मनोरम छंद
1
प्यार
दो दिलों में प्यार हो तो।
प्यार का इजहार हो तो।
चाँदनी भी मुस्कुराती।
चाँद से नजरें चुराती।
'ललित'
2
गीत
गीत गाना छोड़ना मत।
प्रीत से मुख मोड़ना मत।
गीत जो गाता रहेगा।
गम सदा जाता रहेगा।
जाग कर हासिल हुआ क्या?
जख्म ने दी है दुआ क्या?
घाव जल्दी भर न पाया।
हौसला कुछ कर न पाया।
'ललित'
3
कृष्ण दीवाने 9.1.17
बाँसुरी
श्याम तेरी बाँसुरी ये।
है बड़ी मीठी छुरी ये।
कान में रस घोलती है।
भेद सारे खोलती है।
राधिका वन-वन पुकारे।
क्यों बना था तू सखा रे?
प्रीत करके क्यों छला है?
बाँसुरी है या बला है?
'ललित'
मनोरम छंद
4
जिंदगी और बन्दगी
जिन्दगी से जो मिला है।
बन्दगी का वो सिला है।
जो मिला है बन्दगी से।
कम नहीं वो जिन्दगी से।
'ललित'
5
भैया
नाम दें क्या आज तुमको।
ये न सूझे बात हमको।
बोलती हो आप भैया।
डूबती है आज नैया।
'ललित'
6
तट
बैठ तट पर जो गए हैं।
हाथ खाली वो गए हैं।
डूबना सीखा न जिसने।
तैरना सीखा न उसने।
ललित
7
किनारे
एक नदिया दो किनारे।
बह गये अरमान सारे।
आस मिलने की अधूरी।
अन्त तक होगी न पूरी।
'ललित'
8
वियोगी राधा
प्यार जब तुमसे किया था।
वार खुद को ही दिया था।
कौन सी रख दी कमी थी?
आँख में क्या कम नमी थी?
आज नजरें मोड़ ली क्यों?
नेह डोरी तोड़ ली क्यों?
आज करते हो दुखी क्यों?
प्यार में ये बेरुखी क्यो?
'ललित'
9
वृद्धावस्था
आँसुओं से तर बतर था।
एक बेबस वृद्ध नर था।
देह जर्जर हो गई थी।
वासना भी सो गई थी।
प्यार की प्यासी निगाहें।
जो खुली रहना न चाहें।
हर तरफ पसरी उदासी।
दे खुशी क्यों कर जरा सी।
याद आती है जवानी।
जब नसों में थी रवानी।
पाल बच्चों को लिया था।
दो जहाँ का सुख दिया था।
बन गये लायक सभी वो।
सुख न दे पाए कभी वो।
व्यस्त सब बच्चे हुए हैं।
कान के कच्चे हुए हैं।
स्वप्न सब बिखरे सुनहरे।
होगए हैं पूत बहरे।
दर्द में डूबी निगाहें।
कण्ठ से निकलें कराहें।
प्यार जो उसने दिया था।
त्याग जो उसने किया था
काश बच्चे जान पाते।
दर्द को पहचान पाते।
नेह से नजरें मिलाकर।
दीप आशा का जलाकर।
घाव पर मरहम लगाते।
बोल मीठे बोल जाते।
हाय जीवन क्या बला है?
जिन्दगी की क्या कला है?
जान जीवन भर न पाया।
बालकों ने जो दिखाया।
देह में रमता रहा था।
नेह में जीवन बहा था।
स्वार्थमय जीवन जिया था।
याद कब रब को किया था।
आज रब है याद आता।
भूल इक पल वो न पाता।
या खुदा अब तो रहम कर।
दु:ख दारुण ये खतम कर।
ललित
10
सीता हरण
पार कर सीमा न जाना।
यह वचन माँ ने न माना।
दे रही थी भीख सीता।
खा गयी धोखा पुनीता।
साधु का था वेश उसका।
था दशानन नाम जिसका।
मात को हर ले गया वो।
घाव दिल को दे गया वो।
चीख गूँजी थी हवा में।
हाथ उठते थे दुवा में।
दु:ख दारुण वो मिला था।
आँसुओं का सिलसिला था।
खींच दी थी जो लखन ने।
लाज रक्षा की लगन ने।
रेख अब भी दीखती वो।
लाँघना मत चीखती वो।
पर हवा ऐसी चली है।
चंचला हर इक कली है।
आज रेखा कौन खींचे।
तात माता आँख मींचें
रावणों की क्या कमी है?
आज भी बोझिल जमीं है।
नोंचते नाजुक कली वो।
खूब नाजों में पली जो।
'ललित'
11
जिंदगी
जिन्दगी की शाम देखो।
राम में आराम देखो।
प्यार बिकता है जहाँ पर
कौन किसका है वहाँ पर।
प्यार का विश्वास देखो।
टूटती फिर आस देखो।
प्यार धोखा है जहाँ पर।
कौन अपना है वहाँ पर।
प्यार के ये भाव देखो।
दर्द देते घाव देखो।
दर्द में लिपटी खुशी है।
साँस में सिमटी खुशी है।
ताज की दीवार देखो।
प्यार का इजहार देखो।
ताज की वीरानियाँ ये।
दर्द की रजधानियाँ ये।
साथ छोड़े चाम देखो।
साथ देता राम देखो।
रूठती इक दिन जवानी।
उम्र ये रुकना न जानी।
आँसुओं की धार देखो।
प्रेमियों की हार देखो।
प्यार का दुश्मन जमाना।
प्यार का मतलब न जाना।
काव्य की रसधार देखो।
कवि हृदय के तार देखो।
शब्द लेती भावनाएं।
कुछ अधूरी कामनाएं।
जिंदगी का सार देखो।
प्यार का व्यापार देखो।
प्यार की प्यासी निगाहें।
तात माँ की सर्द आहें।
ये अनोखी रीत देखो।
आज बिकती प्रीत देखो।
कौन किसका मीत जग में।
है धनी की जीत जग में।।
ललित
12
नोट
चाँद कुछ गुमसुम हुआ है।
चाँदनी देती दुआ है।
नोट की भूलो तिजोरी।
मैं तुम्हारी हूँ चकोरी।
आसमाँ को हम छुएंगें।
नोट के बिन ही जिएंगें।
कम न होगी उम्र सारी।
प्यार की अपने खुमारी।
नोट काले अब मरेंगें।
श्वेत को पैदा करेंगें।
भ्रष्ट का मुँह आज काला।
भोर में निकला दिवाला।
'ललित'
13
पुराने नोट
आज तक जो था हमारा।
पाँच सौ का नोट प्यारा।
आज रुसवा हो गया है।
कागजों में खो गया है।
लोग सारे भागते हैं।
रातभर अब जागते हैं।
नोट की गिनती करें वो।
काँपकर विनती करें वो।
ये पुराने नोट ले लो।
नोट ताजा आज दे दो।
एक बारी माफ करना।
मत तिजोरी साफ करना।
नोट क्यूँ जोड़े वहाँ पर?
थे बड़े घोड़े जहाँ पर।
खर्च खुलकर कैश करते।
जिंदगी में ऐश करते।
अब जरा देखो नतीजा।
नोट में मिलता न पीजा।
मत रखो कुछ कैश बाकी।
खूब करलो ऐश बाकी।
भ्रष्ट नेता आज रोते।
रह गए सब बाज सोते।
काश मोदी जान पाते।
नोट हमको क्यों सताते?
ललित
14
राधा कृष्ण
हाथ जोड़ूँ श्याम सैयाँ।
थाम ले तू आज बैयाँ।
है घटा घनघोर छायी।
कामना मन में समायी।
देख सावन की बहारें।
और बरखा की फुहारें।
दिल बड़ा चंचल हुआ है।
प्रीत ने मन को छुआ है।
बाँसुरी ये सौत मेरी।
क्यों बनी है प्रीत तेरी?
आज इसको दे भगा तू।
अंग से मुझको लगा तू।
ललित
15
सावन
चाँद वो ओझल हुआ है।
बादलों से छल हुआ है।
बारिशों में दम नहीं है।
चाँदनी को गम नहीं है
है बरसता खूब सावन।
बादलों में खो रहा मन।
प्यार की प्यासी जवानी।
आज नाचे है दिवानी।
गम कहीं सब खो गए हैं।
होंठ चंचल हो गए हैं।
दो वदन इक जान होते।
देख बादल क्यों न रोते।
ललित
🙏😄🙏😄🙏😄
16
गोपियाँ
श्याम मोहन साँवरे तुम।
कर गये क्यों बावरे तुम।
राधिका वन वन पुकारे।
नैन रो रो कर न हारे।
गोपियों की पीर देखो।
नैन में है नीर देखो।
प्रीत के वादे तुम्हारे।
प्राण ले लेंगें हमारे।
बस गये हर रोम में तुम।
ढूँढते हैं व्योम में हम।
चाहते सुनना मुरलिया।
पाँव में बाँधे पयलिया।
'ललित'