माहिया
क्या खूब दिवाली है
दीप व बाती की
हर आँख सवाली है।
है रात दिवाली की
दीप व बाती की
औकात न माली की।
तम स्वप्न यहाँ बुनता
दीप व बाती की
अब कौन यहाँ सुनता?
घनघोर घटा छाई
दीप व बाती की
अब पीर किसे भाई।
भगवान नहीं सुनते
दीप व बाती की
इंसान नहीं सुनते
त्यौहार दिवाली का
दीप व बाती की
बेज़ार दिवाली का
ललित
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