लला और माया

सीनियर सिटीजन डे

यह  मात्र संयोग है या ईश कृपा जो यह रचना जो वृद्ध जनों की व्यथा दर्शाती है
कल ही पूर्णता को प्राप्त हुई और
आज सीनियर सिटीजन डे दि. 01.10.2015 को प्रेषित हो रही है।

काव्यांजलि परिवार के सभी मित्रों के सहयोग,समर्थन व प्रोत्साहन से
व नवीन जी,राकेश जी के द्वारा प्रोत्साहन ,सहयोग व अनेक बार के परिष्कार से 144 पंक्तियों में
पूर्णता को प्राप्त हुई भुजंग प्रयाति छंद में लिखी यह रचना काव्यांजलि परिवार को समर्पित है।
आप सभी मित्र गणों का हार्दिक आभार।

वृद्ध जनों की व्यथा को दर्शाती एक कहानी भुजंग प्रयात छंद में कविता रूप में.......

            'लला और माया'

कई मन्दिरों पे मनौती भराई,चढ़ा भेंट पूजा कथा भी कराई।
हुई आस पूरी न फूले समाये,भरी गोद सूनी लला नेक पाये।
दिवाली मनाई जगारा जगाया,लला प्यार से वो गले से लगाया।
बड़े चाव से पालने में झुलाया,सुना लोरियाँ लाल को था सुलाया।
कहे माँ,लला तू हमारा कन्हैया,गले से लगा चूमती ले बलैया।
तु ही प्यार मेरा तु संसार मेरा,तु ही साँझ मेरी तु मेरा सवेरा।
बला पे चली आ रही हों बलायें,दुआ ये करूँ मैं तुझे छू न पायें।
पिता भी कहे तू दुलारा हमारा,जरा भी कमी हो नहीं है गवारा।
उचारे ममा तो ,पिता फूल जाता,बजें पायलें जो, ज़रा लोच खाता।
नहीं दूध पीता, हुआ क्या लला को,ममा सोचती है ,भगाऊँ बला को।
जगे रात में वो ,लला को सुलाती,पुकारे लला जो, वहीं दौड़ आती।
कभी दूर जाता,कभी पास आता,सुना तोतले बोल माँ को हँसाता।
करें प्यार दादी कहानी सुनायें,करें लाड़ दादा मनौती मनायें।
ममा ढोक देना नमाना सिखायें,पपा खूब सारे खिलौने दिखायें।।
चला नर्सरी में नई ड्रेस लाये,पला नाज से है खुशी रोज पाये।
कभी ज़िन्दगी में कमी आ न पाई,खिलाया पिलाया पढ़ाई कराई।।
लला को पढ़ाया उधारी  चढ़ाके,ममा और पापा करें रोज फाके।
यही आस बेटा पढ़ेगा लिखेगा,लला का बड़ा नाम ऊँचा दिखेगा।
बड़ा नेक बेटा दिलासा दिलाता,सदा मान देता प्रभू को धियाता।
ममा और पापा ,ददा और दादी,सभी के दिलों में उमंगें जगादी।
पढ़ूँगा बनूँगा बड़ा आदमी मैं,करूँ मात सेवा सदा लाजमी मैं।
लला फोन मोबाइलों से घुमाता,नहीं बात कोई ममा से छुपाता।
सभी खास बातें हमेशा बताता,ममा और पापा विधाता जताता।
कभी भी ममा को न ये भास होता,लला काश मेरा सदा पास होता।
बड़ी ही सुहानी कहानी यहाँ से,ममा की जुबानी सुनो जी वहाँ से।
लला आज सी एस सी ए हुआ है,सुनो राम जी की बड़ी ये दुआ है।
लला के पपा आप बाजार जाओ,मिठाई फलों का चढावा चढ़ाओ।
मिठाई बँटाओ गली औ' बजारों,मिलेंगी दुआएँ लला को हजारों।
ददा ये कहें आज संसार सारा,कहेगा लला खास पोता हमारा।
लला झूमता खूब देखो नजारा,ममा औ' पपा का बनूँगा सहारा।
रही ख्वाहिशें आपकी जो अधूरी,करूँगा सभी ब्याज के साथ पूरी।
पपा की खुशी का नहीं है ठिकाना,सुधारा बुढ़ापा सही आज जाना।
लला की बड़ी काम की होशियारी,मिली नौकरी साथ पैकेज भारी।
चुकाने लगा वो पपा के उधारे,कमोबेश हालात यूँ ही सुधारे।
सवा साल बीता दिवाली मनाते,नया दौर आया बहाने बनाते।
लला ने फसाना पुराना सुनाया,पढ़ी साथ थी जो परी नाम माया।
वही ज़िन्दगी है वही प्यार मेरा,उसी से शुरू होय संसार मेरा।
किया है उसी से ममा एक वादा,जिऊँगा उसी संग है ये इरादा।
ममा और पापा हुए यूँ पराये,लला की खुशी देख फेरे कराये।
हनीमून से लौट के आज आये,ममा से निगाहें रहे वो चुराये।
निगाहें झुकाये लला बोल जाता,ममा आपका ये घराना न भाता।
बहू भी न चाहे यहाँ और आना,हमें आज ही हैदराबाद जाना।
ममा और पापा नहीं रोक पाये,रहे सोचते जो कहा भी न जाये।
रवाना हुए यों लला और माया,सभी ख्वाब तोड़े लला ने हराया।
मनौती मनाई ममा ने जहाँ थी,उसी देवरे आज बैठी वहाँ थी।
मुझे देव क्यों पूत ऐसा दिया था,भुला आज पापा ममा को गया था।
लला आज ऐसा दिखाता समा है,जने क्यों सुतों को जहाँ में ममा है।
बताओ प्रभू ये ममा और पापा,गुजारें कहाँ और कैसे बुढ़ापा।
मिला के तभी देवता से निगाहें,पुकारे ममा आज वीरान राहें।
लला ने भरी आज संताप से मैं,करूँ कामना ये प्रभू आप से मैं।
लला को प्रभू नेक राहें दिखाना,ममा को न भूले कभी ये सिखाना।
लला से बड़ी आस दाता लगाई,बड़ी भूल की आस क्यों थी जगाई।
प्रभू ने सुनी ये ममा की कहानी,लला भूल पाया न यादें पुरानी।
लला दौड़ माता पिता पास आया,ददा ने गले से लला को लगाया।
ममा ने कहा यूँ तुझे देख पाला,गले से उतारा न कोई निवाला।
पपा ने उधारा लिया तू पढ़ाया,बड़ी मुश्किलों से उधारा चुकाया।
हमें आज तेरा सहारा मिलेगा,यही सोचते थे सवेरा दिखेगा।
करी आपने जो नहीं वो नवाई,कराते सभी हैं सुतों को पढ़ाई।
ममा आपके एहसाँ मानता हूँ,पढ़ाया लिखाया मुझे जानता हूँ।
यही चाहता हूँ बनूँ मैं सहारा,हुआ हूँ ममा मैं बड़ा बेसहारा।
न भूलो कहाँ आज जाये जमाना,बड़ी मुश्किलों से भरा है कमाना।
मुझे कार ले बंगला भी बनाना,बड़ा काम भारी पपा ने न जाना।
ममा आज जो भी बड़ी कार लेता,जमाना उसे ही बड़ा मान देता।
ममा सोचती है लला और माया,इन्होंने जमाना नया है दिखाया।
पपा का न पूछो हुआ हाल था जो,पराया हुआ वो सगा लाल था जो।
जिसे पालने में खपाई जवानी,उसी लाल ने आज दे दी रवानी।
ममा रो रही आज देती दुहाई,रहे मौज आनंद में तू सदाई।
कभी जिन्दगी में न देखे गमी तू,बना आज माया सखा है डमी तू।
पपा ने लला की ममा को पुकारा,लुटा आज संसार सारा हमारा।
लला ये न होता लली काश होती,अजी आस यों तो लगाई न होती।
लली प्यार दोनों जहाँ का जताती,हमारी कभी बात खाली न जाती।
किसी को न देना प्रभू लाल ऐसा,करे जो बुरा हाल कंगाल जैसा।

                 समाप्त

'ललित'

No comments:

Post a Comment

छद श्री सम्मान