कान्हा इतनी किरपा कर दे,पल भर भी न तुझे भूलूँ।
राधे-कृष्णा नाम स्वरूपी,झूले में मन से झूलूँ।
मन-मन्दिर में दर्शन होवें,नयनों में झाँकी तेरी।
अधरों से वो लगी बाँसुरी,चितवन वो बाँकी तेरी।
ललित
मेरे लिए अत्यंत हर्ष का विषय!!! हिंदी साहित्यिक स मूह " मुक्तक लोक " द्वारा आयोजित तरंगिनी छंद समारोह में मेरी छंद रचना को चयनित ...
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