रोला छंद विधान एवँ रचनाएं 5.10.15 से

28.02.2020
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     -------रोला छंद विधान-----
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1. यह चार पंक्तियों अर्थात आठ चरणों वाला अर्द्धसम मात्रिक छंद है जिसकी प्रत्येक पंक्ति में 11,13  की यति से कुल चौबीस मात्राएँ होती हैं।

2. रोला छंद के 
विषम चरणों (1,3,5, और 7) में 11 मात्राएँ तथा 
सम चरणों (2,4,6और 8) में 13 मात्राएँ होती है।

3. रोला छंद में दो अथवा चार तुकांत समान होते हैं ।

4. सम चरणों का अंत 22/112/211/1111 के मात्रिक क्रम से ही होना अनिवार्य है ।

5. रोला छंद में यति पूर्व सदैव लघु वर्ण ही रखा जाता है और बेहतर लय के लिए अंत में हमेशा दो गुरू वर्ण होते हैं।

6. दोहे और रोला छंद में मात्राएँ बिलकुल विपरीत होती हैं।
 दोहा लेखन में 13,11=24 मात्रा भार रखते हैं जबकि रोला छंद में इसके विपरीत 11,13 =24 मात्रा भार रखना है किन्तु विपरीत होने पर भी रोला छंद का शिल्प दोहे से भिन्न है।

             **** उदाहरण ****

रोला छंद

चलते-चलते श्वास,कलम की जब भी रुकती।
ले शारद का नाम,कलम कागज पर झुकती।
लिख देती है पीर,कभी गहरे सागर की।और कभी दिल खोल,लिखे खुशियाँ गागर की।

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ललित किशोर 'ललित'
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रोला छंद रचनाएँ

रोला छंद
1

फल से झुकता पेड़,राह हमको दिखलाता।
झुकने में है सार,यही हमको सिखलाता।
मत करना अभिमान,जीत का तुम जीवन में।
बोना सीखो बीज,प्रीत का सबके मन में।
ललित
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रोला
27.3.17

2
भर जाएंगे घाव,समय से धीरे धीरे।
भूल जरा तू घाव,अभी मस्ती में जी रे।
बैठ समय की नाव,चला चल हौले हौले।
पार लगेगी नाव,जपे जा भोले भोले।
ललित

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5.10.15
रोला छंद
3
करले सबसे प्यार,लगे है जीवन छोटा।
छूटेगा संसार, न कोई जाकर लौटा।
होगा भव से पार, करे जो माँ की सेवा।
चरणों में रख शीश, मिलेगा तुमको मेवा।


ललित

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5.10.15
रोला छंद
4
पत्नी को तो आप,सदा खुश रखना भाई।
करते रहना रोज,उसकी यूँ ही बड़ाई।
करना कभी न भूल,पीहर की तो बुराई।
पीहर तो हर हाल,नहले पे है दहाई।
'ललित'
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5.10.15
रोला छंद
5
दयावान भगवान,जान ले मन में प्यारे।
रखते सबकी लाज,सदा ही वो रखवारे।
करता क्यूँ फरियाद,हाथ उनके तू जोड़े।
मन में रख विश्वास,कभी वो आस न तोड़े।

ललित

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5.10.15
रोला छंद
6
पैसा ही भगवान,बताते लोग यहाँ हैं।
पैसे से हर काम ,उनका होता वहाँ है।
पैसा लेकिन देख,खरीद न साँसें पाए।
पैसे की ये मेख,अंत में साथ न जाए।

ललित
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06.10.15
रोला छंद
7
आज देश का हाल,अजी कुछ कहा न जाए।
नेता ठोकें ताल,देश को कौन बचाए।
परदेशों में सूट,बड़ी चर्चा करवाये।
अपना देशी प्याज,नयन आँसू भरवाये।

जिन से की थी आस,वही हम को भरमायें।
पाँच साल की रास,पकड़ के वो फरमायें।
आयेगा शुभ काल,सभी खाते खुलवायें।
चारों ओर अकाल,उन्हें क्यूँ नजर न आयें।
ललित
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7.10.15
रोला छंद
8
इक छोटा सा दीप,मेरे मन में जला दो।
दिल को लगे न पीर,दाता ऐसी कला दो।
भव सागर में नाथ, मुझको तरना सिखा दो।
हो जाऊँ भव-पार,वंदन करना सिखा दो।


ललित
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7.10.15
रोला छंद
9
काव्यसृजन परिवार,निरंतर उन्नति करता।
छंदों का दे ज्ञान,सृजन की क्षमता भरता।
करना मत अभिमान,सीख सबको ही देता।
सब को दे सम्मान,नहीं कुछ भी है लेता।

ललित
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7.10.15
रोला छंद
10
देखो ये भूचाल,देश में कैसा आया।
गौमाता भगवान,जमाना समझ न पाया।
नेता हैं बीमार,अनर्गल बातें करते।
करते झूठी रार,दिखावी घातें करते।
खाना वो गोमांस,जरूरी खूब बताते।
नरकों के भी वास,उन्हें तो नहीं डराते।


ललित
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11
7.10.15
रोला छंद
प्यारा ये संदेश,सुनायें चाँद-सितारे।
आजाओ अब देश,हमारे प्रीतम प्यारे।
बगिया का हर फूल,हमारी हँसी उड़ाता।
पाऊँ कभी न भूल,तुम्हारा मुख मुस्काता।

ललित
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12
8.10.15
रोला छंद
मुख से मीठे बोल,सदा ही बोलो राजा।
वाणी में रस घोल,न कोई रोके काजा।

सबसे करना प्यार,सभी से हिल-मिल रहना।
कड़वी तीखी बात,किसी से कभी न कहना।

अपने दिल की पीर,सदा दिल में ही रखना।
तेरे दुख का स्वाद,न  चाहे कोई चखना।

नहीं पराया दर्द,किसी ने अपना जाना।
नहीं बने हमदर्द,बड़ा बेदर्द जमाना।

अपनी गठरी खोल,पुण्य से झोली भरले।
इत-उत भी मत डोल,पाप मत सिर पे धरले।

जीवन है अनमोल,समय क्यूँ खोवे अपना।
रहना जग में मौन,नाम कान्हा का जपना।

ललित
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13
8.10.15.
रोला छंद

सपनों का संसार,बड़ा ही प्यारा होता।
जगने पर तो यार,सभी कुछ हारा होता।

सपने हैं निस्सार,न देखो कोई सपना।
दुख की अति को देख, रूठता है क्यों अपना।

करो सभी से प्रीत,मगर मत आशा रखना।
जीवन है संगीत,खुशी से गाते रहना।

झूठा सबका प्यार,प्रीत है सबकी झूठी।
कोई न देता साथ,नीयत सबकी अनूठी।

ललित
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14
8.10.15
रोला छंद
कुर्सी से है प्यार,जान से ज्यादा देखो।
नेता है हर बार,भूलता वादा देखो।
अफसर चूमे पैर,है नेता अन्नदाता।
सबसे सस्ता भोज,है सांसद रोज खाता।


ललित
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15
8.10.15
रोला छंद
किसकी है ये जीत,सोचो हार है किसकी।
नेता हरते चीर,भरे है जनता सिसकी।

किस माटी से भूल,नेता मैंने बनाया।
सोच रहा भगवान,कौनसी माँ ने जाया।

इस नेता ने आज,रावण को भी हराया।
लाऊँ कैसा राम,हरे जो इसकी माया।

ललित
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16
9.10.15
रोला छंद
श्री मद्भगवद् गीता जी
के अध्याय 2 के 22,23 वें
श्लोकों का सार
वस्त्र पुराने त्याग,नये ज्यों प्राणी लाता।
वैसेे छोड़ शरीर,नया जीवात्मा पाता।
आत्मा को दें काट, नहीं अब आयुध ऐसे।
जल वायु और अग्नि, मिटा कब सकते जैसे।

ललित
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17
9.10.15
रोला छंद
खुद पे रख विश्वास,मत कर और से आशा।
टूटे है जब आस,बढ़ जाती है निराशा।
जग ये मायाजाल,जगाता है मृगतृष्णा।
इससे तुझे निकाल,सके हैं केवल कृष्णा।

18
9.10.15
रोला छंद
कितने तेरे रूप,कितने नाम हैं दाता।
अलबेला हर भेष,निराला धाम कहाता।

तर जाये इंसान,शरण तेरी जो आये।
जिसे रुचैे जो देव,उसी से टेर लगाये।

तेरा हर इक रूप,हमें तो लगता प्यारा।
मधुर झलक से नाथ,मन भी झूमे हमारा।

सब में तू ही एक,मगर क्यूँ नजर न आये।
तेरी ये मुस्कान,भगत को शांति दिलाये।

ललित
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19
10.10.15
रोला छंद
जीवन का आगाज़,बड़ा ही सुंदर होवे।
क्यों भूले इंसान,अंत यह जीवन खोवे।
सारा जीवन नोट,कमाते बीता जाए।
हरि से कर ले नेह,समय ये रीता जाए।


ललित

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20
10.10.15
रोला छंद
मुख से निकली बात,नहीं वापस आ पाये।
गया समय जो बीत,नहीं फिर से वो आये।

तोल-मोल कर बात,हर दम सोच के बोलो।
चुभ जाये जो बात,उसी पे तुम मत डोलो।

समय बड़ी सरकार,समय से डरकर रहना।
यही समय दरकार,अहम से बचकर रहना।

इक छोटी सी बात,महाभारत में बदली।
कर बेटों पर नाज,हार कौरव ने चखली।

ललित
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21
10.10.15
रोला छंद

जीवन की ये नाव,चलेगी हिलते डुलते।
धूप मिले या छाँव,चलेगी घुलते मिलते।
कहीं किसी भी ठाँव,किसी को मीत न माने।
प्रभु ही खेवनहार,उन को मीत ही जाने।


ललित
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22
11.10.15
रोला छंद
जीवन के दिन चार,चला चल हौले हौले।
बोले जा दिन रात,निरंतर भोले भोले।
धन से मत कर प्यार,अंत सब छूटे प्यारे।
अपना कर उद्धार,नाम जप तू मतवारे।

ललित
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23
11.10.15
रोला छंद
कटु सत्य
रखी चिता पर लाश,जल रही धू धू काया।
यार कर रहे बात,भूल कर प्रभु की माया।
जल्दी मिले निजात,यही सब लोग मनाते।
अब तक तो व्यापार,चला धन खूब कमाते।

ललित
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24
रोला छंद
निधि जी को समर्पित
नहीं हुई पदचाप,न कोई पत्ता खड़का।
चली गई चुपचाप,दिलों को सबके  धड़का।
क्यों कोई आवाज,नहीं अब 'निधि' सुनती हो?
क्या कविताएँ आज,नहीं मन में बुनती हो?
कैसा है तू देव,भयानक काल कराला?
नाजुक थी जो देह,उसे पल में मथ डाला।
कैसा तेरा न्याय,रीत है कैसी दाता?
अनहोनी टल जाय,नहीं क्यूँ रीत बनाता?

ललित
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25
रोला छंद
मजदूर
बाँधा इक तिरपाल,बनाया एक घरौंदा।
जालिम थी सरकार,बुलडोजरों से रौंदा।
ऊपर है आकाश,नीचे तपती धरा है।
आँखों में है भूख,अगन से पेट भरा है।

ललित
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26
रोला छंद
मजदूर
मजदूरी से भाग्य,यहाँ किसका बनता है?
नेताओं की मौज,यहाँ पिसती जनता है।
आजाओ इक बार,गाँधी हाल तो देखो।
सूने हैं बाजार,आँधी मॉल की देखो।

ललित
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27
6.1.16
रोला छंद
सर्दी,गर्मी,बरसात
बेमौसम बरसात,सर्दी-गर्मी-बहारें।
कलियुग में बदजात,मौसम और नजारे।
सर्दी में भी धूप,अब तो खूब है तपती।
देखन को बरसात,दुनिया राम जपती।

ललित
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28
रोला छंद
सर्दी
ऋतुओं का सरताज,शीत का मौसम न्यारा।
सूट-बूट में खूब,सजे है दूल्हा प्यारा।।
शादी-पार्टी-भोज,ठण्ड में खूब लुभाते।
अनगिन लड्डू रोज,हजम सब ही कर जाते।।


ललित
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29
08.01.16
रोला छंद
विषय : जन्म,मृत्यु
जान लिया है आज,मैंने हरि को
जन्म लिया है आज,मैंने खुद में जरा सा।।
दे दी है परवाज,मैंने खुद को जरा सी।
पी ली शराब आज ,मैंने खुद ही जरा सी।।


ललित
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30
रोला छंद
विषय : जन्म,मृत्यु
खुद ही खुद में आज,हरि को मैंने निहारा।
खुद ही खुद में आज, पाया मैंने सहारा।।
नया जन्म है आज,अलौकिक मैंने पाया।
आत्मा अमर महान,देह है केवल साया।।

ललित
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31
रोला छंद
विषय : जन्म,मृत्यु
मानव जन्म अमोल,मिला है तुझको प्यारा।
लख चौरासी भोग,मिला ये अवसर न्यारा।।
कर ले सरल उपाय,किनारा कर माया से। व्यर्थ न जाने पायँ,कभी साँसें काया से।।

ललित
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32
विवाह
कैसी है ये रीत,बनी जो आज पहेली?
दुल्हन का हो ब्याह,रहें खुश सभी सहेली।
मात पिता हर्षायँ,बहू की सूरत देखें ।
नहीं जानते हाय,बदल देगी सब लेखे।

ललित
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33
रोला छंद
विवाह
तिलक हुआ है आज,नया मोबाइल लाया।
दूल्हा राजा दौड़, दुल्हन के पास आया।

खूब करेंगें बात,नये हम साजन-सजनी।
बाँटेंगें जजबात,भोर हो चाहे रजनी।

शादी के दिन चार,प्यार की पेंगें बढती।
एक साल के बाद,दुल्हन की भौंह चढती।

खटपट में ही हाय,होगये बच्चे पैदा।
अब तो सारी उमर,सिर वो पीटता रैंदा।

ललित
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34
09.01.16
रोला छंद
जीने का तरीका
पहले मन में तोल,बात फिर मुख से बोलो।
दर्द पटल मत खोल,जगत में हँसकर डोलो।

करती है गुमराह,सदा ये दुनिया खोटी।
चलो सत्य की राह,मिले इज्जत की रोटी।

ललित
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35
रोला छंद
दुनिया धोखेबाज,किसी का साथ न देती।
छोड़े ये मझधार,डुबा के खुश हो लेती।
खुद ही तरना सीख,मिलेंगें तुझको मोती।
क्यों तू माँगे भीख,खुशी अन्दर ही होती।

ललित
36

मोबाईल नेट
राजस्थानी भाषा
लाद्यो जी भर्तार,मोबाईल नीको सो।
नेट कराजो चार्ज,पड़ोसन भाभी को सो।
फेसबुकाँ भी रोज,नयी बाताँ बतलावे।
नया-नया सब लोग,दोस्त म्हारा बन जावे।

ललित

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37

रोला छंद
बेलन की दे चोट,नया मोबाइल तोड़ा।
बोली मुँह को मोड़,दुश्मन है ये निगोड़ा।
सारे दिन ही आप,इसी में सिर फोड़ो हो।
कविता लिखते एक,मात्रा साठ जोड़ो हो।

ललित
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38
रोला छंद
मोबाइल ने यार ,कहीं का हमें न छोड़ा।
बीबी भी अब रोज,लड़े है थोड़ा थोड़ा।

करते किस से बात,रात दिन तुम हो बोलो।
मोबाइल का लॉक,जरा फिर से तो खोलो।

कैसे खोलूँ लॉक,लगा जो मेरे मुख पर।
मोबाइल वो फैंक,आई मेरा सड़क पर।

अब पकड़े हैं कान,नहीं मोबाइल रखना।
करना हर इक फोन,एस टी डी से मखना।

ललित
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39
रोला छंद
जग की फैशन छोड़,प्रभू की फैशन वर लो।
तन की सज्जा छोड़,हृदय की सज्जा कर लो।।
इक दिन जग को छोड़,हरि के द्वार है जाना।
तन तो देगा छोड़,मन ही काम है आना।।
ललित
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40
रोला
नजर
जीना हो दुश्वार,नजर ही दे जब धोखा।
दिखता है संसार,नजर से ही सब चोखा।
कलम हुई लाचार,नजर ने मुँह जो फेरा।
लिखे शब्द दो चार,नजर का तोड़ा घेरा।
'ललित'
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41
रोला छंद
माँ
सहकर दर्द अपार,सुतों को जिसने जाया।
उसे सुतों से आज,मिला है दर्द सवाया।
फिर भी करती मात,सुतों से प्यार अपारा।कर न सके विश्वास,जगत का पालनहारा।
'ललित'

काव्य सृजन

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2-3-16
42
रोला छंद
नयी भोर का राज,समझ में जिसको आया।
लेता है हरि नाम,करे सब काम सवाया।
सुबहा हो या शाम,जगत को समझो माया।
खुद अपना ही पूत,हुआ है आज पराया।
ललि
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43
रोला छंद

भक्तों का विश्वास,न तोड़ो मुरली वाले।
आ जाओ इक बार,पुकारें गोपी-ग्वाले।।
मुरली की वो तान,सुना दो फिर से प्यारे।
तरस रहे हम श्याम,तुम्हारी राह निहारें।।
'ललित'

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रोला
44
हनुमत वचन
मैया का सिन्दूर ,राम को लगता प्यारा।
इसीलिए सिन्दूर,वदन पर मैंने धारा।।
जपता हूँ मैं राम,बजाता हूँ करतालें।
पुरुषोत्तम श्रीराम,नैया तारने वाले।
'ललित'

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45
रोला छंद
माँ
बचपन में थे मात,जिसे वो कहते सारे।
आज पड़ी बीमार,सुतों को यहाँ पुकारे।।
लेकिन किसके पास,समय औ' पैसा प्यारे।
बैठे माँ के पास,करें अब सभी इशारे।
चलो फैसला आज,करें हम मिलकर सारे।
किसकी है ये मात,कौन आँखों के तारे।।
'ललित'

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46
रोला छंद
बेटी
देखा ये संसार,देख ली बातअनोखी।
बेटे से है प्यार,लगे बेटी कब चोखी।
कुदरत का उपहार,सुता से बड़ा न देखा।
बेटी से बलवान,भाग्य की होती रेखा।
पाल पोस कर एक,दान कन्या का करता। है वह इंसाँ नेक,पुण्य से झोली भरता।
'ललित'

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47
रोला छंद
सम्पूर्ण गीत


जीवन है अनमोल,समय क्यूँ खोवे अपना।
करना इसका मान,नाम कान्हा का जपना।

अपनी गठरी खोल,पुण्य से झोली भरले।
इत-उत भी मत डोल,पाप मत सिर पे धरले।

इक दिन जग को छोड़,द्वार है हरि के  जाना।
तन जब जाए छोड़,काम मन को है आना।।

खुली आँख से देख,जिन्दगी है इक सपना।
करना इसका मान,नाम कान्हा का जपना।

अपने दिल की पीर,सदा दिल में ही रखना।
तेरे दुख का स्वाद,न  चाहे कोई चखना।

नहीं पराया दर्द,किसी ने अपना जाना।
नहीं बने हमदर्द,बड़ा बेदर्द जमाना।

पर दुख मे तो आज,न चाहे कोई खपना।
करना इसका मान,नाम कान्हा का जपना।

दुनिया धोखेबाज,किसी का साथ न देती।
छोड़े ये मझधार,डुबा के खुश हो लेती।

खुद ही तरना सीख,मिलेंगें तुझको मोती।
क्यों तू माँगे भीख,खुशी अन्दर ही होती

पाने को आनन्द,अभी है तुझको तपना।
करना इसका मान,नाम कान्हा का जपना।
'ललित'
समाप्त
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48
रोला छंद
कर ले सबसे प्यार
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करले सबसे प्यार,लगे है जीवन छोटा।
छूटेगा संसार, न कोई जाकर लौटा।।

होगा भव से पार, करे जो माँ की सेवा।
चरणों में रख शीश, मिलेगा तुमको मेवा।।

इक छोटा सा दीप,मेरे मन में जला दो।
दिल को लगे न पीर,दाता ऐसी कला दो।।

भव सागर में नाथ,मुझको तरना सिखा दो।
हो जाऊँ भव-पार,वंदन करना सिखा दो।।

मुख से मीठे बोल,सदा ही बोलो राजा।
वाणी में रस घोल,न कोई रोके काजा।।

सबसे करना प्यार,सभी से हिल-मिल रहना।
कड़वी तीखी बात,किसी से कभी न कहना।।

अपने दिल की पीर,सदा दिल में ही रखना।
तेरे दुख का स्वाद,न  चाहे कोई चखना।।

नहीं पराया दर्द,किसी ने अपना जाना।
नहीं बने हमदर्द,बड़ा बेदर्द जमाना।।

ललित किशोर 'ललित'

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5.12.16


रोला छंद रचनाएँ

रोला छंद
49

टूटा दिल का साज,हुई आवाज़ न कोई।
दिल रोया चुपचाप,नहीं पर आँखे रोई।

देगा कोई साथ,करें उम्मीदें कैसे।
आँखें दिल का साथ,नहीं जब देतीं ऐसे।

'ललित'

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रोला छंद
50
किस्मत की हर रेख,दे गयी उनको धोखा।
माया का संसार ,अजी है बड़ा अनोखा।

नोटों के भण्डार,देख साँसें चलती थी।
नहीं भरा जो टैक्स,अजी किसकी गलती थी।
ललित


51

नोटों के भण्डार,हुए हैं आज पराये।
नहीं भरा क्यों टैक्स, सोच अब आँसू आये।
ललित

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52

रोला छंद

बाँसुरिया की तान,राधिका को छलती है।
भूली जग को हाय,श्याम पीछे चलती है।
नटखट नटवरलाल,श्याम की प्रीत अनोखी।
सखियाँ देती ताल,लगे हैं उसको चोखी।
ललित

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रोला छंद
53

दिल क्यूँ थड़के हाय,समझ कब कोई पाया।
धक्-धक्-धक् का राज,पूछती है ये काया।

सुख-दुख के जज्बात,प्रेम-नफरत के धागे।
दिल है रखता सींच,सदा ही सबसे आगे।

ललित

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54

रोला छंद

सपनों का संसार,बड़ा ही प्यारा होता।
जगने पर तो हाय,सभी कुछ हारा होता।

इसीलिए हम रोज,खूब छक कर  हैं सोते।
सपनों में अरमान,सभी पूरे हैं होते।

'ललित'

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55

रोला रोला
एक प्यार ऐसा भी

कितनी सुंदर हाय,तुम्हारे लब की लाली।
होतीं तुम ही काश,हमारी प्यारी साली।
बीवी ने तो हाय,कभी भी घास न डाली।
साली तो सब लोग,कहें आथी घर वाली।

'ललित'

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रोला
56

पायलिया मुँह जोर,बजे छम-छम-छम ऐसे।
रख देगी हर राज,उजागर करके जैसे।
हरी चूड़ियाँ हाय,नहीं बस में हैं मेरे।
नटखट करें धमाल,रहें जब साजन घेरे।

'ललित'

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57

रोला
रोल हो कर वियोग होगया

दिल की सुन लो बात,सजन अब तो आ जाओ।
काबू में जजबात,करूँ कैसे बतलाओ।
मनवा है बेचैन,नींद आँखों से गायब।
प्रीतम तुमने हाय,किया है हाल अजायब।

'ललित'

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रोला
58

टूटा है विश्वास,करें किससे अब यारी।
तर्कश में से तीर,निकाले दुनिया सारी।
जीवन की हर आस,तोड़ती है दम अब तो।
हर अपना ही खास,छिटकता है गम अब तो।
'ललित'

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रोला

59
फूलों के जजबात,यहाँ कब समझा कोई?
काँटों के सह वार,सदा ही कलियाँ रोई।
कलियाँ बनके पुष्प,कहाँ अब खिल पाती हैं।
पानी की क्या बात,हवा कातिल पाती हैं।

ललित

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रोला
60

क्यों चुभते हैं शूल,सदा यूँ कोमल तन में ?
क्यों उठती है पीर,सदा ही निर्मल मन में?
क्यों दिखती गमगीन,हसीं रंगीन बहारें?
गरल मयी क्यों आज,सावन की ये फुहारें?

'ललित'

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रोला 
61

कैसे कैसे रूप,कंटकों ने हैं धारे?
रब ने सारे फूल,कंटकों पर हैं वारे।
चीख उठे हैं पुष्प,मगर काँटे हँसते हैं।
सुन फूलों की चीख,भ्रमर भी आ फँसते हैं।

'ललित'

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रोला
62

चुभें पैर में शूल,सजनिया भरती आहें।
बिछ जाते हैं फूल,सजन जब थामें बाहें।
साजन हों जब साथ,सजनिया खिल खिल जाए।
ज्यों पूनम की रात,चँदनिया खिल खिल जाए।
ललित

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रोला

63

सपनों में ही रात,चली आई वो ऐसे।
दिल का टूटा साज,जोड़ देगी वो जैसे।
टूटे दिल के तार,प्यार से चाहे छूना।
छूते ही पर घाव,दर्द करते हैं दूना।

'ललित'

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रोला
64

दिल अपनों के बीच,कहीं पर खो जाता है।
दिल सपनों के बीज,कहीं पर बो जाता है।
दिल प्रीतम पर दर्द,कहीं खुद है बरसाता।
दिल साजन के घाव,कहीं खुद है भरजाता।
ललित


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65

रोला
साँझ की दुलहन पर लिखना चाहा
घरवाली आ गयी

शर्मायी सी साँझ,सुनहरी चूनर डाले।
ले आई कुछ ख्वाब,स्वर्ग की परियों वाले।
परियों ने तो हाय,पीर ऐसी दे डाली।
सपना टूटा और,बगल में थी घर वाली।hi

'ललित'

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66

रोला छंद गीत

दे देते हैं घाव,कभी कुछ अपने जन भी।
और कुरेदे घाव,निगोड़ा मानव मन भी।

जिस पर है विश्वास,वही दिल को तोड़ेगा।
जो है अपना खास,वही फिर मुख मोड़ेगा।
सहलाता है घाव,नहीं शीतल सावन भी।
और कुरेदे घाव,निगोड़ा मानव मन भी।

जो होता फनकार,यशस्वी वो हो जाता।
दुनिया भर का प्यार,उसे फन है दिलवाता।
दिल के गहरे घाव,नही भर पाता फन भी।
और कुरेदे घाव,निगोड़ा मानव मन भी।

ईश्वर से विश्वास,कभी यूँ ही उठ जाता।
जिसकी टूटी आस,नहीं फिर वो उठ पाता।
भर देता है घाव,कभी जानी दुश्मन भी।
और कुरेदे घाव,निगोड़ा मानव मन भी।

जीवन भर तो साथ,नहीं तन भी दे पाता।
विषम रोग में साथ,नहीं धन भी दे पाता।
भरे उसी के घाव,करे जो यहाँ भजन भी।
और कुरेदे घाव,निगोड़ा मानव मन भी।

दे देते हैं घाव,कभी कुछ अपने जन भी।
और कुरेदे घाव,निगोड़ा मानव मन भी।

'ललित'

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67

रोला

देश आज आजाद,नयी पीढ़ी को दे कर।
कर जाते हम वीर,अपनी जान निछावर।
रखना इसे सँभाल,बहुत आगे ले जाना।
दुश्मन के हर वार,से है इसको बचाना।

'ललित'


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छद श्री सम्मान