जुलाई 2018

जुलाई 2018

[01/07, 12:52 PM] ललित:
हरिपद

बेटी की शादी करने की,चिन्ता में है तात।
पर दहेज का दानव कब है,बनने देता बात?
खून-पसीना बहा कमाया,जीवन भर धन खूब।
दे दहेज फिर भी जाएगा,कर्जे में वो डूब।

ललित
[02/07, 3:23 PM] ललित:
बिहारी छंद

हे नाथ जरा हाथ रखो,माथ हमारे।
सब पाप तथा कष्ट हरो,नाथ हमारे।
दो नाथ मुझे आप सिखा,छंद बिहारी।
कर जोड़ खड़ा आज ललित,शरण तिहारी।

'ललित'
[02/07, 8:00 PM] ललित:
बिहारी छंद
221 122 112, 21 122

यूँ प्यार हुआ आज उसे,श्याम पिया से।

है चैन मिला और गया, काम जिया से।

मिल नैन गए प्यास बुझी,आज जिया की।

वृषभानु सुता आज हुई,श्याम पिया की।

ललित
[03/07, 7:09 AM] ललित:
बिहारी छंद
221 122 112, 21 122

वृषभानुसुता नाच रही,श्याम नचाए।

सब गोप-सखा गोपिन सँग,रास रचाए।

जो कृष्ण अधर छोड़ कहीं,और न जाती।

वो बाँसुरिया प्रेम-भरे,गीत सुनाती।

ललित
[03/07, 7:19 PM] ललित:
बिहारी छंद
221 122 112, 21 122

ओ श्याम न जा छोड़ हमें, गोप पुकारे।

वंशी न बजेगी व्रज में, हाय सखा रे।

वृषभानुसुता की अँखियाँ ,बरस रही हैं।

मनमोहन के दर्श बिना ,तरस रही हैं।

ललित
[04/07, 4:43 PM] ललित:
बिहारी छंद
221 122 112, 21 122

जो भेद सुदामा न कहे , श्याम समझ लें।

जो बात न बोले शबरी, राम समझ लें।

जो भेंट न माँगे प्रभु से,भक्त वही है।

भगवान दयावान बड़े ,सत्य यही है।

ललित
[04/07, 7:35 PM] ललित:
बिहारी छंद
221 122 112, 21 122

'आधार' बिना आज नहीं,काम चले है।

'आधार' रहे साथ तभी ,नाम चले है।

'आधार' बिना आज बजे,साज नहीं है।

पहचान बिना आज कहीं,राज नहीं है।

ललित
[05/07, 4:14 PM] ललित:
मुक्तक 16-14

कलियाँ सब सिकुड़ी-सिमटी हैं,पवन चली हाहाकारी।

कंटक चीर रहे कोमल-तन,सिसक रही अबला नारी।

खग भी उड़ने से डरते हैं,बाज झपटते हैं ऐसे।

कैसा भारत कैसी महिमा,कैसे ये  सत्ताधारी?

ललित
[06/07, 4:21 PM] ललित:
बिहारी छंद
221 122 112, 21 122

ओ कृष्ण कन्हैया सुन ले,अर्ज हमारी।
ये प्रीत पुकारें कर ले,दर्ज हमारी।
इक बार दिखा दे अपने ,दर्श कन्हैया।
शुभ दर्श बिना है लगती,पार न नैया।

ललित
[07/07, 5:34 AM] ललित:
बिहारी छंद
221 122 112, 21 122

क्या भेंट करूँ मैं प्रभु ये,सोच न पाऊँ?

हे नाथ तुम्हारे चरणों,शीश नवाऊँ।

बस एक यही है मन में,चाव कन्हैया।

भव-सिंधु नहीं ये अटके,नाव कन्हैया।

ललित
[08/07, 11:31 AM] ललित:
दोहा छंद

गरल हवा में घुल गया,जल बाँधों में कैद।
भ्रमर वासना से भरे,इसमें क्या है भेद?

ललित
[08/07, 1:35 PM] ललित:
दोहे
किटि पार्टी

नारंगी चश्मा लगा,छतरी थामे हाथ।
किटि-पार्टी मैडम चली,सहेलियों के साथ।

शांति किसे भाए वहाँ,झगड़ पड़ीं दो नार।
कर्कश वाणी से करें,इक दूजे पर वार।

साड़ी सुंदर एक की,दूजी का गलहार।
और कुटिल मुस्कान से,तीजी करती वार।

मेजबान का घर बड़ा,महँगा सोफा सेट।
चौथी कोने में खड़ी,देख रही थी गेट।

पंचम झोले में लिए,हाऊजी का गेम।
षष्ठी बोली खेल के,नियम रहेंगें सेम।

सप्तम ने बाँटे टिकट,खड़ी आठवीं मौन।
प्लेटें चम्मच आगए,सर्व करेगा कौन?

ग्यारहवीं थी गाँव की,सीधी-सादी नार।
रजपूती पौशाक में,कर सोलह श्रृंगार।

बारहवीं मॉडर्न बड़ी,जींस-टॉप में हाय।
खड़ी-खड़ी बतिया रही,हाथों को मटकाय।

तेरह चौदह पंद्रवीं,बड़ी तेज तर्रार।
सोलहवीं चंचल सखी,मुस्काती सी नार।

कुछ मीठा कुछ चरपरा,खट्मिट्ठा कुछ भोज।
चटखारे ले खा गईं,सारी ओवरडोज।

कोई जीती गेम में ,रुपए सत्तर-साठ।
हारी कोई प्रेम से,रुपए साढ़े आठ।

अंत भला सो हो भला,हँसी-ठिठोली साथ।
वापस सब घर को चलीं,दिए हाथ में हाथ।

ललित
[08/07, 2:33 PM] ललित: दोहे
प्याज रोटी

प्याज और रोटी मिले,सब बच्चों को आज।
सोच यही घर से चला,करने को वह काज।

मजदूरी दिन-भर करी,बहा पसीना-खून।
लाया रोटी प्याज वो,लेकिन था घर सून।

पूछ पड़ोसी से लिया,कहाँ गए सब आज।
कहा पुलिस है ले गई,कुछ पूछन के काज।

दौड़ा-दौड़ा वह गया,थाने में कर-जोड़।
बोला थानेदार ने,कर ले कुछ गठ-जोड़।

बच्चे तेरे जेल में,सड़ जाएँगें देख।
ले आ तू कुछ नोट तो,बदलेंगें हम लेख।

क्या ला पाऊँगा कभी,इतने सारे नोट?
सोच रहा कानून में,कैसी है यह खोट।

ललित
[08/07, 5:20 PM] ललित:
दोहा प्रतियोगिता

क्रमांक - 1
कच्ची माटी से बनी,मन की हर दीवार।
इस ढँग से ढालो उसे,हो जाओ भव-पार।

क्रमांक - 2
मत सींचो मन में कभी,राग-द्वेष की पौध।
भव तरने की राह में,यही बड़ा अवरोध।

क्रमांक - 3
चाह नहीं सुंदर दिखे , माटी की यह देह।
मन मेरा सुंदर दिखे, रखूँ सभी से नेह।

क्रमांक -4
द्वेष नहीं मन में रखो,पिओ घूँट अपमान।
अमृत सम तो प्रीत है, द्वेष गरल सम जान।

क्रमांक - 5
सपने सुंदर देखते,जीवन बीता जाय।
अंत समय सच जान के,मुख से निकले हाय।

ललित किशोर 'ललित'
[09/07, 8:56 AM] ललित: छंद सिंधु
पहला प्रयास

कहीं कलियाँ बिखरती थी हवाओं में।
कहीं भाषण दिए जाते चुनाओं में।
कहीं थी लाडली अस्मत रही खोती।
कहीं थी चैनलों पर ही बहस होती।

ललित
[09/07, 1:21 PM] ललित:
छंद सिंधु

न कलियाँ मुस्कुरा सकती कभी खुलकर।
हवा में बह  रही जब वासना घुलकर।
न फूलों में बची खुशबू वहाँ कोई।
कि मानवता जहाँ मुख फेर कर सोई।

ललित

[09/07, 2:24 PM] ललित:
छंद सिंधु

अगर है प्रेम का सागर कहीं कोई।
कन्हैया सा कहीं प्यारा नहीं कोई।
कभी मुरली बजाता सात सुर वाली।
कभी माखन चुराता देख घर खाली।

कहीं वो नाग के फन पर चढ़ा नाचे।
कहीं वो गोपियों के सँग खड़ा नाचे।
मरोड़े राधिका की वो कभी बहियाँ।
सजाए वेणियों में वो कभी कलियाँ।

ककभी वो बाँटता माखन गरीबों में।
महल लिखता सुदामा के नसीबों में।
सुदामा से गले मिलता चरण धोता।
नहीं ऐसा कहीं राजा कभी होता।

ललित
[09/07, 8:42 PM] ललित:
छंद सिंधु

सुदामा नाम का था मित्र मोहन का।
रखे दिल में सदा जो चित्र मोहन का।
नहीं की कामना उसने कभी धन की।
सदा की वंदना उस मित्र मोहन की।

ललित
[09/07, 8:45 PM] ललित:
छंद सिंधु

चुभन उस दर्द की दिल से नहीं जाए।
दिया जो दर्द अपनों ने हमें हाए।
बड़ी बेदर्द टीसें दर्द की होतीं।
न सोने दर्द को देतीं न खुद सोतीं।

ललित
[10/07, 11:37 AM] ललित:
छंद सिंधु
1

हवाओं में घुली खुशबू बताती है।

कली अब फूल बनकर मुस्कुराती है।

खुशी से बागबाँ भी मुस्कुराया है।

धरा चहकी गगन ने सिर झुकाया है।

ललित
[10/07, 11:56 AM] ललित:
छंद सिंधु
2
कृपा कर श्याम यूँ अपनी निगाहों से।

न हों हम दूर अब तेरी पनाहों से।

हमें विश्वास है तू खुश अगर होगा।

खुशी से झूमता सारा नगर होगा।

ललित
[15/07, 8:57 PM] ललित: आज एक मित्र से मिलने गया जिसे कैंसर ने निचोड़ कर रख दिया है।
तभी उपजे ये विचार

छंद सिंधु

कहीं मजबूरियाँ पथ रोक देती हैं।

कहीं तनहाइयाँ यूँ घेर लेती हैं।

न होते पास रिश्ते खास होकर भी।

न हँस पाता जहाँ दिलदार जोकर भी।

ललित
[16/07, 7:40 AM] ललित: सुप्रभात
🙏🌸🙏

सगुण छंद

चलो आज ऐसा करें कुछ धमाल।

लिखें लेखनी से 'ललित' कुछ कमाल।

'सगुण' छंद में हो मधुर कृष्ण रास।

मधुर प्रेम हो काम आवे न पास।

ललित
[16/07, 12:45 PM] ललित:
सगुण छंद

हुई है हवा आज दिल की मरीज।

न दिल आदमी का रहा क्यों पसीज?

बहारें हुई हैं नजरबंद आज।

मगर आदमी आ रहा है न बाज।

ललित
[16/07, 5:10 PM] ललित:
सगुण छंद
3

कन्हैया अलौकिक मुरलिया बजाय।

हँसे मोरपंखी मुकुट को सजाय।

मुरलिया अधर चूमती बार-बार।

हरे राधिका के जिया का करार।

ललित

[17/07, 10:00 PM] ललित: सगुण छंद
कली खूबसूरत भ्रमर को लुभाय।
कहीं दूर जाना भ्रमर को न भाय।
कली से करे प्यार वो बेशुमार।
हँसे बागबाँ  और हँसती बहार।

ललित
[18/07, 11:24 AM] ललित:
सगुण छंद
1

प्रभो जी सुनो भक्त की ये पुकार।

करो ज्ञान-वर्षा हरो सब विकार।

न जानूँ न कर मैं सकूँ यज्ञ-ध्यान।

जपूँ नाम निश-दिन नहीं वेद-ज्ञान।

ललित
[18/07, 12:49 PM] ललित:
सगुण छंद
2

कली एक नाजुक करे ये पुकार।

कि माँ तू मुझे कोख में यूँ न मार।

जगत देखना चाहती मैं बखूब।

कि नैया भँवर में नहीं जाय डूब।

ललित
[18/07, 6:05 PM] ललित:
सगुण छंद
3

न हिंदू न मुस्लिम न सिख हैं महान।

सभी जातियाँ हिंद में हैं समान।

मगर राज-नेता करें भेदभाव।

न चाहें कभी जातियों का जुड़ाव।

ललित
[18/07, 7:53 PM] ललित:
सगुण छंद

न स्वामी न नेता न मंत्री महान।
चमत्कार को पूजता है जहान।
सभी स्वार्थ में आज अंधे हजूर।
अजी मुफ्त में चाहते ये खजूर।

ललित
[18/07, 10:42 PM] ललित:
सगुण छंद

न बदली धरा ये न ही आसमान।
बदल क्यों गया आदमी का जहान?
चले है अकड़ कर फटे वस्त्र धार।
फटी जींस में आज खुश होय नार।

ललित
[19/07, 11:34 AM] ललित:
मनहरण घनाक्षरी

बेटी

मैया मैं दुलारी तेरी,सुनले अरज मेरी।
जग में आने दे मुझे,कभी न सताऊँगी।

कलेजे का टुकड़ा हूँ,तेरा ही तो मुखड़ा हूँ
घर में आने दे मुझे,सदा मुसकाऊँगी।

तू जो मुख मोड़ लेगी,मेरा दम तोड़ देगी।
समझ न पाऊँ तुझे,कैसे भूल पाऊँगी।

तू भी जब आई होगी,तेरी कोई माई होगी।
जैसे पाल लिया तुझे,मैं भी पल जाऊँगी।

'ललित'
[19/07, 12:18 PM] ललित:
मनहरण घनाक्षरी

चाहो जो हरि का साथ
जोड़कर दोनों हाथ।
प्रभु चरणों में आप
शीश तो झुकाइए।

नित्य कर स्नान-ध्यान
सूरज को अर्घ्य-दान।
तुलसी के बिरवा में
जल तो चढ़ाइए।

रामायण पाठ कर
भगवद गीता पढ़
नैन बन्द कर आप
ध्यान तो लगाइए।

एक उस भगवान
को ही अपना तो मान।
प्रभु दर्शनों की आप
प्यास तो जगाइए।

ललित
[20/07, 6:29 PM] ललित:
सगुण छंद
122 122 122 121
3

रखे पाल मन में सदा ही विकार।

नहीं जिंदगी में रखे सद्विचार।

किए पुण्य के काम क्या हैं जनाब?

यही चाहता है विधाता जवाब?

ललित
[20/07, 7:11 PM] ललित:
सगुण छंद
122 122 122 121
4

करे रात-दिन राधिका ये विचार।

कि उस श्याम के सँग किया क्यूँ विहार?

दिखाता रहा स्वप्न में रंग सात।

खुली नींद तो ले गया रंग साथ।

ललित
[20/07, 7:53 PM] ललित:

भरी संसदों आँख मारे कुमार।
कि उतरा नहीं है अभी भी खुमार।
गले मिल लिए ले हृदय में विकार।
नज़र है कहीं औ' कहीं है शिकार।

ललित

🙏🌹🙏

सगुण छंद
122 122 122 121

जहाँ साँस की डोर ही टूट जाय।
अधिक एक भी साँस नर ले न पाय।
दबे पाँव उस दिन चली आय मौत।
वही ज़िंदगी की बड़ी एक सौत।
ललित

सगुण छंद
122 122 122 121

रखे जो सदा पाल मन में विकार।
कहाँ से मिलेंगें वहाँ सद विचार।
किए क्या कभी पुण्य तुमने जनाब?
कभी माँग ले जो विधाता जवाब।

ललित

सगुण छंद
122 122 122 121

करे रात-दिन राधिका ये विचार।
किया श्याम के सँग कभी क्यों विहार?
दिखाता रहा स्वप्न में रँग अनेक।
खुली आँख तो ले गया एक-एक।

ललित
[21/07, 7:44 PM] ललित:
सगुण छंद
122 122 122 121

कली मखमली देख सावन-बहार।

पिया से मिलन को हुई बेकरार।

घटा बादलों की घिरी देख आज।

दिली धड़कनें खोलतीं प्रीत-राज।

ललित
[22/07, 2:07 PM] ललित:
सगुण छंद
122 122 122 121
1

न जाने खफा क्यों हुई है बहार?

कहाँ खो गया है दिलों का करार?

नहीं प्रेम दिखता दिलों में न प्रीत।

न माटी सुगंधित हवा में न गीत।

ललित
[23/07, 10:55 AM] ललित:
सगुण छंद
122 122 122 121
1

लिखोगे तभी छंद लेगा निखार।

नहीं तो चढ़ा ही रहेगा बुखार।

सभी शारदे से लगाओ गुहार।

तभी तो पटल पर दिखेगी बहार।

ललित
[23/07, 2:40 PM] ललित:
सगुण छंद
122 122 122 121

2

बनी खूब दुश्मन दिवानी बहार।

लिए जा रहे आज डोली कहार।

सजन रो रहा मल रहा आज हाथ।

चँदनिया चली जा रही  चाँद साथ।

ललित
[23/07, 7:40 PM] ललित:
सगुण छंद
122 122 122 121
3

नहीं पाठ पूजा नहीं ज्ञान-ध्यान।

नहीं सोच ऊँची न आचार-ज्ञान।

न ममता हृदय में न लज्जा-विचार।

नई पौध देखो बड़ी होशियार।

ललित
[24/07, 12:07 PM] ललित:
राधिका छंद

दर्शन को तेरे श्याम,भक्त हैं आए।

भव से तरने की आस,संग हैं लाए।

तू मधुर-रास की श्याम,झलक दिखला दे।

ये भव तरने की कला,हमें सिखला दे।

ललित
[24/07, 2:23 PM] ललित:
राधिका छंद

माँ के मन को संतोष,दिला कर देखो।

उसके मन से तुम तार,मिला कर देखो।

माँ की ममता की छाँव,जहाँ है होती।

फिर फूलों की बरसात,वहाँ है होती।

ललित

[25/07, 2:19 PM] ललित:
राधिका छंद

जब आँगन में दीवार,खड़ी हो जाए।

बरगद की शीतल छाँव,कहाँ मिल पाए?

कुछ दीवारें तो बोझ,उठाएँ छत का।

कुछ दीवारें उन्मान,घटाएँ छत का।

ललित
[25/07, 5:46 PM] ललित:
राधिका छंद
2

यूँ झुमके वाली नार,चले बल खाती।

जो देखे उसकी साँस,वहीं थम जाती।

वो कजरारे दो नैन,झील से गहरे।

जो भी देखे दिल थाम,वहीं पर ठहरे।

ललित
[25/07, 7:57 PM]

राधिका छंद

बिटिया है लक्ष्मी-रूप,फूल सी प्यारी।

अँगना ज्यों तुलसी छाँव,पावनी न्यारी।

सारे रिश्तों में प्यार,वही है बुनती।

है मात-तात की पीर,वही सब सुनती।

ललित
[25/07, 8:47 PM] ललित:
राधिका छंद
3--क्यों?

ढलती जीवन की शाम,दर्द क्यों लाई ?

सुख-सपनों को क्यों साँच,नहीं कर पाई?

क्यों छोड़ डूबती नाव,गई पतवारें?

क्यों पतवारें रँग-रूप,नया इक धारें?

ललित
[26/07, 11:05 AM] ललित:
तरो ताजा दो दोहे

अपनों की इस भीड़ में,बेगाना है कौन?
प्रेम भरी नजरें लिए , सब बैठे हैं मौन।

बेगानों से प्यार क्यों ,इंसाँ करता आज?
अपनों से धोखा मिले,बेगानों से ताज।

ललित
[26/07, 11:36 AM] ललित:
कुण्डलिनी ताजा

मन-चाहा सब हो यहाँ,सबकी ये ही चाह।
रब-चाहे में खुश रहो, सच्ची ये ही राह।

सच्ची ये ही राह,शीश चरणों में धर लो।
सुख-दुख जो दे राम,उसी से झोली भर लो।

ललित
[26/07, 12:00 PM] ललित:
कुण्डलिनी

करते नौटंकी सभी,नेता धोखे बाज।
भीड़-तंत्र से कर रहे,लोकतंत्र में राज।

लोकतंत्र में राज,करें ये नेता सारे।
विद्वानों की फौज,एक नेता से हारे।

ललित
[27/07, 8:50 AM] ललित:
जय गुरू देव
🙏🌸🙏

सारे रिश्तों से बड़ा,पावन रिश्ता एक।
गुरू शिष्य के बीच जो,बाँधे बंधन नेक।

बाँधे बंधन नेक,बड़ा ही निर्मल न्यारा।
गुरू-कृपा से शिष्य,करे जग में उजियारा।
ललित
[27/07, 11:51 AM] ललित: पीयूष वर्ष छंद
गुरू वन्दन

शिक्षकों से ज्ञान जो हमको मिला।
जिन्दगी है ये उसी का तो सिला।

तार देते हैं गुरू मझधार से।
ताड़ देते हैं बड़े ही प्यार से।

है गुरू औ' शिष्य का रिश्ता सरल।
घुल नहीं सकता कभी इसमें गरल।

हर गुरू को आज मैं करता नमन।
जब गुरू आशीष दें महके चमन।

'ललित'
[27/07, 11:54 AM] ललित:
आल्हा छंद रचना

गुरू मिले सौभाग्य हमारा,गुरू कृपा से हो कल्याण।

गुरु मूरत की किरपा से ही,एकलव्य सीखा संधान।

अंधकार से ले जाते हैं,वो नित-नव प्रकाश की ओर।

गुरू-शिष्य का पावन-रिश्ता,कभी न हो सकता
कमजोर।

'ललित'
[27/07, 5:36 PM] ललित:
मुक्तक

गुरु के मुख से मां शारद ही,ज्ञानसुधा बरसाती है।

उनकी आंखों से माँ ही तो, प्रेमामृत छलकाती है।

मां शारद की किरपा से ही,'राज' गुरू मिल पाए हैं।

गुरू-कृपा को याद करूं तो, 
आँखें भर-भर आती हैं।

ललित
[28/07, 5:36 PM] ललित:
राधिका छंद
श्रृंगार प्रयास

चंचल हैं उसके नैन,नशीले प्याले।

जो देख हुए बेचैन,कई दिल वाले।

केशों में लाल गुलाब,लवों पर लाली।

हँस कर देखे इक बार,मने दीवाली।

ललित
[28/07, 10:10 PM] ललित:
राधिका छंद

पावन पुष्पों की प्रीत,भ्रमर से ऐसी।
चंदा से करती प्रीत,चाँदनी जैसी।

गाता है निशि-दिन गीत,प्यार में पगला।
करता न्यौछावर जान,फूल पे अगला।

ललित
[29/07, 9:35 AM] ललित:
राधिका छंद

है कान्हा तेरा चोर,बड़ा नटखटिया।

माखन की मटकी फोड़,हँसे नटवरिया।

ओ मैया यशुदा देख ,रोक ले उसको।

वो करे बहुत उत्पात ,टोक ले उसको।

ललित
[29/07, 7:45 PM] ललित:
राधिका छंद

जब वृद्ध पिता की आस,टूटती दिखती।

तब आँसू की हर बूँद,कहानी लिखती।

क्यों स्वप्न गए सब टूट,सोचती आँखें?

क्यों अपनों ने ही आज,नोंच दी पाँखें?

ललित
.
[29/07, 9:03 PM] ललित:
राधिका छंद

जो मिले गुरू से ज्ञान,वही है सच्चा।

भूले जो छंद विधान,वही है कच्चा।

ये काव्य सृजन परिवार,अनोखी शाला।

रघुवंशी संग विवेक,जिता ही डाला।

ललित
[30/07, 1:36 PM] ललित:
मदिरा सवैया छंद

वानर,बालक,गोप सखा सब, संग लला बतराय रहा।

खोजत है हर रोज नया घर, गोपिन को चकराय रहा।

फोड़ दिया घट मोहन ने झट, माखन खा इतराय रहा।

बाल सखा सब माँगत माखन, माधव है बिखराय रहा।
'ललित'

No comments:

Post a Comment

छद श्री सम्मान