तोटक छंद
सिय-राम
सिय-राम सदा जप लो मुख से।
जय तारण-हार कहो सुख से।
जप ये हनुमान सदा करते।
भव-ताप दुखी-जन के हरते।
दिल में सिय-राम बिठाय लिए।
दिल-चीर सबै दिखलाय दिए।
हनुमान समान न भक्ति कहीं।
सिय-राम समान न शक्ति कहीं।
शबरी तकती नित राह जहाँ।
वन में पहुँचे प्रभु राम वहाँ।
चख बैर खिलाय रही शबरी।
पद-पंकज ध्याय रही शबरी।
मन केवट पावन भाव रहा।
तट-गंग लिए निज नाव रहा।
उसको पग राम पखारन दें।
निज भक्तन जन्म सुधारन दें।
सिय-राम सदा जप लो मुख से।
जय तारण हार कहो सुख से ।
ललित
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