दोधक छंद रचना email 13.8.16


9.8.16
दोधक छंद रचनाएँ
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1
पागल सी सब डोल रही हैं।
नैनन के पट खोल रही हैं।।
देखत गोपिन राह तुम्हारी।
आकर लो सुध कृष्ण मुरारी।।

गोप सखा सब भूल गए क्या?
गोकुल को अब भूल गए क्या?
सावन की हर रात पुकारे।
गोकुल की बरसात पुकारे
2

आवत जावत खावत है जो।
सोवत में सुख पावत है जो।
जीवत ढोर समान यहाँ है।
पावत वो कब मान कहाँ है?

3
तैर रहे कुछ ख्वाब दिलों में।
तेल नहीं कुछ आज तिलों में।
आकर सुंदर चाँद सितारे।
जीवन का का हर साज सुधारें।
4

पागल कौन किसे बतलाए।
दर्पण कौन किसे दिखलाए।
जान लिया सब राज तुम्हारा।
टूट गया दिल आज हमारा।
5

साथ यहाँ दिल छोड़ रहा है।
जीवन से मुख मोड़ रहा है।
डाक्टर के हम आज हवाले।
जीवन के सब खेल निराले।
6
कौन कहाँ कब साथ निभाता।
दोस्त यहाँ अब शूल चुभाता।।
देख लिए सब बंधु सखा रे।
सागर के सब हैं जल खारे।।

नाव फँसे मझधार उसी की।
जो न बने पतवार  किसी की।।
जीवन की यह राम कहानी।
ध्यान लगा कहते सब ज्ञानी।
7
दर्शन दो अब कृष्ण मुरारी।
द्वार खड़े तरसें त्रिपुरारी।
केवल वो शिशु दर्शन चाहें।
श्याम सिवा कुछ दर्श न चाहें।।
8
नाग गले शशि शीश टँगा है।
गात भभूत लगाय रँगा है।
काल कराल महान कहाता।
कण्ठ हलाहल नील सुहाता।

भक्त कहें जय हो शिव भोले।
बेल चढ़ा कहते बम बोले।
रोज चढ़े जल और धतूरा।
शंभु सदाशिव औघड़ पूरा।

भूत पिशाच रहें नित संगा।
भाल त्रिनेत्र बहे सिर गंगा।।
शांत समाधि अखंड अपारा।
कालजयी शिव तारण हारा।।
9
मोहन माधव कृष्ण कन्हैया।
श्याम मनोहर रास रचैया।।
माखन के घट फोड़ दिये हैं।
गोपिन के दिल तोड़ दिये हैं।
10

देकर मानव जीवन प्यारा।
देख रहा वह पालन हारा।
पाप किया कितना दुनिया में।
जाप किया कितना दुनिया में।

11
बादल बारिश सावन देखे।
वृक्ष लता मनभावन देखे।
यौवन के सब रास रसीले।
जीवन के सब भोग नशीले।

खूब मजा सबसे नर पाए।
यौवन तो पर यूँ ढल जाए।
देख जरा नर है पछताया।
काम न यौवन में कर पाया।
12

यौवन का मद आज धरा में।
सावन सा मद आज सुरा में।।
बाग तड़ाग हुए हरियाले।
झूम बहें सब ही नद नाले।।

चित्र विचित्र दिखें बदरा ये।
छिन्न विछिन्न हुआ कजरा ये।।
नैनन बाण चलें सजनी के।
साजन चाँद हसीँ रजनी के।।

पादप का हर पर्ण हरा है।
खेत हरा खलिहान भरा है।
झूम रहे सब वृक्ष लताएं।
फूल कली भँवरे पगलाएं।।

मस्त हुए जुगनू चमकीले।
पाकर प्यार भरी सब झीलें।।
सागर प्यार करे लहरों से।
खेत जवान हुए नहरों से।।

बादल चाँद छुपा छुप खेलें।
पादप से लिपटी सब बेलें।
लाज भरी अँखियाँ कतराती।
साजन की बहियाँ मदमाती।

ललित
14.8.16
दोधक
आज की पूरी रचना
ललित विचार दि 11.9.16
दोधक छंद

बाग बहार न फूल सुहाते।
फाग फुहार न साज लुभाते।।
साजन जी जब पास न होते।
जीवन में जब रास न होते।।

बेकल सी फिरती भरमाती।
यौवन से घिरती शरमाती।
पायल घायल की गति जाने।
काजल साजन की मति जाने।

बैरन वो बिछिया मुख खोले।
फूल न नैनन मे रस घोलें।।
प्रीत लगाकर नींद गँवाई।
साजन को पर याद न आई।

मौन हुए कँगना मतवारे।
पीय बिना सब मौन बहारें।।
प्रेम पिया करते यह कैसा।
साजन को तरसे मन जैसा।

राह निहार रही दिन रैना।
रैन गुजार रही बिन चैना।।
नैनन को मत और खिजाओ।
आकर नैनन प्यास बुझाओ।।

ललित

बाग बहार न फूल सुहाते।
फाग फुहार न साज लुभाते।।
साजन जी जब पास न होते।
जीवन में जब रास न होते।।

बेकल सी फिरती भरमाती।
यौवन से घिरती शरमाती।
पायल घायल की गति जाने।
काजल साजन की मति जाने।

बैरन वो बिछिया मुख खोले।
फूल न नैनन में रस घोलें।।
प्रीत लगाकर नींद गँवाई।
साजन को पर याद न आई।

मौन हुए कँगना मतवारे।
पीय बिना सब मौन बहारें।।
प्रेम पिया करते यह कैसा।
साजन को तरसे मन जैसा।

राह निहार रही दिन रैना।
रैन गुजार रही बिन चैना।।
नैनन को मत और खिजाओ।
आकर नैनन प्यास बुझाओ।।

ललित

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