प्रकाशन 9 विधाता छंद


बहारें आज गुलशन में,बिखेरें प्यार के मोती।
चले आओ सजन मेरे ,तुम्हारी राह मैं जोती।
पडे हैं बाग में झूले,मुदित मन मोर भी झूमे।
सितारों के लगे मेले,लताओं पे भ्रमर घूमे।

तुम्हारे नाम की मेहंदी,रचाई आज हाथों में।
तुम्हारे प्यार की मारी,लजाई आज रातों में।
कहे पायल न ठुकराओ,कहे कँगना न बिसराओ।
कहे बिंदिया न तरसाओ,तडपते हैं चले आओ।

हवाओं को बदल देंगें,बता दो आसमानों को।
किसी तूफान से कम मत,समझना हम जवानों को।
असंभव को हमें संभव,यहाँ अब कर दिखाना है।
न रोकेंगें कदम अपने,सितमगर को मिटाना है।

न करते जो जमाने में,कदर माता पिताओं की।
जरा वो सोच लें खुद ही,सजा अपनी खताओं की।
बुजुर्गों की दुआओं का ,असर जो देखना चाहो।
करो सम्मान सब उनका,महर जो देखना चाहो।

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छद श्री सम्मान