मनोरम छंद
जय श्री राधेकृष्णा...!
~~~~💝~~~~💝~~~~💝~~~
बाँसुरी सौतन सरीखी,फिर अधर पर आज दीखी।
राधिका ने रार ठानी,श्याम की लीला न जानी।
वेणु वो क्यों कर बजाता,नैन क्यों नटखट नचाता ?
जान ये राधा न पाए,फेरकर मुख बैठ जाए।
पुष्प ले फिर श्याम आता,केश राधा के सजाता।
मुस्कुरा बहियाँ मरोड़े,हाथ राधा का न छोड़े।
राधिका कुछ सकपकाई,श्याम सम्मुख मुस्कुराई।
नैन कान्हा से मिलाए,बाँसुरी खुद ही बजाए।
~~~~💝~~~~💝~~~~💝~~~~
ललित किशोर 'ललित'
मनोरम छंद
प्रकृति
चाँदनी ऐसी दिवानी।
पूर्णमासी की जवानी।
चाँद भी है शीत सुंदर।
प्रीत का प्यासा समंदर।
चाँदनी जो हो गई गुम।
होगया वो चाँद गुमसुम।
हाय धोखा दे गई क्यों?
चैन दिल का ले गई क्यों?
ललित
[02/09, 1:03 PM] ललित:
मनोरम छंद
आ गया व्रजधाम में वो।
गोपियों के ग्राम में वो।
बाँसुरीधर ग्वाल छुटका।
नंद का गोपाल छुटका।
माँ यशोदा का दुलारा।
गोपियों का श्याम कारा।
राधिका का बावरा वो।
गोपियों का साँवरा वो।
गोप-ग्वालों का कन्हैया।
रास का नटखट नचैया।
बाँसुरी जब भी बजाए।
प्रीत के ही सुर सजाए।
चोर माखन का निराला।
बाँट देता हर निवाला।
मोर पंखी मुकुट धारी।
प्रेम का पक्का पुजारी।
क्रमशः
ललित
[02/09, 5:03 PM] ललित: 2
मनोरम छंद
मुस्कुराहट का खजाना।
गम उदासी को न जाना।
हर दुखी की पीर हरता।
नाव सब की पार करता।
ललित
[03/09, 8:18 AM] ललित:
मनोरम छंद
जन्म दिन शुभकामना है
साँवरे मनमोहना हे!
माँ यशोदा को बधाई
नंद बाबा दें दुहाई।
धन्य राधा धन्य व्रज है।
धन्य गोकुलधाम-रज है।
धन्य हैं सब गोप-ग्वाले।
धन्य माखन के निवाले।
धन्य भारत की धरा है।
धन्य यमुना को करा है।
धन्य वंशी गुंज माला।
मोरपंखी ताज वाला।
रास अब दिन-रात करना।
आत्म-रस बरसात करना।
हर असुर का नाश हो अब।
नष्ट दुख का पाश हो अब।
ललित
[03/09, 3:36 PM] ललित:
छलिया घनश्याम
निश्चल छंद
राधा जी की रूप माधुरी,ललित ललाम।
चकित नैन कनखी से निरखे,मनहर श्याम।
अँखियों ही अँखियों से पीता, माखन चोर।
राधा के नैनों की मदिरा,वो नित भोर।
ऐसा जादू करता छलिया,वो घनश्याम।
खिंची चली आती है राधा,सुबहो शाम।
गोप-गोपियाँ हँसी उड़ायें,दे दे ताल।
वो नटखट नैना मटकाए,चूमे गाल।
कैसे कैसे नाच नचाता,नटवर श्याम।
आत्मानंदी रास रचाता,वो निष्काम।
मधुर बाँसुरी से छेड़े कुछ,ऐसी तान।
आलौकिक मद से भर देता,सबके कान।
जादू की मुरली ले आया,माखन चोर।
बजा मधुर वंशी खींचे वोे,मन की डोर।
व्रज का छोरा बरसाने की,छोरी साथ।
जोरा-जोरी करे छुड़ाए,गोरी हाथ।
ललित
[03/09, 5:54 PM] ललित:
मेरी एक रचना
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
आज घड़ियां नन्द घर आनंद की हैं छा रही ,
बावरी बनकर यशोदा आज है हरखा रही ।
कृष्ण आने की ख़ुशी दिल में उभर कर आ गई ,
गाँव गोकुल की सभी गलियाँ दिए सजवा रही ।
माँ यशोदा पारणा में लाल को झूला रही ,
गीत , हालरडा बहुत अरमान से है गा रही ।
[03/09, 8:03 PM] ललित:
मनोरम छंद
श्याम मथुरा चल दिया क्यों?
राधिका से छल किया क्यों?
साथ छोड़ा बाँसुरी का।
रुख किया मथुरा पुरी का।
हो गया क्यों श्याम ऐसा?
रास के बिन चैन कैसा?
गोपियों से दूर जाकर।
क्या मिला व्रज को भुलाकर?
ललित
[04/09, 10:15 AM] ललित:
मनोरम छंद
पायलों की छम-छमा-छम।
बाँसुरी की मस्त सरगम।
बादलों की गड़-गड़ाहट।
जन्म की हर द्वार आहट।
काँपते सारे असुर हैं।
जन्मते कान्हा चतुर हैं।
ढोल-बजते हर गली में।
ख्वाब सजते हर कली में।
माँ यशोदा नंद बाबा।
गोपियों की कांंति आभा।
चाँद तारों सी बढ़ी है।
आ गयी प्यारी घड़ी है।
क्रमशः
ललित
[04/09, 2:21 PM] ललित: मनोरम छंद
2
झूमते हैं गोप-ग्वाले।
आगए मोहन निराले।
भोग माखन का लगेगा।
रास में अब व्रज जगेगा।
दूर होंगें कष्ट सारे।
मित्र सबके श्याम प्यारे।
पीर सब की ही हरेंगें।
पार हर नैया करेंगें।
ललित
[05/09, 5:21 PM] ललित: मनोरम छंद
आदरणीय राकेश जी को सादर समर्पित रचना
ज्ञान का दीपक जलाकर।
शिष्य का हर-पल भलाकर।
'राज' गुरुवर मुस्कुराते।
शिष्य को दर्पण दिखाते।
छंद-लय का ज्ञान देते।
मूल्य विद्या का न लेते।
'राज' से शिक्षक जहाँ हों।
क्यों न शारद माँ वहाँ हों?
कर रहे साहित्य सेवा।
चाहिए उनको न मेवा।
'राज' अब डॉक्टर बने हैं।
मूँछ अरु भौंहें तने हैं।
है 'ललित' का कोटि वंदन।
ये गुरू हैं या कि चंदन?
फैलती सौरभ दिशा-दस।
शीश चरणों में धरूँ बस।
ललित
[06/09, 2:15 PM] ललित: मनोरम छंद
रंग गिरगिट सा बदलते।
छातियों पर मूँग दलते।
आपकी दुर्भावनाएँ।
वोट की ये कामनाएँ।
अब सहन होती नहीं हैं।
काँच वो मोती नहीं हैं।
मोतियों का मूल्य जानो।
काँच को मोती न मानो।
ललित
[06/09, 6:13 PM] ललित:
मनोरम छंद
आदमी से आदमी को।
बाँट डाला इस जमीं को।
दुष्टता की लाँघ सीमा।
मुस्कुराते आप धीमा।
क्यों नहीं हो सोच पाते?
जब नए कानून लाते।
क्या गलत है क्या सही है?
गंग उल्टी क्यों बही है?
ललित
[07/09, 8:30 AM] ललित:
मुक्तक
फूल एक दिन मुख मोड़ेंगें,माली ने ये था माना ।
फूलों की फितरत से माली,नहीं रहा था अंजाना।
अपना फर्ज मान कर उसने,सींचा था फुलवारी को।
फूलों की दुनिया से नाता,तोड़ चला वो दीवाना।
ललित
[07/09, 10:35 AM] ललित: घोड़ों के पैरों को बाँधा,दिए गधों के पंख लगा।
माटी के सब पुतले हैं क्यों,एक पराया एक सगा ?
वोटों के चक्कर में कैसी,दगा आप हो कर बैठे ?
बहुत देर से जागा लेकिन,अब है सारा देश जगा।
ललित
[07/09, 6:47 PM] ललित:
लावणी मुक्तक
कान्हा के सिर मोरपंख जब,धीरे-धीरे हिलता है।
राधा के कोमल दिल में तब,सुमन प्यार का खिलता है।
पुण्य किए क्या मोरपंख ने,जो उसको सिर धार लिया?
सोचे राधा मोरपंख ये,इतराता क्यूँ मिलता है?
ललित
[07/09, 7:59 PM] ललित:
लावणी मुक्तक
मोरपंख कान्हा के सिर जब,धीरे-धीरे हिलता है।
राधा के कोमल दिल में तब,सुमन प्यार का खिलता है।
पुण्य किए क्या मोरपंख ने,जो उसको सिर धार लिया?
सोचे राधा मोरपंख ये,इतराता क्यूँ मिलता है?
ललित
[08/09, 7:11 PM] ललित:
मनोरम छंद
जो निराली नार है ये।
जिंदगी का सार है ये।
जन्म नर को नार देती।
और उसको प्यार देती।
है खुशी का ये खजाना।
हारना इसने न जाना।
प्यार का उपहार देती।
दो कुलों को तार देती।
ललित
[09/09, 11:57 AM] ललित:
मुक्तक क्रमाँक -1
16:12
क्योंं रे कान्हा यमुनातट पर,काहे धूम मचाई?
गोप-गोपियों के सँग कमसिन,राधा खूब नचाई।
सारी रात रास करने से,मिला तुझे क्या कान्हा?
मुरली की सब धुनें बजा दी,या दो-चार बचाई?
ललित
[09/09, 1:14 PM] ललित:
मुक्तक क्रमाँक -2
16:12
जितना रगड़ो उतना जैसे,स्वर्ण चमकता जाता।
रूप सवर्णों का भी वैसे,और दमकता जाता।
इनको और दबाना अब है,मुश्किल ओ मोदी जी।
इनकी आँखों में गुस्सा नित,और धमकता जाता।
ललित
[09/09, 7:56 PM] ललित:
मुक्तक -3
16:12
छोटी सी ये आद्या रानी,कितनी प्यारी- प्यारी?
है दादू की राज-दुलारी,दुनिया भर से न्यारी।
घर भर में फुदकी फिरती है,इक पल चैन न लेती।
मुस्कानें हैं ऐसी जैसे,हो फूलों की क्यारी।
ललित
मेरी पोती को समर्पित
[10/09, 6:22 PM] ललित:
आल्हा छंद
1
गोरी राधा श्यामल कान्हा,
रंग-रँगीला है व्रजधाम।
व्रज के कण-कण में है राधा,
और बसे हर कण में श्याम।
कान्हा के उर में बसती है,
राधा बरसाने की शान।
राधा का जो नाम जपेगा,
श्याम रखेंगें उसकी आन।
ललित
[10/09, 9:27 PM] ललित:
आल्हा छंद
2
जला दिया हर उस टायर को,
जिससे महँगा था पेट्रोल।
तोड़े शीशे उन कारों के,
जिनका महँगाई में रोल।
बीच सड़क पर पीटा उनको,
जिनकी थी कुछ सस्ती जान।
सस्ताई अब हो जाएगी,सोच रहा है हिंदुस्तान।
ललित
[11/09, 2:44 PM] ललित:
आल्हा छंद
1
बदल गई सब परिभाषाएँ,
बदले सब आचार-विचार।
निर्विकार वो कहलाते हैं,
जिनके मन में भरे विकार।
फटे वस्त्र से बढ़ती शोभा,
धनवानों की वैसे आज।
साजों का पारंगत जैसे,
बजा रहा हो बिगड़े साज।
ललित
[11/09, 6:15 PM] ललित:
आज के समाचार पर
आल्हा छंद
2
घूँघट खुलते ही कलियों की,
छिन जाती हो जब मुस्कान।
कैसे मानें आजादी की,
साँस ले रहा हिंदुस्तान?
नारों और चुनावों में ही,
खोए हों जो पक्ष-विपक्ष।
नारी की रक्षा करने में,
क्यों कर होंगें वो सब दक्ष?
ललित
[13/09, 7:50 AM] ललित:
कुण्डलिया छंद
गजानन
राजा महा गजानना,आये तेरे द्वार।
हाथ जोड़ विनती करे,कायसृजन परिवार।
काव्यसृजन परिवार,विनायक आस लगाये।
कर दो ये उपकार,कभी भी विघ्न न आये।
'ललित' सहित कविराज, रचें नित रचना ताजा।
प्रथम पूज्य हो आप,गजानना महा राजा।
ललित
2
[14/09, 10:27 AM] ललित:
कुछ दोहे
हिंदी में ही बोलिए,अंग्रेजी को भूल।
हिंदी की सुरताल से,झड़ें लबों से फूल।।
हिंदी में जो शान है,उसको तू पहचान।
इतना निश्चय जान ले,हिंदी तेरी जान।।
हिंदी में जो लिख सके,वो है बड़ा अमीर।
हिंदी को जो पढ़ सके,खुल जाए तकदीर।।
राधे-राधे बोलता,हिंदी में जो आज।
उसके पीछे डोलता,कान्हा करता नाज।।
हिंदी में जो मान है,हिंदी में जो प्यार।
दूजी भाषा में नहीं,देखा सब संसार।।
'ललित'
[14/09, 3:01 PM] ललित:
कुण्डलिनी छंद
हिंदी
हिंदी में ही बोलिए,अपने मन की बात।
अपनों से होगी तभी,अपनेपन की बात।
अपनेपन की बात,बनाए सबको अपना।
वरना तो संसार,सदा लगता है सपना।
ललित
[14/09, 4:35 PM] ललित:
आल्हा छंद
मधुर-मधुर कविताएँ लिख दो,
मधुर-मधुर छंदों के साथ।
झूम रहे हैं साजन-सजनी,
लिए हुए हाथों में हाथ।
हिंदी भाषा में छंदों की,
पाओगे नित नई बहार।
हिंदी में कुछ ऐसा लिख दो,
झूम उठें पढ़कर नर-नार।
ललित
[14/09, 6:43 PM] ललित:
आल्हा छंद
भारत की जो प्यारी भाषा,
करती है हर दिल पर राज।
माँ शारद के मुख से निकली,
भाषाओं की वो सरताज।
रंग-रँगीली छैल-छबीली,
रहती सबके दिल के पास।
शब्द-शब्द महके है जिसका,
हिंदी है वो भाषा खास।
ललित
[15/09, 9:20 PM] ललित:
आल्हा छंद
हिंद देश की जनता अब तो,
गहरी नींदों से तू जाग।
जला रहे हैं कुछ अपने ही,
तेरे सपनों का ये बाग।
लोकतंत्र का गला घोंटकर,
वोटतंत्र में डूबा राज।
नहीं अगर अब रोक लगाई ,
बढ़ती जाएगी ये खाज।
ललित
[[18/11, 3:26 PM] ललित:
मरहटा छंद
1
ओ कान्हा कारे,मत तरसा रे,
दर्शन दे इक बार।
गोवर्धन-धारी,कृष्ण-मुरारी,
मान जरा मनुहार।
ओ रास रचैया,धेनु चरैया,
आ जा नंदकुमार।
वृषभानु-दुलारी,राधा प्यारी,
भूली सब संसार।
ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मरहटा छंद
3
नाचो ओ राधा,क्या है बाधा,
सुनो मुरलिया तान।
मनमोहन ग्वाला,मुरली वाला, वारे तुझ पर जान।
करताल बजाएँ,धूम मचाएँ,
ग्वाले कर गुणगान।
ये मुरली प्यारी,सौतन न्यारी,
मधुरस की है खान।
ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मरहटा छंद
2
जग से है न्यारा,सबसे प्यारा,
कान्हा नंदकुमार।
वृषभानु-दुलारी,राधा प्यारी,
करती जिससे प्यार।
नैना मटकावे,मधुर बजावे,
वंशी कृष्ण-मुरार।
यमुना के तीरे,धीरे-धीरे,
झूमें सब नर-नार।
ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मरहटा छंद
नाचो ओ राधा,क्या है बाधा,
सुनो मुरलिया तान।
मनमोहन ग्वाला,मुरली वाला, वारे तुझ पर जान।
करताल बजाएँ,धूम मचाएँ,
ग्वाल करें गुणगान।
ये मुरली प्यारी,सौतन न्यारी,
मधुरस की है खान।
ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित: मरहटा छंद
विरह
ओ बदरा कारे,सुनता जारे,आज हृदय की पीर।
परदेश गए रे,साजन मेरे,
रखा न जाए धीर।
अब मिले न चैना,कटे न रैना,
विरह रहा दिल चीर।
कहना रसिया से,मन-बसिया से,
नैन बहाएँ नीर।
ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित: आज उज्जैन में महाकाल के दर्शन का लाभ मिला और यह छंद बना.....
🙏🌷👏
मरहटा छंद
जय महाकाल
शिवशंकर भोले,बम-बम बोले,जीवन के आधार।
उज्जयनी नगरेे,ज्योतिर्लिँग रे,
कर दे बेड़ा पार।
गल सर्प भयंकर,तू अभयंकर,
गले मुण्ड की माल।
भोले अविनाशी,हे कैलाशी, महाकाल बन ढ़ाल।
ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मरहटा छंद
जय महाकाल
इक लोटा जल मैं,कनकी फल मैं,
नित्य चढ़ाऊँ नाथ।
फल-फूल चढ़ाऊँ,बेल चढ़ाऊँ,
धरूँ चरण में माथ।
करुणाकर भोले,नैया डोले,
बीच भँवर दे साथ।
शिव पार करा ये,नाव जरा ये,
थाम भक्त का हाथ।
ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित:
रस बरसा दो~~~~💝~~~~~~
वृषभानु-दुलारी, राधा प्यारी,
कर आई श्रृंगार।
तुम बाँसुरिया से,धुन बढ़िया से,
बरसा दो ना प्यार।
मुरली जब बाजे, राधा नाचे,
हिलें पुष्प गल-हार।
नैना मटका कर,रस बरसा कर,
हँस दो कृष्ण-मुरार।
ललित किशोर 'ललित'~~~~💝~~
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मरहटा छंद
फूलों की दुनिया,देखे मुनिया,
लिए अधर मुस्कान।
दुष्टों से बचना,बचकर चलना,
नहीं रहा आसान।
काँटों से लड़ना,आगे बढ़ना,
फूलों से ले जान।
फिर बढ़ते जाना,चढ़ते जाना,
नित्य नए सोपान।
ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मुक्तक कोशिश
गोरी
दीवाना कर देती हम को,पायल की छम-छम।
दिल की धड़कन बढ़ जाती है,साँस चले धम-धम।
घूँघट लम्बा ताने गोरी,आए जब पनघट।
एक झलक पाने को उसकी,निकला जाए दम।
ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मरहटा छंद
विषय से इतर
ये खाँसी वाला,जुकाम ढाला,आया तेज बुखार।
जब नब्ज टटोली,डाक्टर बोली,मौसम की है मार।
अब और न अकड़ो,बिस्तर पकड़ो,गोली लेलो चार।
अब गोली खाकर,पानी पीकर,सोया हूँ मन मार।
ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मरहटा छंद
माँ
मृदु यादें तेरी,ओ माँ मेरी,रहतीं दिल के पास।
तेरी ममता का,पावनता का,अब तक है अहसास।
वो नेह फुहारें, वो मनुहारें,थी माँ कितनी खास।
जो राह दिखाईं ,तूने माई,सब आती हैं रास।
ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मरहटा छंद क्रमांक 1
श्रृंगार रस
बारिश को लाई ,बदरी आई,कर सोलह श्रृंगार।
बूँदें छम-छम-छम,करती सरगम,बरसें सजनी द्वार।
भीगा जब तन-मन,चंचल चितवन,ठण्डी चली बयार।
साजन बौराया,नियरे आया,लिए अधर में प्यार।
ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मरहटा छंद क्रमांक 2
श्रृंगार रस
साजन जब आया,मन मुस्काया,कहे सजनिया झूम।
ओ साजन प्यारे,मुझे दिखा रे,रंगीं दुनिया घूम।
कैसी है ऊटी,और अनूठी ,गोवा की वो धूम।
रीज़ोर्ट जहाँ हो,प्यार वहाँ हो,लूँ मैं तुझको चूम।
ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मरहटा छंद क्रमांक 3
श्रृंगार रस
राधा प्यारी का,सखि न्यारी का,कृष्ण करें श्रृंगार।
वो नंदन-वन से, चुन कर मन से,लाए पुष्प हजार।
हाथों में गजरा,नैना कजरा,वेणी जूही दार।
सपनों सा सुंदर,प्रीत समंदर,पहनाया गलहार।
ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मरहटा छंद
प्रकृति रस में श्रृंगार घुस गया
मैं कुछ न कर सका
🙏
ओ सुंदर सजनी,महके रजनी,बात दिलों की मान।
चमके है चंदा,रजनीगंधा,
खुशबू दे वरदान।
ये उपवन सुंदर,शीतल सरवर,
नौका आलीशान।
मत झपका अँखियाँ,
दिल की बतियाँ,सुन ले मेरी जान।
ललित🙂
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मुक्तक
इस जीवन की धूप-छाँव से,हमने इतना जाना है।
जीवन में सब बाधाओं से,पार अकेले पाना है।
साथ नहीं देती है जग में,अपनी सुंदर काया भी।
हाय बड़ी जालिम ये दुनिया,औ' बेदर्द जमाना है । ****ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मरहटा छंद
तू मात-पिता की,सज्जनता की,बात सदा ही मान।
पथ जगमग होगा,रहे निरोगा,चढे नए सोपान।
निकले जो मन से,आशिष बरसे,नित होगा उत्थान।
ये जीवन खेला,दो दिन मेला,बन जाए वरदान।
ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित:
मरहटा छंद
चल हँसते गाते,साथ निभाते,जीवन के दिन चार।
तू चलता जा रे,सोच न प्यारे,चिंता है बेकार।
ये सफर सुहाना,भूल न जाना,अपनों को तू यार।
दिल खोल हँसाना,सदा लुटाना,जीवन में तू प्यार।
ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित: रचना क्रमांक -1
मनहरण घनाक्षरी
बीत रहे पल-छिन,रात-दिन नोट गिन।
जिंदगी की डोर तेरी,छोटी होती जा रही।।
साँसों का खजाना मिला,पर तू ये भूल चला।
राम-नाम बिना हर,साँस रोती जा रही।।
कर ले जतन कुछ,हरि का भजन कुछ।
गीत गाने में ही तेरी,साँस खोती जा रही।।
नर जो भजन करे,सात-सात कुल तरें।
जनमों के पाप हर,साँस धोती जा रही।।
ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित: रचना क्रमांक -2
मनहरण घनाक्षरी
गुप-चुप कर वार,वक्त करे ऐसी मार।
लखपति आदमी को,खाकपति करता।
वक्त करे ऐसी पैठ,कल तक था जो सेठ।
दूसरों के घर में है,पानी वही भरता।
वक्त से गया जो हार,शिवजी से करे प्यार।
भोले जी के चरणों में,शीश वही धरता।
एक राम जी का नाम,जपता जो आठों याम।
शिव-भोला उसके है,ताप सारे हरता।
ललित
[18/11, 3:26 PM] ललित: रचना क्रमांक -3
मनहरण घनाक्षरी
अँखियाँ तेरी कटार,गर्दन सुराहीदार।
सेब जैसे लाल गाल,गोरी तू कमाल है।
चले तू जो इठलाती,कमर ये बल खाती।
शहर की सड़कों पे,मचाती धमाल है।
हरदम साथ रहे,छूता तेरे हाथ रहे।
किसमत वाला गोरी,तेरा वो रुमाल है।
काश मैं रुमाल होता,रंग मेरा लाल होता।
पर मेरे पास गोरी,रंग है न माल है।
ललित
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