झुकने में है सार,यही हमको सिखलाता।
बोना सीखो बीज,प्रीत का सबके मन में।
27.3.17
2
भर जाएंगे घाव,समय से धीरे धीरे।
भूल जरा तू घाव,अभी मस्ती में जी रे।
पार लगेगी नाव,जपे जा भोले भोले।
रोला छंद
छूटेगा संसार, न कोई जाकर लौटा।
होगा भव से पार, करे जो माँ की सेवा।
चरणों में रख शीश, मिलेगा तुमको मेवा।
5.10.15
रोला छंद
करते रहना रोज,उसकी यूँ ही बड़ाई।
करना कभी न भूल,पीहर की तो बुराई।
पीहर तो हर हाल,नहले पे है दहाई।
रोला छंद
रखते सबकी लाज,सदा ही वो रखवारे।
करता क्यूँ फरियाद,हाथ उनके तू जोड़े।
मन में रख विश्वास,कभी वो आस न तोड़े।
5.10.15
पैसे से हर काम ,उनका होता वहाँ है।
पैसा लेकिन देख,खरीद न साँसें पाए।
पैसे की ये मेख,अंत में साथ न जाए।
06.10.15
नेता ठोकें ताल,देश को कौन बचाए।
परदेशों में सूट,बड़ी चर्चा करवाये।
अपना देशी प्याज,नयन आँसू भरवाये।
पाँच साल की रास,पकड़ के वो फरमायें।
आयेगा शुभ काल,सभी खाते खुलवायें।
चारों ओर अकाल,उन्हें क्यूँ नजर न आयें।
7.10.15
दिल को लगे न पीर,दाता ऐसी कला दो।
भव सागर में नाथ, मुझको तरना सिखा दो।
हो जाऊँ भव-पार,वंदन करना सिखा दो।
रोला छंद
छंदों का दे ज्ञान,सृजन की क्षमता भरता।
करना मत अभिमान,सीख सबको ही देता।
सब को दे सम्मान,नहीं कुछ भी है लेता।
7.10.15
गौमाता भगवान,जमाना समझ न पाया।
करते झूठी रार,दिखावी घातें करते।
नरकों के भी वास,उन्हें तो नहीं डराते।
7.10.15
आजाओ अब देश,हमारे प्रीतम प्यारे।
पाऊँ कभी न भूल,तुम्हारा मुख मुस्काता।
8.10.15
वाणी में रस घोल,न कोई रोके काजा।
कड़वी तीखी बात,किसी से कभी न कहना।
तेरे दुख का स्वाद,न चाहे कोई चखना।
नहीं बने हमदर्द,बड़ा बेदर्द जमाना।
इत-उत भी मत डोल,पाप मत सिर पे धरले।
रहना जग में मौन,नाम कान्हा का जपना।
8.10.15.
जगने पर तो यार,सभी कुछ हारा होता।
दुख की अति को देख, रूठता है क्यों अपना।
जीवन है संगीत,खुशी से गाते रहना।
कोई न देता साथ,नीयत सबकी अनूठी।
8.10.15
नेता है हर बार,भूलता वादा देखो।
सबसे सस्ता भोज,है सांसद रोज खाता।
8.10.15
नेता हरते चीर,भरे है जनता सिसकी।
सोच रहा भगवान,कौनसी माँ ने जाया।
लाऊँ कैसा राम,हरे जो इसकी माया।
9.10.15
के अध्याय 2 के 22,23 वें
श्लोकों का सार
वैसेे छोड़ शरीर,नया जीवात्मा पाता।
जल वायु और अग्नि, मिटा कब सकते जैसे।
9.10.15
टूटे है जब आस,बढ़ जाती है निराशा।
इससे तुझे निकाल,सके हैं केवल कृष्णा।
अलबेला हर भेष,निराला धाम कहाता।
जिसे रुचैे जो देव,उसी से टेर लगाये।
मधुर झलक से नाथ,मन भी झूमे हमारा।
तेरी ये मुस्कान,भगत को शांति दिलाये।
10.10.15
क्यों भूले इंसान,अंत यह जीवन खोवे।
हरि से कर ले नेह,समय ये रीता जाए।
10.10.15
गया समय जो बीत,नहीं फिर से वो आये।
चुभ जाये जो बात,उसी पे तुम मत डोलो।
यही समय दरकार,अहम से बचकर रहना।
कर बेटों पर नाज,हार कौरव ने चखली।
10.10.15
धूप मिले या छाँव,चलेगी घुलते मिलते।
प्रभु ही खेवनहार,उन को मीत ही जाने।
11.10.15
बोले जा दिन रात,निरंतर भोले भोले।
अपना कर उद्धार,नाम जप तू मतवारे।
11.10.15
यार कर रहे बात,भूल कर प्रभु की माया।
अब तक तो व्यापार,चला धन खूब कमाते।
रोला छंद
निधि जी को समर्पित
चली गई चुपचाप,दिलों को सबके धड़का।
क्या कविताएँ आज,नहीं मन में बुनती हो?
नाजुक थी जो देह,उसे पल में मथ डाला।
अनहोनी टल जाय,नहीं क्यूँ रीत बनाता?
रोला छंद
जालिम थी सरकार,बुलडोजरों से रौंदा।
आँखों में है भूख,अगन से पेट भरा है।
रोला छंद
नेताओं की मौज,यहाँ पिसती जनता है।
सूने हैं बाजार,आँधी मॉल की देखो।
6.1.16
सर्दी,गर्मी,बरसात
कलियुग में बदजात,मौसम और नजारे।
देखन को बरसात,दुनिया राम जपती।
रोला छंद
सूट-बूट में खूब,सजे है दूल्हा प्यारा।।
शादी-पार्टी-भोज,ठण्ड में खूब लुभाते।
अनगिन लड्डू रोज,हजम सब ही कर जाते।।
08.01.16
रोला छंद
जान लिया है आज,मैंने हरि को
जन्म लिया है आज,मैंने खुद में जरा सा।।
पी ली शराब आज ,मैंने खुद ही जरा सी।।
रोला छंद
खुद ही खुद में आज, पाया मैंने सहारा।।
आत्मा अमर महान,देह है केवल साया।।
रोला छंद
लख चौरासी भोग,मिला ये अवसर न्यारा।।
दुल्हन का हो ब्याह,रहें खुश सभी सहेली।
नहीं जानते हाय,बदल देगी सब लेखे।
दूल्हा राजा दौड़, दुल्हन के पास आया।
एक साल के बाद,दुल्हन की भौंह चढती।
अब तो सारी उमर,सिर वो पीटता रैंदा।
09.01.16
दर्द पटल मत खोल,जगत में हँसकर डोलो।
करती है गुमराह,सदा ये दुनिया खोटी।
चलो सत्य की राह,मिले इज्जत की रोटी।
छोड़े ये मझधार,डुबा के खुश हो लेती।
क्यों तू माँगे भीख,खुशी अन्दर ही होती।
मोबाईल नेट
राजस्थानी भाषा
नेट कराजो चार्ज,पड़ोसन भाभी को सो।
नया-नया सब लोग,दोस्त म्हारा बन जावे।
रोला छंद
रोला छंद
बीबी भी अब रोज,लड़े है थोड़ा थोड़ा।
करते किस से बात,रात दिन तुम हो बोलो।
मोबाइल का लॉक,जरा फिर से तो खोलो।
मोबाइल वो फैंक,आई मेरा सड़क पर।
अब पकड़े हैं कान,नहीं मोबाइल रखना।
करना हर इक फोन,एस टी डी से मखना।
रोला छंद
तन की सज्जा छोड़,हृदय की सज्जा कर लो।।
इक दिन जग को छोड़,हरि के द्वार है जाना।
तन तो देगा छोड़,मन ही काम है आना।।
रोला
नजर
दिखता है संसार,नजर से ही सब चोखा।
लिखे शब्द दो चार,नजर का तोड़ा घेरा।
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माँ
उसे सुतों से आज,मिला है दर्द सवाया।
काव्य सृजन
रोला छंद
लेता है हरि नाम,करे सब काम सवाया।
खुद अपना ही पूत,हुआ है आज पराया।
रोला छंद
भक्तों का विश्वास,न तोड़ो मुरली वाले।
आ जाओ इक बार,पुकारें गोपी-ग्वाले।।
तरस रहे हम श्याम,तुम्हारी राह निहारें।।
44
हनुमत वचन
इसीलिए सिन्दूर,वदन पर मैंने धारा।।
पुरुषोत्तम श्रीराम,नैया तारने वाले।
45
रोला छंद
आज पड़ी बीमार,सुतों को यहाँ पुकारे।।
बैठे माँ के पास,करें अब सभी इशारे।
किसकी है ये मात,कौन आँखों के तारे।।
46
बेटी
बेटे से है प्यार,लगे बेटी कब चोखी।
बेटी से बलवान,भाग्य की होती रेखा।
सम्पूर्ण गीत
करना इसका मान,नाम कान्हा का जपना।
इत-उत भी मत डोल,पाप मत सिर पे धरले।
इक दिन जग को छोड़,द्वार है हरि के जाना।
तन जब जाए छोड़,काम मन को है आना।।
खुली आँख से देख,जिन्दगी है इक सपना।
करना इसका मान,नाम कान्हा का जपना।
तेरे दुख का स्वाद,न चाहे कोई चखना।
नहीं पराया दर्द,किसी ने अपना जाना।
नहीं बने हमदर्द,बड़ा बेदर्द जमाना।
पर दुख मे तो आज,न चाहे कोई खपना।
करना इसका मान,नाम कान्हा का जपना।
छोड़े ये मझधार,डुबा के खुश हो लेती।
खुद ही तरना सीख,मिलेंगें तुझको मोती।
क्यों तू माँगे भीख,खुशी अन्दर ही होती
पाने को आनन्द,अभी है तुझको तपना।
करना इसका मान,नाम कान्हा का जपना।
छूटेगा संसार, न कोई जाकर लौटा।।
होगा भव से पार, करे जो माँ की सेवा।
चरणों में रख शीश, मिलेगा तुमको मेवा।।
दिल को लगे न पीर,दाता ऐसी कला दो।।
भव सागर में नाथ,मुझको तरना सिखा दो।
हो जाऊँ भव-पार,वंदन करना सिखा दो।।
वाणी में रस घोल,न कोई रोके काजा।।
सबसे करना प्यार,सभी से हिल-मिल रहना।
कड़वी तीखी बात,किसी से कभी न कहना।।
तेरे दुख का स्वाद,न चाहे कोई चखना।।
नहीं पराया दर्द,किसी ने अपना जाना।
नहीं बने हमदर्द,बड़ा बेदर्द जमाना।।
5.12.16
रोला छंद रचनाएँ
रोला छंद
49
टूटा दिल का साज,हुई आवाज़ न कोई।
दिल रोया चुपचाप,नहीं पर आँखे रोई।
देगा कोई साथ,करें उम्मीदें कैसे।
आँखें दिल का साथ,नहीं जब देतीं ऐसे।
'ललित'
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रोला छंद
50
किस्मत की हर रेख,दे गयी उनको धोखा।
माया का संसार ,अजी है बड़ा अनोखा।
नोटों के भण्डार,देख साँसें चलती थी।
नहीं भरा जो टैक्स,अजी किसकी गलती थी।
ललित
51
नोटों के भण्डार,हुए हैं आज पराये।
नहीं भरा क्यों टैक्स, सोच अब आँसू आये।
ललित
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52
रोला छंद
बाँसुरिया की तान,राधिका को छलती है।
भूली जग को हाय,श्याम पीछे चलती है।
नटखट नटवरलाल,श्याम की प्रीत अनोखी।
सखियाँ देती ताल,लगे हैं उसको चोखी।
ललित
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रोला छंद
53
दिल क्यूँ थड़के हाय,समझ कब कोई पाया।
धक्-धक्-धक् का राज,पूछती है ये काया।
सुख-दुख के जज्बात,प्रेम-नफरत के धागे।
दिल है रखता सींच,सदा ही सबसे आगे।
ललित
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54
रोला छंद
सपनों का संसार,बड़ा ही प्यारा होता।
जगने पर तो हाय,सभी कुछ हारा होता।
इसीलिए हम रोज,खूब छक कर हैं सोते।
सपनों में अरमान,सभी पूरे हैं होते।
'ललित'
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55
रोला रोला
एक प्यार ऐसा भी
कितनी सुंदर हाय,तुम्हारे लब की लाली।
होतीं तुम ही काश,हमारी प्यारी साली।
बीवी ने तो हाय,कभी भी घास न डाली।
साली तो सब लोग,कहें आथी घर वाली।
'ललित'
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रोला
56
पायलिया मुँह जोर,बजे छम-छम-छम ऐसे।
रख देगी हर राज,उजागर करके जैसे।
हरी चूड़ियाँ हाय,नहीं बस में हैं मेरे।
नटखट करें धमाल,रहें जब साजन घेरे।
'ललित'
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57
रोला
रोल हो कर वियोग होगया
दिल की सुन लो बात,सजन अब तो आ जाओ।
काबू में जजबात,करूँ कैसे बतलाओ।
मनवा है बेचैन,नींद आँखों से गायब।
प्रीतम तुमने हाय,किया है हाल अजायब।
'ललित'
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रोला
58
टूटा है विश्वास,करें किससे अब यारी।
तर्कश में से तीर,निकाले दुनिया सारी।
जीवन की हर आस,तोड़ती है दम अब तो।
हर अपना ही खास,छिटकता है गम अब तो।
'ललित'
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रोला
59
फूलों के जजबात,यहाँ कब समझा कोई?
काँटों के सह वार,सदा ही कलियाँ रोई।
कलियाँ बनके पुष्प,कहाँ अब खिल पाती हैं।
पानी की क्या बात,हवा कातिल पाती हैं।
ललित
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रोला
60
क्यों चुभते हैं शूल,सदा यूँ कोमल तन में ?
क्यों उठती है पीर,सदा ही निर्मल मन में?
क्यों दिखती गमगीन,हसीं रंगीन बहारें?
गरल मयी क्यों आज,सावन की ये फुहारें?
'ललित'
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रोला
61
कैसे कैसे रूप,कंटकों ने हैं धारे?
रब ने सारे फूल,कंटकों पर हैं वारे।
चीख उठे हैं पुष्प,मगर काँटे हँसते हैं।
सुन फूलों की चीख,भ्रमर भी आ फँसते हैं।
'ललित'
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रोला
62
चुभें पैर में शूल,सजनिया भरती आहें।
बिछ जाते हैं फूल,सजन जब थामें बाहें।
साजन हों जब साथ,सजनिया खिल खिल जाए।
ज्यों पूनम की रात,चँदनिया खिल खिल जाए।
ललित
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रोला
63
सपनों में ही रात,चली आई वो ऐसे।
दिल का टूटा साज,जोड़ देगी वो जैसे।
टूटे दिल के तार,प्यार से चाहे छूना।
छूते ही पर घाव,दर्द करते हैं दूना।
'ललित'
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रोला
64
दिल अपनों के बीच,कहीं पर खो जाता है।
दिल सपनों के बीज,कहीं पर बो जाता है।
दिल प्रीतम पर दर्द,कहीं खुद है बरसाता।
दिल साजन के घाव,कहीं खुद है भरजाता।
ललित
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65
रोला
साँझ की दुलहन पर लिखना चाहा
घरवाली आ गयी
शर्मायी सी साँझ,सुनहरी चूनर डाले।
ले आई कुछ ख्वाब,स्वर्ग की परियों वाले।
परियों ने तो हाय,पीर ऐसी दे डाली।
सपना टूटा और,बगल में थी घर वाली।hi
'ललित'
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66
रोला छंद गीत
दे देते हैं घाव,कभी कुछ अपने जन भी।
और कुरेदे घाव,निगोड़ा मानव मन भी।
जिस पर है विश्वास,वही दिल को तोड़ेगा।
जो है अपना खास,वही फिर मुख मोड़ेगा।
सहलाता है घाव,नहीं शीतल सावन भी।
और कुरेदे घाव,निगोड़ा मानव मन भी।
जो होता फनकार,यशस्वी वो हो जाता।
दुनिया भर का प्यार,उसे फन है दिलवाता।
दिल के गहरे घाव,नही भर पाता फन भी।
और कुरेदे घाव,निगोड़ा मानव मन भी।
ईश्वर से विश्वास,कभी यूँ ही उठ जाता।
जिसकी टूटी आस,नहीं फिर वो उठ पाता।
भर देता है घाव,कभी जानी दुश्मन भी।
और कुरेदे घाव,निगोड़ा मानव मन भी।
जीवन भर तो साथ,नहीं तन भी दे पाता।
विषम रोग में साथ,नहीं धन भी दे पाता।
भरे उसी के घाव,करे जो यहाँ भजन भी।
और कुरेदे घाव,निगोड़ा मानव मन भी।
दे देते हैं घाव,कभी कुछ अपने जन भी।
और कुरेदे घाव,निगोड़ा मानव मन भी।
'ललित'
*******************************
67
रोला
देश आज आजाद,नयी पीढ़ी को दे कर।
कर जाते हम वीर,अपनी जान निछावर।
रखना इसे सँभाल,बहुत आगे ले जाना।
दुश्मन के हर वार,से है इसको बचाना।
'ललित'
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Very nice line
ReplyDeleteThanks
Manish Kumar