पेज 10 से 14 मुक्तक 25.10.17


25 10.17 साझा संग्रह हेतु
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मुक्तक 16:14 (लावणी)
*1
बीज प्यार का जिसने बोया,फल उसने है कब पाया?
बीज और अंकुर को सींचा,छलनी करके निज काया।
बीजों का सागर है जो फल,याद रखे क्यूँ माली को?
फल-फल फल-फल फल -फल फल-फल,फल की ही है सब माया।
*2
जैसा प्यारा कृष्ण कन्हाई,वैसी न्यारी है राधा।
राधा औ' मुरली से कान्हा,प्यार करे आधा आधा।
अधरामृत पीती मुरली तो,राधा नैन सुधा पीती।
राधा राधा नाम जपो तो,मिट जाएगी भव बाधा।
*3
राधा के नैनों में मोहन,ने ऐसा डेरा डाला।
राधा वन-वन खोजे उसको,पर न दिखे मुरलीवाला।
पलकें बन्द करे राधा तो,मोहन के दर्शन होते।
खुली आँख से कहाँ किसी को,दिखता है नटखट ग्वाला।
*4
टूट -टूट कर टुकड़े होते,सपने हरजाई हरदम।
रूठ-रूठ कर दूर खिसकते,दिखते जो अपने हमदम।
दिल के अरमानों की किश्ती,भी टूटे मझधारों में।
चोट उन्हीं से है मिल जाती,बनना हो जिनको मरहम।
*5
मिट्टी जल आकाश हवा औ',अगन देव मिलकर सारे।
मानव देह बना बैठे सब,खेल खेल में मतवारे।
रब ने उसमें जान फूँक कर,आत्मा डाली इक प्यारी।
आत्मा ऐसी रमी देह में,भूल गयी हरि के द्वारे।
'ललित'

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मुक्तक 16:14(लावणी)
1
कुछ अपनों में कुछ सपनों में,जीवन के दिन बीत गए ।
कुछ पाने में कुछ खोने में,सुंदर सपने रीत गए।
जीवन का सपनों से रिश्ता,मन क्यूँ समझ नहीं पाया।
जिनके सपनों खोया मन,भूल वही मनमीत गए।
2
बात सदा दुनियावी लिखता,नूरानी कोई गल लिख।
महबूबा की पायल लिखता,माँ का सूना आँचल लिख।
जो लायी थी तुझे धरा पर,आँखों में कुछ ख्वाब लिए।
उसकी बुझती आँखों में भी,सच्चाई का काजल लिख।
3
दिल की हर धड़कन कुछ बोले,पागल मनवा है सुनता।
सुनकर धड़कन की सुर तालें,ख्वाब अनोखे है बुनता।
सुंदर सपनों की वो दुनिया,कब किस को सुख दे पायी।
लेकिन समझ दार मानव तो,दुख में से भी सुख चुनता।
4
दिल की बातें दिल में रखकर,दिल से ही मैं कहता हूँ।
शोर बाहरी क्या सुनना जब,दिल के ताने सहता हूँ।
खोजा करता हूँ उस दिल को,शायर जिसको दिल कहते।
दिल के द्वार बन्द कर यारों,दिल में ही मैं रहता हूँ।
5
बात कहूँ मैं अपने दिल की,औरों की मैं क्या जानूँ।
फूलों में जजबात नहीं हैं,भौंरों की मैं क्या जानूँ।
प्यार बिके अरमान बिकें हैं,आज यहाँ सब कुछ बिकता।
झरनों में आवाज नहीं है,धौरों की मैं क्या जानूँ।
'ललित'
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पेज 12
मुक्तक लावणी
1
दिल की बगिया में महका इक,सुंदर प्यार भरा सपना।
अपनापन पाकर निखरा वो,लेकिन हो न सका अपना।
सपने में यूँ खोया ये दिल,भूल गया अपनी धड़कन।
नींद खुली तो सपना टूटा,भूला सपनों में खपना।
2
"जब भी खुलकर हँसना चाहा,दिल ने अधरों को रोका।
जब भी हँसकर जीना चाहा,अपनों ने ही
तो टोका।
अब तो हमने सीख लिया है,दिल ही दिल में खुश रहना।
चाही दिल ने खुशियाँ तो फिर,मन्दिर में जाकर ढोका।
3
कुछ फूलों की चंचल खुशबू,संग हवा के चल देती।
औ' कुछ की खुशबू माली के,नथुनों को संबल देती।
कुछ ऐसे निगुरे होते जो,खुशबू कभी नहीं देते।
और कई पुष्पों की खुशबू,बगिया को हलचल देती।
4
दिल की दीवारों में कितने,ख्वाब सुनहरे पलते हैं।
उन ख्वाबों में डूबे मानव,अद्भुत चालें चलते हैं।
सपने तो सपने हैं आखिर,टूटा करते हैं अक्सर।
टूटे सपने भी इंसाँ को,जीवन भर फिर
छलते हैं।
5
नैन मटक्का करे कन्हैया,राधा गोरी गोरी से।
छाँव कदम की बतियाता है,बरसाने की छोरी से।
गोप गोपियाँ आनन्दित हो,प्रेम-पुष्प वर्षा करते।
राधा रानी हाथ छुड़ाए,पकड़े कान्हा जोरी से।
'ललित'
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पेज -13
मुक्तक लावणी
1
फूलों ने हँसना छोड़ा है,कलियाँ भी मुरझाई हैं।
माली सींच रहा बगिया पर,पानी भी हरजाई है।
कली-कली पर भौंरे डोलें,प्रेम नहीं कुछ मन में है।
खिलने से पहले रस चूसा,अब केवल तनहाई है।
2
मात पिता के चरणों में ही,सुख का सागर बहता है।
वहीं डाल दो डेरा अपना,वहीं कन्हैया रहता है।
उन चरणों की सेवा करके,भार मुक्त हो जाओगे।
कान लगा कर सुनो जरा तुम,उनका दिल क्या कहता है?
3
कौन किसी का मीत यहाँ पर,कौन किसी का अपना है।
सबकी अपनी अपनी दुनिया,अपना अपना सपना है।
साथी पर जब पीर पडे तो,मोड सभी मुख जाते हैं।
गाँठ बाँध लो दुख आए तो,राम नाम ही जपना है।
4
छोड़ चले तारे अम्बर को,कान्हा की बंसी बोले।
गोप-गोपियाँ लें अँगड़ाई,मोहन की छवि मन डोले।
यमुना तीरे से बाँसुरिया,देती है ये संदेशा। 
उसकी बंसी बजे मधुर जो,बातों में मधु-रस घोले।
5
माँ-बेटी का होता जग में,सबसे सुंदर नाता है।
प्यार दिया जो तू ने मुझको,झोली में न समाता है।
अपनी इस बेटी का दामन,खुशियों से माँ भर देना।
चूमे जब तू माथा मेरा,रोम रोम खिल जाता है।
'ललित'
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पेज 14
मुक्तक 14:12  व 14:14

क्यूँ भ्रमर गुंजन करें क्यूँ,श्याम की मुरली बजे?
राधिका के नाम से क्यूँ,बाँसुरी के सुर सजें?
क्यूँ लताएं झूमती हैं,साँवरे के नाम से?
बाँसुरी की तान पर क्यूँ,गोपियाँ घर को तजें?
2  
हड्डियों का एक ढाँचा,आज बनकर रह गया।
जिन्दगी ने यूँ बजाया,साज बनकर रह गया।
स्वप्न सब आँसू बने अब,आँख से हैं बह रहे।
साथ छोड़ा चाम ने भी,खाज बनकर रह गया।
3  
जिन्दगी जी भी न पाया,हाय यौवन खो गया।
भीग तन मन भी न पाया,और सावन खो गया।
ख्वाब खुश्बू के दिखा कर,फूल सब ओझल हुए।
कर्म फल दे भी न पाए,हाय जीवन खो गया।

ज़िन्दगी से आज हमको,चोट इक प्यारी मिली।
कौन सा मरहम लगाएँ,हर दवा खारी मिली।
ज़ख्म जो दिल में हुआ है,दीखता हरदम नहीं।
घाव पर मरहम लगाती,ख्वाहिशें सारी मिली।
5   
चलो इक बार फिर से हम,नयी दुनिया बसाते हैं।
नयी सुर-ताल सरगम पर,नया इक गीत गाते हैं।
गिले-शिकवे दिलों में जो,दिलों में ही दफन कर दें।
चलो पतवार बनकर हम,भँवर को भी हराते हैं।
'ललित'
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माहिया

माहिया

क्या खूब दिवाली है
दीप व बाती की
हर आँख सवाली है।

है रात दिवाली की
दीप व बाती की
औकात न माली की।

तम स्वप्न यहाँ बुनता
दीप व बाती की
अब कौन यहाँ सुनता?

घनघोर घटा छाई
दीप व बाती की
अब पीर किसे भाई।

भगवान नहीं सुनते
दीप व बाती की
इंसान नहीं सुनते

त्यौहार दिवाली का
दीप व बाती की
बेज़ार दिवाली का

ललित

छद श्री सम्मान