फुहार।
छोडो ना यार,
ये सारे शब्द जोड नहीं सकता
पर एक बात हूँ मैं कह सकता
जो हैं मेरे इस दिल के उद्गार
करता हूँ मैं तुमसे अथाह प्यार।
ललित