कुण्डलिया छंद रचना(काव्यसृजन)


    👀👀काव्य सृजन👀👀
        कुण्डलिया छंद

कुण्डलिया

भागे सब चूहे फिरें,जंगल में चहुँ ओर।
बिल्ली पूछे प्यार से,क्यूँ करते हो शोर।

क्यूँ करते हो शोर,कान में पहने झुमके।
क्यूँ भागो चहुँ ओर,लगाते रहते ठुमके।
'ललित' सोचता हाय,यहाँ क्या होगा आगे।
बिल्ली मौसी देख,वहाँ से चूहे भागे।

'ललित'

कुण्डलिया

जंगल में बढने लगी,बेईमानी खोट।
बंदर जी देने चले,बाघराज को वोट।।

बाघराज को वोट,जानवर सारे देंगें।
है मन में विश्वास,पीर सब की हर लेंगें।।
कहे 'ललित'समझाय,वोट का जीतोे दंगल।
राजा हो जब बाघ,तभी महकेगा जंगल।।

'ललित'

कुण्डलिया

काले बादल झूमते,देखे जब चहुँ ओर।
लगे नाचने झूमके, सुंदर प्यारे मोर।
सुंदर प्यारे मोर,खूब फैलाएँ पाखें।
कान्हा जी चितचोर,पंख माथे पर राखें।
'ललित' कहे मदहोश,मोरनी पीछे चाले।
देख मोर का नाच,थमे हैं बादल काले।

'ललित'

कुण्डलिया

शादी तोते की हुई,जब मैना के साथ।
सूट-बूट में सब सजे,निकली जब बारात।।

निकली जब बारात,सभी नाचे इतराए।
बूफे में पकवान,सभी ने जमकर खाए।।
भूले सारे यार,नहीं वरमाला आई।
बिन माला के आज, नहीं हो सकती शादी।।

'ललित'

कुण्डलिया

माला मन में गुँथ रखो,दुख के मोती पोय।
खुद को दुख है भोगना,और न बाँटे कोय।।

और न बाँटे कोय,दुखी कोई नहिं होवे।
ढलता सूरज देख,कभी कोई नहिं रोवे।
कहे 'ललित' समझाय,दुखों की पी लो हाला।
सुख देकर दुख जायँ,दुखों में जपलो माला।।

4.3.16

कुण्डलिया छंद

मित्र

देते हैं सुख आँख को, सुंदर सुंदर चित्र।
जैसी जिनकी भावना,वैसे उनके मित्र।।

वैसे उनके मित्र,कभी जो साथ न छोड़ें।
आए कोई  विघ्न,वहीं सब मिलकर दौड़ें।
कहे 'ललित' समझाय,मित्र ऐसे रख लेते।
हरदम करें सहाय, नहीं दुख हमको देते।

'ललित'

कुण्डलिया छंद

मोर

काले काले पैर से,नाचें सुंदर मोर।
दूर गगन में छा रहे,काले बादल घोर।।

काले बादल घोर,जिया में आग लगाएँ।
नाचें छम छम मोर,मोरनी भी अकुलाएँ।।
'ललित' देख मुस्काय,मोर ऐसे मतवाले।
पंखों पे इतरायं,पैर हों चाहे काले।।

'ललित'

कुण्डलिया छंद

हाडौती राजस्थानी

बेटी जन्म

आजा म्हारी बींदणी,पकड़ हाथ में हाथ।
ई तबला की थाप पै,नाचाँ सारी रात।

नाचाँ सारी रात,बधावा जम के गावाँ।
बेटी जन्मी आज,कस्याँ ई ने बिसरावाँ।
आज 'ललित' रे काज,बणावाँ आपाँ खाजा।
बेटी छै सौगात,ईश की प्यारी आजा।।

'ललित'

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