11.01.16
कुण्डलिनी छंद
श्रृंगार रस
अलबेली हर शाम थी,हम तुम थे जब साथ।
फिरते रहते थे सदा,ले हाथों में हाथ।
ले हाथों में हाथ,किये जो वादे तुमने।
आते हैं सब याद,जो देखे सपने हमने।
'ललित'
कुण्डलिनी छंद
श्रृंगार रस
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत
सुबहा की लाली चुरा,लाल किये हैं गाल।
लाल-लाल से गाल पे,तिल है बड़ा कमाल।।
तिल है बड़ा कमाल,नज़र सबकी है खींचे।
होते कई हलाल,लबों को जब तू भींचे।।
'ललित'
कुण्डलिनी छंद
शांत रस
मन ही मन में सोचते,रहते सब ये बात।
कैसा वो लावा उठा,कैसी थी वो घात?
कैसी थी वो घात,सभी अपने बिछड़े है।
बिना बात ही आज,हुए दिल के टुकड़े है।
'ललित'
कुण्डलिनी
शांत रस
मौनी मन कह देत है,मन से मन की बात।
मन का मौन न तोड़िये,बिगड़ें जो हालात।
बिगड़ें जो हालात,कभी मत धीरज खोना।
मन में हो उल्लास,उगे माटी से सोना
'ललित'
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