मधुमालती छंद

मधुमालती

मधुमालती छंद
जन्माष्टमी पर विशेष
महारास

वो गोपियाँ का साँवरा।
वंशी बजाता बावरा।
बाँका बिहारी लाल था।
जो दानवों का काल था।

राधा दिवानी श्याम की।
उस साँवरे के नाम की।
उसकी मुरलिया जब बजे।
बस प्रीत के ही सुर सजें।

राधा करे यह कामना।
हो श्याम से जब सामना।
दूजा न कोई पास हो।
मनमोहना का रास हो।

वंशी अधर से दूर हो।
बस राधिका का नूर हो।
इक टक निहारे साँवरा।
इस प्रेयसी को बावरा।

कैसी निराली प्रीत थी।
जिसमें न कोई रीत थी।
वो राधिकामय श्याम था।
या रास का विश्राम था।

हर ओर सुंदर श्याम था।
हर छोर रस मय नाम था।
था राधिका का साँवरा।
या रासमय था बावरा।

वो भूल खुद ही को गई।
बस श्याम में ही खो गई।
चलने लगी पुरवाइयाँ।
बजने लगीं शहनाइयाँ।

वो चाँदनी में रास था।
या चाँद का सहवास था।
मुरली बजाता श्याम था।
या श्याम ही गुमनाम था।

यह प्यार का विश्वास था।
या मद भरा अहसास था।
परमातमा से मेल था।
या आत्म रस का खेल था।

वो आत्म रस का बोध था।
या प्रेम रस का मोद था।
निजतत्व का आभास था।
या तत्व ही अब पास था।

दो ज्योतियाँ थी नाचती।
हर ज्योत में इक आँच थी।
दो रश्मियाँ थी घुल रही।
सब गुत्थियाँ थी खुल रही।

चारों दिशा उल्लास था।
मनमोहना का रास था।
कान्हा दिखे हर ओर था।
चंचल बड़ा चितचोर था।

परमात्म का वह रास था।
यह गोपियों को भास था।
मुरली मनोहर श्याम था।
जो नाचता निष्काम था।

'ललित'

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