प्रकाशन 10 मुक्तक

साथ कुछ दिन जो चला था,राह में ही था मिला।
राह अपनी वो गया तो,अब किसी से क्या गिला।
याद कर जब इस धरा पर,तू नया संगीत था।
रो रहा था तू अकेला,कौन तेरा मीत था।

ज़िन्दगी से आज हमको,चोट इक प्यारी मिली।
कौन सा मरहम लगाएँ,हर दवा खारी मिली।
ज़ख्म जो दिल में हुआ है,दीखता हरदम नहीं।
घाव पर मरहम लगाती,ख्वाहिशें सारी मिली।

फूलों ने हँसना छोड़ा है,कलियाँ भी मुरझाई हैं।
माली सींच रहा बगिया पर,पानी भी हरजाई है।
कली-कली पर भौंरे डोलें,प्रेम नहीं कुछ मन में है।
खिलने से पहले रस चूसा,अब केवल तनहाई है।

चलो इक बार फिर से हम,नयी दुनिया बसाते हैं।
नयी सुर-ताल सरगम पर,नया इक गीत गाते हैं।
गिले-शिकवे दिलों में जो,दिलों में ही दफन कर दें।
चलो पतवार बनकर हम,भँवर को भी हराते हैं।

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