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काव्य सृजन
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18.01.16
दोहे
बचपन कहाँ चला गया,पथ में छुड़ाय हाथ।
पता झूठ का था नहीं,बस सच का था साथ।
अब ये ज्ञान हुआ हमें,जीवन फिसला जाय।
माटी की काया यहाँ,माटी में मिल जाय।।
ललित
दोहे
किससे करें शिकायतें,किससे करें गुहार।
कच्चे घट को फोड़ता,खुद ही आज कुम्हार।
मन की बात सुने नहीं,जग के सुनता ढोल।
ऐसे नर की आप ही,नैया जाती डोल।।
ललित
दोहे
मन ही मन में बोलता,रहता जो हरिनाम।
ऐसे जापक का भला,कौन बिगाड़े काम।।
राधे राधे जो रटे,निशि दिन आठों याम।
उसके पीछे चल पड़ें,मुरलीधर घनश्याम।
ललित
दोहे
नाम जपे जा प्रेम से,भृकुटी में धर ध्यान।
तब ही दीनदयाल के,भनक पड़ेगी कान।।
हर घट में है रम रहा, अविनाशी वो राम ।
घट घट में जो पूज लो,जीवन हो निष्काम।।
ललित
भोर भई अब जाग जा, ले कर हरि का नाम।
भूलेगा दिन भर जिसे,करते हजार काम।
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दोहे
शरद
शीत लहर औ' कोहरा,करते दोनों वार।
आजाओ अब साजना,ले बाहों का हार।
शीतल-शीतल भोर है,शीतल मन के छोर।
मन में प्रीत मचा रही,शीतल सा इक शोर।।
'ललित'
दोहे
प्रकृति
शीतल सुरभित चाँदनी,धरती को सहलाय।
ज्यों अधनींदी प्रेयसी,पिय से लिपटी जाय।
बूँद बूँद बरखा गिरे,माटी खुश हो जाय।
सौंधी खुशबू भीगते,मनवा को हर्षाय।।
'ललित'
दोहे
प्रकृति
कारे कारे बादरा,करें गगन में शोर।
हर्षित होकर नाचते,वन उपवन में मोर।
नाच सजन का मोरनी,देखे होय निहाल।
पिया मिलन की कामना,डोरे देती डाल।।
'ललित'
चिड़िया कहती उड़ चलो,दूर गगन की ओर।
बच्चों का दाना चुनो,फिर लौटो घर ओर।
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रवि को दे कर अर्घ्य तुम,कर लो रोज प्रणाम।
बल-बुथि-विद्या-यश मिलें,पूरण हों सब काम।
'ललित'
😀😀😀😀😀😀
आए खाली हाथ थे,जाना खाली हाथ।
फिर धन-दौलत-मान की,क्यों तुम भरते बाथ।।
'ललित'
29.02.16
दोहे
अजन्मी बेटी की व्यथा
मैया तेरी कोख का,मैं इक नन्हा बीज।
बनने दे पौधा मुझे,मत तू मुझ पर खीज।।
बेटा-बेटी हैं सदा,इक डाली के फूल।
बेटी दो कुल तारती,कभी न जाना भूल।।
दुनिया मैं भी देखना,चाहूँ मैया तात।
कैसे होते फूल हैं,कैसे होते पात।।
आँगन पावन हो वहाँ,सुता रखे जहँ पाँव।
सब का मन शीतल करे,ज्यों तुलसी की छाँव।।
'ललित'
दोहे
फेस बुक(मुख पुस्तक)
मुख पुस्तक कैसी बला,कोई समझ न पाय।
इक लाइक की चाह में,हाथ निराशा आय।।
लड़की ने कुछ लिख दिया,लाइक मिलते जायँ।
लायक कुछ लायक लिखें,लाइक एक न पायँ।।
खास दोस्त सब ही कहें,इक दूजे को यार।
नैनों में उनके मगर,नहीं दीखता प्यार।।
हम भी आखिर जुड़ गये,मुख-पुस्तक से खूब।
अब लाइक की चाह में,रोज रहे हैं डूब।।
'ललित'
हाय रे नोट
सब कुछ नश्वर है इस जग में, ज्ञानी जन ये कहते थे।
नोट मगर हैं अमर जहाँ में,सब ये सोचे रहते थे।
नोटों की थी सेज बनाई,नोटों से दीवाली थी।
हाय करें क्या उन नोटों का,जिनसे सेज सजाली थी?
ललित