12.10.16
शक्ति छंद रचनाएँ
1
लिखो आज सारे,नया छंद ये।
गुणों से भरा है,कलाकंद ये।
लिखो भक्ति भावों,भरे गीत वो।
सुनें आज जो भी,बनें मीत वो।
ललित
शक्ति छंद
कन्या भ्रूण हत्या
न मारो उसे यूँ,न मारो उसे।
जरा प्यार से तुम,निहारो उसे।
न जन्मी अभी जो,तुम्हारी परी।
वही यातना से,तुम्हारी डरी।
बड़े भाग्य से आज बेटी मिली।
दुआएँ फली तो,कली ये खिली।
यही भाग्य लक्ष्मी,भवानी यही।
यही चंचला है,सयानी यही।
ललित
शक्ति छंद
न जाने वहाँ आग कैसे लगी।
हवाएं लिए प्यास जैसे जगीं।
जले झोंपड़े झुग्गियाँ भी जलीं।
सुलगने लगी जिन्दगी हर गली।
'ललित'
शक्ति छंद
भाग 2
जुबाँ चुप हुई डोलता है जहाँ।
निगाहें कहें कौन सुनता यहाँ?
पढाई लिखाई न जिसने करी।
सुनाए किसे आज खोटी खरी?
ललित
शक्ति छंद
भाग 3
खुला आसमाँ मुँह चिढाता लगे।
उड़ाता हँसी वो विधाता लगे।
बहाया पसीना इमारत चुनी।
खुदा ने नहीं पर इबादत सुनी।
ललित
शक्ति छंद
चली आज ऐसी, अनोखी हवा।
गरल में नहाई, हुई है दवा।
हसीं रासतों पर जवानी चली।
नहीं सीख कोई,लगे है भली।
ललित
शक्ति छंद
1
सबूतों गवाहों न जाओ कहीं।
सुनेगा विभीषण कहानी यहीं।
लिखो आज इतिहास की वो घड़ी।
तमाचा जड़ा जब निकाली अड़ी।
ललित
केडीआरजी26*1*17
शक्ति छंद
कहे राधिका श्याम ये तो बता।
बजा के मुरलिया रहा क्यूँ सता?
हसीं गोपियों को रहा यूँ नचा।
सिवा रास के क्या नहीं कुछ बचा?
निगाहें मिलें तो बताए धता।
कन्हैया नहीं कुछ बताए खता।
कहे राधिका श्याम ये ही अदा।
लगे खूब प्यारी हमें है सदा।
अरी बाँसुरी राज तू ही बता।
कन्हैया रहा है मुझे क्यूँ सता
अधर से लगाए रहे वो तुझे।
नहीं प्यार से वो निहारे मुझे।
ललित
शक्ति छंद
5
झुका नैन गजगामिनी सी चले।
हजारों दिलों को कुचलती चले।
नशीली निगाहें रसीले अधर।
गिरें बिजलियाँ देख ले वो जिधर।
ललित
शक्ति छंद
1
नही बिजलियाँ बादलों से डरी।
हँसें तितलियाँ शोखियों से भरी।
बजें चूड़ियाँ प्यार में हर घड़ी।
सजे कण्ठ में मोतियों की लड़ी।
ललित
शक्ति छंद
2
लताएं बनी प्रेम की प्यालियाँ।
पियें प्यार से वृक्ष की डालियाँ।
नशीली हुई आज पुरवाइयाँ।
बजें कान में शोख शहनाइयाँ।
ललित
शक्ति छंद
1
नहीं रास आयी हमें बन्दगी।
हवा में उड़ी जा रही जिन्दगी
सफेदी हमें अब चिढ़ाने लगी।
हसीं कामनाएं बढ़ाने लगी।
शक्ति छंद
2
राकेश जी के सुझाव से परि
चितेरे कई जिन्दगी में मिले।
बनाते रहे जो हवाई किले।
हमें काठ की पुतलियाँ वो बना।
हुए आज जाने कहाँ हैं फना।
ललित
शक्ति छंद
3
राकेश जी के सुझाव से परि
कभी हाथ थामे चले जिन्दगी।
कभी रासतों में पले जिन्दगी।
कभी तो लगे ये दुआ जिन्दगी।
कभी क्यों लगे बद्दुआ जिन्दगी।
ललित
शक्ति छंद
4
पढ़ी जिन्दगी की,किताबें कई।
पुरानी धुरानी,नई से नई।
मगर हम जहाँ के जहाँ रह गए।
जवाँ आज हमको गधा कह गए
ललित
शक्ति छंद
5
मिला जिन्दगी से हमें ये सिला।
जवाँ पूत से मत करो कुछ गिला।
पराया हुआ बागबाँ बाग में।
हवन ही धुआँ हो गया आग में।
ललित
शक्ति छंद
6
राकेश जी के सुझाव से परि
हवन उम्रभर तात ने यूँ किया।
न बुझने दिया आस का वो दिया।
मगर पूत ने दम किया नाक में।
हवन कुण्ड है अब मिला खाक में।
ललित
शक्ति छंद
7
सलीके सिखाते जवाँ हैं उन्हें।
गयी छोड़ पीछे जवानी जिन्हें।
नये दौर के ये नये रासते।
कभी जिन्दगी के नहीं पास थे।
ललित
शक्ति छंद
8
बनी आज नासूर है जिन्दगी।
दिलों से बड़ी दूर है जिन्दगी।
हँसी औ' खुशी अब हवा हो गयी।
कि हँसना हँसाना दवा हो गयी।
ललित
[16/10 16:00] Rakesh Raj: किया है अनौखा ललित जी सृजन।
लगे चूमने अब धरा से गगन।
किया जो परिश्रम उसी का सिला।
करो याद कितना यहाँ से मिला।
😀💐"राज" दीक्षित 💐😀
[16/10 16:07] Rakesh Raj: 💐 आभार 💐
प्रकट कर रहा राज आभार ये।
रहे यूँ बरसता सदा प्यार ये।
नदी नेह की यूँ दिलों में बहे।
नहीं दूर कोई किसी से रहे।
🙏�💐"राज" दीक्षित 💐🙏
शक्ति छंद
9
न जाने जहाँ है सरक क्यूँ रहा?
हरिक खास रिश्ता दरक क्यूँ रहा?
मुखौटे लगे सब मुखों पर यहाँ।
कि रिश्ते टिके हैं सुखों पर यहाँ।
न आँखें हँसें औ' न लब बोलते।
दिलों में रहें वो गरल घोलते।
अहम का यहाँ खास किरदार है।
पुजाता धनी और सरदार है।
ललित
शक्ति छंद
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत पेरी रचना
कभी प्यार से भी निहारा करो।
हमें प्रेम से भी पुकारा करो।
न रूठा करो यूँ जरा बात में।
हमारी जरा सी खुराफात में।
सुनहरे पलों को न जाया करो।
मचल कर जरा पास आया करो।
लुभाता हमें हुस्न ये आपका।
करें प्यार तुमसे बिना माप का।
न जाने तुम्हारी घड़ी क्यों रुकी?
अरे प्यार की वो झड़ी क्यो रुकी?
नयन कनखियों में अजी क्यों रुके?
हमें देखकर ये पलक क्यों झुके?
जरा याद कर लो हमारी वफा।
नहीं हम हुए हैं कभी भी खफा।
करो प्यार के याद वादे अभी।
भुलादो हमारी खताएँ सभी।
ललित
शक्ति छंद
श्रृंगार समसामयिक
चली नाजनीं बाँध के जूड़ियाँ।
खनकती नहीं हाथ में चूड़ियाँ।
गले में नहीं स्वर्ण का हार है।
लुटेरा खड़ा बीच बाजार है।
न पायल बजी औ' न अँखियाँ लड़ी।
कि रंगीन चश्मा लगाए खड़ी।
चली आज ऐसी हवा देश में।
नजर आरही नार नरवेश में।
ललित
शक्ति छंद
राधा गोविंद 14-2-17
मधुर रास
सितारों भरी चाँदनी रात में।
बजी पायलें खूब बरसात में।
गरजते हुए बादलों के तले।
मिले राधिका से कन्हैया गले
बजे बाँसुरी चूड़ियाँ भी बजें।
हँसें गोपियाँ कृष्ण राधा सजें।
कन्हैया सुनाता नये राग वो।
सुनें गोपियाँ तो खुले भाग वो
दसों ही दिशाएं लगी झूमने।
धरा भी गगन को लगी चूमने।
सजे मोगरा वेणियों में जहाँ।
कन्हैया बजाए मुरलिया वहाँ।
बसन्ती हवाएं छूएं गात को।
थिरकने लगीं गोपियाँ रात को।
नथनियाँ हिलें हास के साथ में।
कि झुमके हिलें रास के साथ में।
ललित
दिखा चाँद तारे हसीं साथ में।
खड़ी प्रेयसी थाल ले हाथ में।
पुकारे पिया को दिखाओ दरस।
सुहागन रहूँ मैं जिऊँ सौ बरस।
ललित
27.2.17
शक्ति छंद
नजारों सितारों बताओ मुझे।
बहारों कहो क्यूँ सताओ मुझे?
कहे चाँद ये चाँदनी से सदा।
बड़ी शोख चंचल तुम्हारी अदा।
हरा रात भर क्यूँ हमारा जिया?
हुई भोर तो क्यूँ किनारा किया?।
किया प्यार तो क्यूँ निभाया नहीं?
किसी और को क्या लुभाया कहीं?
ललित
शक्ति छंद
कहाँ जा रहा था कहाँ आ गया।
घुटे दम यहाँ मैं जहाँ आ गया।
न सोचा न समझा विचारा कभी।
न जीवन पथों को सँवारा कभी।
मिलीं राह में कर्मशाला कई।
मिलीं राह में धर्मशाला कई।
किये कर्म जितने यहाँ हो सके।
किये धर्म जितने वहाँ हो सके।
मगर कर्म फल दे न पाये कभी।
सभी पुण्य फल दे न पाये अभी।
बता कौन मुझसे खता हो गई?
खुशी दूर क्यों रब बता हो गई?
ललित
शक्ति छंद
नहीं रास आयी हमें बन्दगी।
हवा में उड़ी जा रही जिन्दगी
सफेदी हमें अब चिढ़ाने लगी।
हसीं कामनाएं बढ़ाने लगी।
चितेरे कई जिन्दगी में मिले।
बनाते रहे जो हवाई किले।
हमें काठ की पुतलियाँ वो बना।
हुए आज जाने कहाँ हैं फना।
कभी हाथ थामे चले जिन्दगी।
कभी रासतों में पले जिन्दगी।
कभी तो लगे ये दुआ जिन्दगी।
कभी क्यों लगे बद्दुआ जिन्दगी।
मिला जिन्दगी से हमें ये सिला।
जवाँ पूत से मत करो कुछ गिला।
पराया हुआ बागबाँ बाग में।
हवन ही धुआँ हो गया आग में।
हवन उम्रभर तात ने यूँ किया।
न बुझने दिया आस का वो दिया।
मगर पूत ने दम किया नाक में।
हवन कुण्ड है अब मिला खाक में।
सलीके सिखाते जवाँ हैं उन्हें।
गयी छोड़ पीछे जवानी जिन्हें।
नये दौर के ये नये रासते।
कभी जिन्दगी के नहीं पास थे।
बनी आज नासूर है जिन्दगी।
दिलों से बड़ी दूर है जिन्दगी।
हँसी औ' खुशी अब हवा हो गयी।
कि हँसना हँसाना दवा हो गयी।"
ललित
शक्ति छंद
न जाने जहाँ है सरक क्यूँ रहा?
हरिक खास रिश्ता दरक क्यूँ रहा?
मुखौटे लगे सब मुखों पर यहाँ।
कि रिश्ते टिके हैं सुखों पर यहाँ।
न आँखें हँसें औ' न लब बोलते।
दिलों में रहें वो गरल घोलते।
अहम का यहाँ खास किरदार है।
पुजाता धनी और सरदार है।
ललित
5.3.17
शक्ति छंद
किनारा न पहचानता धार को।
समझता नहीं धार के प्यार को।
मगर धार भी हार माने नहीं।
किनारा भले प्रीत जाने नहीं।
मिली धार फिर एक फनकार को।
नया रूप उसने दिया धार को।
बदलने लगी धार अब फाग में।
किनारा सुलगने लगा आग में।
किनारा समझने लगा प्यार को।
लगा चूमने प्यार से धार को।
किनारा कहे धार रुक जा यहीं।
मगर धार रुकना न जाने कहीं।
कहे धार है दूर जाना मुझे।
अभी आसमाँ को झुकाना मुझे।
नदी का करूँ नाम रौशन जहाँ।
मिलूँगी तुम्हें प्यार से आ वहाँ।
ललित
क्रमशः