12.10.15
1
कुण्डलिया छंद
गजानन
राजा महा गजानना,आये तेरे द्वार।
हाथ जोड़ विनती करे,कायसृजन परिवार।
काव्यसृजन परिवार,विनायक आस लगाये।
कर दो ये उपकार,कभी भी विघ्न न आये।
'ललित' सहित कविराज, रचें नित रचना ताजा।
प्रथम पूज्य हो आप,गजानना महा राजा।
ललित
2
कुण्डलिया छंद
काया
काया सुंदर देख के,मन में करो विचार।
इस तन के भीतर बसे,लाखों एब विकार।
लाखों एब विकार,करें जो अनगिन घातें।
सुंदरता कीआड़,कई अवगुण छिप जाते।
कहे ललित समझाय,बला की है ये माया।
ऋषि मुनि भूले राह,देख के सुंदर काया।
ललित
3
कुण्डलिया छंद
काल
न्यारी है गति काल की,बिना सवारी देख।
बिना रुके चलता रहे,नहीं छोड़ता रेख।
नहीं छोड़ता रेख,समय ऐसा हरजाई।
जिसे हुआ अभिमान,उसकी लुटिया डुबाई।
कहे ललित अविराम,वक्त की है बलिहारी।
घाव करे गम्भीर,काल की गति है न्यारी।
'ललित'
4
13.10.15
कुण्डलिया छंद
मैया
मैया तेरे नाम का,जयकारा चहुँ ओर।
तेरे दर सी पावनी,और न कोई ठौर।
और न कोई ठौर,जहाँ हो शांति अपारा।
आया जो भी द्वार,भवानी तूने तारा।
'ललित' लगाये टेर,भँवर में जीवन नैया।
तर जाए कर जाप,नाम का तेरे मैया।
'ललित'
5
13.10.15
कुण्डलिया छंद
माता
माता के दरबार की,बड़ी अनोखी शान।
खाली हाथ न लौटता,कोई भी इन्सान।
कोई भी इन्सान,करे जो दर्शन प्यारा।
पाये वो वरदान,लगाए जो जयकारा।
'ललित' कहे कर जोड़,सुनो माँ भव की त्राता।
हम को भी दो ठौर,अब दरबार में माता।
'ललित'
6
14.10.15
कुण्डलिया छंद
गिरगिट
जितने हैं गिरगिट यहाँ,अरु जितने हैं साँप।
दुर्गा माँ भी देखके,लेती है सब भाँप।
लेती है सब भाँप,गरल मय हवा चली है।
मान बड़ा अभिशाप,कली नाजुक मसली है।
कहे 'ललित' परिणाम,कहर ढायेंगें इतने।
रहें कुआँरे पूत,जनम अब लेंगे जितने।
'ललित'
7
14.10.15
कुण्डलिया छंद
सबसे प्यारा मीत है,भगवन् कृपानिधान।
कभी न करता जो बुरा,करे सदा कल्यान।
करे सदा कल्यान,किसी के हाथ न आता।
जपता जो अविराम,उसी के भाग्य जगाता।
'काव्यांजलि परिवार',कहे वो सबसे न्यारा।
भक्तों का भगवान,मीत है सबसे प्यारा।
'काव्यांजलि परिवार'
8
14.10.15
कुण्डलिया छंद
कच्चे-पक्के यार वो,पथ में छोड़ें साथ।
पत्नी आजीवन चले,दिए हाथ में हाथ।
दिए हाथ में हाथ,कभी भी साथ न छोड़े।
टेढ़ी-मेढ़ी राह,भले कितने हों रोड़े।
'ललित' बताये राज,खाए वो अच्छे धक्के।
रखे सदा जो साथ,यार वो कच्चे-पक्के।
'ललित'
9
15.10.10
कुण्डलिया छंद
सामाजिक विसंगतियाँ
भूखा है दर पर खड़ा,पंडित को दें भोज।
करते ऐसे श्राद्ध हैं,कई लोग हर रोज।
कई लोग हर रोज,पराई पीर न जानें।
घट घट वो ही राम,नहीं क्यों ये भी मानें।
कहे 'ललित'यह देख,पितृ का मुँह भी सूखा।
भक्त राम का एक,खड़ा है दर पर भूखा।
'ललित'
10
15.10.15
कुण्डलिया छंद
सामाजिक विसंगतियाँ
नेता बन जाता यहाँ,शिक्षा मंत्री आज।
अनपढ़ हो कर भी करे,पढ़े लिखों पर राज।
पढ़े लिखों पर राज,चलाये वो इतराये।
लाठी जिसकी भैंस,सदा उसकी कहलाये।
रहा 'ललित' है सोच,न कोई अब तक चेता।
क्यों सब का सिर मौर,यहाँ बन जाता नेता।
'ललित'
11
15.10.15
कुण्डलिया छंद
माया ऐसे बाँधती,सम्मोहन की डोर।
रिश्तों में उलझा रहे,मानव का मन मोर।
मानव का मन मोर,बड़ा कानों का कच्चा।
जीवन बीता जाय,मान नातों को सच्चा।
रहा 'ललित' ये सोच,प्यार जो प्रभु से पाया।
भुला दिया तो रोज,बाँधती ऐसे माया।
ललित
12
16.10.15
कुण्डलिया छंद
देश की वर्तमान स्थिति
माटी मेरे देश की, लुटती देखे लाज।
पापा-बेटे लड़ रहे,बिना बात के आज।
बिना बात के आज,यहाँ आजादी रोई।
भूखे मरते लोग,नहीं सुध लेता कोई।
कहे 'ललित' ये रार,बनी है अब परिपाटी।
हुई शर्म से लाल,मेरे देश की माटी।
'ललित'
13
16.10.15
कुण्डलिया छंद
यारी करते श्वान से,बड़े लोग चहुँ ओर।
उस की नित सेवा करे,होते ही वो भोर।
होते ही वो भोर,श्वान को देते मेवा।
भूले प्रभु का नाम,अरु माँ-बाप की सेवा।
'ललित' करे अफसोस,देख इनकी लाचारी।
गौमाता को छोड़,श्वान से करते यारी।
'ललित'
14
16.10.15
कुण्डलिया छंद
फैला जो तम देश में,सूर न दीखे कोय।
जो सूरज जन ने चुना,ओढ़ चदरिया सोय।
ओढ़ चदरिया सोय,लापता है उजियारा।
जनता रोती आज,कराहे भारत सारा।
'ललित' कहे इक रोज,बहेगा ऐसा रैला।
देगा घुटने टेक,देश में तम जो फैला।
'ललित'
15
16.10.15
कुण्डलिया छंद
आजादी क्या है बला,समझ न पाया कोय।
अधिकारों का नाम ही,आजादी कब होय।
आजादी कब होय,करें जो सब मनमानी।
न हो देश की सोच,करें सब खींचातानी।
'ललित' कहे ए काश,देख के ये बर्बादी।
दे दे कोई ज्ञान,बला है क्या आजादी।
'ललित'
16
17.10.15
कुण्डलिया छंद
रोगी क्या करता भला,डाक्टर को दिखलाय।
डाक्टर खुश हो देखता,जेब गरम हो जाय।
जेब गरम हो जाय,रोग जो सबको घेरे।
नव कोठी बन जाय,दूर हों सभी अंधेरे।
'ललित' सुने मजबूर,एंजियोग्राफी होगी।
एंजोप्लास्टी होय,भला क्या करता रोगी।
'ललित'
17
17.10.15
कुण्डलिया छंद
प्रभु का पत्र
प्रिय मानव के नाम
(प्रथम भाग)
जागे जब तुम नींद से, मैं आया था पास।
बात करोगे प्यार से,मन में थी ये आस।
मन में थी ये आस,मुझे तुम याद करोगे।करके थोड़ा ध्यान,मेरा तुम नाम लोगे।
चुभी 'ललित' ये बात,पी के चाय वो भागे।
होने को तैयार,जब तुम नींद से जागे।
सोचा मैंने तब यही,अभी करोगे बात।
सूट कौन सा पहनना,मन में था उत्पात।
मन में था उत्पात,कलेवा करने लागे।
सारे कागज खोज,बैग में भरके भागे।
रहा 'ललित' मैं सोच,हुआ ये कैसा लोचा।
सबका पालनहार,तुमने क्यों नहीं सोचा।
गाड़ी में थे जब चढ़े,तब भी था मैं साथ।
मुझ से बातें की नहीं,बैठे खाली हाथ।
बैठे खाली हाथ,देखने पेपर लागे।
मोबाइल था साथ,खेल फिर खेलेआगे।
'ललित' मुझे अफ़सोस,बड़े हो तुम्हीं अनाड़ी।
खड़े हुए प्रभु पास,छुका-छुक भागे गाड़ी।
बातें तुमसे खास मैं,कहना चाहूँ आज।
कुछ तो समय निकाल लो,केवल मेरे काज।
केवल मेरे काज,कि मुझसे कुछ बतियालो।
पूरण हों सब काम,हजारों सुख हथियालो।
'ललित' मुझे बिसराय,गुजारे जो दिन-रातें।
जीवन भर पछताय,सुने नहीं मेरी बातें।
खाली जब बैठे रहे,कार्यालय में आज।
मुझ को याद नहीं किया,तुम्हें न आई लाज
तुम्हें न आई लाज,अकेले खाना खाया।
देता है जो अन्न,उसे ही क्यों बिसराया।
'ललित' हुई जब शाम, तुमने टी वी लगाली।
याद न आये राम,घर में बैठ के खाली।
होगा तुमको जागना,सोये मुझको भूल।
देख तुम्हारी हरकतें,चुभते मुझको शूल।
चुभते मुझको शूल,तुम्हें मैं गुनना चाहूँ।
कहना चाहूँ बात,तुम्हारी सुनना चाहूँ।
सुनो 'ललित' यह राज,जानना तुमको होगा।
सबका मालिक एक,जागना तुमको होगा।
करता तुम से प्रेम हूँ,मैं तो अपरम्पार।
इसीलिए मैं चाहता,मिलना बारम्बार।
मिलना बारम्बार,तुम्हें भव पार लगाना।जीवन में जो दोष,चाहता उन्हें भगाना।
'ललित' तुम्हें झकझोर,पाप सारे मैं हरता।
बँधा प्रेम की डोर,प्रेम मैं तुमसे करता।
करता ये ही आस मैं,आओगे इक बार।
खुशियाँ जो मुझसे मिली,मानोगे उपकार।
मानोगे उपकार,हमारा ध्यान करोगे।
दीन दुखी को देख,कभी कुछ दान करोगे
'ललित' हजारों बार,तुम्हारी झोली भरता।
कर लो मुझसे प्यार,आस मैं ये ही करता।
आते हो तुम ढोकने,जब हो कोई काम।
झटपट से कुछ माँग के,दे जाते कुछ दाम।
दे जाते कुछ दाम,न मुझसे नजर मिलाते।
बँटता रहता ध्यान,तुम्हारा आते जाते।
'ललित' करो विश्वास, हमारे शाश्वत नाते।
जपना मेरा नाम, प्रेम से रहना आते।
'ललित'
समाप्त
प्रभु का पत्र
प्रिय मानव के नाम
राकेश जी व नवीन जी के सुझावों से परिष्कृत
जागे जब तुम नींद से, मैं आया था पास।
बात करोगे प्यार से,मन में थी ये आस।
मन में थी ये आस,मुझे तुम याद करोगे।करके थोड़ा ध्यान,मेरा तुम नाम लोगे।
चुभी 'ललित' ये बात,पी के चाय वो भागे।
होने को तैयार,जब तुम नींद से जागे
सोचा मैंने तब यही,अभी करोगे बात।
सूट कौन सा पहनना,मन में था उत्पात।
मन में था उत्पात,कलेवा करने लागे।
सारे कागज खोज,बैग में भरके भागे।
रहा 'ललित' मैं सोच,हुआ ये कैसा लोचा।
सबका पालनहार,तुमने क्यों नहीं सोचा।
गाड़ी में थे जब चढ़े,तब भी था मैं साथ।
मुझ से बातें की नहीं,बैठे खाली हाथ।
बैठे खाली हाथ,देखने पेपर लागे।
मोबाइल था साथ,खेल फिर खेलेआगे।
'ललित' मुझे अफ़सोस,बड़े हो तुम्हीं अनाड़ी।
खड़े हुए प्रभु पास,छुका-छुक भागे गाड़ी।
बातें तुमसे खास मैं,कहना चाहूँ आज।
कुछ तो समय निकाल लो,केवल मेरे काज।
केवल मेरे काज,कि मुझसे कुछ बतियालो।
पूरण हों सब काम,हजारों सुख हथियालो।
'ललित' मुझे बिसराय,गुजारे जो दिन-रातें।
जीवन भर पछताय,सुने नहीं मेरी बातें।
खाली जब बैठे रहे,कार्यालय में आज।
मुझ को याद नहीं किया,तुम्हें न आई लाज
तुम्हें न आई लाज,अकेले खाना खाया।
देता है जो अन्न,उसे ही क्यों बिसराया।
'ललित' हुई जब शाम, तुमने टी वी लगाली।
याद न आये राम,घर में बैठ के खाली।
होगा तुमको जागना,सोये मुझको भूल।
देख तुम्हारी हरकतें,चुभते मुझको शूल।
चुभते मुझको शूल,तुम्हें मैं गुनना चाहूँ।
कहना चाहूँ बात,तुम्हारी सुनना चाहूँ।
सुनो 'ललित' यह राज,जानना तुमको होगा।
सबका मालिक एक,जागना तुमको होगा।
करता तुम से प्रेम हूँ,मैं तो अपरम्पार।
इसीलिए मैं चाहता,मिलना बारम्बार।
मिलना बारम्बार,तुम्हें भव पार लगाना।जीवन में जो दोष,चाहता उन्हें भगाना।
'ललित' तुम्हें झकझोर,पाप सारे मैं हरता।
बँधा प्रेम की डोर,प्रेम मैं तुमसे करता।
करता ये ही आस मैं,आओगे इक बार।
खुशियाँ जो मुझसे मिली,मानोगे उपकार।
मानोगे उपकार,हमारा ध्यान करोगे।
दीन दुखी को देख,कभी कुछ दान करोगे
'ललित' हजारों बार,तुम्हारी झोली भरता।
कर लो मुझसे प्यार,आस मैं ये ही करता।
आते हो तुम ढोकने,जब हो कोई काम।
झटपट से कुछ माँग के,दे जाते कुछ दाम।
दे जाते कुछ दाम,न मुझसे नजर मिलाते।
बँटता रहता ध्यान,तुम्हारा आते जाते।
'ललित' करो विश्वास, हमारे शाश्वत नाते।
जपना मेरा नाम, प्रेम से रहना आते।
'ललित'
समाप्त
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