गीतिका छंद
गीत
माँ
गम विदाई का तुम्हारी,माँ मुझे दहला रहा।
वो तुम्हारा स्नेह मन को,आज भी सहला रहा।
रोज पाता था जहाँ मैं,दो जहाँ का प्यार माँ।
खोजता मैं फिर रहा हूँ,फिर वही संसार माँ।
वो तुम्हारी झिड़कियाँ भी,याद आती हैं मुझे।
आज भी जो मुश्किलों में,पथ दिखाती हैं मुझे।
ये तुम्हारा ढीठ बबुआ,आदमी कहला रहा।
वो तुम्हारा स्नेह मन को आज भी सहला रहा।
याद मुझको आ रही हैं,प्यार की वो थपकियाँ।
औ'तुम्हारी गोद में ली,नींद की वो झपकियाँ।
वो तुम्हारा गोद में ले,चूमना भी याद है।
फिर मुझे झूले झुलाकर ,झूमना भी याद है।
माँ तुम्हारे नैन का मैं,स्वप्न था पहला रहा।
वो तुम्हारा स्नेह मन को आज भी सहला रहा।
जिन्दगी की जंग लड़ना,माँ तुम्हीं सिखला गईं।
बन्दगी का रासता भी,हाँ तुम्हीं दिखला गईं।
नेकचलनी भी सिखाई,माँ तुम्हीं ने थी मुझे ।
प्यार की हर धुन सुनाई,माँ तुम्हीं में दी मुझे।
आज हर इक शख्स मुझको,झूँठ से बहला रहा।
वो तुम्हारा स्नेह मन को आज भी सहला रहा।
ललित
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