चौपाई छंद रचनाएँ

1

मात-पिता हैं जीवन दाता।
प्रभु से बढ़कर भाग्य विधाता।।

नित उठ मात-पिता जो पूजे।
उसका नाम दिशा दस गूँजे।।

मात-पिता सम देव न कोई।
सेवा से सब तीरथ होई।।

मात-पिता करते यह आशा।
सुत करदे सब दूर निराशा।।
         
                दोहा
माँ चरणों की रज सदा,माथ धरे जो कोय।
उसके पीछे हरि चलें,ईश भक्ति फल होय।

29..09.15

2

बेटी

सुता जन्म पर खुशी मनाओ।
प्रभु पूजा कर भेंट चढ़ाओ।।

चंचल शीतल निर्मल रूपा।
वो कोमल भगवती स्वरूपा।।

बेटी होवे घर का गहना।
सुर मुनियों का ये ही कहना।।

बेटी से दिशि दस उजियारा।
रोशन करदे घर वो सारा।।

कन्यादान पुण्य है प्यारा।
दान करे हर पालन हारा।

               
दोहा

कन्या को पालो सदा,जैसे कोई फूल।
दो कुल तारें बेटियाँ,कभी न जाना भूल।।

3

बेटी

पास कौन इसको रख पाया।
बेटी है धन यहाँ पराया।।

पाला-पोसा हृदय लगाया।
जीवन जीना उसे सिखाया।।

इक दिन साथ छोड़ है जाना।
अपना घर है अलग बसाना।।

प्यार उसे तुम इतना करना।
सुख से झोली उसकी भरना।।

पढ़ लिख कर ऐसी बन जाए।
जीवन में कुछ कमी न आए।।

दोहे

कहे सुता यह तात से,विनती करती रोय।
हीरे मोती आपके,नहीं चाहिएँ मोय।

मुझे दिला दो ज्ञान वो,जीवन उन्नत होय।
आस किसी की नहि रहे, काम करूँ सब कोय।

ललित

01.10.15

4

तुलसी

विष्णु प्रिया तुलसी घर जाके।
प्राण वायु पावन घर वाके।।

तुलसी दर्शन नित उठ करिए।
स्नान ध्यान कर जल फिर धरिए।।

प्रात: तुलसी रस पी ली जै।
बल औ' तेज में वृध्दि की जै।।

तुलसी है अनमोल रसायन।
सेवा से खुश हों नारायन।।

तुलसी सर्व रोग हर लेवे।
तन-मन को पावन कर देवे।।

तुलसी वन रखिए सदा,घर आँगन में बोय।
नित उठ दर्शन जो करे,मोक्ष-मुक्ति फल होय।।

'ललित'

1.10.15
 
5

प्रकृति

शीतल शांत पाई जलवायु।
तुझे मिली सौ वर्ष की आयु।।

जल दोहन कर भूमि सुखाई।
नदियाँ बाँध बना तरसाई।।

वायु प्रदूषण भी दुखदायी।
आयु रात दिन घटती पायी।।

वन काटे बरखा रुकवायी।
कंकरीट हर ओर बिछायी।।

मारी अपने पाँव कुलाड़ी।
निकला तू तो बड़ा अनाड़ी।।

दिये हैं नियति ने तुझे,संसाधन अनमोल।
रे मानव मत भूल तू,मत बदले भूगोल।।

ललित

02.10.15

6

गाँधी जी के कुछ अनमोल वचन
चौपाई व दोहों के रूप में

आँख देख यदि आँख दिखाए।
जग सारा अंधा हो जाए।।

थोड़ा भी अभ्यास करे जो।
उपदेशों से नहीं डरे वो।।

चाहे तू ये दुनिया बदले।
पहले खुद को बदलो पगले।ज।

जो खुश रहना चाहो राजा।
कहो वही जो सोचो काजा।।
कहो उसे कर के दिखलाओ।
इसमें सामंजस्य बिठाओ।।

दोहा

अबला कहकर मत करो,नारी का अपमान।
नारी को मानो सदा,दुर्गा रूप समान।।

'ललित'

2.10.15

7

गाँधी जी के कुछ अनमोल वचन
चौपाई व दोहों के रूप में

मरने को तैयार रहूँ मैं।
वजह नहीं जो वार करूँ मैं।

सत्य अहिंसा धर्म हमारा।
सत-प्रभु मिले अहिंसा द्वारा।।

जियो मान के कल है मरना।
सीखो जान सदा है रहना।।

किसी एक को खुश कर देना।
प्रार्थना से बेहतर है ना।।

जानना जो खुदी को चाहें।
पर-सेवा की पकड़ें राहें।।

दोहा

मर जाता हर रात हूँ,जबहिं सोने जाऊँ।
पुनर्जन्म अगले दिना,जबहिं उठकर आऊँ।।

ललित

3.10.15

8

माँ

माँ का है सानी नहिं कोई।
सुर नर मुनि सब कहते सोई।।

माँ होवे भगवती स्वरूपा।
जग में माँ का रूप अनूपा।।

माटी वो रूहानी होवे।
जिसमें माँ ढलवानी होवे।

माँ बेटे की अजब कहानी।
समझे नहिं  बेटा अज्ञानी।।

माँ ऐसी जननी कहलाए।
हरि को जो पैदा कर पाए।।

दोहा

माँ के दर्शन के बिना,काज बने नहिं कोय।
माँ चरणों में नित झुके,काज सफल सब होय।

ललित

9

माँ

माँ की मूरत मन बैठाले।
उसका काम न कोई टाले।

माँ चरणों की रज जब पाई।
देवों ने भी शीश चढ़ाई।।

माँ बन गरल पिलाने आई।
पूतना भव से वो तराई।।

भगत सिंग जैसे बलिदानी।
पैदा करती माँ ही ज्ञानी।।

माँ दुर्गा जब शक्ति मिलाएं।
शिव जी राज चला तब पाएं।।

दोहा

बागबाँ कहलाए जो,जल से सींचे बाग।
माँ सींचे निज खून से,शिशु को रातों जाग।।

10

पिता

तिनका तिनका चुनकर लाया।
प्यारा सा घर एक बनाया।।

अपने तन का खून जलाया।
बच्चों को पर दूध पिलाया।।

दुनिया भर से लड़ता आया।
घर पर दादा बड़ सा छाया।।

दिन रहते कुछ देखे सपने।
साँझ ढले सब बिछड़े अपने।।

जिन पर जीवन व्यर्थ गँवाया।
वे ही कहते आज पराया।।

तात तुम्हारी यही कहानी
अब तो छोड़ो ये नादानी।।

दोहा

मत भूले उस तात को,पाला जिसने तोय।
काटेगा तू कल वही,आज रहा जो बोय।।

4.10.15

11

देश के वर्तमान हालात

पंडित जी कुछ तो बतलाओ।
राजमार्ग मुझ को दिखलाओ।।

सपनों का व्यापार लगाओ।
जनता को सपने दिखलाओ।।

सपनों का धंधा है ऐसा।
लगता नहीं एक भी पैसा।

सपनों का व्यापार चलेगा।
धंधा तुमको खूब फलेगा।।

सपनों में जब खोए जनता।
अपना काम तभी है बनता।।

वोटों को बरसात मिलेगी।
नींद किसी की नहीं खुलेगी।

दुनिया भर की सैर करोगे।
देश न अपने पैर धरोगे।।

सपने रोज़ भुलाते जाओ।
नव सपने फिर से दिखलाओ।।

मन की बात सदा ही कहना।
पूरी लेकिन कभी न करना।।

कुछ तो लेकिन करना होगा।
ध्यान देश पे धरना होगा।।

इसका लोटा उसकी धोती।
करते रहना लीपा पोती।।

सपनों का संसार ये,सपने माया जाल।
सपनों की सरकार से,बन जाओ भूपाल।

'ललित'

4.10.15

12

देश के वर्तमान हालात

सोने की चिड़िया लुटती है।
मन ही मन में वो घुटती है।।

कभी लुटी गैरों के कर से।
आज लुटेरे अपने घर से।।

मान नहीं सम्मान नहीं है।
नेता में ईमान नहीं है।।

बेईमान कम कौन कितना।
पकड़ न आए जब तक जितना।।

सरकारी धन बाँट रहे हैं।
खुद तो कर वो ठाठ रहे हैं।।

जनता को है पंगु बनाया।
मेहनती को है ठुकराया।।

जनता भी कितनी है भोली ।
बाँट रहा जो भर-भर झोली।

उस की झोली भरदेती है।
वोट छली को दे देती है।।

सोच सोच मन घबराया है।
तम ये कितना गहराया है।।

ऐसी एक मशाल जलाओ।
भारत माँ का मुख दिखलाओ।

दोहे

जनता लुटती देश की,मचता हाहाकार।
जनता का धन लूटके,जनता पे ही वार।।

4.10.15

13

जब मैं छोटा सा बच्चा था।
पटेल-गाँधी का चर्चा था।।

रानी झाँसी, वीर शिवाजी।
पढ़के दिल होता था राजी।।

नेताओं की जात नहीं थी।
राजाओं सी घात नहीं थी।

अब तो ऐसा दिन आया है।
हर माँ ने नेता जाया है।

जनता भूल गई हरि पूजा।
नेताओं से भारत धूजा।।

नेता हों जिस देश में,उसका बंटाधार।
पा सकते हरि भी नहीं,नेताओं से पार।।

ललित

14

पेड़ हवा दे जीवन दाता।
मानव का वह मित्र कहाता।।

फूलों से बगिया महकाये।
फल आये तो झुकता जाये।।

जो कोई पत्थर से मारे।
फल अपने वो उस पर वारे।।

जो मानव इक पेड़ लगाता।
जीवन अपना सफल बनाता।

पेड़ दिए भगवान ने,मानव के हित काज।
मानव ही कटवा रहा,उन पेड़ों को आज।।

ललित

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छद श्री सम्मान