चार कदम मुक्तक दिवस 2018

28.06.18
चार– कदम
मुक्तक दिवस-260
समारोह अध्यक्ष आदरणीया रेखा लोढ़ा 'स्मित' जी एवं मंच को सादर समर्पित..

मुक्तक

कपट और छल छिद्र भरे जो,इंसाँ गुरु कहलाते थे।
खुद गहरे दल-दल में धँस कर,शिष्यों को नहलाते थे।
शिष्य जिन्हें पूजा करते थे,ख्वाबों और खयालों में।
खुद वो पूजा के फूलों से,जुल्फों को सहलाते थे।

ललित किशोर 'ललित'

11.4.18
चार– कदम
मुक्तक दिवस-249
समारोह अध्यक्ष आदरणीय प्रदीप कुमार दीपक जी एवं मंच को सादर समर्पित..

मुक्तक

प्रेम भरा हो दिल में जितना,उतना ही वो छलकेगा।
नैन झरोखे से वो शीतल,मोती बनकर ढलकेगा।
जिसके सीने में नाजुक सा,प्यार भरा इक दिल होगा।
उसकी उठती गिरती पलकों,में हरदम वो झलकेगा।
ललित किशोर 'ललित'
22.3.18

चार– कदम
मुक्तक दिवस-246
समारोह अध्यक्ष आदरणीया डॉ.हेमलता सुमन जी एवं मंच को सादर समर्पित

मुक्तक

उलझन सुलझाने चला,चंचल मन के साथ मैं।

और उलझ बैठा वहीं,अपने मन के हाथ मैं।

मन तो मन की ही करे,जोड़े हाथ विवेक है।

परिणामों को देखकर,पकड़ूँ अपना माथ मैं।

ललित किशोर 'ललित'

14.3.18

चार– कदम
मुक्तक दिवस-245
समारोह अध्यक्ष आदरणीय श्री रवि प्रसाद केडिया जी एवं मंच को सादर समर्पित

नैन मटक्का   करे कन्हैया, राधा  गोरी  गोरी  से।
छाँव कदम की बतियाता है,बरसाने की छोरी से।
गोप गोपियाँ आनन्दित हो,प्रेम-पुष्प वर्षा  करते।
राधा रानी  हाथ  छुड़ाए, पकड़े  कान्हा जोरी से।

ललित किशोर 'ललित'

7.3.18
चार– कदम
मुक्तक दिवस-244
समारोह अध्यक्ष आदरणीय श्री विनोद चंद्र भट्ट जी एवं मंच को सादर समर्पित

मुक्तक 16:14

फूल एक दिन मुख मोड़ेंगें,माली ने ये था माना ।
फूलों की फितरत से माली,नहीं रहा था अंजाना।
अपना फर्ज मान कर उसने,सींचा था फुलवारी को।
फूलों की दुनिया से नाता,तोड़ चला वो दीवाना।

ललित किशोर 'ललित'

8.2.17
चार– कदम
मुक्तक दिवस-240
समारोह अध्यक्ष आदरणीय श्री ऋतु राज श्रीवास्तव जी एवं मंच को सादर समर्पित

मुक्तक 16:14

माँ-बेटी का होता जग में,सबसे सुंदर नाता है।
प्यार दिया जो तू ने मुझको,झोली में न समाता है।
अपनी इस बेटी का दामन,खुशियों से माँ भर देना।
चूमे जब तू माथा मेरा,रोम रोम खिल जाता है।

ललित किशोर 'ललित'
17.1.18

चार कदम : मुक्तक दिवस 237
समारोह अध्यक्षा आदरणीया आशा सोनी 'आन'  जी के सम्मान में सादर प्रेषित....

मुक्तक 16:14

टूट -टूट कर टुकड़े होते,सपने हरजाई हरदम।
रूठ-रूठ कर दूर खिसकते,दिखते जो अपने हमदम।
दिल के अरमानों की कश्ती,भी टूटे मझधारों में।
चोट उन्हीं से है मिल जाती,बनना हो जिनको मरहम।

ललित किशोर 'ललित'
3:1:18

चार कदम : मुक्तक दिवस 235
समारोह अध्यक्ष आदरणीय विनोद साँवरिया
राजपूत जी के सम्मान में सादर प्रेषित....

मुक्तक 16:14

दिल छोटा औ' पीर बड़ी है,नहीं किसी से कह पाऊँ।
दिल में उठती टीस बड़ी है,नहीं जिसे मैं सह पाऊँ।
अपनों ने जो घाव दिए वो,दिल में गहरे उतरे हैं।
घावों का अपनापन प्यारा,कैसे उन बिन रह पाऊँ।

ललित किशोर'ललित'

मुक्तक 16:14

दिल छोटा औ' पीर बड़ी है,नहीं किसी से कह पाऊँ।
दिल में उठती टीस बड़ी है,नहीं जिसे मैं सह पाऊँ।
दुनिया ने जो घाव दिए वो,दिल में गहरे उतरे हैं।
घाव नया नित अनुभव देते,कैसे उन बिन रह पाऊँ।

ललित

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