6-5-17
1
मुक्तक 16:14 लावणी
फल
बीज प्यार का जिसने बोया,
फल उसने है कब पाया?
बीज और अंकुर को सींचा,
छलनी करके निज काया।
बीजों का सागर है जो फल
याद रखे क्यूँ माली को?
फल-फल फल-फल फल -फल फल-फल,फल की ही है सब माया।
ललित
6.5.17
2
मुक्तक 16:14 लावणी
भव-बाधा
जैसा प्यारा कृष्ण कन्हाई,वैसी न्यारी है राधा।
राधा औ' मुरली से कान्हा,प्यार करे आधा आधा।
अधरामृत पीती मुरली तो,राधा नैन सुधा पीती।
राधा राधा नाम जपो तो,मिट जाएगी भव बाधा।
ललित
6:5:17
3
मुक्तक 16:14 लावणी
मुरली वाला
राधा के नैनों में मोहन,ने ऐसा डेरा डाला।
राधा वन-वन खोजे उसको,पर न दिखे मुरलीवाला।
पलकें बन्द करे राधा तो,मोहन के दर्शन होते।
खुली आँख से कहाँ किसी को,दिखता है नटखट ग्वाला।
ललित
5-5-17
4
मुक्तक 16:14 लावणी
सपने
टूट -टूट कर टुकड़े होते,सपने हरजाई हरदम।
रूठ-रूठ कर दूर खिसकते,दिखते जो अपने हमदम।
दिल के अरमानों की किश्ती,भी टूटे मझधारों में।
चोट उन्हीं से है मिल जाती,बनना हो जिनको मरहम।
5-5-17
5
मुक्तक 16:14 लावणी
बेशर्मी
बेशर्मी से लदे हुए कुछ,आजादी के मुखड़े।
अर्धनग्न हो घूमें पहने,कपड़ों के कुछ टुकड़े।
तन की चाम दिखा कर जाने,क्या वो चाहें कहना।
वसन नसीब नहीं हैं जिनको,उनके क्या हैं दुखड़े?
3.5.17
विष्णुपद छंद आधारित
छः मुक्तक
6
चाँद-चाँदनी प्रेमांकुर को,रोपित जब करते।
टिम -टिम करते तारे नभ में,प्रेम रंग भरते।
खुले आसमाँ के नीचे तब,प्रीत कमल खिलता।
साजन सजनी के अधरों से,प्रेम पुष्प झरते।
7
शीतल शांत सरोवर जल में,श्वेत चाँद चमके।
मंद समीर सुगंध बिखेरे,नयन काम दमके।
झीना आँचल भेद चाँदनी,सुंदरता निरखे।
सजनी का तन मन महके है,साजन में रम के।
8
रिमझिम बरस रही है बरखा,दादुर भी बहकें।
नीम निमोरी पग से चटकें,गुलमोहर महके।
सजनी की भीगी जुल्फों से,टपकें जब मोती।
हर मोती मुखड़े पर रुक रुक,रह रह कर चमके।
9
रह रह कर चमके जो बिजली,जियरा है धड़के।
साजन की बाहों में सजनी,वाम नयन फड़के।
चमक चमक चमकें हैं जुगनू,कोयल कूक रही।
साजन सजनी के मन में अब,काम अगन भड़के।
10
काले काले बदरा नभ में,रह रह गरज रहे।
ऊँचे पर्वत की चोटी पर,तरुवर लरज रहे।
पत्ता पत्ता खड़क रहा है,बरखा यूँ बरसे।
काम देव साजन सजनी के,मन में बरस रहे।
11
शांत सरोवर का जल भी अब,ऐसे उफन रहा।
बरखा की बूँदों को जैसे,कर वो नमन रहा।
प्रीत पगी अँखियों से साजन,को चूमे सजनी।
जवाँ प्यार की सौरभ में खो,सुरभित चमन रहा।
2.5.17
12
मुक्तक 14:14
1222 1222 1222 1222
दिलदार
हसीं दिलदार ने कुछ यूँ,डुबाई प्यार की नैया।
कमी बस रह गयी इतनी,कहा हमको नहीं भैया।
नहीं जो प्यार को समझे,उसी से दिल लगा बैठे।
चली वो फेरकर नजरें,कहे हे राम!हे दैया।
ललित
2.5.17
16:14
13
देह
मिट्टी जल आकाश हवा औ',अगन देव मिलकर सारे।
मानव देह बना बैठे सब,खेल खेल में मतवारे।
रब ने उसमें जान फूँक कर,आत्मा डाली इक प्यारी।
आत्मा ऐसी रमी देह में,भूल गयी हरि के द्वारे।
ललित
7.3.17
लावणी मुक्तक 16,,,,,14
14
जीवन
कुछ अपनों में कुछ सपनों में,जीवन के दिन बीत गए ।
कुछ पाने में कुछ खोने में,सुंदर सपने रीत गए।
जीवन का सपनों से रिश्ता,मन क्यूँ समझ नहीं पाया।
जिनके सपनों खोया मन,भूल वही मनमीत गए।
15
मुक्तक
माँ
बात सदा दुनियावी लिखता,नूरानी कोई गल लिख।
महबूबा की पायल लिखता,माँ का सूना आँचल लिख।
जो लायी थी तुझे धरा पर,आँखों में कुछ ख्वाब लिए।
उसकी बुझती आँखों में भी,सच्चाई का काजल लिख।
16
मुक्तक
धड़कन
दिल की हर धड़कन कुछ बोले,पागल मनवा है सुनता।
सुनकर धड़कन की सुर तालें,स्वप्न अनोखे है बुनता।
सुंदर सपनों की वो दुनिया,कब किस को सुख दे पायी।
समझ दार वो कहलाए जो,दुख में से भी सुख चुनता।
17
मुक्तक
दिल
दिल की बातें दिल में रखकर,दिल से ही मैं कहता हूँ।
शोर बाहरी क्या सुनना जब,दिल के ताने सहता हूँ।
खोजा करता हूँ उस दिल को,शायर जिसको दिल कहते।
दिल के द्वार बन्द कर यारों,दिल में ही मैं रहता हूँ।
18
मुक्तक
दिल
धक-धक करना भूल गया दिल,कविताएं अब लिखता है।
हरदम ये भावों की भँवरों,में ही फँसता दिखता है।
खुश रखना हर दिल को यारों,हरदम ही चाहे ये दिल।
बदले में खुद दीवानों सा,गम के हाथों बिकता है।
19
मुक्तक
दिल
दिल वालों की इक बस्ती में,दो दिल कविता कहते थे।
हँसते गाते इक दूजे की,कविताओं को सहते थे।
अपने सारे जजबातों को,ढाल दिया कविताओं मे।
कविताओं के झरने हरदम,उनके दिल में बहते थे।
20
मुक्तक
गोवर्धन
धारण कर गोवर्धन देखो,साँवरिया गिरधारी ने।
इन्द्र देव का तोड़ा है भ्रम,बाँके मुकुट बिहारी ने।
भोगी की नहिं करनी पूजा,समझाया ब्रजवासिन को।
ईश तत्व जो जग में व्यापा,पुजवाया बनवारी ने।
21
मुक्तक
विभीषण
मात्र विभीषण के घर में ही,था तुलसीवन लगा हुआ।
एक विभीषण का मन ही था,ईश-तत्त्व में जगा हुआ।
प्रात काल जिसकी जिव्हा पर,राम नाम आ जाता था।
उसके ही दर पहुँचा हनुमत,राम-काज में पगा हुआ।
22
मुक्तक
शिव
समझें सब साकार जिसे वो,
निराकार हो रहता है।
कण-कण में वो व्याप रहा है,
मूरत में जो रहता है।
माया उसकी बड़ी निराली,
पारवती को भरमाया।
तीन लोक का स्वामी देखो,
वन-वन में खो रहता है।
23
मुक्तक
होली
कुछ रंगीं कुछ बेरंगी सी,कुछ सतरंगी होली रे।
पचरंगी नारंगी साड़ी,भीगी चूनर चोली रे।
गदहों ने ढेंचू-ढेंचू कर,मारी ऐसी पिचकारी।
धूम मचाना भूल गई वो,दो छोरों की टोली रे।
24
मुक्तक
अरमान
बात कहूँ मैं अपने दिल की,औरों की मैं क्या जानूँ।
फूलों में जजबात नहीं हैं,भौंरों की मैं क्या जानूँ।
प्यार बिके अरमान बिकें हैं,आज यहाँ सब कुछ बिकता।
झरनों में आवाज नहीं है,धौरों की मैं क्या जानूँ।
25
मुक्तक
कलियाँ
फूलों ने हँसना छोड़ा है,कलियाँ भी मुरझाई हैं।
माली सींच रहा बगिया पर,पानी भी हरजाई है।
कली-कली पर भौंरे डोलें,प्रेम नहीं कुछ मन में है।
खिलने से पहले रस चूसा,अब केवल तनहाई है।
26
मुक्तक
सुख का सागर
मात पिता के चरणों में ही,सुख का सागर बहता है।
वहीं डाल दो डेरा अपना,वहीं कन्हैया रहता है।
उन चरणों की सेवा करके,भार मुक्त हो जाओगे।
कान लगा कर सुनो जरा तुम,उनका दिल क्या कहता है?
27
मुक्तक
मीत
कौन किसी का मीत यहाँ पर,कौन किसी का अपना है।
सबकी अपनी अपनी दुनिया,अपना अपना सपना है।
साथी पर जब पीर पडे तो,मोड सभी मुख जाते हैं।
गाँठ बाँध लो दुख आए तो,राम नाम ही जपना है।
28
मुक्तक 16:14 लावणी
वंशी
छोड़ चले तारे अम्बर को,कान्हा की बंसी बोले।
गोप-गोपियाँ लें अँगड़ाई,मोहन की छवि मन डोले।
यमुना तीरे से बाँसुरिया,देती है ये संदेशा।
उसकी बंसी बजे मधुर जो,बातों में मधु-रस घोले।
29
मुक्तक 16:14 लावणी
माँ-बेटी
माँ-बेटी का होता जग में,सबसे सुंदर नाता है।
प्यार दिया जो तू ने मुझको,झोली में न समाता है।
अपनी इस बेटी का दामन,खुशियों से माँ भर देना।
चूमे जब तू माथा मेरा,रोम रोम खिल जाता है।
30
मुक्तक 16:14 लावणी
मन
मन ही मन को समझ न पाए,मन ही मन का दुश्मन है।
मनमर्जी मे बहता जाए,वो जीवन क्या जीवन है?
वो ही तो इंसाँ कहलाए,जो मन को वश में कर ले।
संतोषी मन ही कहलाता,मानव का जीवन-धन है।
ललित
31
मुक्तक 16:14 लावणी
रोना
रोने-रोने में भी देखो,कितना है अंतर होता।
इक रोता ऊपर-ऊपर से,दूजे का अंतर रोता।
खुशियाँ रूठी रहती उससे,जो हर दम रोता रहता।
इक रोने का नाटक करता,इक रोने में सुध खोता।
32
मुक्तक 16:14 लावणी
वक्त
आसमाँ में उड़ रहा जो,उड़ कहाँ तक पायगा।
वक्त की इक मार से वो,गिर जमीं पर जायगा।
वक्त तो हरदम किसी का, एक सा रहता नहीं ।
वक्त को कमतर गिने जो,मूर्ख ही कहलायगा।
33
मुक्तक 16:14 लावणी
गिला
साथ कुछ दिन जो चला था,राह में ही था मिला।
राह अपनी वो गया तो,अब किसी से क्या गिला।
यार जब तूने धरा पर,था कदम पहला रखा।
रो रहा था तू अकेला,दर्द का था सिलसिला।
34
मुक्तक 16:14 लावणी
चोट
ज़िन्दगी से आज हमको,चोट इक प्यारी मिली।
कौन सा मरहम लगाएँ,हर दवा खारी मिली।
ज़ख्म जो दिल में हुआ है,दीखता हरदम नहीं।
घाव पर मरहम लगाती,ख्वाहिशें सारी मिली।
35
मुक्तक 16:14 लावणी
बेटी
नाज से पाला जिसे था,आज वो बेटी चली।
बागबाँ को छोड़ देखो,जा रही नाजुक कली।
रीत ये कैसी बना दी,दिल पिता का रो रहा।
खून के आँसू रुला कर, जारही है लाडली।
36
मुक्तक 16:14 लावणी
वक्त
वक्त की बाजीगरी कुछ,यूँ हमें दम दे गयी।
हाथ मलते रह गये हम,हर खुशी गम दे गयी।
जानते थे हम खुशी गम,को छिपाये फिर रही।
थामना चाहा खुशी को,एक मरहम दे गयी।
37
मुक्तक
28 मात्रा भार में
14 ..14 की यति
नई दुनिया
चलो इक बार फिर से हम,
नयी दुनिया बसाते हैं।
नयी सुर-ताल सरगम पर,
नया इक गीत गाते हैं।
गिले-शिकवे दिलों में जो,
दिलों में ही दफन कर दें।
चलो पतवार बनकर हम,
भँवर को भी हराते हैं।
38
मुक्तक
छल
चाँदनी ने चाँद को कुछ, यूँ इशारा कर दिया।
बादलों ने रोष में आ,चाँद को ओझल किया।
चाँद से नजरें चुरा कर,चाँदनी रुखसत हुयी।
चाँद गुम-सुम सोचता क्यूँ, चाँदनी ने छल किया।
39
मुक्तक
28 मात्रा भार में
14 ..14 की यति पर
बहर 1222, 1222, 1222, 1222
जन्म दिन शुभकामना
सदा महको ,सदा चहको,
सदा सबको हँसाओ तुम।
सुहाने प्यार के नगमे,
हमेशा गुन गुनाओ तुम।
कभी गम की घटाओं का,
न हो आगाज़ भी मन में,
खुशी की धूप जीवन में,
सदा यूँ ही खिलाओ तुम।
'
40
मुक्तक 16:12
जाल
जब साथ हैं सौ हाथ तो फिर,क्यों डरें हम काल से।
मिलकर रखेंगें हर कदम हम,एक ही सुर ताल से।
है कौनसी मंजिल यहाँ जो,हम न हासिल कर सकें?
हम मुक्त भारत को करेंगें,रिश्वतों के जाल से।
41
मुक्तक 14-12
गोपियाँ
क्यूँ भ्रमर गुंजन करें क्यूँ,श्याम की मुरली बजे?
राधिका के नाम से क्यूँ,बाँसुरी के सुर सजें?
क्यूँ लताएं झूमती हैं,साँवरे के नाम से?
बाँसुरी की तान पर क्यूँ,गोपियाँ घर को तजें?
42
मुक्तक 14-12
ढाँचा
हड्डियों का एक ढाँचा,आज बनकर रह गया।
जिन्दगी ने यूँ बजाया,साज बनकर रह गया।
स्वप्न सब आँसू बने अब,आँख से हैं बह रहे।
साथ छोड़ा चाम ने भी,खाज बनकर रह गया।
43
मुक्तक 14-12
यौवन
जिन्दगी जी भी न पाया,हाय यौवन खो गया।
भीग तन मन भी न पाया,और सावन खो गया।
ख्वाब खुश्बू के दिखा कर,फूल सब ओझल हुए।
कर्म फल दे भी न पाए,हाय जीवन खो गया।
44
एक मुक्तक 14-12
आइना
आइना सच बोलता है,था सुना हमने कभी।
आइना खुद सच नहीं है,ये सुना हमने अभी।
आइना जो कुछ दिखाता,एक माया-जाल है।
देह-नश्वर को दिखाते,आइने सुंदर सभी।
"
45
लावणी मुक्तक 16,,,,,14
जनता
जनता को जो मान रहे हैं,भीड़ मकोड़े- कीड़ों की।
लड़ते दिखते रोज लड़ाई,अपने सुंदर नीड़ों की।
कितने शातिर नेता हैं ये,कितनी बेबस है जनता।
नादानी का लाभ उठाते,ये जनता की भीड़ों की।
46
लावणी मुक्तक 16....14
दीप
क्या कहता है दीप सुनो तुम,दीवाली के मस्तानों।
खुद जलकर जग रोशन कर दो,ज्योति जगत के परवानों।
याद करेगी तुमको दुनिया,हर होली दीवाली पर।
दुश्मन को तुम धूल चटा दो,हिन्द फौज के दीवानों।
47
लावणी मुक्तक 16....14
दिवाली
आज दिवाली के अवसर पर,याद गुरू को कर लो जी।
प्रेम प्यार से वन्दन करलो,शीश चरण में धर लो जी।
लौह धातु से स्वर्ण बनाने,वाले पारस को पूजो।
कृपा गुरू की बनी रहे ये,माँ लक्ष्मी से वर लो जी।
48
लावणी मुक्तक 16...14
दीवाली
दीवाली की रौनक है या,चाँद सितारों का मेला।
धरती पर उतरा है जैसे,दीप-बातियों का रेला।
हर आँगन में खनक रही हैं,खन-खन-खन खन-खन खुशियाँ।
लक्ष्मी जी के स्वागत की है,आयी मधुर-मधुर बेला।
49
लावणी मुक्तक
सपना
दिल की बगिया में महका इक,सुंदर प्यार भरा सपना।
अपनापन पाकर निखरा वो,लेकिन हो न सका अपना।
सपने में यूँ खोया ये दिल,भूल गया अपनी धड़कन।
नींद खुली तो सपना टूटा,भूला सपनों में खपना।
50
मुक्तक 16 ..14
दाता
बहुत दिया दाता ने हमको,
हम ही कुछ न समझ पाये।
इतनी महर करी भगवन् ने,
झोली छोटी पड़ जाये।
फिर भी हम इंसाँ तो हरदम,
रोना गम का हैं रोते ।
हँसकर जीना सीख लिया तो,
गम ही गम को खुद खाये।
51
लावणी मुक्तक
मंदिर
"जब भी खुलकर हँसना चाहा,दिल ने अधरों को रोका।
जब भी हँसकर जीना चाहा,अपनों ने ही
तो टोका।
अब तो हमने सीख लिया है,दिल ही दिल में खुश रहना।
चाही दिल ने खुशियाँ तो फिर,मन्दिर में जाकर ढोका।
'ललित
52
लावणी मुक्तक
खुशबू
कुछ फूलों की चंचल खुशबू,संग हवा के चल देती।
औ' कुछ की खुशबू माली के,नथुनों को संबल देती।
कुछ ऐसे निगुरे होते जो,खुशबू कभी नहीं देते।
और कई पुष्पों की खुशबू,बगिया को हलचल देती।
ललित
53
हरिगीतिका आधारित
मुक्तक 16:12
ब्याह
बाली उमर में ब्याह जीवन ,नष्ट मत कर दीजिए।
पढ़-लिख बनूँ मैं आत्म-निर्भर,नेक अवसर दीजिए।
नाजुक कली हूँ बाग की मैं,रौंद यूँ मत डालिये।
सौरभ बनूँ इस बाग की मैं,आज ये वर दीजिए।
ललित
54
हरिगीतिका आधारित
मुक्तक 16:12
खुशी
ये दिल न जाने क्या खुशी है,और गम क्या चीज है।
हर दिल खुशी का आसमाँ है,गम खुशी का बीज है।
सारा जहाँ ये भाड़ में भी,जा पड़े तो गम नहीं।
दिल में खुशी ख़ोजो समन्दर,की यही तजवीज है।
'ललित'
55
लावणी मुक्तक
ख्वाब
दिल की दीवारों में कितने,ख्वाब सुनहरे पलते हैं।
उन ख्वाबों में डूबे मानव,अद्भुत चालें चलते हैं।
सपने तो सपने हैं आखिर,टूटा करते हैं अक्सर।
टूटे सपने भी इंसाँ को,जीवन भर फिर
छलते हैं।
56
लावणी मुक्तक
भूल-भुलैया
भूल भुलैया में सपनों की,खोये हैं हम कुछ ऐसे।
कटी पतंगें बच्चों को कुछ,दिखी गगन में हों जैसे।
एक नहीं आये छत पर तो,दूजी को वो तकते हैं।
कटी पतंगें भी पर उनको,धोखा देती हैं कैसे?
57
लावणी मुक्तक
चाल
दिल की बातें हुई पुरानी,अब जुबान ही रानी है।
आँसू भी सब सूख गए अब,नहीं आँख में पानी है।
सारे इंसाँ हुए मशीनी,आँख कान सब बेच दिए।
बिना विचारे मानव चलता,चाल बड़ी तूफानी है।
ललित
58
लावणी मुक्तक
नैन-मटक्का
नैन मटक्का करे कन्हैया,राधा गोरी गोरी से।
छाँव कदम की बतियाता है,बरसाने की छोरी से।
गोप गोपियाँ आनन्दित हो,प्रेम-पुष्प वर्षा करते।
राधा रानी हाथ छुड़ाए,पकड़े कान्हा जोरी से।
ललित
59
लावणी मुक्तक
16--14
यूँ ही
दिल तो दिल है दिल की बातें,दिल ही दिल से करता है।
दिल ही दिल में दिल की बातें,दिल वाला ले मरता है।
दिल ही दिल की बात समझता,दिल ही दिल को प्यार करे।
दिल ही दिल से घात करे औ',दिल ही नफरत भरता है
ललित
60
लावणी मुक्तक
दिल
किस आसानी से तोड़ा ये,दिल नादाँ तुमने मेरा ।
और लगाते हुए ठहाके,मुख मुझसे तुमने फेरा।
लेकिन मुझे बतादो इतना,हाथ जरा दिल पर रखकर।
हँसी ठहाकों के पीछे ही,क्यूँ डाला तुमने डेरा?
ललित
61
लावणी मुक्तक
राधा-रानी
जिसकी साँसों की सौरभ से,महक रहा व्रज का कण-कण।
महलों की वो राधा रानी,भटकी फिरती है वन-वन।
नयन श्याम-दर्शन के प्यासे,विरह वेदना तन-मन में।
कान्हा के चरणों की आहट,सुनने को आतुर क्षण-क्षण।
No comments:
Post a Comment