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जलहरण घनाक्षरी रचनाएं
1
14.09.15
KD&RG19.1.17
जलहरण घनाक्षरी
कान्हा से नजर मिली,राधा सुध भूल चली।
सरकी जाए चुनरी,पायलिया बेजान है।।
सखियाँ इशारे करें, मुख फेर फेर हँसे।
राधा छवि देख रही,साँवरिया नादान है।।
बाँसुरी बजाए कान्हा,गइयाँ है चरा रहा।
राधाजी को प्यारी लगे,बाँसुरिया की तान है।।
राधा जी की सखी संग,मोहन करे बतियाँ।
राधे रानी रूठे कैसे,मनवा बेईमान है।।
'ललित'
2
14.9.15
जलहरण घनाक्षरी
हिंदी भाषा
भाषा हिंदी में ही करें, चलो मन की ये बात,
हिंदी भाषा में ही लिखें, गाथा इस जहान की।।
हिंदी भाषा पढ़ सीखें,,गीता,वेद,रामायण,
दिल में उतारें सीख, अठारह पुराण की।
हिंद के निवासी हम,हिंदी है हमारी भाषा,
हिंदी में सुनी हैं लोरी,हमने बलिदान की।।
देश के गद्दार यहाँ,अंग्रेजी में बात करें।
लुटिया डुबो रहे हैं, अपने हिंदुस्तान की।
ललित जी कुछ स्थानों पर भावानुसार थोड़ा परिवर्तन किया है..लय और विधान में लाने के लिए....👍👍🏻👍🏻😊😊👍🏻👍🏻
'ललित'
3
14.09.15
हिंदी भाषा
जलहरण घनाक्षरी
भारत माता की व्यथा
किसने लगाई आग,धुआँ ये निकलता है।
माँ तेरी आँखों से कैसा,अंगारा निकल रहा।।
दुरगति देख मेरा,जिया आज जलता है।
बेटा अपना ही आज,अंग्रेजी उगल रहा।।
वतन ये मेरा आज ,ले रहा उधार साँस ।
त्याग हिंद देश लल्ला,परायों में पल रहा।।
अंगरेजीजी दूतों ने जो, छलनी किया कलेजा।
हिंदी के साहित्य से येे ,ज्ञान दीप जल रहा।।
'ललित'
दुरगति देख मेरा, जिया आज जलता है, 👈🏻 करें लय के लिए....
वतन ये मेरा आज, ले रहा उधार साँस, 👈🏻
अँगरेजी दूतों ने जो, छलनी किया कलेजा, 👈🏻 👍🏻👍🏻💐💐👍🏻👍🏻👍🏻
घनाक्षरी में लय के लिए कभी कभी देशज शब्दों का सहारा भी लेना पड़ता है भावपूर्ति के लिए....👍🏻💐💐🙏🏻🙏🏻💐
4
15.09.15
जलहरण घनाक्षरी
महाराणा प्रताप
राकेश जी के सुझाव से परि
मेवाड़ी धरा ने यहाँ,ऐसा एक पूत जना।
दासता को चुना नहीं,वनों में वो रुका रहा
घास वाली रोटी वहाँ,छीन के बिलाव भागा।
शत्रुओं के आगे कभी,वो न सिर झुका रहा।
माँ के दूध को नहीं मैं,लजाऊँगा अब यहाँ।
प्रण जो राणा नेे किया,वो प्राणों से चुका रहा।
फौज अस्सी हजारी से,बीस हजारी ही लड़े।
नाकों चने चबा दिए,शत्रु तो ठिठुका रहा।
'ललित'
5
15.09.15
केडीआरजी25.1.17
जलहरण घनाक्षरी
मीरा
मीरा जपे कान्हा नाम,कान्हा ही सुखों का धाम।
अपनी साँसों के तार,कान्हा संग जोड़ दिए।
महलों को छोड़ चली,श्याम की दीवानी मीरा।
श्याम रंग ओढ चली,सब रंग छोड़ दिए।
अपना ही आपा भूली,श्याम चरणों में खोई ।
भगती की राह चली,सारे बंध तोड़ दिए।
राणा जी ने विष दिया,सेवन सहज किया।
विष बना सोम रस,पुण्य ज्यूँ निचोड़ दिए।
'ललित'
6
16.09.15
जलहरण घनाक्षरी
कन्या भ्रूण हत्या
अजन्मी की व्यथा
मुख मत मोड़ना माँ,मुझे मत मारना माँ।
तेरी परछाई हूँ मैं,कातिल ये जहान है।
चलती है पुरवाई,बरखा है बरसती
दुनिया है फुलवारी,गायब बागबान है
लहराता समंदर,ऊपर नीला अम्बर।
सतरंगी बहार है,ये प्यारा गुलिस्तान है।
घूमी लख चौरासी मैं,मानुष योनि पाने को।
मुझको भी देखने दे,दुनिया आलीशान है।
'ललित'
7
17.09.15
जलहरण घनाक्षरी
लम्बोदर गजानन,सुनलो मन कामना
मंगल कारण करो,भव-बाधा दूर करो।
मोदक का भोग लगे,मूषक पे सवार हो।
मात-पिता चरणों की,पूजा तो जरूर करो।
ऋद्धि-सिद्धि स्वामी आप,सर्व मंगलदाता हो।
प्रेम से जो पूजा करे,कमना को पूर करो।
कृपा बरसाओ दाता,धन-धान्य विद्या भरो।
अपने प्यारे भक्तों का,प्रेम तो मंजूर करो।
'ललित'
8
17.09.15
जलहरण घनाक्षरी
संकट नाशन गणेश स्तोत्र
के हिन्दी रूपान्तर का प्रयास
कोई त्रुटि हो तो आप सब से
व गणेश भगवान से क्षमा चाहता हूँ।
पहला है वक्रतुण्ड,एकदंत दूजा नाम ।
तीजा कृष्णपिंगाक्षम्,गजवक्त्र चौथा नाम।
लम्बोदर है पाँचवाँ ,विकट है छठा नाम।
सातवाँ जो विघ्नराज,धूम्रवर्ण अष्ट नाम।
नौवाँ नाम भालचन्द्र,दसवाँ है विनायक।
ग्यारवाँ जो गणपति,गजानन बारा नाम।
जो तीनों संध्या जपता, प्यारे शुभ बारा नाम।
होय पूरीअभिलाषा,धर्म-अर्थ-मोक्ष काम।
'ललित'
9
19.09.15
जलहरण घनाक्षरी
धर्मशाला ये विशाल,
सुख-दुख मायाजाल।
कहलाता मृत्यु लोक,
अमर कौन होत है।
विचार ढाल सत्य के,
राह सत्य की ही चल।
मन में विचार कर,
पथ में खड़ी मौत है।
मात-पिता,गुरु जन,
सबका सम्मान कर।
इनसे ही जल रही,
तेरी जीवन ज्योत है।
राम को जो भूल कर,
काम मन चाहे करे।
पापों को वो याद कर,
अंत समय रोत है।
'ललित'
10
19.09.15
जलहरण घनाक्षरी
खेल खोया बचपन,
यौवन सीखे सब फन।
ऐसा मनमीत मिला,
भरता रहा बाथ रे।
बसंत-बहार जिया,
प्यार व्यापार किया।
नाते रिश्तेदार सभी,
फिर भी तू अनाथ रे।
अंत काल देख द्वार,
मन में करे विचार।
जीवन व्यर्थ खो दिया,
न आया कुछ हाथ रे।
कह रहे सदगुरु,
चलना नेक राह तू।
ऐसा धन जोड़ चल,
जो चले तेरे साथ रे।
'ललित'
11
19.09.15
जलहरण घनाक्षरी
जीवन संगीत सुना,
प्यार से तू गुनगुना।
नित नये छंदों से तू,
छेड़ मन के तार रे।
रचना तू छंद ऐसा,
मन को पसंद जैसा।
सबके मन को भायें,
ऐसे हों उदगार रे।
बहलाये मन को भी,
सहलाये तन को भी।
करे ऐसा वार लगे,
कलम तलवार रे।
भाव भरपूर भर,
लय से न दूर कर।
गाते रहें लोग सब,
मन से बार-बार रे।
'ललित'
12
20.09.15
जलहरण घनाक्षरी
बेटे पढ़ना छोड़ दे,
नेता बनके दौड़ ले।
जितना कमाये नेता,
कब कोई कमा सके।
भारत ये आजाद है,
मची बंदर बाँट है।
इतना कमायेे नेता,
घर में न समा सके।
कागजों में टूटते,
फाईलों में बनते।
रेल,रोड और पुल,
नकदी जो थमा सकें।
काम अपना बनता,
किसकी सगी जनता।
इतना कमा ले तू भी,
पीढ़ी सात खमा सकें।
'ललित'
13
20.09.15
जलहरण घनाक्षरी
आगे चमचे हों चार,
अंधे पीछे हों हजार ।
कलयुगी स्वामी नेता,
समझो चले आ रहे।
घर में है राजभोग,
सड़क पे हठ योग।
गरीबों के घर बैठ,
दिखते चने खा रहे।
जनता को दाना नहीं,
नेता जी ने जाना नहीं।
संसद में देखो सस्ते,
भोजन चखे जा रहे।
किसी की नहीं मजाल,
जो करे कोई सवाल।
खुद अपने आपमें,
सवाल बने जा रहे।
'ललित'
14
20.09.15
जलहरण घनाक्षरी
तानाशाही से हो जंग,
हो रही हो जेब तंग।
धरना हो देना गर,
नेता इक बनाईये।
रहे जान दे किसान,
नारी का हो अपमान।
करना हो चक्का जाम,
नेता इक ले आईये।
हो अकाल या हो बाढ,
या भूकम्प से विनाश।
करना हो पर्दा फाश,
नेता इक ले जाईये।
बनाते नेता हीे देश,
चलाते नेता ही देश।
बना नेताओं सा वेश,
खुद नेता कहाईये।
'ललित'
15
21.09.15
जलहरण घनाक्षरी
शोर मचा चहुँ ओर,
नाच रहा मन मोर।
बरसे है बदरिया,
आओ अब साँवरिया।
जो न आये तुम आज,
तोड़ दूँगी सारे साज।
कोरें पलकों की रहें,
भीगी हर पहरिया।
नैना प्यासे दर्शन के,
छीना है चैन मन का।
देकर वियोग पिया,
दीनी कर बावरिया।
दिल ये पुकार रहा,
सावन न जाये सहा।
मोहे तोरे बिन लगे,
सूनी हर डगरिया।
'ललित'
16
21.09.15
सूना हुआ मधुबन,
रुकी जाए धड़कन।
ये ही सखियाँ,
तू काटे कैसे रतियाँ।
हूक मन में है उठे,
शूल तन में हैं चुभें।
मीठे मीठे ताने सुना,
करतीं कनबतियाँ।
17
21.09.15
जलहरण घनाक्षरी
छलिया तू बेईमान,
छेड़ता है ऐसी तान ।
लोक-लाज भूलकर,
मैं आऊँ बगियन में।
अँखियाँ गुलाबी दिखें,
सखियाँ ठिठोली करें।
पूछें सखियाँ राज क्या,
गुलाबी अँखियन में।
चूड़ियाँ खनक रही,
बिंदिया चमक रही।
नजरें फेर-फेर मैं.
शर्माऊँ सखियन में।
अब के जो जाऊँगी मैं,
लौट के न आऊँगी मै।
खोटी नीयत तेरी जो,
बुलाए रतियन में।
'ललित'
जलहरण
KD and RD 23.1.17
जले दिन रात जिया,
कहाँ है तू श्याम पिया।
याद तुझे करती ये,
राधा व्रज में डोलती।
पूछती है गलियों से
बाग वन कलियों से।
बाँसुरी वाले का पता
राज दिल के खोलती।
अँखियों में वास करे
दिल पे जो राज करे।
निंदिया चुराके गया
छलिया श्याम बोलती।
करी साँवरे से प्रीत
भूल दुनिया की रीत।
गलती तो नहीं करी
आज मन टटोलती।
'ललित'
कृष्ण दीवाने 14.1.17
जलहरण
नाच रही राधा-रानी
साथ घनश्याम के तो।
सखियाँ भी झूम रही
बाँसुरिया की तान पे।
झूम रही लतिकाएं
पादपो की बाहों में तो।
मोरपंख नाज करे
साँवरिया की शान पे।
चाँद भूला चाँदनी को
रास में यूँ रम गया।
राधिका का रास भारी
चँदनिया के मान पे।
सुरमई उजालों में
रेशम से अंधेरों में।
राधा श्याम नाच रहे
मुरलिया है कान पे।
'ललित'
जलहरण घनाक्षरी
यह उन दिनों का किस्सा है जब दूल्हा दुलहन पहली बार सुहागरात में ही मिलते थे....
दिल धक-धक करे
साँस रुक-रुक चले।
घूँघट उठाये जब
प्रीतम प्यारा प्यार से।
करेगा क्या प्यारी बातें
मेरा मुख देखकर?
देगा मुझे भेंट क्या वो
सुंदर मनुहार से?
हाथ थाम लेगा मेरा
बहियाँ मरोड़ देगा।
सीने से लगायेगा या
मचलेगा दीदार से?
सखियाँ भी ताने मारें
सजना अनाड़ी हाय।
देखो नाक पोंछ रहा
लहँगे की किनार से।
'ललित'
जलहरण
भाग-दौड़ छोड़ प्यारे
एक ठाँव रुक जारे।
कब तक भागेगा तू
जिंदगी की शाम हुई?
खुशियों में नाच लिया
दुख में विलाप किया।
सुख-दुख देखते ये
जिंदगी तमाम हुई।
सजनी का साथ मिला
सारा जग भूल चला।
यौवन में खोया रहा
खूब धूम-धाम हुई।
हो के अब तो निष्काम
जप ले तू राम-नाम।
काम-क्रोध-मद की ये
जिदगी गुलाम हुई।
'ललित'
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