--- --दोहा छंद
1
राधा गोविंद 21.2.17
विषय: माँ
बचपन में था पूछता,माँ से बहुत सवाल।
अब वो माँ से बोलता,काहे करे बवाल।।
दान किये जप भी किये,तीरथ किये हजार।
माँ को जो बिसरा दिया,सब कुछ है बेकार।।
माँ के आँचल की जिसे,मिली हुई है छाँव।
हरदम सीधे बैठते,उसके सारे दाँव।।
माँ की याद सुवास सी,मन निर्मल हो जाय।
जैसे तुलसी आँगने,हरि की याद दिलाय।।
हरि का सुमिरन जो करे,माँ चरणों में बैठ।
हरि उसको आशीष दें,माँ के उर में पैठ।।
माँ साँसों में बस रही,माँ धड़कन,माँ प्राण।
माँ से उऋण न हो सके,सुत देकर भी जान।
'ललित'
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2
महाभारत के मूल कारण पर मेरी प्रस्तुति
दुर्योधन जब गिर गया,
जल को धरती जान।
पांचाली तब हँस पडी,
उस को मूरख मान।
अंधे के अंधा हुआ,
बोली बिना विचार।
महानाश करके रही,
इक छोटी सी रार।
हँसो किसी पर ना कभी,
कडवी बात सुनाय।
ना जाने कब कौनसी,
बात किसे चुभ जाय।
परिष्कृत दोहा:
धर्मराज खेलें जुआँ,
लगा द्रोपदी दाँव।
वो दरख्त भी चुप रहे,
जो देते थे छाँव।
ललित
3
(गौमाता को समर्पित कुछ दोहे )
हम यों अपने देश में,
हुए हैं पराधीन।
गौ हत्याएं करा रहे,
वही हैं पदासीन।
मक्खन-मट्ठा-दूध-दही,
सब कुछ लिया छिनाय।
बालक अब इस देश का,
दूध कहाँ ते पाय।
नकली हर इक चीज है,
नकली रुपया वोट।
मानव का वध कर रहा,
अब तो है रोबोट।
प्रगति करने को करते,
प्राकृत से खिलवाड़।
जीना दूभर हो रहा,
खोले मौत किवाड़।
'ललित'
दोहे
कौन सजन कैसा पिया,औ' कैसा विश्वास?
तीन तलाकों से बँधी,हो जब हर इक श्वास।
औरत की हर श्वास पे,किसका है अधिकार?
कौन करेगा फैसला,नारी या भर्तार?
दोहे
कुछ खुशियाँ कुछ गम मिले,इस जीवन के साथ।
खुशियाँ धोखा दे गईं,गम ने थामा हाथ।
चाहा खुशियाँ भींचना,जब मुट्ठी के बीच।
मुट्ठी ढीली रह गई,दो अँगुली के बीच।
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