कुकुभ छंद विधान एवँ रचनाएँ 25.07.16


कुकुभ छंद
25.07.16


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     -------कुकुभ छंद विधान-----

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1.यह कुल 30 मात्राओं वाला मात्रिक छंद है।

2.इसमें 16,14 मात्राओं पर यति होती है।

3.इस छंद के अंत में दो गुरुवर्ण होना अनिवार्य है उससे पूर्व दो लघु वर्ण होने चाहिए।

4. अंत में दो लघु वर्णों को गुरु वर्ण नहीं माना जा सकता।

5.क्रमानुसार दो- दो पंक्तियों में समतुकांत रखे जाते हैं।


            **** उदाहरण ****

                  कुकुभ छंद

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कान्हा की वंशी की सरगम,कानों में मधुरस घोले।
राधा की पायल की छम-छम,सुन कान्हा का मन डोले।
राधा जी का रूप निहारें,मोहन तिरछी अँखियों से।
राधा जी अन्जानी बनकर,बतियाती हैं सखियों से।

*************रचनाकार****************

               ललित किशोर 'ललित'

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कुकुभ छंद रचनाएँ

1.

मोड़

किसी मोड़ पर हार गए तो,मन से हार नहीं मानो।
वही मोड़ इक दिन जीतोगे,मन में यह निश्चय जानो।
हार गया जो उसे चिढ़ाना,सबको अच्छे से आता।
हारे को सम्बल देना बस,कुछ ही लोगों को भाता।

ललित किशोर 'ललित'

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2.

माँ शारद

माँ शारद की किरपा से ये,मन भावों में बहता है।
छंदो की नक्काशी से कवि,सुंदर कविता कहता है।
गुरू ज्ञान की सरिता से ही,'काव्य सृजन' ये निखरा है।
गुरू बिना तो मानो सब कुछ,रहता बिखरा बिखरा है।

ललित किशोर 'ललित'

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3.

काँटे

काँटों की पहरेदारी में,फूल सुगंधित खिलते हैं।
प्यार करें कंटक फूलों से,रोज गले वो मिलते हैं।
दुश्मन के हाथों में चुभकर,शूल पुष्प को सहलाएं।
वो कंटक बदनाम हुए क्यों,जो फूलों को बहलाएं।

ललित किशोर 'ललित'

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4. 

फूल और कंटक

फूल बना कोई इस जग में,कोई कंटक बन आया।
एक बीज से दोनों उपजे,एक जमीं से जल पाया।
जिसका जैसा अंतर्मन हो,वैसी काया मिलती है।
सुरभित सुंदर तन लेकर यूँ,कोमल कलियाँ खिलती हैं।

ललित किशोर 'ललित'

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5.

वादे

प्रेम जगत के सुंदर सुंदर,ख्वाब हमें क्यूँ दिखलाए?
बरखा-सावन के वो नगमे,क्यूँ हमको थे सिखलाए?
झूँठी प्रीत तुम्हारी निकली,झूँठे निकले सब वादे।
दिल को टीस दिया करती हैं,हाय तुम्हारी सब यादें।

ललित किशोर 'ललित'

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6.

प्रभो

प्रभो आपके चरणों में ये,छोटा सा दिल रखता हूँ।
ध्यान धारणा नहीं जानता,राम नाम रस चखता हूँ।
ऐसी किरपा कर दो भगवन,नाम तुम्हारा नित गाऊँ।
राम नाम ही मुख से निकले,दुनिया से मैं जब जाऊँ।

ललित किशोर 'ललित'

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7.

अंत समय

अंत समय पर जो काशी में, राम नाम ले मरते हैं।
भवसागर से पार करें शिव,ध्यान राम का करते हैं।
राम सुमिरते हैं शिव जी को,करें सदा मानस पूजा।
राम और शिव मय जग सारा,और नहीं है कुछ दूजा।

ललित किशोर 'ललित'

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8.

भोर

प्राची ने ओढ़ी है चुनरी,चमके ज्यों केसर क्यारी।
कलियों ने मुस्कान सजाली,अधरों पर निर्मल प्यारी।
तारों ने अम्बर को छोड़ा,सूरज की है अब बारी।
हर हर हर हर महादेव का,घोष कर रहे नर नारी।

ललित किशोर 'ललित'

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9.

संसारी

इस दुनिया से जाने वाले,जाते कहाँ प्रभू जानें।
पंचतत्व में मिल जाते हैं,सब संसारी यह मानें।
ऐसी माया रचदी हरि ने,प्राणी नहीं समझ पाया।
अंत समय तक समझे खुद को,हिलती डुलती इक काया।

ललित किशोर 'ललित'

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10.

कड़वा सत्य

कड़वा सत्य न सुनना चाहें,लगता झूँठ जिन्हें प्यारा।
झूँठों की इस दुनिया से तो,हर सच्चा मानव हारा।
निगल सत्य के सुंदर मोती,रिश्वतखोरी पनपे है
कच्चे गोटे के बागे अब,ठाकुर जी के तन पे हैं।

ललित किशोर 'ललित'

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11.

माया

झूँठ सत्य की इस माया में,सच्चा मानव  पिसता है।
इन दोनों का आपस में इक,अन्जाना सा रिश्ता है।
झूँठे रँग में रँगा हुआ सच,ठोकर खाता दिखता है।
सत् में लिपटा हुआ असत् भी,महँगे दामों बिकता है।

ललित किशोर 'ललित'

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12.

गरीब माँ बेटे

बोझ किताबों का बस्ते में,लादे बच्चा चलता है।
खेल कूद सब भूल गया वो,झोंपड़िया में पलता है।
बैशकीमती बचपन खोया,राजधानियाँ रटने में।
माँ का जीवन उलझ रहा है,आज रोटियाँ बँटने में।

ललित किशोर 'ललित'

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13.

कान्हा

वो ही तो है जो मेरे इस,दिल को हर पल धड़काता।
वो ही तो है जो मेरे हर ,दुश्मन को है हड़काता।
वो ही मेरी नस नस में यूँ,जीवन बनकर बहता है।
जो कान्हा मेरी साँसों में,प्राण वायु बन रहता है।

ललित किशोर 'ललित'

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14.

रुबाई
चलो देश में आजादी की,फिर से अलख जगाते हैं।
लूट रहे जो आज देश को,उनको दूर भगाते हैं।
राम राज्य का सपना अब हम,सच करके दिखलाएंगें।
भ्रष्टाचारी शासन में हम,मिल कर सेंध लगाते हैं।

ललित किशोर 'ललित'

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15.

भारत की मिट्टी

भारत की मिट्टी में पलकर,भारत को मत बिसराओ।
ऊँची शिक्षा पाते पाते,मत विदेश में बस जाओ।
मातृभूमि का कर्ज चुकाने,तुम भारत वापस आना।
अपना ज्ञान देश की सेवा,मे ही अर्पण कर जाना।

ललित किशोर 'ललित'

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16.
श्रृंगार रस

राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत

शीतल शांत सरोवर जल में,बिम्ब चाँद का हिलता है।
जलक्रीड़ा में मस्त चाँदनी,चाँद गले आ मिलता है।
हौले हौले हिण्डोले दे,पवन मगन हो मुसकाए।
दिनकर की आहट सुन दोनों,सर के तल में घुस जाएं।

ललित किशोर 'ललित'

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17.

कोटा में परसों एक बच्ची
सडक पर बैल की टक्कर से
असमय मृत्यु का ग्रास बन गई
उसे विनम्र श्रृद्धांजलि

सुंदर होनहार बच्ची थी,नाम अंजना जिसका था।
हरदम हँसती रहती थी वो,काम हँसाना उसका था।
नज़र लग गई नगर निगम की,एक बैल आ टकराया।
पल में वो गिर पड़ी धरा पर,शव ही वापस घर आया।

सूना घर अब सूनी गलियाँ,सूने हैं मंजर सारे।
माँ की आँखों मेंआँसू हैं,तात भ्रात रोकर हारे।
विद्यालय में शिक्षक रोते,आँसू रोकें सहपाठी ।
आँखें मूँद बैठना कोटा,नगर निगम की परिपाटी।

भगवन उस प्यारी बेटी को,चरण शरण में रख लेना।
मात-पिता भ्राता को ये दुख,सहने की ताकत देना।
कोटा के सब नगर निवासी,प्रभु से विनती करते हैं।
उस आत्मा को सद्गति देना,शीश चरण में धरते हैं।

ललित किशोर 'ललित'

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18.

सतरंगी दनिया

सतरंगी दुनिया के सातों,रंग बड़े सुंदर प्यारे।
ममता रूपी रंग जहाँ हो,फीके रंग वहाँ सारे।
जितना प्यार करे माँ सुत को,उतना रंग निखरता है।
लेकिन सुत को बूढ़ी माँ का,निश्छल रंग अखरता है।

ललित किशोर 'ललित'

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19.

दो रोटी

बच्चो को दो रोटी देकर,माँ खुद भूखी रहती है।
फटी साड़ियों से तन ढकती,बच्चों को खुश रखती है।
बच्चों को सूखे में रखकर,माँ गीले में पड़ जाए।
अपने बच्चों की खातिर वो,दुनिया भर से लड़ जाए।

ललित किशोर 'ललित'

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20.

माँ का दिल

माँ के दिल के कोने में इक,छोटी दुनिया रहती है।
प्यारा सा इक मुन्ना रहता,चंचल मुनिया रहती है।
माँ की पलकों की कोरों में,सुंदर सपने रहते हैं।
बच्चे जग में नाम करेंगें,वो सपने ये कहते हैं।

ललित किशोर 'ललित'

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21.

भारत माँ

भारत माँ अपने बच्चों की,खातिर सब दुख सहती है।
पूर्व दिशा में खड़ा हिमालय,पावन गंगा बहती है।
हर भारतवासी को माता,जीवन के सब सुख देती।
फिर भी मुख वो मोड़े माँ से,

ललित किशोर 'ललित'

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22.

माँ

याद आ रही हैं वो बातें,माँ जो मुझसे कहती थी।
उसके नैनों से हरदम जो,अमृत गंगा बहती थी।
मेरे मन की दुविधा को वो,आँखों से थी
पढ़ लेती।
मुझे दिलासा देने को थी,नई कहानी गढ़ लेती।

ललित किशोर 'ललित'

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1 comment:

  1. आदरणीय, सादर नमन, आपने जो कुकुभ छंद के नियम बताए हैं, उसमें लिखा है कि चरणांत दो लघु + दो गुरु से होना चाहिए, किंतु उदाहरण में कई जगह ऐसा नहीं है

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