जिन्दगी है धूप छाँव,
तू मेरी परछाई है।
हर घडी हैसाथ तेरा,
फिर कहाँ तन्हाई है।
वक्त की गर्दिश में हरदम,
साथ तू ही आई है।
देख मेरे गम को हमदम,
आँख तेरी भर आई है।
भोर की लाली भी लेती,
तुम से ही अरुणाई है।
साथ तेरे हर सुबह,
हर शाम इक शहनाई है।
जीवन की इस संध्या में जब,
वक्त हुआ हरजाई है।
साथ अपना बना रहे ये,
रब से टेर लगाई है।
'ललित'
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