उल्लाला छद
प्रथम प्रयास
मात पिता के प्रेम की,परिभाषा सबसे अलग।
सुत को कब आए समझ,ये नाता सबसे अलग।
तात और माता जिसे,लाड प्यार से पालते।
उसी सुत को मात पिता,कंटक ज्यों हैं सालते।
'ललित'
उल्लाला छंद
आज किटी में जा रही,मैडम सज धज के बड़ी।
नारंगी चश्मा लगा,छतरी लेकर है खड़ी।
पैसे डाले पर्स में,हाऊ जी ले हाथ में।
अॉटो रिक्शा में चढ़ी,चार सहेली साथ में।
करतीं सब अठखेलियाँ,बच्चों की किसको पड़ी।
दुल्हन सी सब सज रहीं,करती डिस्को हैं बड़ी।
खाने पीने का मजा,मौसम भी दे साथ है।
बातों की चटखारियाँ,ले हाथों में हाथ हैं।
ललित
उल्लाला छंद
पसन्द अपनी अपनी
29-07-16
छोड़ो भी ये बाँसुरी,राधा बोली श्याम से।
तेरी राह निहारती,बैठी हूँ मैं शाम से।
मुझ को अधरों से लगा,घूँघट के पट खोल दो।
बाहों में भर लो मुझे,कानों में कुछ बोल दो।
ब्रज का कण कण बोलता,अमर हमारी प्रीत है।
यमुना का जल बोलता,जीवन ये संगीत है।
तेरी नीयत में मुझे,लगता है कुछ खोट है।
नाचे गोपी संग तू,वंशी की ले ओट है।
बरसाने की छोकरी,देती तुझ पर जान है।
सब कुछ है तुझ को पता,क्यूँ बनता अंजान है?
साँझ सवेरे छेड़ता,धुन मुरली से प्रीत की।
लौकिक तो लगती नहीं,लय तेरे संगीत की।
प्रेम तरंगें उठ रहीं,यमुना की रसधार से।
सुरभित शीतल ये हवा,छूती कितने प्यार से।
इतना निष्ठुर क्यूँ भला,मोहन होता आज है।
ज्यादा क्या तुझ से कहूँ,आती मुझको लाज है।
ललित
पसन्द अपनी अपनी
29.07.16
उल्लाला छंद
मन्दिर मन्दिर घूमता,उसे न मिलता राम है।
राम वास करते जहाँ,साँस साँस में नाम है।
दौलत में सुख देखते,जो नर आठों याम हैं।
उनके मन में तो सदा,बसता केवल काम है।
'ललित'
उल्लाला छंद
दूसरा प्रयास
बस दिल में ही राखिए,दिल में जो भी दर्द है।
सुन कर हँसी उड़ायगी,दुनिया ये बेदर्द है।
दूजे की सुनकर व्यथा,बोलो उससे प्यार से।
वह कुछ राहत पायगा,शायद इस व्यवहार से।
'ललित'
उल्लाला छंद
तीसरा प्रयास
अपना दुख किससे कहूँ,सुनने वाला कौन है?
मंदिर का भगवान भी,सुनकर रहता मौन है।
कैसा वो भगवान जो,देता दर्शन खास को।
वी आई पी आदमी,तोड़े हैं विश्वास को।
'ललित'
उल्लाला छंद
चतुर्थ प्रयास
सरवर तीरे चूमती,ठण्डी मुझे बयार है।
बहने लगती फिर नए,छंदों की रसधार है।
मन में उठते भाव जो,लय में उनको ढाल दो।
छंदों के नियमों तले,कविता में फिर डाल दो।
ललित
उल्लाला छंद
प्रथम प्रयास
हनुमान जी
जाम्बवान बोले सुनो,चुप क्यों हो बलवान जी।
बल में पवन समान हो,पवन पुत्र हनुमान जी।
बुधि विवेक विज्ञान के,तुम तो अतुलित धाम हो।
याद करो उस बात को,जन्म लिए जिस काम हो।
इस जग में है कौन सा,काम तुम्हें दुश्वार जी।
राम काज के वासते,आप लिए अवतार जी।
जाम्बवान की बात ये,सुन कर वो हनुमान जी।
विशाल गिरि सम होगए,तन था कनक समान जी।
तन पर तेज विराजता,ज्यों हों पर्वतराज जी।
सिंहनाद कर खेल में,लाँघूँ सागर आज जी।
ललित
माटी में मिल
शीतल शबनम
सौरभ बनी
उल्लाला छंद
द्वितीय प्रयास
शरणागत को दी शरण,आया जो तज देश था।
गले विभीषण को लगा,बना दिया लंकेश था।
शरणागत वत्सल प्रभो,राम सुखों के धाम हैं।
भक्तों के भगवान वो,करते पूरण काम हैं।
ललित
उल्लाला छंद
प्रथम प्रयास
दुख ही है अपना सगा,सुख तो धोखे बाज है।
दुख में से सुख छान लो,दुख ही सुख का
साज है।
सुख दुख में जीवन बहे,रुक जाना तो मौत है।
पीर जीव की संगिनी,खुशियाँ जैसे सौत हैं।
ललित
उल्लाला छंद
द्वितीय प्रयास
उलझी जीवन डोर ये,सुलझेगी इक रोज तो।
पीठ दिखाकर जायगी,ये दु:खों की फौज तो।
हिम्मत का सब खेल है, मन के जीते जीत है।
हारे से मुख मोड़ती,ये दुनिया की रीत है।
ललित
उल्लाला छंद
तृतीय प्रयास
रिश्तों की देखी यहाँ,ऐसी दौड़म भाग है।
मानव के भीतर छुपा,जैसे कोई नाग है।
भाई का दुश्मन रहा,जीवन भर जो भ्रात है।
भाई मरने पर वही,दुख की करता बात है।
ललित
उल्लाला छंद
चतुर्थ प्रयास
आते आते आयगा,जीवन में विश्राम भी।
जाते जाते जायगा,मानव मन से काम भी।
राम तुम्हें दिखलायगा,जीवन में आराम जी।
इसीलिए सब कहते हैं,जप लो मुख से राम जी।
ललित
उल्लाला छंद
पंचम प्रयास
मन चंचल बस में नहीं,करता सुख की आस है।
क्यों पागल समझे नहीं,सुख दु:खों का दास है?
मन को सुख तब भासता,तब मिलता आराम है।
जब सब कुछ अनुकूल है,नहीं क्लेश का नाम है।
ललित
उल्लाला छंद
छठा प्रयास
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत
साँसों की गठरी लिए,फिरता था दिन रात जी।
वो जीवन अब शांत है,साँसों से खा मात जी।
गठरी जब खाली हुई,टूट गई तब साँस है।
आत्मा छूमंतर हुई,अब हड्डी औ' माँस है।
ललित
[14/07 18:48] Rakesh Raj: आपकी प्रत्येक रचना शानदार और भावपूर्ण ही होती है ललित जी...👍🏻👍🏻😊😊👍🏻👍🏻👍🏻 किन्तु सिलेबस में चार ही रचनाएँ हैं.....😀😀😀🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[14/07 18:54] Rakesh Raj: खूब लिखिए ललित जी...पटल के प्रति आपकी सक्रियता और सतत् लेखन का ही परिणाम है कि आपकी रचनाएँ....श्रेष्ठ भावपूर्ण और बेहतरीन कथ्ययुक्त होती हैं....👍🏻👍🏻💐💐👍🏻👍🏻🌹🌹🙏🏻🙏🏻
उल्लाला छंद
कनक वर्ण किरणें चलें,प्राची से अवतार ले।
मानव के संकल्प फिर,एक नया आकार लें।
'ललित'
उल्लाला छंद
देवों की यह भूमि है,भारत इसका नाम है।
इसके कण-कण में बसे,कान्हा औ' श्री राम हैं।
गंगा-यमुना नर्मदा,पावन तीरथ धाम हैं।
पत्थर को भी पूजते,गोवर्धन में श्याम हैं।
ललित
उल्लाला
प्रथम प्रयास
जाती सब कुछ हार जो,पालन में परिवार के।
क्या कोई कुछ सोचता,बारे में उस नार के?
जीवन देती वार जो,बच्चों के संसार पे।
क्या बच्चे सुख वारते,उस नारी के प्यार पे?
'ललित'
उल्लाला छंद
नारी के रूप
नारी कितने रूप में,बाँटे अपने आप को।
बेटी बन पैदा हुई,देती खुशियाँ बाप को।
सगी बहन बन साथ में,भाई को भी प्यार दे।
पत्नी बन ससुराल में,जीवन को नव धार दे।
बच्चों की किलकारियाँ,सुनती है माँ प्यार से।
सास बने तो माँ वही,मनती है मनुहार से।
दादी बन कर गर्व से,चलती सीना तान जी।
करे राम से प्रार्थना,रखना घर की आन जी।
'ललित'
उल्लाला छंद
3
साड़ी के आँचल तले,ममता की जो छाँव थी।
बच्चे को लगती वही,सबसे प्यारी ठाँव थी।
जीन्स टॉप में डोलती,हिरनी जैसी चाल में।
ममता तो बस खो गई,फैशन के इस जाल में।
ललित
उल्लाला छंद
4
मृगनयनी कैसे कहूँ,चश्मे में वो हूर है।
लजवन्ती कैसे कहूँ,शर्माना तो दूर है।
गलत
नाभि दर्शना,कमर भले उन्चास है।
काले रंगे बाल हैं,रंगों से ही आस है।
'ललित'
यूँ ही
एक उल्लाला
😃😃😃😃😃😃
ये कैसा संसार है,कैसी इसकी रीत है।
लाल रंग खतरा बना.
पीत रंग से प्रीत है।
हरा कहे तू चल जरा,
केसरिया मन मीत है।
काला काजल आँख में,
सुंदरता की जीत है।
ललित
उल्लाला छंद
प्रथम मिलन
देख रहा था मैं खड़ा,मुखड़ा उसका प्यार से।
शर्माती सी वो खड़ी,नजरों के उस वार से।
सुंदर सपना नैन में,यौवन के मधुमास का।
ऐसा था पहला मिलन,जीवन से उल्लास का।
ललित
उल्लाला
2
धक धक धड़के है जिया,सजनी का बरसात में।
कौंध रही हैं बिजलियाँ,भीगे शीतल गात में।
ठण्डी बूँदें छू रहीं,चंचल मन के तार को।
साजन भी पगला गया,भूला सब संसार को।
ललित
स्तुत्य प्रयास ।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर जान पड़ा, प्रथम तो उल्लाला छन्द के बारे में और आपकी रचनाएं । प्रणामं स्वीकुरु 🙏