पीयूष वर्ष छंद

पीयूष वर्ष छंद

1
जवानी

ए जवानी दो घड़ी तो रुक जरा।
काँपते बूढे कहें तू  झुक जरा।
गौर से सुन ले जरा उनकी सदा।
सीख उनसे जिन्दगी की हर अदा।

'ललित'
2
बागबाँ

बागबाँ भूला यहाँ खुद का पता।
आँख से आँसू हुए हैं लापता।
फूल डाली से हुए हैं सब जुदा।
आसमाँ से देखता है वो खुदा।

काँपती काया कहानी कह गयी।
सींचने में वो जवानी बह गयी।
हर खुशी सपने दिखा कर खो गई।
जिन्दगी सुनसान पथ पर सो गई।

बाग सूना और सूनी राह है।
हर घड़ी दिल से निकलती आह है।
बीज बोया था सदा ही प्यार का।
पेड़ क्यों पैदा हुआ फिर खार का।

'ललित'

3
जिंदगी

प्यार के दो पल चुराने के लिए।
दो घड़ी को मुस्कुराने के लिए।
दीप आशा के जलाए थे कभी।
गीत मैने गुनगुनाए थे कभी।

जिंदगी ने जो दिखाए थे कभी।
चूर वो सपने हुए हैं अब सभी।
प्यार की ठण्डी हवाएं खो गई।
जिंदगी की शाम ही अब हो गई।

दिल मगर कुछ भी समझ पाता नहीं।
छोर आशा का नजर आता नहीं।
वो जिन्हें हमने चुना था हमसफर।
छोड़ हमको चल पड़े अपनी डगर।

ललित

4
दिल

किस हसीं पर आपका दिल आ गया।
इस उमर में कौन दिल को भा गया।
कौन थी वो हूर जो दिल ले गयी।
आपको गम का समन्दर दे गयी।

ललित

5
कागजी फूल

कागज़ी फूलों जरा मेरी सुनो।
प्यार की खुशबू चमन से तुम चुनो।
फिर ज़रा सा मुस्कुरा दो प्यार से।
खिल उठेगा बाग इस उपहार से।

ललित

6
जिन्दगी

जिन्दगी से क्या मिला है सोचिए।
जिन्दगी से क्या गिला है सोचिए।
जिन्दगी इक घाव से कमतर नहीं।
जिंदगी इक चाव से कमतर नहीं।

ललित

7
प्यार

साथ झूले थे कभी जो प्यार में।
छोड़ बैठे आज वो मझधार में।
भूलने का है हमें कुछ गम नहीं।
प्यार में ऐसे मगर कुछ दम नहीं।

ललित

8
पाक

आसमानों को बता दो तुम जरा।
बादलों में हो न जाएँ गुम जरा।
दुश्मनों की वो तबाही देख लें।
दें हवाएं भी गवाही देख लें।

पाक तू ले बात ये मोटी समझ।
जूझना हमसे नहीं इतना सहज।
फड़कती हैं अब भुजाएं देश की।
खोल देंगी पोल तेरे वेश की।

'ललित'

9
रावण

रावणों से है भरा संसार ये।
काँच के मोती जड़ा है हार ये।
सींप मोती को नहीं अब पोषती।
साँप की है नेवले से दोसती।

मुफ्त में रावण हुआ बदनाम है।
आदमी के मन बसा बस काम है।
एक रावण को जला जिसने दिया।
राम को कब जन्म है उसने दिया

'ललित

10
आदमी

आदमी से आदमी की लूट में।
सत्य लिपटा फिर रहा है झूठ में।
झूठ की यों चाशनी सच पर चढ़ी।
सत्य सस्ता झूठ की कीमत बढ़ी।

'ललित'

मनोरम छंद

मनोरम छंद
वृद्धावस्था/बुजुर्गी

आँसुओं से तर बतर था,एक बेबस वृद्ध नर था।
देह जर्जर हो गई थी,वासना भी सो गई थी।

प्यार की प्यासी निगाहें,जो खुली रहना न चाहें।
हर तरफ पसरी उदासी,दे खुशी क्यों कर जरा सी।

याद आती है जवानी,जब नसों में थी रवानी।
पाल बच्चों को लिया था,दो जहाँ का सुख दिया था।

बन गये लायक सभी वो,सुख न दे पाए कभी वो।
व्यस्त सब बच्चे हुए हैं,कान के कच्चे हुए हैं।

स्वप्न सब बिखरे सुनहरे,होगए हैं पूत बहरे।
दर्द में डूबी निगाहें,कण्ठ से निकलें कराहें।

जिन्दगी की क्या कला है?ये बुजुर्गी क्या बला है?
जान जीवन भर न पाया,बालकों ने जो दिखाया।

देह में रमता रहा था,नेह में जीवन बहा था।
स्वार्थमय जीवन जिया था,याद कब रब को किया था।

आज रब है याद आता,भूल इक पल वो न पाता।
या खुदा अब तो रहम कर,दु:ख दारुण ये खतम कर।

प्यार जो उसने दिया था,त्याग जो उसने किया था
काश बच्चे जान पाते,दर्द को पहचान पाते।

नेह से नजरें मिलाकर,दीप आशा का जलाकर।
घाव पर मरहम लगाते,बोल मीठे बोल जाते।

ललित

मनोरम छंद

मनोरम छंद
प्रदूषण
बच्चों की नजर से

भोर उपजी है गगन  में।
शुद्ध तन में और मन में।
प्यार  की  गंगा  बहाती।
धूप  में  सरसों   नहाती।

क्या कहीं कुछ खो गया है?
आदमी  चुप  हो  गया   है।
खूब  करता  था चुहल जो।
आज  सूना  है  महल   वो।

वो   हवा  दूषित हुई है।
आदमी  ने   जो छुई है।
आदमी को ढो रही जो।
है  धरा  अब रो रही वो।

आसमाँ    से  आग बरसे।
वायु  को हर  साँस तरसे।
बालकों  का  नूर   गायब।
जग बना है घर अजायब।

पाठशालाएं   जहाँ हैं।
आज सन्नाटा  वहाँ हैं।
साँस लेने को   हवाएं।
बालकों को दे न पाएं।

आज हम पहुँचे जहाँ हैं।
आग के दरिया   वहाँ हैं।
बालकों की नम  निगाहें।
पूछना क्या कुछ न चाहें?

क्यों न सोचा था किसी ने?
छूट     जाएंगें      पसीने।
जब   हवा बिकने लगेगी।
आँख क्या तब ही खुलेगी?

ललित किशोर 'ललित'

मनोरम छंद

मनोरम छंद
1
प्यार

दो दिलों में प्यार हो तो।
प्यार का इजहार हो तो।
चाँदनी भी मुस्कुराती।
चाँद से नजरें चुराती।

'ललित'
2
गीत

गीत गाना छोड़ना मत।
प्रीत से मुख मोड़ना मत।
गीत जो गाता रहेगा।
गम सदा जाता रहेगा।

जाग कर हासिल हुआ क्या?
जख्म ने दी है दुआ क्या?
घाव जल्दी भर न पाया।
हौसला कुछ कर न पाया।

'ललित'
3

कृष्ण दीवाने 9.1.17
बाँसुरी

श्याम तेरी बाँसुरी ये।
है बड़ी मीठी छुरी ये।
कान में रस घोलती है।
भेद सारे खोलती है।

राधिका वन-वन पुकारे।
क्यों बना था तू सखा रे?
प्रीत करके क्यों छला है?
बाँसुरी है या बला है?

'ललित'

मनोरम छंद
4
जिंदगी और बन्दगी

जिन्दगी से जो मिला है।
बन्दगी का वो सिला है।
जो मिला है बन्दगी से।
कम नहीं वो जिन्दगी से।
'ललित'

5
भैया

नाम दें क्या आज तुमको।
ये न सूझे बात हमको।
बोलती हो आप भैया।
डूबती है आज नैया।

'ललित'
6
तट

बैठ तट पर जो गए हैं।
हाथ खाली वो गए हैं।
डूबना सीखा न जिसने।
तैरना सीखा न उसने।

ललित
7
किनारे

एक नदिया दो किनारे।
बह गये अरमान सारे।
आस मिलने की अधूरी।
अन्त तक होगी न पूरी।
'ललित'

8
वियोगी राधा

प्यार जब तुमसे  किया था।
वार खुद को ही दिया था।
कौन सी रख दी कमी थी?
आँख में क्या कम नमी थी?

आज नजरें मोड़ ली क्यों?
नेह डोरी तोड़ ली क्यों?
आज करते हो दुखी क्यों?
प्यार में ये बेरुखी क्यो?
'ललित'
9
वृद्धावस्था

आँसुओं से तर बतर था।
एक बेबस वृद्ध नर था।
देह जर्जर हो गई थी।
वासना भी सो गई थी।

प्यार की प्यासी निगाहें।
जो खुली रहना न चाहें।
हर तरफ पसरी उदासी।
दे खुशी क्यों कर जरा सी।

याद आती है जवानी।
जब नसों में थी रवानी।
पाल बच्चों को लिया था।
दो जहाँ का सुख दिया था।

बन गये लायक सभी वो।
सुख न दे पाए कभी वो।
व्यस्त सब बच्चे हुए हैं।
कान के कच्चे हुए हैं।

स्वप्न सब बिखरे सुनहरे।
होगए हैं पूत बहरे।
दर्द में डूबी निगाहें।
कण्ठ से निकलें कराहें।

प्यार जो उसने दिया था।
त्याग जो उसने किया था
काश बच्चे जान पाते।
दर्द को पहचान पाते।

नेह से नजरें मिलाकर।
दीप आशा का जलाकर।
घाव पर मरहम लगाते।
बोल मीठे बोल जाते।

हाय जीवन क्या बला है?
जिन्दगी की क्या कला है?
जान जीवन भर न पाया।
बालकों ने जो दिखाया।

देह में रमता रहा था।
नेह में जीवन बहा था।
स्वार्थमय जीवन जिया था।
याद कब रब को किया था।

आज रब है याद आता।
भूल इक पल वो न पाता।
या खुदा अब तो रहम कर।
दु:ख दारुण ये खतम कर।

ललित
10
सीता हरण

पार कर सीमा न जाना।
यह वचन माँ ने न माना।
दे रही थी भीख सीता।
खा गयी धोखा पुनीता।

साधु का था वेश उसका।
था दशानन नाम जिसका।
मात को हर ले गया वो।
घाव दिल को दे गया वो।

चीख गूँजी थी हवा में।
हाथ उठते थे दुवा में।
दु:ख दारुण वो मिला था।
आँसुओं का सिलसिला था।

खींच दी थी जो लखन ने।
लाज रक्षा की लगन ने।
रेख अब भी दीखती वो।
लाँघना मत चीखती वो।

पर हवा ऐसी चली है।
चंचला हर इक कली है।
आज रेखा कौन खींचे।
तात माता आँख मींचें

रावणों की क्या कमी है?
आज भी बोझिल जमीं है।
नोंचते नाजुक कली वो।
खूब नाजों में पली जो।

'ललि'

11
जिंदगी

जिन्दगी की शाम देखो।
राम में आराम देखो।
प्यार बिकता है जहाँ पर
कौन किसका है वहाँ पर।

प्यार का विश्वास देखो।
टूटती फिर आस देखो।
प्यार धोखा है जहाँ पर।
कौन अपना है वहाँ पर।

प्यार के ये भाव देखो।
दर्द देते घाव देखो।
दर्द में लिपटी खुशी है।
साँस में सिमटी खुशी है।

ताज की दीवार देखो।
प्यार का इजहार देखो।
ताज की वीरानियाँ ये।
दर्द की रजधानियाँ ये।

साथ छोड़े चाम देखो।
साथ देता राम देखो।
रूठती इक दिन जवानी।
उम्र ये रुकना न जानी।

आँसुओं की धार देखो।
प्रेमियों की हार देखो।
प्यार का दुश्मन जमाना।
प्यार का मतलब न जाना।

काव्य की रसधार देखो।
कवि हृदय के तार देखो।
शब्द लेती भावनाएं।
कुछ अधूरी कामनाएं।

जिंदगी का सार देखो।
प्यार का व्यापार देखो।
प्यार की प्यासी निगाहें।
तात माँ की सर्द आहें।

ये अनोखी रीत देखो।
आज बिकती प्रीत देखो।
कौन किसका मीत जग में।
है धनी की जीत जग में।।

ललित
12
नोट

चाँद कुछ गुमसुम हुआ है।
चाँदनी देती दुआ है।
नोट की भूलो तिजोरी।
मैं तुम्हारी हूँ चकोरी।

आसमाँ को हम छुएंगें।
नोट के बिन ही जिएंगें।
कम न होगी उम्र सारी।
प्यार की अपने खुमारी।

नोट काले अब मरेंगें।
श्वेत को पैदा करेंगें।
भ्रष्ट का मुँह आज काला।
भोर में निकला दिवाला।

'ललित'

13
पुराने नोट

आज तक जो था हमारा।
पाँच सौ का नोट प्यारा।
आज रुसवा हो गया है।
कागजों में खो गया है।

लोग सारे भागते हैं।
रातभर अब जागते हैं।
नोट की गिनती करें वो।
काँपकर विनती करें वो।

ये पुराने नोट ले लो
नोट ताजा आज दे दो।
एक बारी माफ करना।
मत तिजोरी साफ करना।

नोट क्यूँ जोड़े वहाँ पर?
थे बड़े घोड़े जहाँ पर।
खर्च खुलकर कैश करते।
जिंदगी में ऐश करते।

अब जरा देखो नतीजा।
नोट में मिलता न पीजा।
मत रखो कुछ कैश बाकी।
खूब करलो ऐश बाकी।

भ्रष्ट नेता आज रोते।
रह गए सब बाज सोते।
काश मोदी जान पाते।
नोट हमको क्यों सताते?

ललित

14
राधा कृष्ण

हाथ जोड़ूँ श्याम सैयाँ।
थाम ले तू आज बैयाँ।
है घटा घनघोर छायी।
कामना मन में समायी।

देख सावन की बहारें।
और बरखा की फुहारें।
दिल बड़ा चंचल हुआ है।
प्रीत ने मन को छुआ है।

बाँसुरी ये सौत मेरी।
क्यों बनी है प्रीत तेरी?
आज इसको दे भगा तू।
अंग से मुझको लगा तू।

ललित
15
सावन

चाँद वो ओझल हुआ है।
बादलों से छल हुआ है।
बारिशों में दम नहीं है।
चाँदनी को गम नहीं है

है बरसता खूब सावन।
बादलों में खो रहा मन।
प्यार की प्यासी जवानी।
आज नाचे है दिवानी।

गम कहीं सब खो गए हैं।
होंठ चंचल हो गए हैं।
दो वदन इक जान होते।
देख बादल क्यों न रोते।

ललित

🙏😄🙏😄🙏😄

16
गोपियाँ

श्याम मोहन साँवरे तुम।
कर गये क्यों बावरे तुम।
राधिका वन वन पुकारे।
नैन रो रो कर न हारे।

गोपियों की पीर देखो।
नैन में है नीर देखो।
प्रीत के वादे तुम्हारे।
प्राण ले लेंगें हमारे।

बस गये हर रोम में तुम।
ढूँढते हैं व्योम में हम।
चाहते सुनना मुरलिया।
पाँव में बाँधे पयलिया।

'ललित'

      

गीतिका छंद-गीत

गीतिका छंद
गीत
माँ

गम विदाई का तुम्हारी,माँ मुझे दहला रहा।
वो तुम्हारा स्नेह मन को,आज भी सहला रहा।

रोज पाता था जहाँ मैं,दो जहाँ का प्यार माँ।
खोजता मैं फिर रहा हूँ,फिर वही संसार माँ।
वो तुम्हारी झिड़कियाँ भी,याद आती हैं मुझे।
आज भी जो मुश्किलों में,पथ दिखाती हैं मुझे।

ये तुम्हारा ढीठ बबुआ,आदमी कहला रहा।
वो तुम्हारा स्नेह मन को आज भी सहला रहा।

याद मुझको आ रही हैं,प्यार की वो थपकियाँ।
औ'तुम्हारी गोद में ली,नींद की वो झपकियाँ।
वो तुम्हारा गोद में ले,चूमना भी याद है।
फिर मुझे झूले झुलाकर ,झूमना भी याद है।

माँ तुम्हारे नैन का मैं,स्वप्न था पहला रहा।
वो तुम्हारा स्नेह मन को आज भी सहला रहा।

जिन्दगी की जंग लड़ना,माँ तुम्हीं सिखला गईं।
बन्दगी का रासता भी,हाँ तुम्हीं दिखला गईं।
नेकचलनी भी सिखाई,माँ तुम्हीं ने थी मुझे ।
प्यार की हर धुन सुनाई,माँ तुम्हीं में दी मुझे।

आज हर इक शख्स मुझको,झूँठ से बहला रहा।
वो तुम्हारा स्नेह मन को आज भी सहला रहा।

ललित

छंद मनोरम रचना

छंद मनोरम
जिंदगी

जिंदगी ने जो सिखाया।
वक्त ने जो कुछ दिखाया।
हाथ कुछ आया नहीं वो।
मुट्ठियाँ खाली रहीं वो।

ये फसाना है पुराना।
जिंदगी है इक तराना।
कौन गा पाया सुरों में।
जिंदगी उलझी धुरों में।

दिल गमों के गीत गाये।
आज मौसम छू न पाये।
प्रीत को गम खा रहा है।
घोर तम अब छा रहा है।

देह भी मुख मोड़ती है।
ख्वाहिशें दम तोड़ती हैं।
प्यार का नकली खजाना।
क्या खुशी देगा न जाना।

'ललित'

मधुमालती छंद

मधुमालती

मधुमालती छंद
जन्माष्टमी पर विशेष
महारास

वो गोपियाँ का साँवरा।
वंशी बजाता बावरा।
बाँका बिहारी लाल था।
जो दानवों का काल था।

राधा दिवानी श्याम की।
उस साँवरे के नाम की।
उसकी मुरलिया जब बजे।
बस प्रीत के ही सुर सजें।

राधा करे यह कामना।
हो श्याम से जब सामना।
दूजा न कोई पास हो।
मनमोहना का रास हो।

वंशी अधर से दूर हो।
बस राधिका का नूर हो।
इक टक निहारे साँवरा।
इस प्रेयसी को बावरा।

कैसी निराली प्रीत थी।
जिसमें न कोई रीत थी।
वो राधिकामय श्याम था।
या रास का विश्राम था।

हर ओर सुंदर श्याम था।
हर छोर रस मय नाम था।
था राधिका का साँवरा।
या रासमय था बावरा।

वो भूल खुद ही को गई।
बस श्याम में ही खो गई।
चलने लगी पुरवाइयाँ।
बजने लगीं शहनाइयाँ।

वो चाँदनी में रास था।
या चाँद का सहवास था।
मुरली बजाता श्याम था।
या श्याम ही गुमनाम था।

यह प्यार का विश्वास था।
या मद भरा अहसास था।
परमातमा से मेल था।
या आत्म रस का खेल था।

वो आत्म रस का बोध था।
या प्रेम रस का मोद था।
निजतत्व का आभास था।
या तत्व ही अब पास था।

दो ज्योतियाँ थी नाचती।
हर ज्योत में इक आँच थी।
दो रश्मियाँ थी घुल रही।
सब गुत्थियाँ थी खुल रही।

चारों दिशा उल्लास था।
मनमोहना का रास था।
कान्हा दिखे हर ओर था।
चंचल बड़ा चितचोर था।

परमात्म का वह रास था।
यह गोपियों को भास था।
मुरली मनोहर श्याम था।
जो नाचता निष्काम था।

'ललित'

छद श्री सम्मान