फरवरी 2023 की रचनाएँ

 मुक्तामणि छंद,लावणी छंद,राधिका छंद,आल्हा छंद


01.02.23


मुक्तामणि छंद


चिंता की चिंगारियाँ,मन को नित सुलगाएँ।

चिंता की हर गाँठ को,कब तक हम सुलझाएँ ?

बिन जल ही फूले-फले,चिंता की फुलवारी।

चंचल मन हर पल करे,चिंताओं से यारी।


संत कहें चिंता नहीं,चिंतन से कर यारी।

कथा-श्रवण सत्संग से,धीरज मिलता भारी।

चालीसा-हनुमान का,पाठ करो नित मन से।

हर लेंगें हनुमान जी,हर चिंता चित-मन से।


ललित किशोर 'ललित'

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मुक्तामणि छंद


भँवरों की अठखेलियाँ,पुष्पों के मन भायीं।

गुन-गुन जब गुँजन सुना ,कलियाँ सब मुस्कायीं।

सुरभित सुंदर हर कली,भ्रमरों के तन काले।

अलि कलियों की प्रीत से,जले गौर रँग  वाले।


ललित किशोर 'ललित'

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05.02.23

मुक्तामणि छंद


राधा का दिल ले गया,नटखट नंद-दुलारा।

सखियों से राधा कहे,छलिया था वह कारा।

जादूगर उस श्याम ने,वंशी मधुर बजाई।

वंशी ने पागल किया,सुध-बुध सब बिसराई।


मटकाता था नैन वो,देख मुझे कुछ ऐसे।

मेरे सुंदर रूप पर,मोहित हो वो जैसे।

मुझको भी थे भा गये,कजरारे वो नैना।

चैन चुरा कर ले गया,अब तड़पूँ दिन-रैना।


ललित किशोर 'ललित'

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लावणी छंद


पुष्पों की मधुरिम सौरभ से,महक रहा था जब उपवन।

कृष्ण विरह में दहक रहा था,तब राधा जी का तन-मन।

राधा के नैनों से आँसू ,बह-बह कर जो बहते थे।

हमें खोजने दो कान्हा को,रह-रह कर वो कहते थे।


ललित किशोर 'ललित'

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07.02.23

लावणी छंद


जीवन की पथरीली राहें,कब कोमल हो पायी हैं ?

फूल बिछी राहें भी अक्सर,शूलों से घिर आयी हैं।

प्रभो राम के राजतिलक को,सजी अयोध्या फूलों से।

कौन जानता था भविष्य की,राह भरी थी शूलों से ?


ललित किशोर 'ललित'

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08.02.23

लावणी छंद


महलों की रानी माँ सीता,निःसंकोच चली वन को।

कितनी आसानी से अंगीकार किया वन- जीवन को।

मुख-मुस्कान सहज रहती थी,जिन पथरीली राहों में ?

कितने कंटक चुभते होंगें,उन कँटकीली राहों में ?


कितना धीरज और समर्पण,कितना जीवट था मन में ?

चौदह वर्षों तक खुश रहना,सहज नहीं था उस वन में।

कैसी तपस्विनी माँ सीता,कैसा उसका तप होगा ?

रावण नजरें मिला न पाया,कैसा उसका जप होगा?


ललित किशोर 'ललित'

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लावणी छंद


जनकराज ने जिस बेटी को,पलकों पर रख कर पाला।

नहीं जानती थी जो बेटी,क्या होता पग का छाला ?

वही जानकी पति सेवा-हित,राज-महल को छोड़ चली।

प्रभो राम के पदचिन्हों में,पग-छालों को फोड़ चली।


ललित किशोर 'ललित'


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लावणी छंद

नेता


राजाओं से पीछा छूटा,नेताओं ने आ पकड़ा।

हर नेता सपना देखे बस,मेरा हो जाए छकड़ा।

कोई आगे खींच रहा है,कोई खींचे पीछे से।

कोई भाग रहा तो कोई,टाँगें खींचे नीचे से।


कोई सच्चा कोई झूठा,दागी कोई बेदागी।

कोई परिवारी तो कोई,कर्मठ सेवा-अनुरागी।

संविधान का पोषक कोई,कोई कागज फाड़ रहा।

कीच उछाल रहा है कोई,कोई कीचड़ झाड़ रहा।


किसको सच्चा माने जनता,किस पर कुछ विश्वास करे?

किस चोले में कौन छिपा है,किस से जनता आस करे ?

सकल मीड़िया बिका हुआ है,सत्य न बाहर आ पाए।

असमंजस में रहती जनता,किसको वोट दिया जाए ?


ललित किशोर 'ललित'

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लावणी छंद


कैसे भूल गए मुझको तुम ,क्यों कर मुझसे दूर गए ?

मेरे दिल का दर्द न समझा,क्यों हो इतने क्रूर गए ?

याद नहीं क्या आते तुमको,साथ बिताए पल थे जो ?

क्या अब भी तुम वही श्याम हो,प्रियतम मेरे कल थे जो ?


ललित किशोर 'ललित'

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लावणी छंद


मेरे नैनों की राहों से,दिल में आन बसे थे तुम।

दिल की इन गलियों से मोहन,बोलो कहाँ हुए  हो गुम ?

रसना हर पल रटती रहती,नाम तुम्हारा कुछ ऐसे।

खटमिट्ठे और मधुर रसों से,भरे हुए हो तुम जैसे।


ललित किशोर 'ललित'

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लावणी छंद


वर्ष बयालिस साथ बिताए,संग-संग सुख-दुख झेले।

दिल की दीवारों पर अंकित,अनगिन यादों के मेले।

कभी रूठते कभी मनाते,कभी चुप्प ही खींच रहे ।

प्यार भरे अंकुर इक दूजे,के दिल में हम सींच रहे।


ललित किशोर 'ललित' 

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कबीर छंद

शुभकामनाएं राकेश जी व भाभी जी


सूर्य किरण सी आभा मुख पर,नैनों में विश्वास।

अधरों पर मुस्कान लिए वो,आई सजना पास।

नैन झुकाए हँस कर बोली,ओ प्रियतम राकेश।

आज दिला दो कुछ आभूषण,और नए कुछ वेश।


ललित किशोर 'ललित'

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19.02.23

कबीर छंद


बूँद-बूँद ज्यों रिमझिम-रिमझिम,बरसे नभ से नीर।

उसी भाँति पल-पल-पल पकती,रहे नेह की खीर।

ललिता जी माही यश के सँग,चहकें नित राकेश।

काव्य सृजन परिवार दुआ दे,रहे न घर में क्लेश।


ललित किशोर 'ललित'

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20.02.23

राधिका छंद


सिया-राम  या कृष्ण,राधिका बोलो।

शिव-शंकर भोले-नाथ,अंबिका बोलो।

वो पवन-पुत्र हनुमान,चले आएँगें।

सब संकट पीड़ा दूर,चले जाएँगें।


ललित किशोर 'ललित'


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राधिका छंद


यूँ बैठे ठाले आज,हो गया झगड़ा।

मैडम जी बोलीं सूप,बना है तगड़ा।

मैं बोला इसमें मिर्च,पड़ी है तगड़ी।

अब नहीं रही कुछ बोल,न ही वो झगड़ी।


ललित किशोर 'ललित'

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राधिका छंद


जब पति-पत्नी का साथ,अचानक छूटे।

उन दोनों में से साँस,एक की टूटे।

तब होता है अहसास,गुणों का उसके।

बस अवगुण ही दिन-रात,दिखे थे जिसके।


ललित किशोर 'ललित'


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राधिका छंद


यों माफी माँगी खूब,प्यार से उससे।

पर नहीं रही वो मान,कहूँ मैं किससे?

यों कहाँ किसी ने मिर्च,पचाई होगी ?

जो कहूँ किसी से खूब,हँसाई होगी।


ललित किशोर 'ललित'

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राधिका छंद


कल हम पत्नी के साथ,गये थे मेले।

पर भूल गये घर पर्स,नहीं थे धेले।

जब खाने को कुछ हाथ,जेब में डाला।

फिर बतलाऊँ क्या मित्र,छनी जो हाला।


ललित किशोर 'ललित'

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21.02.23

राधिका छंद


जब उड़ते हैं मकरंद,हुए मतवाले।

तब हो जाते ज़ूकाम,अलर्जी वाले।

सुड़-सुड़ करती है नाक,नहीं कुछ सूझे।

पत्नी भी रहती दूर,रहें मुख सूजे।


ललित किशोर 'ललित'

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राधिका छंद


बजरंग बली हनुमान,पवनसुत नामा।

हर लें उसके संताप,जपे जो रामा। 

जो चालीसा-हनुमान,नियम से पढ़ता।

उस नर का पुण्य प्रताप,नित्य है बढ़ता।


ललित किशोर 'ललित'

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राधिका छंद

होली

वो हौले-हौले लाल,गुलाल लगाए।

गोरी के गोरे गाल,खूब सहलाए।

गीले गालों पर हाथ,फिराए ऐसे।

होली की ये सौगात,मिली हो जैसे।


ललित किशोर 'ललित'

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राधिका छंद

होली

मतवाला वो घनश्याम,बाँसुरी वाला।

पीछे से आया और, गाल रँग डाला।

इस रँग में घोली प्रीत,राधिका प्यारी।

है ये घुली हुई प्रीत,जगत से न्यारी।


ललित किशोर 'ललित'

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सार छंद


कुछ सीधी कुछ टेढ़ी राहें,कुछ बेहद पथरीली।

डेड एंड से बंद हुई कुछ,कुछ सूखी कुछ गीली।

पार किया उन सब राहों को,जिसने हँसते-गाते।

मंजिल पाई हर झंझट से,बचते और बचाते।


ललित किशोर 'ललित'

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राधिका छंद


हे भगवन दीनदयाल,दया के सागर।

सुख से भर दो नाथ,हमारी गागर।

हम आए लेकर आस,तुम्हारे द्वारे।

दुख हर लोगे हनुमान,हमारे सारे।


ललित किशोर 'ललित'


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27.02.23

आल्हा छंद


कुछ समझाया मात-पिता ने,गुरु ने दी कुछ सुंदर सीख।

कुछ अनुभव से कुछ ठोकर से,पाया जीवन मार्ग सटीक।

दिखलाई कुछ संत जनों ने,भक्ति-मार्ग की अनुपम राह। 

तब जाकर वृद्धावस्था में,जागी ध्यान-भजन की चाह।


ललित किशोर 'ललित'


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01.03.2023

आल्हा छंद


मोहन की दीवानी राधा,राधा का दीवाना श्याम।

बाँसुरिया की मधुर धुनों में,गूँजे केवल राधा नाम।

राधा-राधा रटे कन्हैया,राधा करती दिल में वास।

राधा के दिल में रहती बस,कान्हा से मिलने की आस।


ललित किशोर 'ललित'

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01.03.2023

आल्हा छंद


मोहन की दीवानी राधा,राधा का दीवाना श्याम।

बाँसुरिया की मधुर धुनों में,गूँजे केवल राधा नाम।

राधा-राधा रटे कन्हैया,राधा करती दिल में वास।

राधा के दिल में रहती बस,कान्हा से मिलने की आस।


ललित किशोर 'ललित'

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04.03.2023

आल्हा छंद


हाथों में रँग ले कर कान्हा,राधा से करता मनुहार।

एक बार बाहों में आजा,कर दूँ रंगों की बौछार।

हरे-लाल-पीले रंगों से,रँग दूँ तेरे गोरे गाल।

या मैं मार-मार पिचकारी,कर दूँगा तुझको बेहाल।


सखियाँ बोल रहीं राधा से,आ छुप जाएँ 

हम उस ओर।

नंदन-वन के बरगद पीछे,श्याम नहीं जाता जिस ओर।

हमें खोजता जब आएगा,लेंगीं हम सब उसको घेर।

ऐसा रँग डालेंगें उसको,दीखेगा रंगों का ढेर।


ललित किशोर 'ललित'


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छद श्री सम्मान