चौपाई छंद रचनाएँ

1

मात-पिता हैं जीवन दाता।
प्रभु से बढ़कर भाग्य विधाता।।

नित उठ मात-पिता जो पूजे।
उसका नाम दिशा दस गूँजे।।

मात-पिता सम देव न कोई।
सेवा से सब तीरथ होई।।

मात-पिता करते यह आशा।
सुत करदे सब दूर निराशा।।
         
                दोहा
माँ चरणों की रज सदा,माथ धरे जो कोय।
उसके पीछे हरि चलें,ईश भक्ति फल होय।

29..09.15

2

बेटी

सुता जन्म पर खुशी मनाओ।
प्रभु पूजा कर भेंट चढ़ाओ।।

चंचल शीतल निर्मल रूपा।
वो कोमल भगवती स्वरूपा।।

बेटी होवे घर का गहना।
सुर मुनियों का ये ही कहना।।

बेटी से दिशि दस उजियारा।
रोशन करदे घर वो सारा।।

कन्यादान पुण्य है प्यारा।
दान करे हर पालन हारा।

               
दोहा

कन्या को पालो सदा,जैसे कोई फूल।
दो कुल तारें बेटियाँ,कभी न जाना भूल।।

3

बेटी

पास कौन इसको रख पाया।
बेटी है धन यहाँ पराया।।

पाला-पोसा हृदय लगाया।
जीवन जीना उसे सिखाया।।

इक दिन साथ छोड़ है जाना।
अपना घर है अलग बसाना।।

प्यार उसे तुम इतना करना।
सुख से झोली उसकी भरना।।

पढ़ लिख कर ऐसी बन जाए।
जीवन में कुछ कमी न आए।।

दोहे

कहे सुता यह तात से,विनती करती रोय।
हीरे मोती आपके,नहीं चाहिएँ मोय।

मुझे दिला दो ज्ञान वो,जीवन उन्नत होय।
आस किसी की नहि रहे, काम करूँ सब कोय।

ललित

01.10.15

4

तुलसी

विष्णु प्रिया तुलसी घर जाके।
प्राण वायु पावन घर वाके।।

तुलसी दर्शन नित उठ करिए।
स्नान ध्यान कर जल फिर धरिए।।

प्रात: तुलसी रस पी ली जै।
बल औ' तेज में वृध्दि की जै।।

तुलसी है अनमोल रसायन।
सेवा से खुश हों नारायन।।

तुलसी सर्व रोग हर लेवे।
तन-मन को पावन कर देवे।।

तुलसी वन रखिए सदा,घर आँगन में बोय।
नित उठ दर्शन जो करे,मोक्ष-मुक्ति फल होय।।

'ललित'

1.10.15
 
5

प्रकृति

शीतल शांत पाई जलवायु।
तुझे मिली सौ वर्ष की आयु।।

जल दोहन कर भूमि सुखाई।
नदियाँ बाँध बना तरसाई।।

वायु प्रदूषण भी दुखदायी।
आयु रात दिन घटती पायी।।

वन काटे बरखा रुकवायी।
कंकरीट हर ओर बिछायी।।

मारी अपने पाँव कुलाड़ी।
निकला तू तो बड़ा अनाड़ी।।

दिये हैं नियति ने तुझे,संसाधन अनमोल।
रे मानव मत भूल तू,मत बदले भूगोल।।

ललित

02.10.15

6

गाँधी जी के कुछ अनमोल वचन
चौपाई व दोहों के रूप में

आँख देख यदि आँख दिखाए।
जग सारा अंधा हो जाए।।

थोड़ा भी अभ्यास करे जो।
उपदेशों से नहीं डरे वो।।

चाहे तू ये दुनिया बदले।
पहले खुद को बदलो पगले।ज।

जो खुश रहना चाहो राजा।
कहो वही जो सोचो काजा।।
कहो उसे कर के दिखलाओ।
इसमें सामंजस्य बिठाओ।।

दोहा

अबला कहकर मत करो,नारी का अपमान।
नारी को मानो सदा,दुर्गा रूप समान।।

'ललित'

2.10.15

7

गाँधी जी के कुछ अनमोल वचन
चौपाई व दोहों के रूप में

मरने को तैयार रहूँ मैं।
वजह नहीं जो वार करूँ मैं।

सत्य अहिंसा धर्म हमारा।
सत-प्रभु मिले अहिंसा द्वारा।।

जियो मान के कल है मरना।
सीखो जान सदा है रहना।।

किसी एक को खुश कर देना।
प्रार्थना से बेहतर है ना।।

जानना जो खुदी को चाहें।
पर-सेवा की पकड़ें राहें।।

दोहा

मर जाता हर रात हूँ,जबहिं सोने जाऊँ।
पुनर्जन्म अगले दिना,जबहिं उठकर आऊँ।।

ललित

3.10.15

8

माँ

माँ का है सानी नहिं कोई।
सुर नर मुनि सब कहते सोई।।

माँ होवे भगवती स्वरूपा।
जग में माँ का रूप अनूपा।।

माटी वो रूहानी होवे।
जिसमें माँ ढलवानी होवे।

माँ बेटे की अजब कहानी।
समझे नहिं  बेटा अज्ञानी।।

माँ ऐसी जननी कहलाए।
हरि को जो पैदा कर पाए।।

दोहा

माँ के दर्शन के बिना,काज बने नहिं कोय।
माँ चरणों में नित झुके,काज सफल सब होय।

ललित

9

माँ

माँ की मूरत मन बैठाले।
उसका काम न कोई टाले।

माँ चरणों की रज जब पाई।
देवों ने भी शीश चढ़ाई।।

माँ बन गरल पिलाने आई।
पूतना भव से वो तराई।।

भगत सिंग जैसे बलिदानी।
पैदा करती माँ ही ज्ञानी।।

माँ दुर्गा जब शक्ति मिलाएं।
शिव जी राज चला तब पाएं।।

दोहा

बागबाँ कहलाए जो,जल से सींचे बाग।
माँ सींचे निज खून से,शिशु को रातों जाग।।

10

पिता

तिनका तिनका चुनकर लाया।
प्यारा सा घर एक बनाया।।

अपने तन का खून जलाया।
बच्चों को पर दूध पिलाया।।

दुनिया भर से लड़ता आया।
घर पर दादा बड़ सा छाया।।

दिन रहते कुछ देखे सपने।
साँझ ढले सब बिछड़े अपने।।

जिन पर जीवन व्यर्थ गँवाया।
वे ही कहते आज पराया।।

तात तुम्हारी यही कहानी
अब तो छोड़ो ये नादानी।।

दोहा

मत भूले उस तात को,पाला जिसने तोय।
काटेगा तू कल वही,आज रहा जो बोय।।

4.10.15

11

देश के वर्तमान हालात

पंडित जी कुछ तो बतलाओ।
राजमार्ग मुझ को दिखलाओ।।

सपनों का व्यापार लगाओ।
जनता को सपने दिखलाओ।।

सपनों का धंधा है ऐसा।
लगता नहीं एक भी पैसा।

सपनों का व्यापार चलेगा।
धंधा तुमको खूब फलेगा।।

सपनों में जब खोए जनता।
अपना काम तभी है बनता।।

वोटों को बरसात मिलेगी।
नींद किसी की नहीं खुलेगी।

दुनिया भर की सैर करोगे।
देश न अपने पैर धरोगे।।

सपने रोज़ भुलाते जाओ।
नव सपने फिर से दिखलाओ।।

मन की बात सदा ही कहना।
पूरी लेकिन कभी न करना।।

कुछ तो लेकिन करना होगा।
ध्यान देश पे धरना होगा।।

इसका लोटा उसकी धोती।
करते रहना लीपा पोती।।

सपनों का संसार ये,सपने माया जाल।
सपनों की सरकार से,बन जाओ भूपाल।

'ललित'

4.10.15

12

देश के वर्तमान हालात

सोने की चिड़िया लुटती है।
मन ही मन में वो घुटती है।।

कभी लुटी गैरों के कर से।
आज लुटेरे अपने घर से।।

मान नहीं सम्मान नहीं है।
नेता में ईमान नहीं है।।

बेईमान कम कौन कितना।
पकड़ न आए जब तक जितना।।

सरकारी धन बाँट रहे हैं।
खुद तो कर वो ठाठ रहे हैं।।

जनता को है पंगु बनाया।
मेहनती को है ठुकराया।।

जनता भी कितनी है भोली ।
बाँट रहा जो भर-भर झोली।

उस की झोली भरदेती है।
वोट छली को दे देती है।।

सोच सोच मन घबराया है।
तम ये कितना गहराया है।।

ऐसी एक मशाल जलाओ।
भारत माँ का मुख दिखलाओ।

दोहे

जनता लुटती देश की,मचता हाहाकार।
जनता का धन लूटके,जनता पे ही वार।।

4.10.15

13

जब मैं छोटा सा बच्चा था।
पटेल-गाँधी का चर्चा था।।

रानी झाँसी, वीर शिवाजी।
पढ़के दिल होता था राजी।।

नेताओं की जात नहीं थी।
राजाओं सी घात नहीं थी।

अब तो ऐसा दिन आया है।
हर माँ ने नेता जाया है।

जनता भूल गई हरि पूजा।
नेताओं से भारत धूजा।।

नेता हों जिस देश में,उसका बंटाधार।
पा सकते हरि भी नहीं,नेताओं से पार।।

ललित

14

पेड़ हवा दे जीवन दाता।
मानव का वह मित्र कहाता।।

फूलों से बगिया महकाये।
फल आये तो झुकता जाये।।

जो कोई पत्थर से मारे।
फल अपने वो उस पर वारे।।

जो मानव इक पेड़ लगाता।
जीवन अपना सफल बनाता।

पेड़ दिए भगवान ने,मानव के हित काज।
मानव ही कटवा रहा,उन पेड़ों को आज।।

ललित

भुजंग प्रयात रचनाएं

भुजंग प्रयात छंद

1

22.09.18

निराकार ओंकार साकार देवा,
चहौं हाथ माथे न बादाम मेवा।

दया कौन चाहे न दातार तेरी,
करो आस पूरी जगन्नाथ मेरी।

गले से लगाया सुदामा यहीं था।
लिया चावलों के अलावा नहीं था।

मिला जो सुदामा नहीं जान पाया।
दुआएं मिली और सम्मान पाया।

वही यार संसार में है निराला।
करे दोसतों के घरों में उजाला।

चलेगा न कोई बहाना पुराना,
पुकारूँ तुझे तू गले से लगाना।

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3

22.09.15

चला चाल टेढ़ी सदा मैं अनाड़ी,
महाकाल तेरी न ढोकी दियाड़ी।

जमाना लगाता  तमाचा करारा,
तभी याद आता तुम्हारा दुआरा।

4

23.09.15

बड़ा ढीठ गोपाल  बंसी बजैया।
बिना राधिका के न आये कन्हैया।

कहे श्याम राधा दुहाई तुम्हारी।
जहाँ राथिका है वहीं है मुरारी।

बड़ी दूर है श्याम तेरा बसेरा,
यहीं दूर से मैं जपूँ नाम तेरा।

बुलाले हमें श्याम तेरे ठिकाने,
कहीं रूठ जाएं न तेरे दिवाने।

दसों ही दिशा गूँजता नाम मेरा,
न कोई किसी धाम है खास डेरा।

पुकारे मुझे जो दिलो जान से है,
जपे जो सदा नाम ईमान से है।

उसी का सदा मैं बना हूँ खिवैया,
बड़े प्रेम से जो पुकारे कन्हैया।

कभी नाम मेरा जुबाँ से न लेता,
निरा मूर्ख है वो डुबा नाव देता।

ललित

5
23.09.15

भुजंग प्रयात

विषैले थनों को लला को चटाने,
चली पूतना थी सुरों को मिटाने।

कन्हैया मजे से पिये जा रहा था,
उसे मान माँ का दिये जा रहा था।

लपेटा उसे था पिये प्राण ऐसे,
धरा पे गिरी वो नहीं प्राण जैसे।

यशोदा नहीं जान पाई कन्हैया,
जना पूत था राक्षसों का नशैया।

'ललित'

6

24.09.15
केडी आरजी 18.2.17
भुजंग प्रयात

बड़ी ही दया है मुरारी तुम्हारी,
दिया आसरा जिन्दगी ये सँवारी।

करूँ माँग आगे गवारा नहीं है।
दुआ का तुम्हारी पिटारा यहीं है।

मिले जो तुम्हारा जरा सा इशारा।
जमीं तो जमीं आसमाँ हो हमारा।

करो आप वासा दिलों में कन्हाई।
नहीं और कोई सुने है दुहाई।

'ललित'

7
25.09.15

भुजंग प्रयात

महादेव तेरी निराली छटा है।
गुणागार कैलाश वासी डटा है।

गले नाग काला विषैला निराला।
रमायी भभूती गले मुंड माला।

जटा जूट भागीरथी का बसेरा।
त्रिनेत्री बिरागी शशी भाल डेरा।

कहानी अनूठी न जाए बखानी।
महाकाल नाचें निहारे भवानी।

'ललित'

8

25.09.15

भुजंग प्रयात

(एक माँ बाप की व्यथा लिखने की
कोशिश कर रहा हूँ जो कई कड़ियों में
पूरी होगी।आगे कहानी क्या मोड़ लेगी
वह प्रेरणा देने वाली माँ शारदा ही जानती हैं।)

भुजंग प्रयात छंद

लला और माया
             

कई मन्दिरों पे मनौती भराई,
चढ़ा भेंट पूजा कथा भी कराई।

हुई आस पूरी न फूले समाये।
भरी गोद सूनी लला नेक पाये।

दिवाली मनाई जगारा जगाया।
लला प्यार से वो गले से लगाया।

बड़े चाव से पालने में झुलाया।
सुना लोरियाँ लाल को था सुलाया।

कहे माँ,लला तू हमारा कन्हैया।
गले से लगा चूमती ले बलैया।

तु ही प्यार मेरा तु संसार मेरा।
तु ही साँझ मेरी तु मेरा सवेरा।

बला पे चली आ रही हों बलायें ।
दुआ ये करूँ मैं तुझे छू न पायें।

पिता भी कहे तू दुलारा हमारा।
जरा भी कमी हो नहीं है गवारा।

उचारे ममा तो ,पिता फूल जाता।
बजें पायलें जो, ज़रा लोच खाता।।

नहीं दूध पीता, हुआ क्या लला को।
ममा सोचती है ,भगाऊँ बला को।।

जगे रात में वो ,लला को सुलाती।
पुकारे लला जो, वहीं दौड़ आती।।

कभी दूर जाता,कभी पास आता।
सुना तोतले बोल माँ को हँसाता।।

करें प्यार दादी कहानी सुनायें।
करें लाड़ दादा मनौती मनायें।।

ममा ढोक देना नमाना सिखायें।
पपा खूब सारे खिलौने दिखायें।।

चला नर्सरी में नई ड्रेस लाये।
पला नाज से है खुशी रोज पाये।

कभी ज़िन्दगी में कमी आ न पाई।
खिलाया पिलाया पढ़ाई कराई।।

लला को पढ़ाया उधारी  चढ़ाके
ममा और पापा करें रोज फाके।

यही आस बेटा पढ़ेगा लिखेगा।
लला का बड़ा नाम ऊँचा दिखेगा।

बड़ा नेक बेटा दिलासा दिलाता।
सदा मान देता प्रभू को धियाता।

ममा और पापा ,ददा और दादी।
सभी के दिलों में उमंगें जगादी।

पढ़ूँगा बनूँगा बड़ा आदमी मैं।

करूँ मात सेवा सदा लाजमी मैं।।

लला फोन मोबाइलों से घुमाता।
नहीं बात कोई ममा से छुपाता।।

सभी खास बातें हमेशा बताता।
ममा और पापा विधाता जताता।।

कभी भी ममा को न ये भास होता।
लला काश मेरा सदा पास होता।।

बड़ी ही सुहानी कहानी यहाँ से।
ममा की जुबानी सुनो जी वहाँ से।।

लला आज सी एस सी ए हुआ है।
सुनो राम जी की बड़ी ये दुआ है।।

लला के पपा आप बाजार जाओ।
मिठाई फलों का चढावा चढ़ाओ।।

मिठाई बँटाओ गली औ' बजारों।
मिलेंगी दुआएँ लला को हजारों।।

ददा ये कहें आज संसार सारा।
कहेगा लला खास पोता हमारा।।

लला झूमता खूब देखो नजारा।
ममा औ' पपा का बनूँगा सहारा।।

रही ख्वाहिशें आपकी जो अधूरी।
करूँगा सभी ब्याज के साथ पूरी।।

पपा की खुशी का नहीं है ठिकाना।
सुधारा बुढ़ापा सही आज जाना।।

लला की बड़ी काम की होशियारी।
मिली नौकरी साथ पैकेज भारी।

चुकाने लगा वो पपा के उधारे।
कमोबेश हालात यूँ ही सुधारे।

सवा साल बीता दिवाली मनाते।
नया दौर आया बहाने बनाते।

लला ने फसाना पुराना सुनाया।
पढ़ी साथ थी जो परी नाम माया।।

वही ज़िन्दगी है वही प्यार मेरा।
उसी से शुरू होय संसार मेरा।।

किया है उसी से ममा एक वादा।
जिऊँगा उसी संग है ये इरादा।।

ममा और पापा हुए यूँ पराये।
लला की खुशी देख फेरे कराये।

हनीमून से लौट के आज आये।
ममा से निगाहें रहे वो चुराये।।

निगाहें झुकाये लला बोल जाता।
ममा आपका ये घराना न भाता।

बहू भी न चाहे यहाँ और आना।
हमें आज ही हैदराबाद जाना।

ममा और पापा नहीं रोक पाये।
रहे सोचते जो कहा भी न जाये।

रवाना हुए यों लला और माया।
सभी ख्वाब तोड़े लला ने हराया।

मनौती मनाई ममा ने जहाँ थी।
उसी देवरे आज बैठी वहाँ थी।।

मुझे देव क्यों पूत ऐसा दिया था।
भुला आज पापा ममा को गया था।।

यदि पूत ऐसा दिखाता समा है।
जने क्यों सुतों को जहाँ में ममा है।।

बताओ प्रभू ये ममा और पापा।
गुजारें कहाँ और कैसे बुढ़ापा।।

मिला के तभी देवता से निगाहें।
पुकारे ममा आज वीरान राहें।।

लला ने भरी आज संताप से मैं।
करूँ कामना ये प्रभू आप से मैं।।

लला को प्रभू नेक राहें दिखाना।
ममा को न भूले कभी ये सिखाना।

लला से बड़ी आस दाता लगाई।
बड़ी भूल की आस क्यों थी जगाई।।

प्रभू ने सुनी ये ममा की कहानी।
लला भूल पाया न यादें पुरानी।।

लला दौड़ माता पिता पास आया।
ददा ने गले से लला को लगाया।।

ममा ने कहा यूँ तुझे देख पाला।
गले से उतारा न कोई निवाला।।

पपा ने उधारा लिया तू पढ़ाया।
बड़ी मुश्किलों से उधारा चुकाया।।

हमें आज तेरा सहारा मिलेगा।
यही सोचते थे सवेरा दिखेगा।।

करी आपने जो नहीं वो नवाई।
कराते सभी हैं सुतों को पढ़ाई।।

ममा आपके एहसाँ मानता हूँ।
पढ़ाया लिखाया मुझे जानता हूँ।।

यही चाहता हूँ बनूँ मैं सहारा।
हुआ हूँ ममा मैं बड़ा बेसहारा।।

न भूलो कहाँ आज जाये जमाना।
बड़ी मुश्किलों से भरा है कमाना।।

मुझे कार ले बंगला भी बनाना।
बड़ा काम भारी पपा ने न जाना।

ममा आज जो भी बड़ी कार लेता।
जमाना उसे ही बड़ा मान देता।।

ममा सोचती है लला और माया।
इन्होंने जमाना नया है दिखाया।

पपा का न पूछो हुआ हाल था जो।
पराया हुआ वो सगा लाल था जो।।

जिसे पालने में खपाई जवानी।
उसी लाल ने आज दे दी रवानी।।

ममा रो रही आज देती दुहाई।
रहे मौज आनंद में तू सदाई।।

कभी जिन्दगी में न देखे गमी तू।
बना आज माया सखा है डमी तू।।

पपा ने लला की ममा को पुकारा।
लुटा आज संसार सारा हमारा।।

लला ये न होता लली काश होती।
अजी आस यों तो लगाई न होती।।

लली प्यार दोनों जहाँ का जताती।
हमारी कभी बात खाली न जाती।।

किसी को न देना प्रभू लाल ऐसा।
करे जो बुरा हाल कंगाल जैसा।।

                 समाप्त

'ललित'

15.10.16
भुजंग प्रयात छंद

जमीं से मिले आसमानो कहाँ हो?
सबूतों गवाहों ठिकानों कहाँ हो?

मुझे साँस देती हवाओं कहाँ हो?
अरी तात माँ की दुआओं कहाँ हो?
छिपे दानवी कत्लखानों कहाँ हो?
सबूतों गवाहों ठिकानों कहाँ हो?

कहे पूर्व नौ-नौ दिशाओं कहाँ हो?
अरे खून ढोती शिराओ कहाँ हो?
छिपे फौज के नौजवानों कहाँ हो?
सबूतों गवाहों ठिकानों कहाँ हो?

जनाधार के सूत्रधारों कहाँ हो?
अरे वोट के दान दारों कहाँ हो?
कहे केजरी बेजुबानों कहाँ हो?
सबूतों गवाहों ठिकानों कहाँ हो?

'ललित'

जल हरण घनाक्षरी रचनाएँ


जलहरण घनाक्षरी रचनाएं

1

14.09.15
KD&RG19.1.17
जलहरण घनाक्षरी

कान्हा से नजर मिली,राधा सुध भूल चली।
सरकी जाए चुनरी,पायलिया बेजान है।।

सखियाँ इशारे करें, मुख फेर फेर हँसे।
राधा छवि देख रही,साँवरिया नादान है।।

बाँसुरी बजाए कान्हा,गइयाँ है चरा रहा।
राधाजी को प्यारी लगे,बाँसुरिया की तान है।।

राधा जी की सखी संग,मोहन करे बतियाँ।
राधे रानी रूठे कैसे,मनवा बेईमान है।।

'ललित'

2

14.9.15

जलहरण घनाक्षरी

हिंदी भाषा

भाषा हिंदी में ही करें, चलो मन की ये बात,
हिंदी भाषा में ही लिखें, गाथा इस जहान की।।

हिंदी भाषा पढ़ सीखें,,गीता,वेद,रामायण,
दिल में उतारें सीख, अठारह पुराण की।

हिंद के निवासी हम,हिंदी है हमारी भाषा,
हिंदी में सुनी हैं लोरी,हमने बलिदान की।।

देश के गद्दार यहाँ,अंग्रेजी में बात करें।
लुटिया डुबो रहे हैं, अपने हिंदुस्तान की।

ललित जी कुछ स्थानों पर भावानुसार थोड़ा परिवर्तन किया है..लय और विधान में लाने के लिए....👍👍🏻👍🏻😊😊👍🏻👍🏻

'ललित'
3

14.09.15

हिंदी भाषा

जलहरण घनाक्षरी

        भारत माता की व्यथा

किसने लगाई आग,धुआँ ये निकलता है।
माँ तेरी आँखों से कैसा,अंगारा निकल रहा।।

दुरगति देख मेरा,जिया आज जलता है।
बेटा अपना ही आज,अंग्रेजी उगल रहा।।

वतन ये मेरा आज ,ले रहा उधार साँस ।
त्याग हिंद देश लल्ला,परायों में पल रहा।।

अंगरेजीजी दूतों ने जो, छलनी किया कलेजा।
हिंदी के साहित्य से येे ,ज्ञान दीप जल रहा।।

'ललित'

दुरगति देख मेरा, जिया आज जलता है, 👈🏻 करें लय के लिए....
वतन ये मेरा आज, ले रहा उधार साँस, 👈🏻
अँगरेजी दूतों ने जो, छलनी किया कलेजा, 👈🏻 👍🏻👍🏻💐💐👍🏻👍🏻👍🏻
घनाक्षरी में लय के लिए कभी कभी देशज शब्दों का सहारा भी लेना पड़ता है भावपूर्ति के लिए....👍🏻💐💐🙏🏻🙏🏻💐

4

15.09.15

जलहरण घनाक्षरी

महाराणा प्रताप
राकेश जी के सुझाव से परि

मेवाड़ी धरा ने यहाँ,ऐसा एक पूत जना।
दासता को चुना नहीं,वनों में वो रुका रहा

घास वाली रोटी वहाँ,छीन के बिलाव भागा।
शत्रुओं के आगे कभी,वो न सिर झुका रहा।

माँ के दूध को नहीं मैं,लजाऊँगा अब यहाँ।
प्रण जो राणा नेे किया,वो प्राणों से चुका रहा।

फौज अस्सी हजारी से,बीस हजारी ही लड़े।
नाकों चने चबा दिए,शत्रु तो ठिठुका रहा।

'ललित'

5

15.09.15
केडीआरजी25.1.17
जलहरण घनाक्षरी
मीरा

मीरा जपे कान्हा नाम,कान्हा ही सुखों का धाम।
अपनी साँसों के तार,कान्हा संग जोड़ दिए।

महलों को छोड़ चली,श्याम की दीवानी मीरा।
श्याम रंग ओढ चली,सब रंग छोड़ दिए।

अपना ही आपा भूली,श्याम चरणों में खोई ।
भगती की राह चली,सारे बंध तोड़ दिए।

राणा जी ने विष दिया,सेवन सहज किया।
विष बना सोम रस,पुण्य ज्यूँ निचोड़ दिए।

'ललित'

6

16.09.15

जलहरण घनाक्षरी

कन्या भ्रूण हत्या
अजन्मी की व्यथा

मुख मत मोड़ना माँ,मुझे मत मारना माँ।
तेरी परछाई हूँ मैं,कातिल ये जहान है।

चलती है पुरवाई,बरखा है बरसती
दुनिया है फुलवारी,गायब बागबान है

लहराता समंदर,ऊपर नीला अम्बर।
सतरंगी बहार है,ये प्यारा गुलिस्तान है।

घूमी लख चौरासी मैं,मानुष योनि पाने को।
मुझको भी देखने दे,दुनिया आलीशान है।

'ललित'

7

17.09.15

जलहरण घनाक्षरी

लम्बोदर गजानन,सुनलो मन कामना
मंगल कारण करो,भव-बाधा दूर करो।

मोदक का भोग लगे,मूषक पे सवार हो।
मात-पिता चरणों की,पूजा तो जरूर करो।

ऋद्धि-सिद्धि स्वामी आप,सर्व मंगलदाता हो।
प्रेम से जो पूजा करे,कमना को पूर करो।

कृपा बरसाओ दाता,धन-धान्य विद्या भरो।
अपने प्यारे भक्तों का,प्रेम तो मंजूर करो।

'ललित'

8
17.09.15
जलहरण घनाक्षरी

संकट नाशन गणेश स्तोत्र
के हिन्दी रूपान्तर का प्रयास
कोई त्रुटि हो तो आप सब से
व गणेश भगवान से क्षमा चाहता हूँ।

पहला है वक्रतुण्ड,एकदंत दूजा नाम ।
तीजा कृष्णपिंगाक्षम्,गजवक्त्र चौथा नाम।

लम्बोदर है पाँचवाँ ,विकट है छठा नाम।
सातवाँ जो विघ्नराज,धूम्रवर्ण अष्ट नाम।

नौवाँ नाम भालचन्द्र,दसवाँ है विनायक।
ग्यारवाँ जो गणपति,गजानन बारा नाम।

जो तीनों संध्या जपता, प्यारे शुभ बारा नाम।
होय पूरीअभिलाषा,धर्म-अर्थ-मोक्ष काम।

'ललित'

9

19.09.15

जलहरण घनाक्षरी

धर्मशाला ये विशाल,
सुख-दुख मायाजाल।
कहलाता मृत्यु लोक,
अमर कौन होत है।

विचार ढाल सत्य के,
राह सत्य की ही चल।
मन में विचार कर,
पथ में खड़ी मौत है।

मात-पिता,गुरु जन,
सबका सम्मान कर।
इनसे ही जल रही,
तेरी जीवन ज्योत है।

राम को जो भूल कर,
काम मन चाहे करे।
पापों को वो याद कर,
अंत समय रोत है।

'ललित'

10

19.09.15
जलहरण घनाक्षरी

खेल खोया बचपन,
यौवन सीखे सब फन।
ऐसा मनमीत मिला,
भरता रहा बाथ रे।

बसंत-बहार जिया,
प्यार व्यापार किया।
नाते रिश्तेदार सभी,
फिर भी तू अनाथ रे।

अंत काल देख द्वार,
मन में करे विचार।
जीवन व्यर्थ खो दिया,
न आया कुछ हाथ रे।

कह रहे सदगुरु,
चलना नेक राह तू।
ऐसा धन जोड़ चल,
जो चले तेरे साथ रे।

'ललित'

11

19.09.15

जलहरण घनाक्षरी

जीवन संगीत सुना,
प्यार से तू गुनगुना।
नित नये छंदों से तू,
छेड़ मन के तार रे।

रचना तू छंद ऐसा,
मन को पसंद जैसा।
सबके मन को भायें,
ऐसे हों उदगार रे।

बहलाये मन को भी,
सहलाये तन को भी।
करे ऐसा वार लगे,
कलम तलवार रे।

भाव भरपूर भर,
लय से न दूर कर।
गाते रहें लोग सब,
मन से बार-बार रे।

'ललित'

12

20.09.15

जलहरण घनाक्षरी

बेटे पढ़ना छोड़ दे,
नेता बनके दौड़ ले।
जितना कमाये नेता,
कब कोई कमा सके।

भारत ये आजाद है,
मची बंदर बाँट है।
इतना कमायेे नेता,
घर में न समा सके।

कागजों में टूटते,
फाईलों में बनते।
रेल,रोड और पुल,
नकदी जो थमा सकें।

काम अपना बनता,
किसकी सगी जनता।
इतना कमा ले तू भी,
पीढ़ी सात खमा सकें।

'ललित'

13

20.09.15

जलहरण घनाक्षरी

आगे चमचे हों चार,
अंधे पीछे हों हजार ।
कलयुगी स्वामी नेता,
समझो चले आ रहे।

घर में है राजभोग,
सड़क पे हठ योग।
गरीबों के घर बैठ,
दिखते चने खा रहे।

जनता को दाना नहीं,
नेता जी ने जाना नहीं।
संसद में देखो सस्ते,
भोजन चखे जा रहे।

किसी की नहीं मजाल,
जो करे कोई सवाल।
खुद अपने आपमें,
सवाल बने जा रहे।

'ललित'

14

20.09.15

जलहरण घनाक्षरी

तानाशाही से हो जंग,
हो रही हो जेब तंग।
धरना हो देना गर,
नेता इक बनाईये।

रहे जान दे किसान,
नारी का हो अपमान।
करना हो चक्का जाम,
नेता इक ले आईये।

हो अकाल या हो बाढ,
या भूकम्प से विनाश।
करना हो पर्दा फाश,
नेता इक ले जाईये।

बनाते नेता हीे देश,
चलाते नेता ही देश।
बना नेताओं सा वेश,
खुद नेता कहाईये।

'ललित'

15

21.09.15

जलहरण घनाक्षरी

शोर मचा चहुँ ओर,
नाच रहा मन मोर।
बरसे है बदरिया,
आओ अब साँवरिया।

जो न आये तुम आज,
तोड़ दूँगी सारे साज।
कोरें पलकों की रहें,
भीगी हर पहरिया।

नैना प्यासे दर्शन के,
छीना है चैन मन का।
देकर वियोग पिया,
दीनी कर बावरिया।

दिल ये पुकार रहा,
सावन न जाये सहा।
मोहे तोरे बिन लगे,
सूनी हर डगरिया।

'ललित'

16

21.09.15

सूना हुआ मधुबन,
रुकी जाए धड़कन।
ये ही सखियाँ,
तू काटे कैसे रतियाँ।

हूक मन में है उठे,
शूल तन में हैं चुभें।
मीठे मीठे ताने सुना,
करतीं कनबतियाँ।

17

21.09.15

जलहरण घनाक्षरी

छलिया तू बेईमान,
छेड़ता है ऐसी तान ।
लोक-लाज भूलकर,
मैं आऊँ बगियन में।

अँखियाँ गुलाबी दिखें,
सखियाँ ठिठोली करें।
पूछें सखियाँ राज क्या,
गुलाबी अँखियन में।

चूड़ियाँ खनक रही,
बिंदिया चमक रही।
नजरें फेर-फेर मैं.
शर्माऊँ सखियन में।

अब के जो जाऊँगी मैं,
लौट के न आऊँगी मै।
खोटी नीयत तेरी जो,
बुलाए रतियन में।

'ललित'

जलहरण
KD and RD 23.1.17

जले दिन रात जिया,
कहाँ है तू श्याम पिया।
याद तुझे करती ये,
राधा व्रज में डोलती।

पूछती है गलियों से
बाग वन लियों से।
बाँसुरी वाले का पता
राज दिल के खोलती।

अँखियों में वास करे
दिल पे जो राज करे।
निंदिया चुराके गया
छलिया श्याम बोलती।

करी साँवरे से प्रीत
भूल दुनिया की रीत।
गलती तो नहीं करी
आज मन टटोलती।

'ललित'
कृष्ण दीवाने 14.1.17
जलहरण

नाच रही राधा-रानी
साथ घनश्याम के तो।
सखियाँ भी झूम रही
बाँसुरिया की तान पे।

झूम रही लतिकाएं
पादपो की बाहों में तो।
मोरपंख नाज करे
साँवरिया की शान पे।

चाँद भूला चाँदनी को
रास में यूँ रम गया।
राधिका का रास भारी
चँदनिया के मान पे।

सुरमई उजालों में
रेशम से अंधेरों में।
राधा श्याम नाच रहे
मुरलिया है कान पे।

'ललित'

जलहरण घनाक्षरी
यह उन दिनों का किस्सा है जब दूल्हा दुलहन पहली बार सुहागरात में ही मिलते थे....

दिल धक-धक करे
साँस रुक-रुक चले।
घूँघट उठाये जब
प्रीतम प्यारा प्यार से।

करेगा क्या प्यारी बातें
मेरा मुख देखकर?
देगा मुझे भेंट क्या वो
सुंदर मनुहार से?

हाथ थाम लेगा मेरा
बहियाँ मरोड़ देगा।
सीने से लगायेगा या
मचलेगा दीदार से?

सखियाँ भी ताने मारें
सजना अनाड़ी हाय।
देखो नाक पोंछ रहा
लहँगे की किनार से।

'ललित'

जलहरण

भाग-दौड़ छोड़ प्यारे
एक ठाँव रुक जारे।
कब तक भागेगा तू
जिंदगी की शाम हुई?

खुशियों में नाच लिया
दुख में विलाप किया।
सुख-दुख देखते ये
जिंदगी तमाम हुई।

सजनी का साथ मिला
सारा जग भूल चला।
यौवन में खोया रहा
खूब धूम-धाम हुई।

हो के अब तो निष्काम
जप ले तू राम-नाम।
काम-क्रोध-मद की ये
जिदगी गुलाम हुई।

'ललित'

छद श्री सम्मान