14.04.19
गीत (रोला छंद)
दे देते हैं घाव,कभी कुछ अपने जन भी।
और कुरेदे घाव,निगोड़ा मानव मन भी।
जिस पर है विश्वास,वही दिल को तोड़ेगा।
जो है अपना खास,वही फिर मुख मोड़ेगा।
सहलाता है घाव,नहीं शीतल सावन भी।
और कुरेदे घाव,निगोड़ा मानव मन भी।
जो होता फनकार,यशस्वी वो हो जाता।
दुनिया भर का प्यार,उसे फन है दिलवाता।
दिल के गहरे घाव,नही भर पाता फन भी।
और कुरेदे घाव,निगोड़ा मानव मन भी।
ईश्वर से विश्वास,कभी यूँ ही उठ जाता।
जिसकी टूटी आस,नहीं फिर वो उठ पाता।
भर देता है घाव,कभी जानी दुश्मन भी।
और कुरेदे घाव,निगोड़ा मानव मन भी।
जीवन भर तो साथ,नहीं तन भी दे पाता।
विषम रोग में साथ,नहीं धन भी दे पाता।
भरे उसी के घाव,करे जो यहाँ भजन भी।
और कुरेदे घाव,निगोड़ा मानव मन भी।
दे देते हैं घाव,कभी कुछ अपने जन भी।
और कुरेदे घाव,निगोड़ा मानव मन भी।
'ललित'
श्रृंगार छंद गीत
किसी को जितना तुमसे प्यार।
करो हँसकर उतना स्वीकार।
मिलो खुश होकर उतने यार।
किसी को जितना.........
नहीं होती है जबरन प्रीत।
मिलें मुश्किल से मन के मीत।
प्रीत की समझोगे जब रीत।
तभी पाओगे जग को जीत।
मिलेंगें ऐसे भी कुछ मित्र,
छोड़ देंगें तुमको मझधार।
किसी को जितना.........
कभी जब होने लगो हताश।
मित्र सब करदें तुम्हें निराश।
रखो तब मन में ये विश्वास।
कभी तो पूरी होगी आस।
नैन में जिसके देखो प्रेम,
उसीका मानो तुम उपकार।
किसी को जितना.........
जगत के सब बंधन बेकार।
लिए सब काँटों के गलहार।
ईश ही है इक सच्चा यार।
करो मन ही मन उससे प्यार।
बाँध लो उससे मन की डोर,
करे जो सबका बेड़ा पार।
किसी को जितना.........
ललित
01.08.16
गीतिका छंद
गीत
गम विदाई का तुम्हारी,माँ मुझे दहला रहा।
वो तुम्हारा स्नेह मन को,आज भी सहला रहा।
रोज पाता था जहाँ मैं,दो जहाँ का प्यार माँ।
खोजता मैं फिर रहा हूँ,फिर वही संसार माँ।
वो तुम्हारी झिड़कियाँ भी,याद आती हैं मुझे।
आज भी जो मुश्किलों में,पथ दिखाती हैं मुझे।
ये तुम्हारा ढीठ बबुआ,आदमी कहला रहा।
वो तुम्हारा स्नेह मन को आज भी सहला रहा।
याद मुझको आ रही हैं,प्यार की वो थपकियाँ।
औ'तुम्हारी गोद में ली,नींद की वो झपकियाँ।
वो तुम्हारा गोद में ले,चूमना भी याद है।
फिर मुझे झूले झुलाकर ,झूमना भी याद है।
माँ तुम्हारे नैन का मैं,स्वप्न था पहला रहा।
वो तुम्हारा स्नेह मन को आज भी सहला रहा।
जिन्दगी की जंग लड़ना,माँ तुम्हीं सिखला गईं।
बन्दगी का रासता भी,हाँ तुम्हीं दिखला गईं।
नेकचलनी भी सिखाई,माँ तुम्हीं ने थी मुझे ।
प्यार की हर धुन सुनाई,माँ तुम्हीं में दी मुझे।
आज हर इक शख्स मुझको,झूँठ से बहला रहा।
वो तुम्हारा स्नेह मन को आज भी सहला रहा।
ललित
02.08.16
हरि गीतिका
गीत
अब छोड़ ये घर आँगना ये,लाडली तेरी चली।
खुशबू बिखेरेगी सदा इस,बाग की नाजुक कली ।
क्या भूल मुझसे होगयी माँ,त्याग जो मुझको रही।
यदि प्यार करती है मुझे तू,ज्ञान दे मुझको सही।
जाने नहीं दुख दर्द कोई, जो दुआओं से फली।
खुशबू बिखेरेगी सदा इस,बाग की नाजुक कली ।
देखा नहीं जाना नहीं है,जिंदगी के खेल को।
तू दे सहारा बेसहारा,बाग की इस बेल को।
वो जा रही अब घर पराए,नाज से जो थी पली।
खुशबू बिखेरेगी सदा इस,बाग की नाजुक कली ।
माँ तात की ये लाडली अब,क्यूँ परायी होगई?
ओ भ्रात तेरी बहन में अब,क्या बुराई होगई?
लगता यही है आज बेटी,इक गई है फिर छली।
खुशबू बिखेरेगी सदा इस,बाग की नाजुक कली ।
वन बाग उपवन वाटिका सब,आज मुझसे पूछते।
इस जिंदगी के सब सुरीले,साज मुझसे पूछते।
क्यों जा रही हो छोड़ कर यों,आज ये अपनी गली?
खुशबू बिखेरेगी सदा इस,बाग की नाजुक कली ।
'ललित'
3.8.16
दिग्पाल छंद
सम्पूर्ण गीत
कमनीय कामिनी ज्यों,दिल पे सवार हो तुम।
शीतल सहज सुहानी,सुरभित बयार हो तुम।
सारे हसीं नजारे,तुम से निखार पाएं।
ये चाँद और तारे,तुम पे निसार जाएं।
है जिंदगी तुम्हीं से,दिल का करार हो तुम।
शीतल सहज सुहानी,सुरभित बयार हो तुम।
लहरें बता रही हैं,हो प्रीत का समंदर।
गजलें बनी तुम्हीं पे,तुम शायरी निरंतर।
हो प्रीत तुम रसीली,मादक बहार हो तुम।
शीतल सहज सुहानी,सुरभित बयार हो तुम।
कायल हुआ तुम्हारे,इस हुस्न का जमाना।
घायल हुए उन्हें तुम,मत और आजमाना।
हो रात की खुमारी,दिन का सितार हो तुम।
शीतल सहज सुहानी,सुरभित बयार हो तुम।
दिल की किताब मेरी,कोरी बिना तुम्हारे।
हर दिल अजीज हो तुम,कहती यही बहारें।
जज्बात शायराना,सुंदर विचार हो तुम।
शीतल सहज सुहानी,सुरभित बयार हो तुम।
ललित
समाप्त
04.08.16
विधाता छंद
सम्पूर्ण गीत
सुनो ओ राधिका रानी,सभी हम प्रेम में हारे।
चली क्यूँ फेर कर नजरें,नजर के तीर क्यूँ मारे।
तुम्ही हो प्रीत इक मेरी,तुम्ही हो रास की रानी।
सितारे आज हँसते हैं,करे जब चाँद मनमानी।
न बंसी को सखी माना,न कोई गोपिका जानी।
न रूठो और अब राधा,करो मत और नादानी।
बहारें पूजती तुमको,नजारे चुप हुए सारे।
चली क्यूँ फेर कर नजरें,नजर के तीर क्यूँ मारे।
नशीली आँख का तेरी,चढा मुझ पर नशा वो है।
न मुझको याद अब कुछ भी,बता मेरी खता जो है।
निराले बाँसुरी के सुर,तुम्हें भाते सभी तो हैं।
हसीं मुख पर अरी राधा,नहीं तिरछी नजर सोहे।
सितारे आसमाँ के सब,तुम्हीं पर आज हैं वारे।
चली क्यूँ फेर कर नजरें,नजर के तीर क्यूँ मारे।
तुम्हारे बिन अधूरा है,हमारा रास ओ राधा।
अरे क्यूँ भूलती हो तुम,किया था रास का वादा।
दुखी हैं गोपियाँ सारी,न रूठो और अब ज्यादा।
सभी को राधिका मोहे,तुम्हारा रूप ये सादा।
तुम्हारे रूप पर मरते,हसीं ये चाँद औ' तारे।
चली क्यूँ फेर कर नजरें,नजर के तीर क्यूँ मारे।
ललित
-----------------समाप्त--------------------
भुजंग प्रयात
गीत
जवानी और बुढापा
जवानी दिखाए हसीं ख्वाब ऐसे।
ज़मीं पे टिकेंगे अजी पाँव कैसे।।
न मेरे सरीखा जहाँ में मिलेगा।
जवाँ फूल ऐसा कहाँ पे खिलेगा।।
जवां जिस्म में जो इरादे जवां हैं।
सुखों का वहीं पे सदा कारवां है।।
जवानी बड़ी काम की दी दिखाई।
कलाबाजियाँ आदमी को सिखाई।।
कहे चाँद को मैं जमीं पे बुला दूँ ।
हसीं वादियों में तुझे मैं सुला दूँ।।
जवानी कमाती जहाँ चार पैसे।
ज़मीं पे टिकेंगे अजी पाँव कैसे।
कहे प्यार आकाश का नूर हूँ मैं।
दिलों में बसा हूँ भले दूर हूँ मैं।
न मेरे सरीखा जहाँ मे मिलेगा।
जवाँ फूल ऐसा कहाँ पे खिलेगा।
हसीं जुल्फ की छाँव लेटा रहा वो।
कहें तात माँ खास बेटा रहा जो।
भुलाए रहा तात औ' मात को ही।
रखे याद फूलों भरी रात को ही।
रहे वासना में फँसे पाँव जैसे।
ज़मीं पे टिकेंगे अजी पाँव कैसे।।
निराली बड़ी काल की चाल होती।
बुढापा कहे आज बेकार मोती।
जवानी बिताई सुखों के सहारे।
बुढापा दिखाए दुखों के नजारे।
सभी चाहते ये बुढापा न आए।
जवानी दिवानी बुढापा दिखाए।
बुढापा किसी का भगा तो नहीं है।
बुढापा किसी का सगा जो नहीं है।
सभी चाहते ऐश आराम वैसे।
ज़मीं पे टिकेंगे अजी पाँव कैसे।।
ललित
भुजंग प्रयात
सम्पूर्ण गीत
आँख और आँसुओं की कहानी
मिला ईश से आँसुओं का खजाना।
दुखी आँसुओं को किसी ने न जाना।
बड़ी आँसुओं की जुदा है कहानी।
सुनी आँसुओं की जुबाँ है कहानी।
कभी आँख आँसू खुशी के बहाती।
कभी आँसुओं में खुशी डूब जाती।
कभी आँसुओं पे हँसेगा जमाना।
दुखी आँसुओं को किसी ने न जाना।
बहें आँख से तो दिलों को हिलाएँ।
भरें आँख में तो दिलों को मिलाएँ।
कभी आँख आँसू बहा भी न पाए।
कभी आँसुओं को सहा भी न जाए।
कभी आँसुओं से बनेगा फसाना।
दुखी आँसुओं को किसी ने न जाना।
बही आँसुओं में किसी की जवानी।
हुई आँसुओं में किसी की रवानी।
कभी तो किसी के हरो आप आँसू।
कभी तो खुशी के भरो आप आँसू ।
हरो आप आँसू बनेगा तराना।
दुखी आँसुओं को किसी ने न जाना।
'ललित'
समाप्त
सार छंद
गीत
तेरी यादों में पागल हो,राधा वन-वन डोले।
आजा कान्हा आजा अब तो,व्रज का कण-कण बोले।
पत्थर-दिल बन बैठा कान्हा,तू तो मथुरा जा के।
रख ले अपनी राधा का दिल,एक बार तो आ के।
मीठी मीठी टीस उठे है,दिल मे हौले-हौले।
आजा कान्हा आजा अब तो,व्रज का कण-कण बोले।
मोहन से क्यूँ नैन मिलाए,मन ही मन पछताती।
देश छोड़ परदेश बसा जो,लिखे न कोई पाती।
यमुना तट का वंशीवट भी, उगल रहा है शोले।
आजा कान्हा आजा अब तो,व्रज का कण-कण बोले।
वन उपवन सब सूने लगते,श्याम बिना ब्रज सूना।
सखियाँ जब ताने मारें तो,दर्द बढे ये दूना।
बैरी दुख कम करने को ये,राधा छुप छुप रो ले।
आजा कान्हा आजा अब तो,व्रज का कण-कण बोले।
'ललित'
6.8.16
सार छंद
गीत
वियोग श्रृंगार
सम्पूर्ण गीत
कैसे भूल गया साजन तू,वो कसमें वो वादे?
क्यों मैं पहले समझ न पायी,तेरे नेक इरादे?
फूलों की खुशबू सा तेरा,नटखट रूप सलोना।
औरों के दिल को तू समझे,नाजुक एक खिलौना।
मैंने दिल में सँजो रखी हैं,तेरी सारी यादें।
क्यों मैं पहले समझ न पायी,तेरे नेक इरादे?
सावन की बूँदों से मेरा,तन मन भीगा जाए।
तुझसे मिलने की चाहत में,नैना नीर बहाएं।
अब तो सुन ले बैरी साजन,मेरी ये फरियादें।
क्यों मैं पहले समझ न पायी,तेरे नेक इरादे?
आज तुझे क्यूँ याद नहीँ हैं,वो मादक बरसातें।
सारी रात किया करते थे,जब हम प्यारी बातें।
सपनों में ही आकर मुझको,हाला वही पिलादे।
क्यों मैं पहले समझ न पायी,तेरे नेक इरादे?
ललित
समाप्त
सार छंद
गीत
वियोग श्रृंगार
कैसे भूल गया साजन तू,वो कसमें वो वादे?
क्यों मैं पहले समझ न पायी,तेरे नेक इरादे?
फूलों की खुशबू सा तेरा,नटखट रूप सलोना।
औरों के दिल को तू समझे,नाजुक एक खिलौना।
मैंने दिल में सँजो रखी हैं,तेरी सारी यादें।
क्यों मैं पहले समझ न पायी,तेरे नेक इरादे?
सावन की बूँदों से मेरा,तन मन भीगा जाए।
तुझसे मिलने की चाहत में,नैना नीर बहाएं।
अब तो सुन ले बैरी साजन,मेरी ये फरियादें।
क्यों मैं पहले समझ न पायी,तेरे नेक इरादे?
आज तुझे क्यूँ याद नहीँ हैं,वो मादक बरसातें।
सारी रात किया करते थे,जब हम प्यारी बातें।
सपनों में ही आकर मुझको,हाला वही पिलादे।
क्यों मैं पहले समझ न पायी,तेरे नेक इरादे?
ललित
समाप्त
दुर्मिल सवैया छंद
गीत
करुणा करके करुणा निधि जी,हर लो सब पीर बसो मन में।
हर पातक लो विनती सुन लो, उजियार भरो इस जीवन में।
मन के तम को अब दूर करो,विनती करता कर जोड़ हरे।
इस जीवन में अब आस यही,कर दो मन की सब त्रास परे।
प्रभु आप अधार हो प्राणन के, जब होय कृपा हर ताप टरे।
हर लो अब घोर निशा तम को, मम जीवन में नव दीप जरे।
तुम दीनदयाल कहावत हो, भर दो खुशियाँ मन पावन में।
हर पातक लो विनती सुन लो, उजियार भरो इस जीवन में।
30.8.16
दिग्पाल छंद
गीत
ज्ञान और प्रेम
मोहन बिना हमारा,होता नहीं गुजारा।
ऊधो तुम्हें मुबारक,ये ज्ञान ध्यान सारा।
हम प्रेम में पली हैं,औ' प्यार में ढली हैं
बस प्रीत से मिलेगा,कान्हा बड़ा छली है।
है प्रेम के बिना तो,ये व्यर्थ ज्ञान धारा।
ऊधो तुम्हें मुबारक,ये ज्ञान ध्यान सारा।
हम ज्ञान का करें क्या,कान्हा बसा हृदय में।
क्यों ज्ञान चक्षु खोलें,जब कृष्ण साँस लय में।
बस प्रीत में छिपा है,हर जीत का इशारा।
ऊधो तुम्हें मुबारक,ये ज्ञान ध्यान सारा।
बजती न आज वंशी,सुनसान ब्रज धरा है।
घनश्याम के बिना तो,सबका हृदय भरा है।
मनमोहना पिया पे,सारा जहान वारा।
ऊधो तुम्हें मुबारक,ये ज्ञान ध्यान सारा।
इस प्यार से बँधा जो,कब तक न आयगा वो।
वंशी नहीं बजाकर,कब तक सतायगा वो।
कर पायगा न कान्हा,राधा बिना गुजारा।
ऊधो तुम्हें मुबारक,ये ज्ञान ध्यान सारा।
समाप्त
ललित