04.09.16
गज़ल विधान
[04/09 08:27] Rakesh Raj: 💐 आज का विषय 💐
आज सभी मित्र मित्र दिग्पाल छंद के विधान पर..अर्थात
2212122, 2212122 की बहर पर एक ग़ज़ल लिखने की कोशिश करें....
कैसे लिखें..?
सर्वप्रथम उपरोक्त बहर ( मात्रा विधान ) के आधार पर दो पंक्तियाँ लिखें जिनके तुकांन्त (काफ़िये) समान हों....इसे ग़ज़ल का मतला कहा जाता है..👈🏻 इसे गीत विधा में स्थायी कहा जाता है....
👉🏻 ततपश्चात उक्त विधान और भाव के अनुसार ही एक पंक्ति लिखें जो तुकांन्त मुक्त अथवा स्वतंत्र तुकांन्त लिए हो। इसके बाद चौथी पंक्ति इसी भाव और विधान के अनुसार लिखें जिसमें मतले की पंक्तियों के अनुसार तुकांन्त (काफ़िया ) मिलाना है....सर्व प्रथम मतला और एक शेर लिखें जो कुल चार पंक्तियाँ होंगी...पहली, दूसरी और चौथी पंक्ति में तुकांन्त तीसरी पंक्ति स्वतंत्र तुकांन्त होगी.....
👉🏻 छंद की चारों पंक्तियों में एक ही भाव आता है किंतु ग़ज़ल की दो पंक्तियाँ जो शेर कहलातीं हैं उनमें ही भाव और विषय का साम्य रखा जाता है....ग़ज़ल का प्रत्येक शेर अपने आप में पूर्ण ( मुकम्मल ) होता है .. की हुई बात या कथ्य यहां पूर्ण स्पष्ट हो जाता है...यह आवश्यक नहीं है कि अगला शेर पढ़ने के बाद ही ही उसका भाव स्पष्ट हो....केवल दो - दो शेर लिखें...ग़ज़ल में कम से कम 10 पंक्तियाँ जिनमें दो पंक्ति मतला 👈🏻 अंतिम दो पंक्ति जिनमें शायर अपना नाम देता है 👈🏻 इसके अतिरिक्त 3 शेर आवश्यक होते हैं...इस प्रकार 10 पंक्तियों में 3 शेर ही कहे जाते हैं ...शेर हमेशा विषम संख्या में ही लिखे जाते हैं जिनकी संख्या अधिकतम 21 हो सकती है...हमें आज केवल 5 शेर 2 -2 पंक्तियों के और चार लाइन मतले और मक्ता की..कुल 14 पंक्तियाँ ही लिखनी हैं....शीघ्रता न करें....सोच समझ कर लिखें...बेहतर लिखें....विधान और भाव के अनुसार लिखें...बेहतरीन ग़ज़ल 1 सप्ताह में 1..पर्याप्त होती है....👍🏻👍🏻😊😊👍🏻👍🏻
[04/09 08:57] Rakesh Raj: 22 121 22, 22 121 22 की बह्र पर एक ग़ज़ल...
🍃🌻 ग़ज़ल 🌻🍃
होती नहीं कभी ये, रुसवाइयाँ हमारी।
लेतीं न जान ऐसे, तन्हाइयाँ हमारी।
👆🏻👆🏻मतला 👆🏻👆🏻
👇🏻👇🏻 शेर 👇🏻👇🏻
हर पोर पोर मेरा, दिन रात दूखता है,
ये मानती न बातें, पुरवाइयाँ हमारी।
अंत में हमारी शब्द यहाँ बार बार रिपीट हो रहा है इसे "रदीफ़" कहते हैं...इससे पूर्व का जो शब्द है
तन्हाइयाँ , रुसवाइयाँ, पुरवाइयाँ 👈🏻 ये सब तुकांन्त (काफ़िया ) हैं....
👍🏻💐 "राज" दीक्षित 💐👍🏻
[04/09 09:08] Rakesh Raj: आवश्यक नहीं हैं कि हर शेर का विषय और भाव अलग ही हो ललित जी....हो भी सकता है और नहीं भी....👍🏻💐👍🏻
ग़ज़ल में उर्दू शब्दों का प्रयोग किया जाता है...हिंदी छंदों में नहीं....यहाँ काफ़िये का अंतिम वर्ण उसकी ध्वनि के आधार पर भी काफ़िया मिलाया जा सकता है....
जैसे....रहा नहीं, खता नहीं, सजा नहीं, बना नहीं....यहाँ... हिंदी छंदों में रहा/खता/ सजा/ बना 👈🏻 सटीक तुकांन्त नहीं हैं किंतु ये सभी शब्द आकारांत "आ" की ध्वनि होने से ग़ज़ल के उपयुक्त तुकांन्त हो सकते हैं....हिंदी छंद में "ना" का प्रयोग निषेध है किंतु ग़ज़ल में ना का प्रयोग मान्य है....👍🏻👍🏻💐💐👍🏻👍🏻👍🏻
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