छंद मनोरम रचना

छंद मनोरम
जिंदगी

जिंदगी ने जो सिखाया।
वक्त ने जो कुछ दिखाया।
हाथ कुछ आया नहीं वो।
मुट्ठियाँ खाली रहीं वो।

ये फसाना है पुराना।
जिंदगी है इक तराना।
कौन गा पाया सुरों में।
जिंदगी उलझी धुरों में।

दिल गमों के गीत गाये।
आज मौसम छू न पाये।
प्रीत को गम खा रहा है।
घोर तम अब छा रहा है।

देह भी मुख मोड़ती है।
ख्वाहिशें दम तोड़ती हैं।
प्यार का नकली खजाना।
क्या खुशी देगा न जाना।

'ललित'

No comments:

Post a Comment