26.1015
26.10.15
हरिगीतिका छंद
प्रथम प्रयास
राकेश जी के सुझाव से
परिष्कृत
मन में जपो तुम नाम निशिदिन,
भक्तवत्सल राम का।
नित ही करो तुम रूप दर्शन,
प्रेम से उस श्याम का।
जब तुम जपोगे नाम मुख से,
चित्त निर्मल होयगा।
जो भूल हरि को काम चिंतन,
सतत करता रोयगा।
ललित
हरिगीतिका छंद
द्वितीय प्रयास
समीक्षा हेतु
स्व परिष्कृत
दर्शन करो नित प्रात उठकर,
ओम् के निज हाथ में।
गोविन्द,लक्ष्मी,सरसुती का,
वास है जहँ साथ में।
कर प्रात वंदन नित्य ही जो,
वृध्द की सेवा करे।
विद्या,यशोबल,आयु सबकी,
वृध्दि प्रभु देवा करें।
'ललित'
हरिगीतिका छंद
तृतीय प्रयास
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत
गोपी गीत
प्रथम भाग
प्यारे तुम्हारे जन्म से ब्रज,
लोक में महिमा बढ़ी।
वैकुण्ठ से बढ़कर लगे है,
आज पावन व्रज गढ़ी।
सौन्दर्य औ' माधुर्य देवी,
श्री महा लक्ष्मी यहाँ।
बसने लगी हैं नित्य अब तो,
छोड़ वैकुण्ठी वहाँ।
'ललित'
क्रमश:
27.10.15
हरिगीतिका छंद
प्रथम प्रयास
नवीन जी के सुझाव से परिष्कृत
गोपी गीत
२
हम खोजती हैं कृष्ण तुमको,
गोपियाँ वन-वन यहाँ।
जिन धर दिये हैं प्राण अपने,
आपके चरणों वहाँ।
स्वामी हमारे प्राण के तो,
आप माधव खास हैं।
कान्हा सदा बिन मोल की हम,
आपकी ही दास हैं।
'ललित'
हरिगीतिका छंद
प्रथम प्रयास
नवीन जी के सुझाव से परिष्कृत
गोपी गीत
२
हम खोजती हैं कृष्ण तुमको,
रात-दिन वन-वन यहाँ।
लो धर दिये हैं प्राण हमने,
है चरण तव रज जहाँ।
तुम हो हमारी प्राण डोरी ,
प्राण तुमसे खास हैं।
कान्हा सुनो बिन मोल की हम,
बस तुम्हारी दास हैं।
'ललित'
हरिगीतिका छंद
द्वितीय प्रयास
समीक्षा हेतु
स्व परिष्कृत
फे/बुक 20.11.15
नाना विचारों के भँवर में,
डूबते बिन बात वो।
मुख पर लगाते हैं मुखौटे,
नित नये दिन रात वो।
जो बात मन में सोचते हैं,
भाव वो तन में नहीं।
जो भाव मुख पर दीखते हैं,
सोच वो मन में नहीं।
'ललित'
हरिगीतिका छंद
तृतीय प्रयास
समीक्षा हेतु
बैठा हुआ जिस डाल पर है,
काट उसको फँस रहा।
पागल हुआ मानव, खुदा भी,
देख उसको हँस रहा।
वन-बाग,उपवन,शैल-सरिता,
नाश सबका कर रहा।
भगवान ने सौंपा दया कर ,
वो खजाना हर रहा।
'ललित'
28.10.15
1
हरिगीतिका छंद
आज का प्रथम प्रयास
समीक्षा हेतु
काव्यांजलि फेस बुक 24.11.15
'जय श्री राम'
संसार की आशा तजो तुम,
राम रघुवर को भजो।
उद्धार यदि हो चाहते तो,
आप अन्दर से सजो।
जिस नाम से तुम को पुकारे,
आज ये संसार है।
वह नाम इस तन को मिला ये,
मानने में सार है।
तन के किरायेदार तुम क्यों,
प्यार तन से कर रहे।
प्रभु को बना लो यार तुम क्यों,
खार मन में भर रहे।
नर तन विषों की खान है ये,
बात मन से मान लो।
प्रभु राम सुख के धाम हैं ये,
राज पावन जान लो।
'ललित'
2
हरिगीतिका छंद
आज का द्वितीय प्रयास
सुरेश जी के सुझाव से परिष्कृत
श्रृंगार रस में पहली बार लिखने की
तुच्छ कोशिश
गजगामिनी सी चाल तेरी,
देख अम्बर डोलता।
मधुमालती सी झूमती तू,
मेघ जब रस घोलता।
मृगनयन तेरे कातिलों से,
कुछ इशारे कर रहे।
लब काँपते हैं प्रीत-रस के,
ज्यों घड़े हों झर रहे।
ललित
हरिगीतिका छंद
आज का तृतीय प्रयास
समीक्षा हेतु
आज मेरी बेटी रूचि के जन्म दिन
पर विशेष
जन्मदिन है ये रूचि तेरा,
आज हम खुश हैं यहाँ।
तुझको जहाँ की रौनकें हों,
रोज ही हासिल वहाँ।
दिन-रात खुशियाँ वास तेरे,
द्वार पे करती रहें।
गम और दुख की छाँव तेरे,
द्वार से डरती रहें।
'ललित'
29.10.15
हरिगीतिका छंद
आज का प्रथम प्रयास
नवीन जी के सुझाव से परिष्कृत
भगवान ने भेजी धरा पर,
बेटियाँ विश्वास से।
भरती रही माँ-बाप को वो,
प्यार के अहसास से।
बेटी सदा वरदान बनकर,
जिंदगी रौशन करे।
माँ-बाप कन्या दान दे कर,
कोष पुण्यों का भरे।
'ललित'
हरिगीतिका छंद
आज का द्वितीय प्रयास
समीक्षा हेतु
स्व परिष्कृत
कुछ बात शेयर की करें वो,
और कुछ व्यापार की।
जो दोस्त आये हैं कराने,
अंत-यात्रा यार की।
सब मीत हैं अपने सुखों के,
कौन किसका खास है।
सत्कर्म जीवन में किया जो,
एक उसकी आस है।
'ललित'
हरिगीतिका छंद
आज का तृतीय प्रयास
समीक्षा हेतु
देखी हजारों सूरतें जो,
दीखती ज्यों तितलियाँ
घायल हुए नादाँ कई तों,
देखकर ये बिजलियाँ।
इन सूरतों की फितरतें भी,
जानलेवा कम नहीं,
मारें निशाना ये कहीं औ',
तीर लगता है कहीं।
ललित
हरिगीतिका छंद
आज का चतुर्थ प्रयास
समीक्षा हेतु
हम आज हैं कुछ यूँ फँसे इस,
शायरी के जाल में।
अब तो मजा आने लगा है,
बाल की हर खाल में।
जो बात हम लिखने लगे हैं,
बात की ही बात में।
रचना नई बनने लगी वो,
छंद की ही जात में।
ललित
30.10.15
हरिगीतिका छंद
आज का प्रथम प्रयास
समीक्षा हेतु
करवा चौथ स्पेशल
है आज करवा चौथ का व्रत,
आप ही तो खास हो।
मैं प्यार करतीे आपसे ही,
आज तो विश्वास हो।
व्रत आज ये मैंने रखा जी,
आपके हित के लिए।
ला दीजिए उपहार कोई,
इस पुजारिन के लिए।
ललित
हरिगीतिका छंद
आज का द्वितीय प्रयास
समीक्षा हेतु
माँ चौथ तुमको पूजती मैं,
आज करके कामना।
रूठे कभी नहि चाँद मेरा,
हो न गम से सामना,
सौ साल का सौभाग्य देना,
काल को तुम रोकना।
देना न दारुण पीर मुझको,
मान मेरा ढोकना।
ललित
हरिगीतिका छंद
आज का तृतीय प्रयास
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत
यदि तात शिक्षा दें उन्हें तो,
मातु श्री कहती वहीं।
डाँटो न लल्ला को हमारे,
नौकरी मिलनी नहीं।
इस देश के जो हाल हैं वो,
जानते हैं हम सभी।
विद्यालयों की बाढ़ है जो,
ज्ञान से सूने अभी।
ललित
हरिगीतिका छंद
आज का चतुर्थ प्रयास
समीक्षा हेतु
पूजा करूँगी मैं तुम्हारी,
मान लो मनुहार तुम,
जो बन पड़े तुम से वही कुछ,
आज दो उपहार तुम।
लो सूट ये पहनो नया तुम,
और टाई घाल दो।
सेल्फी खिंचा कर साथ मेरे,
फेस बुक पर डाल दो।
ललित
हरिगीतिका छंद
एक और प्रस्तुति
समीक्षा हेतु
साहब बुलाते हैं तुम्हें ये,
आज संदेशा मिला।
वह भी जरा सकुचा रहा था,
साब को है क्या गिला।
बोले मिला कर हाथ साहब,
मुस्कुराता मुख बना।
उपहार दीवाली हमें तुम,
दाल अरहर भेजना।
ललित
31.10.15
हरिगीतिका छंद
आज का प्रथम प्रयास
नवीन जी के सुझाव से परिष्कृत
पैसा
प्रथम भाग
ये आज जो आया जमाना,
देख प्रभु हैरान है।
पैसा बना ईमान सबका,
और पैसा जान है।
हर नर यहाँ भगवान अब तो,
मान पैसे को रहा।
जिसके नहीं है पास पैसा,
मान वो है खो रहा।
'ललित'
हरिगीतिका छंद
आज का द्वितीय प्रयास
समीक्षा हेतु
स्वपरिष्कृत
पैसा
द्वितीय भाग
हर आदमी बिकता यहाँ पर,
बहुत सस्ते मोल में।
जिसने खरीदा आदमी को,
काम हो बस बोल में।
क्यों बेचता ईमान अपना,
आदमी हर पल खड़ा।
जब जानता है उस खुदा का,
फैसला होगा बड़ा।
ललित
हरिगीतिका छंद
आज का तृतीय प्रयास
समीक्षा हेतु
पैसा
तृतीय भाग
माया बड़ी मन मोहनी है,
भासती सबको यहाँ।
घर-बार सुंदर चाहता है,
आदमी हर-दम जहाँ।
बाकायदा,बेकायदा,वो,
कुछ नहीं है जानता।
बस नाम अपना हो बड़ा ये,
चाह सच्ची मानता।
ललित
हरिगीतिका छंद
आज का चतुर्थ प्रयास
समीक्षा हेतु
पैसा
चतुर्थ भाग
बस एक नाता पारखी तो,
मान-दौलत से रखे।
निर्धन तथा कमजोर प्राणी,
बस अकेला पन चखे।
माँ-बाप अपना आज बेटा,
कर रहे नीलाम हैं।
वो आम के तो आम खाएँ,
गुठलियों के दाम हैं।
ललित
01.11.15
हरिगीतिका छंद
आज का प्रथम प्रयास
समीक्षा हेतु
नित प्रात जल्दी स्नान करके,
सूर्य दर्शन कीजिए।
लोटा भरा जल लाल चंदन,
अर्घ्य सादर दीजिए।
जो नित्य करते नमन दिनकर,
दें उन्हें यश-लाभ भी।
बल-बुद्धि विकसित होय उनकी,
जाय बढ़ती आभ भी।
ललित
हरिगीतिका छंद
आज का द्वितीय प्रयास
समीक्षा हेतु
लाद्यो न मोबाइल मने भी,
साँवरा म्हारा धणी।
बाताँ करूँली रोज माँ सूँ,
मायका में मूँ घणी।
हो फेसबुक वाट्सेप जी में,
कैमरो भी हाथ में।
सेल्फी जदै आपाँ बणावाँ,
कायदा री साथ में।
ललित
हरिगीतिका छंद
आज का तृतीय प्रयास
नवीन जी के सुझाव से परिष्कृत
वो चाँद जो नभ में दिखा है,
दाग उसमें खास है।
जो चाँद घूँघट में छिपा वो,
प्यार है विश्वास है।
क्या दाग क्या बेदाग जग में,
प्यार ही मशहूर है।
वो चाँदनी उस पर फिदा जिस,
चाँद में बस नूर है।
ललित
14.12.15
हरिगीतिका छंद
आज का प्रथम प्रयास
समीक्षा हेतु
लेता रहूँ मैं नाम तेरा,रात-दिन प्रतिपल प्रभो।
ऐसा मुझे वरदान दे दो,जाप हो अविरल प्रभो।।
चाहूँ नहीं धन-धान्य वैभव,मान औ' सम्मान मैं।
करता रहूँ हरि-भजन का ही,गान औ' रसपान मैं।
💞💞💞'ललित'💞💞💞
हरिगीतिका छंद
आज का द्वितीय प्रयास
समीक्षा हेतु
बाँके बिहारी श्याम की छवि,माधुरी मनभावनी।
राधा निहारे एकटक वो,साँवरी छवि पावनी।।
गौ-ग्वाल गोपी झूमके सब,तान बंसी की सुनें।
माता यशोदा हुलस सुनती,खास बंसी की धुनें।।
'ललित'
15.12.15
हरिगीतिका छंद
आज का प्रथम प्रयास
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत
प्रकृति और मानव
जिस डाल पर तेरा बसेरा ,अब वही रूखी पड़ी।
कैसा घिनौना खेल तेरा,हा ! जमीं सूखी पड़ी।।
कुछ सोच अब भी बावरे तू,मत करे खिलवाड़ रे।
नुचती रहेगी देह तेरी, बस रहेगा हाड़ रे।।
ललित
हरिगीतिका छंद
आज का द्वितीय प्रयास
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत
आकाश-धरती-वायु-जल औ',अग्नि सारे देवता।
देते मनुज को प्राण सूरज,चाँद तारे देवता।।
वन-बाग-उपवन-घाटियों से,शोभती है ये धरा।
लेकिन दनुज से मानवों को,कोसती है ये धरा।।
'ललित'
16.12.15
हरिगीतिका छंद
आज का प्रथम प्रयास
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत
विषय : नारी शोषण
2212 2212 2 , 212 2212
क्या हो रहा अन्याय देखो,जानकी के देश में।
दानव यहाँ पैदा हुए हैं,मानवों के वेश में।।
अब नारियों की लाज कुचली, जा रही पैरों तले।
माँ भारती आँसू बहाती ,काँपती नव कोंपलें।।
ललित
हरिगीतिका छंद
आज का द्वितीय प्रयास
अज्ञान- अशिक्षा
14-14
2212 2212, 2212 2212
जो हाथ नन्हे से बड़े परिवार को हैं पालते।
वो हाथ ही जानें कड़े हालात कैसे सालते।।
क्या ज्ञान क्या अज्ञान है इससे नहीं मतलब उन्हें।
दो जून की रोटी मिले सबसे बड़ी हसरत जिन्हें।।
ललित
17.12.15
हरिगीतिका छंद
आज का प्रथम प्रयास
नवीन जी व राकेश जी के
सुझाव से परिष्कृत
2212 2212 2 ,212 2212
16:12
मासूम बचपन भूख से जो , मर रहा है लिख यहाँ।
कमसिन वदन शैतान से जो,डर रहा है लिख यहाँ।
महँगा हुआ है दाल आटा,खून सस्ता लिख यहाँ।
कानून का है देश में जो,हाल खस्ता लिख यहाँ।
ललित
हरिगीतिका छंद
आज का प्रथम प्रयास
नवीन जी व राकेश जी के
समीक्षा हेतु
2212 2212 2 ,212 2212
16:12
नादान महँगाई
बदनाम महँगाई
कल एक शादी में गया था,झीमने मनुहार से।
आये वहाँ सम्भ्रान्त जन थे,वैभवी श्रृंगार से।
क्या शान औ' शौकत वहाँ थी,और क्या खाना रहा।
नादान महँगाई करे क्या,नोट का दाना रहा।
ललित
18.12.15
हरिगीतिका छंद
आज का प्रथम प्रयास
समीक्षा हेतु
2212 2212 2 ,212 2212
16:12
जब भ्रष्ट को इक भ्रष्ट पकड़े,भ्रष्ट कैसे नष्ट हो।
जब भ्रष्ट सारा राज हो तो,भ्रष्ट से क्यूँ कष्ट हो।
जब भ्रष्ट नौका भ्रष्ट नाविक,भ्रष्ट हर पतवार हो।
तब क्यों भला ईमानदारी,की कहीँ दरकार हो।
'ललित'
19.12.15
हरिगीतिका छंद
आज का प्रथम प्रयास
समीक्षा हेतु
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत
2212 2212 2 ,212 2212
16:12
माँ
सौभाग्यशाली जन वही हैं,मात जिनके साथ है।
माँ का दुआओं से भरा शुभ,हाथ जिनके
माथ है।।
कुछ लोग बस माँ की दुआ में,भाग्य अपना देखते।
कुछ और जो माँ की दुआ का,मात्र सपना देखते।।
'ललित'
हरिगीतिका छंद
आज का द्वितीय प्रयास
समीक्षा हेतु
2212 2212 2 ,212 2212
16:12
माँ
टेढा सदा चलता रहा माँ,
लाल तेरा बावरा।
तेरी कदर नहि कर सका माँ,
बाल तेरा साँवरा।।
संसार सारा छान मारा,
माँ नहीं तुझ सा कहीं।
तेरे हृदय को समझ पाया,
पूत माँ मुझ सा नहीं।।
'ललित'
हरिगीतिका छंद
आज का तृतीय प्रयास
समीक्षा हेतु
2212 2212 2 ,212 2212
16:12
माँ
माँ की दुआओं में छुपा है,आसमानों का पता।
औ' आसमानों में छुपा है,चाँद तारों का पता।।
यदि चाँद तारों पर निशाना, साधना तुम चाहते।
माँ की परम सेवा करो यदि,जीतना तुम चाहते।।
ललित
हरिगीतिका छंद
आज का प्रथम प्रयास
समीक्षा हेतु
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत
2212 2212 2 ,212 2212
16:12
बाल विवाह
बाली उमर में ब्याह जीवन ,नष्ट मत कर दीजिए।
पढ़-लिख बनूँ मैं आत्म-निर्भर,नेक अवसर दीजिए।
नाजुक कली हूँ बाग की मैं,रौंद यूँ मत डालिये।
सौरभ बनूँ इस बाग की मैं,नेह से यूँ पालिये।।
ललित
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