अगस्त 2018

[01/08, 5:29 PM] ललित:
मदिरा सवैया छंद

यौवन बीत गया सुख से अब सोच दिमाग लगा कुछ तो।

जो हरि वास करे मन में उस से अब प्रीत पगा कुछ तो।

तात सुता सुत भ्रात सखा इन साथ विराग जगा कुछ तो।

जो हरि एक रमा जग में बस वो बन जाय सगा कुछ तो।

ललित
[01/08, 8:20 PM] ललित:
मदिरा सवैया छंद
2
चाहत है इतनी मनमोहन,
आन बसो मन-आँगन में।

नैन करूँ जब बन्द प्रभो तव,
दर्शन हों इस सावन में।

हाथ पसार करूँ विनती प्रभु,
दाग लिए इस दामन में।

साँस रहे तन में प्रभु तो नित,
जाप चले मन पावन में।

ललित
[02/08, 1:50 PM] ललित:
आल्हा छंद

जीवन बीता समझ न पाया,
अब तक मैं सपनों की बात।

स्वप्न सुनहरे खत्म न होते,
सपनों में ही बीती रात।

रंग-बिरंगे सपने मन जो,
रहा देखता उम्र तमाम।

उन टूटे सपनों की किरचें,
अब बहलाएँ सुबहो-शाम।

ललित
[02/08, 3:14 PM] ललित:
आल्हा छंद

कान्हा के कदमों की आहट,
सुनने को तरसे हैं कान।

कानों में हर-पल गूँजे है,
मधुर बाँसुरी की वो तान।

तान बाँसुरी की ऊधौ जी,
सुन लेता है जो इक बार।

ध्यान-धारणा बिना कन्हैया,
कर देते उसको भव-पार।

ललित
[02/08, 7:29 PM] ललित:
आल्हा छंद

सावन की रिम-झिम बौछारें,
भिगो गई गोरी का गात।

गाल गुलाबी नैन शराबी,
अधरों पर अटकी कुछ बात।

पानी की कुछ चंचल बूँदें,
चूम रही   गोरी के गाल।

प्यार भरी नीली अँखियों में ,
तैर रहे हैं डोरे लाल।

ललित
[03/08, 9:55 PM] ललित:

मदिरा सवैया छंद

यौवन में इतरा कर तू अब वृद्ध हुआ पछताय रहा।

जीवन व्यर्थ गवाँय दिया अब क्यों मुँह को बिचकाय रहा?

नाम न राम जपा मुख से दिल से प्रभु को बिसराय रहा।

राम-हरे अब तो जप ले अब क्यों जग में भरमाय रहा ?

ललित

[06/08, 1:46 PM] ललित:
त्रिभंगी छंद
10-8-8-6

बिजुरी जब चमके,
जियरा धड़के,
खन-खन खनके,कँगना रे।

मतवारे साजन,
प्यारे राजन,
सूना सावन,अँगना रे।

सावन हरियाला,
बदरी वाला,
मथ-मथ डाला,इस मन को।

जल्दी घर आ जा,
रस बरसा जा,
भूल न राजा,विरहन को।

ललित
[06/08, 5:29 PM] ललित:

त्रिभंगी छंद

छोटा सा बाजा,बन्दर राजा,खाकर खाजा,ले आया।

कुर्ता पाजामा,बन्दर मामा,मस्जिद-जामा,
से लाया।

सुन ढोल-धमाँसे,छम-छम नाचे, भरे कुलाँचे,बन्दरिया।

बिजुरी जब चमके,नाचे जम के,लगाय ठुमके,सुंदरिया।

ललित
[06/08, 6:56 PM] ललित:
त्रिभंगी छंद
3

रख प्रभु से आशा,छोड़ हताशा,घोर-निराशा,तज दे रे।

जीवन क्षण-भंगुर,
होकर आतुर,
नित मुरली-धर,भज ले रे।

सुन मेरे भैया,
जीवन नैया,
कृष्ण-कन्हैया,खेवेंगें।

गहरा भव-सागर,
पार सकें कर,
हरि को जो नर,सेवेंगें।

ललित
[07/08, 6:46 AM] ललित:
त्रिभंगी छंद

जय राधे-कृष्णा,जय श्री कृष्णा,कृष्णा-कृष्णा,जय राधा।

जय-जय सुख सागर,जय मुरली धर,नटवर नागर,हर बाधा।

जय बाल-मुकुंदा,जय गोविंदा,यशुदा-नंदा,दुख हारी।

गोवर्धन-धारी,मुकुट-बिहारी,कृष्ण-मुरारी,सुख कारी।

ललित
[08/08, 7:30 AM] ललित:
त्रिभंगी छंद

यमुना के तीरे,ढोल-मँजीरे,
धीरे-धीरे,बजते हैं।

वंशी-वट झूमे,भँवरे घूमें,मोर पंख सिर,सजते हैं।

जब नँद का लाला,मुरली-वाला,कान्हा काला,हँसता है।

राधा का मनवा,चंचल चितवा,मुस्कानों में,
फँसता है।

ललित
[10/08, 6:54 PM] ललित:
त्रिभंगी छंद

लालच के मारे,नेता सारे,लगा मुखौटे,फिरते हैं।

दाढ़ी में जिनके,लाखों तिनके,सीना जोरी,करते हैं।

जनता को लूटें,नेता झूँठे,सौदागर ये,सपनों के।

कानून बनाते,फिर इतराते,नहीं सगे ये,अपनों के।

ललित
[11/08, 5:56 AM] ललित:
त्रिभंगी छंद

जय श्री राधा कृष्ण

राधा की बहियाँ,पकड़ कन्हैया,यमुना तीरे जब मोड़े।

राधा शरमाए,कुछ सकुचाए,
पकड़ कन्हैया,कब छोड़े?

दिल धक-धक धड़के,
राधा भड़के,
मन ही मन में,
खुश हो ले।

नैना मटकाए,हँसता जाए,
राधा का घूँघट खोले।

ललित
[11/08, 4:36 PM] ललित:
त्रिभंगी छंद

ये बाग-बगीचे,महल-गलीचे,
साथ समय पर,कब देते?

ये रिश्ते-नाते,प्यार-दिखाते,
हाथ समय पर,कब देते?

वो एक निराला,मुरली वाला,
पीर सभी की,हरता है।

बस उसको भज लो,नाम सुमिर लो,
हाथ वही सिर,धरता है।

ललित
[12/08, 7:52 PM] ललित:

ताटंक छंद

कहलाता आजाद देश ये,अंदर से टूटा-टूटा।

उलट-फेर कानूनों में कर,नेताओं ने ही लूटा।

इकहत्तर की वय में भी है,लगा रैलियों का रेला।

नेताओं की मुट्ठी में क्यों,कैद बहारों का मेला?

ललित

[14/08, 7:50 AM] ललित:
रोला छंद
पूरा गीत
1
🙏🌸🙏

मुरली वाले श्याम,सुनो गोवर्धन धारी।
क्यों छोड़ा व्रजधाम,अरे ओ मुकुट बिहारी?

गोप-गोपियाँ बाल,सखा सब तुम्हें पुकारें।
राधा जी भी राह,तुम्हारी नित्य निहारें।

वंशीवट की छाँव,खड़ी है राधा प्यारी।
क्यों छोड़ा व्रजधाम,अरे ओ मुकुट बिहारी?

तरसे हैं अब कान,मधुर मुरली को प्यारे।
आ जाओ इक बार,अरे ओ कान्हा कारे।

माखन मिश्री भोग,लिए यशुदा बलिहारी।
क्यों छोड़ा व्रजधाम,अरे ओ मुकुट बिहारी?

सूना यमुना तीर,हुआ नंदन-वन सूना।
तुझ बिन ओ नँदलाल,राधिका का मन सूना।

बाँसुरिया की तान,सुना दो फिर से प्यारी।
क्यों छोड़ा व्रजधाम,अरे ओ मुकुट बिहारी?

ललित
🙏🌸🙏
[14/08, 10:19 AM] ललित:

रोला छंद
1

कहाँ गया सँविधान,मूल अधिकारों वाला।
लगा हुआ क्यों आज,न्याय के मुँह पर ताला?

बरगद पीपल नीम,आम का उठा जनाजा।
काँटे-दार बबूल,बना जंगल का राजा।

ललित
[14/08, 3:51 PM] ललित:
रोला छंद

देख लिया घनश्याम,तुम्हारा प्यार अनोखा।
छोड़ गए व्रजधाम,दे गए सबको धोखा।

ओ निष्ठुर मन मीत,कहो क्या थी मजबूरी।
भुला दिए सब मीत,करी राधा से दूरी।

ललित
[14/08, 4:34 PM] ललित:
रोला छंद

अँखियों से मत मार,करे मत तिरछे नैना।
तिरछे तेरे नैन,चुरा लेते हैं चैना।

चैन गया मुँह फेर,मिली हैं जब से अँखियाँ।
फिरती मैं बेचैन,हँसें हैं सारी सखियाँ।

ललित
[15/08, 8:19 PM] ललित:
रोला छंद

अपना हिन्दुस्तान,जहाँ में सबसे न्यारा।
सर्व धर्म सम्मान,हमारा पावन नारा।
देश-भक्ति की गंध,यहाँ माटी ने धारी।
तूफानों से जंग,रहे हरदम ही जारी।

ललित
[16/08, 6:41 PM] ललित:
दोहा

हंसों का रँग देखकर,काग चकित रह जाय।
चुपड़े पॉडर-क्रीम पर,कालिख छूट न पाय।

ललित
[17/08, 10:37 PM] ललित:
रोला छंद

मिलते रहते मीत,सभी को इस जीवन में।
होती सच्ची प्रीत,किसी विरले के मन में।
आदि समय से रीत,यही चलती आई है।
सच्ची जिसकी प्रीत,जीत उसने पाई है।

ललित
[18/08, 5:34 PM] ललित:
रोला छंद

बोर हुए दो यार,रेल में कविता करते।
देख रेल की चाल,आँख में आँसू भरते।

भारत की ये रेल,विश्व में सबसे प्यारी।
करवाती है सैर,पूर्ण भारत की न्यारी।

🙏🙂🙏ललित
[18/08, 5:56 PM] ललित:
रोला

जीने का अंदाज,सजन का सबसे न्यारा।
हँसी-ठिठोली-बाज,साजना मुझ
को प्यारा।
अँगना हो गुलजार,सजनवा के आने से।
तन में बजें सितार,बाँह में भर जाने से।

ललित
[18/08, 6:36 PM] ललित:
रोला छंद

नीले तेरे नैन,समन्दर से भी गहरे।
प्यारे तेरे कान,मगर क्यों इतने बहरे?
दिल की ये आवाज,नहीं क्यों सुन हैं पाते?
क्यों मेरे जज्बात,नहीं तुझको छू जाते?

ललित
[19/08, 5:40 AM] ललित: आइए सुबह की शुरुआत बिटिया रानी के साथ करते हैं...
🙏🌷🙏🙂

रोला छंद

बाबुल का घर-द्वार,छोड़ कर बिटिया रानी।
चली आज ससुराल,लिए नयनों में पानी।
ये आँगन ये गाँव,भूल कैसे पाएगी?
ममता की वो छाँव,और माँ यादाएगी।

भर आई हैं मात,पिता भाई की अँखियाँ।
क्यों जाती हो छोड़,कहें बचपन की सखियाँ?
कहें बहन अरु भ्रात,सदा खुश रहना बहना।
मोबाइल से बात,हमेशा करती रहना।

ललित
[19/08, 2:38 PM] ललित:
रोला सागर

भर ले जिसमें पीर,राधिका सागर जैसी।
कहाँ मिलेगी श्याम,बता दे गागर ऐसी।
काला था जो नीर,कन्हैया यमुना जी का।
उसका रँग भी हाय ,हुआ अँसुवन से फीका।

ललित
[20/08, 12:23 PM] ललित:
रोला छंद
जय गुरूदेव

👏👏👏👏👏👏👏

गुरूदेव का प्यार,मिला है हमको जैसा।
आज उन्हें सम्मान,मिला है बिल्कुल वैसा।
जय-जय शारद मात,आपकी कृपा निराली।
काव्यसृजन परिवार,बजाए खुश हो ताली।

ललित

👏👏👏👏👏👏👏
[21/08, 11:26 AM] ललित: 21.8.18
दोहा क्रमांक : 1

फूल नहीं हैं छोड़ते,मुस्काना दिन-रात।
चाहे कुदरत दे उन्हें,काँटों की सौगात।

ललित
[21/08, 11:46 AM] ललित:
दोहा क्रमांक : 2

मीठा-मीठा रस मिला,खुशबू की सौगात।
भौंरे ने जब फूल से,कही प्यार की बात।

ललित
[21/08, 3:01 PM] ललित:
दोहा क्रमांक : 3

छोटा सा जीवन मिला,सपनों में मत डूब।
निश-दिन हरि का नाम ले,पुण्य कमाले खूब।

ललित
[21/08, 7:12 PM] ललित:
दोहा क्रमांकः4

दुख के पी लेे घूँट जो,लेकर हरि का नाम।
सुख उसका पीछा करे,भजता जो निष्काम।

ललित
[21/08, 7:56 PM] ललित:
दोहा क्रमांक : 5

क्यों भेजा संसार में,हरि ने हमको हाय?
काम क्रोध मद लोभ से,मन जो छूट न पाय।

ललित
[23/08, 8:50 AM] ललित:
मुक्तक प्रतियोगिता
मेरा प्रयास

घाव जो तुमने दिया है क्या कभी भर पाएगा?

क्या खुशी का वो समन्दर लौटकर फिर आएगा?

कौन सा मरहम भला इस दिल को सकता जोड़ है।

दिल खिलौना तो नहीं जो टूटकर जुड़ जाएगा।

ललित
[24/08, 4:54 PM] ललित:
रोला छंद

झूम रहे हैं मोर,देख सावन का मेला।
अम्बर में है शोर,गरजते वारिद छैला।

बगिया में हर ओर,लगे सावन के झूले।
इठलाती हर नार,आज बन-ठन के झूले।

ललित
[24/08, 6:43 PM] ललित:
रोला छंद

रिम-झिम ये बरसात,देख मनवा हर्षाता।
बूँद छुए जब गात,भीग मन भी है जाता।

नदिया झूमी जाय,महकता है हर धोरा।
जोरा-जोरी आज,करे है बाँका छोरा।

ललित
[25/08, 4:11 PM] ललित:
रोला छंद

लोकतंत्र का लाभ,उठाया तुमने कैसा?
हथियाने को वोट,लुटाया कितना पैसा?

सत्ता का है शौक,पागलों तुम पर तारी।
जा-जा कर परदेश,दे रहे भाषण-भारी।

ललित
[26/08, 9:18 AM] ललित:
रोला छंद

लोकतंत्र का लाभ,उठाया तुमने कैसा?
हथियाने को वोट,लुटाया कितना पैसा?

सत्ता का है शौक,पागलों तुम पर भारी।
जा-जा कर परदेश,कर रहे भाषण जारी।

ललित
[26/08, 10:54 AM] ललित:

राखी दोहे

रक्षा बंधन की पहली प्रस्तुति
समीक्षा हेतु

भेज रही हूँ नेह की,
               इक छोटी सी डोर।
दे दे ना भैया मुझे,
                खुशियों का इक छोर।

भाई मेरा खुश रहे,
                  यही प्रभू से आस।
जीवन में देखे नहीं,
                  कभी गमों की त्रास।

वीरा तुझसे है बँधा,
                   मन का हर इक तार।
तेरे मधुर सनेह से,
                    जीतूँ सब संसार।

'ललित'
[27/08, 1:45 PM] ललित:
मनोरम छंद

उठ रहा दिल में बवंडर।
भावनाओं का समंदर।
सिर्फ जी ली जिंदगी है।
या करी कुछ बंदगी है?

ललित
[27/08, 1:51 PM] ललित:
मनोरम छंद
2
बंदगी मैं कर न पाया।
जिंदगी ने यूँ सताया।
आस पूरी हो सकी कब?
कामनाएँ खो चुकी सब।

ललित
[27/08, 2:33 PM] ललित:
मनोरम छंद

क्या कहा दिल ने न जाने?
जिंदगी ढूँढे बहाने।
प्यार यूँ गम से किया क्यों?
दूसरों का गम पिया क्यों?

ढूँढती खुशियाँ ठिकाना।
जान कब पाया जमाना?
जिंदगी जिंदादिली है।
रस तभी पीता अली है।

ललित
[27/08, 3:52 PM] ललित:
मनोरम छंद
रास

बाँसुरी बजती सुहानी।
गोपियाँ नाचें दिवानी।
पायलें छम-छम बजे हैं।
राधिका के सुर सजे हैं।

रात भर चलता रहा रे।
रास वंशी के सहा रे।
चाँद भी रुकने लगा है।
आसमाँ झुकने लगा है।

शाँत सुरभित हैं हवाएँ।
झूमती हैं सब दिशाएँ।
श्याम-राधा नैन अंदर।
प्रीत का छलके समंदर।

ललित
[27/08, 4:29 PM] ललित:
मनोरम छंद

नन्द-यशुदा की दुआ है।
जन्म लल्ला का हुआ है।
है बिरज में धूम मचती।
गोपियाँ दर्शन न तजती।

ललित
[28/08, 9:35 AM] ललित:
मनोरम छंद

राधिका रो-रो पुकारे।
आ मिलो अब श्याम प्यारे।
भूल क्यों व्रज को गए हो?
किस जहाँ में खो गए हो?

नंद-बाबा राह देखे।
क्या यही थे भाग्य-लेखे?
माँ यशोदा गोपियाँ सब।
हैं नहीं क्या याद भी अब?

इक घड़ी को दर्श दे दो।
मुस्कुरा कर हर्ष दे दो।
बाँसुरी फिर से बजा दो।
रास में हमको नचा दो।

ललित
[28/08, 8:08 PM] ललित:

मनोरम छंद

प्यार की दीवानगी थी।
क्या तुम्हारी बानगी थी?
दिल जवाँ था तब तुम्हारा।
प्यार जीवन था हमारा।

वक्त ने ये दिन दिखाए।
दो कदम तन चल न पाए।
वक्त करता क्या सितम है?
आज तन में क्यों न दम है?

ललित


[29/08, 9:05 AM] ललित:
मनोरम छंद
बुढापा

वक्त ने क्या दिन दिखाए?
दो कदम तन चल न पाए।
वक्त करता क्या सितम है?
आज तन में क्यों न दम है?

जो चला था हर महीना।
जिंदगी भर तान सीना।
आज वो झुक सा गया क्यों?
राह में रुक सा गया क्यों?

ये बुढ़ापा क्या बला है?
वक्त की ये क्या कला है?
आज पथराई नजर है।
और धुँधलाई डगर है।

धमनियाँ जमने लगी हैं।
साँस भी थमने लगी है।
दिल मचलता और ज्यादा।
और जीने का इरादा।

ललित
[29/08, 9:44 PM] ललित:
मनोरम छंद

बाग की नन्हीं कली थी।
शीत-छाया में पली थी।
तात की थी लाडली वो।
थी बड़ी चंचल कली वो।

अब लगी थी वो चहकने।
घर लगा उससे महकने।
तात घर वो रह न पाई।
हो गयी इक दिन पराई।

ललित
[30/08, 11:15 AM] ललित:
सार छंद
चाह

नैन नहीं कुछ चाहें कान्हा,
चाहें दर्शन तेरा।

राधा के सँग निधिवन में वो,
प्यारा नर्तन तेरा।

श्रवण चाहते सुनना अद्भुत,
वंशी-वादन तेरा।

जिव्हा मेरी चखना चाहे,
मिश्री-माखन तेरा।

'ललित'

No comments:

Post a Comment