रास रचाए श्याम,छम-छम नाचे राधिका।
मुरली से अविराम,रस बरसे आनन्द का।
नजरों से ही श्याम,जादू ऐसा कर रहा।
खुशियों से निष्काम,झोली सबकी भर गई।
नंदनवन व्रजधाम,वन-उपवन अरु वाटिका।
बाल-सखा सँग श्याम,नित्य नयी लीला करे।
कैसा ये भगवान,वृन्दावन में आ गया।
देता गीता-ज्ञान,नित्य रास में झूमता।
नाच रहे सब ग्वाल,नाचे गोरी राधिका।
मुरली करे कमाल,बेसुध हैं सब गोपियाँ।
सुन वंशी की तान,लतिकाएँ सब झूमती।
भूले निज का भान,व्रजवासी आनन्द में।
पूनम की है रात,कितनी खुश है चाँदनी?
नाचे माधव साथ,बौराई सी राधिका।
बरस रही है प्रीत,आलौकिक आनन्द है।
सुन वंशी के गीत,पायलियाँ मदहोश हैं।
हर गोपी के साथ,दिखे नाचता साँवरा।
मुरली की क्या बात ,अधर लगी जो झूमती?
दिखला दे गोपाल,एक झलक उस रास की।
जिसमें दे दे ताल,आत्म मिले परमात्म से।
नंद-यशोदा लाल,बाँके ओ घनश्याम रे।
आँखों देखा हाल,जरा सुना दे रास का।
यह कविता सोरठा छंद पर आधारित है।
सोरठा छंद विधान:
- यह मात्रिक छंद है।
- इसमें चार चरण होते हैं।प्रथम और तृतीय चरणों में 11-11 मात्राएँ तथा द्वितीय व चतुर्थ चरणों में 13-13 मात्राएँ होती हैं।
- विषम चरणों का अंत एक गुरु व एक लघु अर्थात गुरु लघु मात्रा से होना अनिवार्य है।
- यह दोहे से उल्टा होता है।
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